सोमवार, 20 जुलाई 2009

दम-साज़


रात में ख़ामोश चाँद हो तुम...

उस चाँद की पहली चांदनी हो तुम,

फूलों की कली, फ़रों से बनीं,

इत्र की खुशबू हो तुम,

खो गया मैं तेरे प्यार में,

उस दाश्तह की पहचान हो तुम..........

ग़र्क़-ऐ-बहर-ऐ-फ़ना "महफूज़",

मेरे हमसफ़र और दम-साज़ हो तुम... .... ..... ...... ..... .....




महफूज़ अली
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