गुरुवार, 7 मई 2009

रात बहुत लम्बी है..


रात बहुत लम्बी है,

रात बहुत ठंडी है,

मैं जाग रहा हूँ,

मैं जाग रहा हूँ।

सामने नदी है,

पेड़ की छाया है,

पर छाया पकड़ी नहीं जा सकती।

रात बहुत लम्बी है,

रात बहुत ठंडी है,

और

मैं जाग रहा हूँ॥

महफूज़ अली

कल्पना

कल्पना

धरती के नीचे आकाश में,
चमक रहे थे तारे,
और तैर रहे थे द्वीप,
उग रहे थे बीज,
खिल रही थीं कलियाँ,
लावा और डायनासौर की हड्डियाँ।।



महफूज़ अली
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