Kashmir: Kherishu in Land of turbulence... Welcoming, Courtship,
Honeymooning and Varishu
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*"Welcome* *to Kashmir*" this I had a warm welcome by CRPF constable Mangal
Singh at Srinagar airport exit gate last year. It was my first visit to the
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एक और बड़ा अच्छा वाक़या याद आया है। बात उन दिनों की है जब मैं दसवीं क्लास में पढता था..... हमारे एक इतिहास के टीचर हुआ करते थे.... उनका नाम तो याद नही आ रहा है..... पर लंगूर नाम से पूरा स्कूल उनको जानता था.... यह नाम भी उनका इसलिए पड़ा था.... क्यूंकि एक तो वो ख़ुद भी बड़े लाल लाल थे....और दूसरा एक बार उनकी क्लास में लंगूर बन्दर घुस आया था.... तो बेचारे डर के मारे टेबल के नीचे घुस गए थे...तबसे उनका नाम लंगूर पड़ गया था......और वैसे भी लोग उनका असली नाम भूल ही चुके थे. खैर.... मैं अपने वाकये पर आता हूँ।
एक बार वो हमें क्लास में इतिहास पढ़ा रहे थे..... तो किसी चैप्टर में इटली के महान दार्शनिक दांते (Dante) का ज़िक्र आया..... तो वो जब दांते के बारे में पढ़ा रहे थे...... तभी क्या हुआ की मेरे बगल में मेरा दोस्त अरुण साईंबाबा मुहँ बंद करके हंसने लगा.... तो हम कुछ लड़कों का गैंग था... सब उसकी उसकी ओर चोर नज़रों से देखने लगे.... हमने पूछा कि 'अबे! साले हंस क्यूँ रहा है?'
तो उसने एक दूसरे लड़के की ओर इशारा कर दिया जो कि बगल में दूसरी रो में बैठा हुआ था ... हमने उस लड़के की ओर देखा तो हम लोग सारी कहानी समझ गए.... कि अरुण क्यूँ हंस रहा था?
दरअसल हमारे साथ एक लड़का पढता था जिसके दांत बिल्कुल सीधे बाहर की ओर निकले हुए थे.... तो अब हमारी क्लास में एक और नामकरण हो गया....उस बेचारे लड़के का नाम दांते पड़ गया...... उसके दाँत इतने बाहर थे कि मुंह बंद करने के बाद भी बाहर ही रहते थे.....और वो बेचारा अक्सर टीचर से डांट खा जाता था कि 'तुम बिना बात हँस क्यों रहे हो ?' तब पूरी क्लास एक सुर में बोलती थी, 'नहीं सर!!!!! इसके दाँत ही ऐसे हैं ...' बेचारा टीचर भी झेल जाता था कई बार.
और उस बेचारे का नाम दांते ऐसा पडा कि सही बता रहा हूँ....आज भी उसको हम लोग दांते ही बुलाते हैं..... ख़ैर ! आजकल वो भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में साइंटिस्ट है॥
सोमवार, 30 नवंबर 2009
अबे! साले, हंस क्यूँ रहा है?
एक और बड़ा अच्छा वाक़या याद आया है। बात उन दिनों की है जब मैं दसवीं क्लास में पढता था..... हमारे एक इतिहास के टीचर हुआ करते थे.... उनका नाम तो याद नही आ रहा है..... पर लंगूर नाम से पूरा स्कूल उनको जानता था.... यह नाम भी उनका इसलिए पड़ा था.... क्यूंकि एक तो वो ख़ुद भी बड़े लाल लाल थे....और दूसरा एक बार उनकी क्लास में लंगूर बन्दर घुस आया था.... तो बेचारे डर के मारे टेबल के नीचे घुस गए थे...तबसे उनका नाम लंगूर पड़ गया था......और वैसे भी लोग उनका असली नाम भूल ही चुके थे. खैर.... मैं अपने वाकये पर आता हूँ।
एक बार वो हमें क्लास में इतिहास पढ़ा रहे थे..... तो किसी चैप्टर में इटली के महान दार्शनिक दांते (Dante) का ज़िक्र आया..... तो वो जब दांते के बारे में पढ़ा रहे थे...... तभी क्या हुआ की मेरे बगल में मेरा दोस्त अरुण साईंबाबा मुहँ बंद करके हंसने लगा.... तो हम कुछ लड़कों का गैंग था... सब उसकी उसकी ओर चोर नज़रों से देखने लगे.... हमने पूछा कि 'अबे! साले हंस क्यूँ रहा है?'
तो उसने एक दूसरे लड़के की ओर इशारा कर दिया जो कि बगल में दूसरी रो में बैठा हुआ था ... हमने उस लड़के की ओर देखा तो हम लोग सारी कहानी समझ गए.... कि अरुण क्यूँ हंस रहा था?
दरअसल हमारे साथ एक लड़का पढता था जिसके दांत बिल्कुल सीधे बाहर की ओर निकले हुए थे.... तो अब हमारी क्लास में एक और नामकरण हो गया....उस बेचारे लड़के का नाम दांते पड़ गया...... उसके दाँत इतने बाहर थे कि मुंह बंद करने के बाद भी बाहर ही रहते थे.....और वो बेचारा अक्सर टीचर से डांट खा जाता था कि 'तुम बिना बात हँस क्यों रहे हो ?' तब पूरी क्लास एक सुर में बोलती थी, 'नहीं सर!!!!! इसके दाँत ही ऐसे हैं ...' बेचारा टीचर भी झेल जाता था कई बार.
और उस बेचारे का नाम दांते ऐसा पडा कि सही बता रहा हूँ....आज भी उसको हम लोग दांते ही बुलाते हैं..... ख़ैर ! आजकल वो भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में साइंटिस्ट है॥
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मेरे बारे में
- डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali)
- पेशे से प्रवक्ता और अपना व्यापार. मैंने गोरखपुर विश्वविद्यालय से एम्.कॉम व डॉ. राम मनोहर लोहिया विश्वविद्यालय,फैजाबाद से एम्.ए.(अर्थशास्त्र) तथा पूर्वांचल विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. की उपाधि ली है. I.G.N.O.U. से सन २००५ में PGJMC किया और सन् 2007 में MBA किया. पूर्णकालिक रूप से अपना व्यापार भी देख रहा हूं व शौकिया तौर पर कई कालेजों में भी अतिथि प्रवक्ता के रूप में अपनी सेवाएं देता हूं. पढ़ना और पढ़ाना मेरा शौक़ है. अंग्रेज़ी में मुझे मेरी कविता 'For a missing child' के लिए अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है. मेरी अंग्रेजी कविताओं का संकलन 'Eternal Portraits' के नाम से बाज़ार में उपलब्ध है,जो की Penguin Publishers द्वारा प्रकाशित है. अंग्रेजी में मैंने अब तक क़रीब 2600 कविताएं लिखी हैं. हंस, वागर्थ, कादम्बिनी से होते हुए ...अंतर्राष्ट्रीय हिंदी मासिक पत्रिका 'पुरवाई' जो की लन्दन से प्रकाशित होती है ...में प्रकाशित हुआ, तबसे हिंदी का सफ़र जारी है... मेरी हिंदी कविताओं का संकलन 'सूखी बारिश' जो की सन् 2006 में मुदित प्रकाशन से प्रकाशित है... मैं करता हूं कि मेरा ब्लॉग मेरे पाठकों को ज़रूर अच्छा लगेगा... आपकी टिप्पणियां मेरा हौसला बढ़ाती हैं. इसलिए मेरी रचनाएं पढ़ने के बाद अपनी अमूल्य टिप्पणी ज़रूर दें.मेरा प्रमुख ब्लॉग 'लेखनी’ है.
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