धीरे धीरे मैंने
उसके भीतर
सुख उंडेलने की शुरुआत की
और
उसकी पलकों के नीचे
और ऊपर की चमड़ी
झुर्रियाने लगी
आँख बंद होती चली गयीं,
होंठ सीटियाँ बजाने लगे ...
मैं रिसने को बेचैन
अपनी गति बढाने जा रहा था।
गति बढती है तो
कसाव निर्मम हो जाता है
और आदमी
भीतर की घुटन बाहर धकेल कर
आज़ाद हो जाता है।