अभी लौटा हूँ गोरखपुर से तो रस्ते में कविता लिखी. अच्छा ट्रेन एक ऐसी जगह है जहाँ आपके साथ वेरायटीज़ ऑफ़ घटनाएँ घटती रहतीं हैं. आज हुआ क्या कि हमने देखा कि पैसे में बहुत बड़ी ताक़त होती है ...हम हमेशा जनरल का टिकट लेते हैं पर बैठते ए.सी. में ही हैं... आज जिस आदमी की आर.ए.सी. कन्फर्म होनी थी टी टी ने वो बर्थ हमें दे दी. हम भी चौड़े होकर अपनी बर्थ लेकर दोनों पैर फैला कर बैठ गए. इसी बीच में शिवम् का फोन आया कि भैया बधाई हो. हम बड़े परेशां कि शिवम् को कैसे पता चला कि हमने आर.ए.सी. वाले की बर्थ झटक ली है? तो पता चला कि हमें दोबारा कहीं का प्रेसिडेंट बना दिया गया है. शिवम् ने हमसे बताया कि फलाने ब्लॉग पर है हम खुद शिवम् के ब्लॉग पर नहीं जाते हैं तो उस फलाने ब्लॉग कैसे जाते? लेदेकर हम सिर्फ प्रवीण पाण्डेय, डॉ, दराल और सिवाय शिखा के कहीं नहीं जाते तो भला उस ब्लॉग पर कैसे जाते? हमने कहा कि भई शिवम् हम चीज़ ही ऐसी हैं कि कौन हमें क्या क्या बना देता है हमें भी नहीं पता चलता ... कौन क्या करता है उससे मुझे क्या मतलब? इसी तरह कई बार हम चूतिया और बेवकूफ भी बन जाते हैं...वैसे यह दोनों हम सिर्फ प्यार में ही बनते हैं. हम यह जानते हैं कि जिस दिन हम अगर कुछ भी बनना चाहें न तो तो वो बन कर ही रहेंगे, कोई अगर नहीं भी बनाएगा तो भी हमारे में वो ताक़त है कि हम खुद को बनवा ही लेंगे. हम तो ऐसे आदमी हैं जो शांत रहते हैं जब तक के कोई छेड़े न ... अगर किसी ने छेड़ दिया तो हम बर्रा का छत्ता बन जाते हैं. अरे बाप रे .. देखिये हम भी कितने बड़े वो हैं हम कहाँ कविता की बात कर रहे थे... और कहाँ हम फ़ालतू की बकवास ले कर बैठ गए. आईये भई... ज़रा हमारी कविता भी पढ़ी जाये..
(बिना हमारी फोटो के हमारी पोस्ट ही नहीं पूरी होती, यह हम अभी घूमने गए थे)
ख़ुराक भर ज़िन्दगी
मेरे अंदर का पहाड़
अब हिचकोले नहीं खाता,
उसे
कोफ़्त नहीं होती
इस कमरे से
उस बरामदे के
सफ़र के बीच
और ख़ुराक भर ज़िन्दगी से..