
ये छोटे छोटे पल न जाने क्यूँ याद आते हैं?
कभी तो दगा देते हैं
कभी पंख लगा कर यूँ मन में
उड़ जाते हैं जंगल में
जहाँ पर छूटा बचपन का एक कोना
और
दूर देश से आते बादल
न जानें कुछ कहते हैं।
बीता पल बचपन का
मैं फिर न पा सकूं
बस, एक याद बन कर रह जाए।
आज बैठता हूँ झुंड में कभी
तो मैं कहता हूँ
हाँ!
वो मेरी यादें हैं बचपन की
और सुनाने के लिए कहानी कुछ।
उन पलों को आज भी मैं भूलता नहीं
दे जाते हैं मन को दर्द कुछ
और
दूर देश से आते बादल
न जाने कुछ कह जाते हैं॥
महफूज़ अली