सोमवार, 20 फ़रवरी 2012

एक नालायक की आप-बीती और जड़ का प्रमाण: महफूज़


 सोचता हूँ  कि  अपने नाम के आगे डॉ. लगा लूं.. हाँ! भई.. आख़िर पी.एच.डी. किये हुए आज आठ साल हो गए हैं और अब तो दूसरी  पी.एच.डी.भी तैयार है. लेकिन पता नहीं क्यूँ अजीब लगता है? मेरा ऐसा मानना  है कि पी.एच.डी. नालायक लोग करते हैं, यही एक ऐसी क्वालिफिकेशन है जिसके बारे में कभी कोई सवाल नहीं होता. यही एक ऐसी क्वालिफिकेशन है जिसके लिए आपको पढना नहीं पड़ता सिर्फ अपने गाइड को तेल लगाते रहिये. यही एक ऐसी क्वालिफिकेशन है जिसके बारे में कभी किसी भी इंटरविउ में कोई सवाल नहीं होता आपसे सिर्फ रिसर्च मेथडोलॉजी पूछी जाती है. अगर कोई इतना ही इंटेलिजेंट होता है तो पी.एच.डी. नहीं करता. जिस प्रकार एक साहित्यकार (जो आखिरकार नालायक ही साबित होता है) को उसकी डेथ बेड पर साहित्य सम्मान दिया जाता है उसी प्रकार पी.एच.डी. आपकी क्वालिफिकेशन का अल्टीमेट सर्टिफिकेशन होती है. 

मेरी शक्ल मेडिकल डॉक्टर जैसी है. मैं जब भी लखनऊ के के.जी.एम.सी. मेडिकल कॉलेज जाता हूँ तो वहां के कई जूनियर मुझे सीनियर समझ लेते हैं और जहाँपनाह वाले अंदाज़ में तीन बार सलाम ठोंक देते हैं. मेरी सिचुएशन बहुत अजीब होती है तब. कई बार तो मुझे बहुत सारे पेशेंट्स डॉक्टर समझ कर घेर लेते  हैं.  अब तो मेडिकल कॉलेज में भी फाइनल इयर में मैनेजमेंट के एक-आध सब्जेक्ट्स पढ़ाए जाते हैं और जब मुझे अपना नाम डॉ. (महफूज़ अली) के साथ बताना पड़ता है तो मेरा चेहरा अजीब सा हो जाता है. मैं ख़ुद को बड़ा नालायक फील करता हूँ. सोचता हूँ अगर इतना ही इंटेलिजेंट होता तो भई पी.एच.डी. क्यूँ करता? 

अगर कोई बच्चा वाकई में इंटेलिजेंट होता है तो वो बारहवीं के बाद ही आई.आई.टी./मेडिकल/एस.सी.आर.ऐ./एन.डी.ऐ/या होटल मैनेजमेंट में निकल जायेगा. उसके बाद जो एवरेज होगा वो ग्रेजुएशन/पोस्ट ग्रेजुएशन  के बाद सी.डी.एस. / बैंक पी.ओ./ सिविल सर्विसेस/ लेक्चरार/या यू.जी.सी./गेट/मैट पास करके निकल जायेगा. जो इनमें से कुछ भी नहीं बन पायेगा वो और आगे पढ़ता हुआ पी.एच.डी. करेगा और फ़िर ज़िन्दगी भर भी कुछ नहीं करेगा. हमने तो भई यू.जी.सी. जे.आर.ऍफ़. लिया था और सिविल सर्विसेस में भी दो बार इंटरविउ तक पहुंचे थे. 

जब कोई बच्चा स्कूल टाइम से लेकर कॉलेज तक में नालायक होता है. हाई स्कूल और बारहवीं में घिस घास कर पास होता है... ना डॉक्टर बनने लायक होता है ना इंजिनियर, ना आई.ऐ.एस. बनने लायक होता है ना प्रोफ़ेसर, ना पौलिटीशियन बनने लायक होता है ना बिजनेसमैन, ना टीचर बनने लायक होता है ना चपरासी, ना लेखक बनने लायक होता है ना कवि. ऐसा बच्चा बड़ा होकर 'पत्रकार' बन जाता है ... या... किसी जागरण/ज़ेवियर/घोरहू-कतवारू  इंस्टीट्युट ऑफ़ मॉस कम्युनिकेशन टाईप के संस्था से डिप्लोमा लेकर 'एंकर' बन जाता है. 

वैसे मैं तो अपने  नाम के साथ नेट (इंटर) पर डॉ. इसीलिए नहीं लगाता हूँ कि कौन अपना बचपना ख़त्म करे. नोर्मल लाइफ में तो सीरियस ही रहना पड़ता है एक यही तो वर्चुयल दुनिया है जहाँ थोडा बहुत बचपना इस उम्र में भी दिखा सकता हूँ. 

इस उम्र से ध्यान में आया कि मैं हमेशा लोगों को सलाह दूंगा कि भई एक्सरसाइज़ ज़रूर किया करें और खाना बहुत सोच समझ कर खाएं . इससे क्या होता है ना कि आप ख़ुद ही अपनी उम्र को धोखा दे देंगे. अभी क्या हुआ ना कि लखनऊ में प्रगतिशील लेखक संघ के मीटिंग में लंच के दौरान जब प्रज्ञा पाण्डेय जी, सुशीला पूरी जी, उषा राय जी और प्रज्ञा जी की एक बहुत ही अच्छी सहेली हैं किरण जी जो कि बहुत ही नामी साहित्यकार   हैं और हमेशा हंस/वागर्थ में छपती रहती हैं (इन्होने मुझे बचवा कह कर पुकारा था) को जब मैंने अपनी उम्र बताई तो सब थोड़ी देर के लिए परेशान हो गईं थीं और मैं बहुत खुश. सब लोग सोचते होंगे मुझे कि कितना आत्ममुग्ध इन्सान है? ख़ैर.....


जिन दिनों नहीं कुछ लिख रहा था... तो... उन दिनों कविता लिखी थी. अब लिखी तो कई सारी हैं... लेकिन ब्लॉग पर धीरे धीरे रोज़मर्रा ज़िन्दगी में से टाइम निकाल कर डाल रहा हूँ. तो प्लीज़ ...यू ऑल आर रिक्वेस्टेड टू हैव अ स्लाईट ग्लैन्स ओवर माय कविता इन हिंदी

जड़ का प्रमाण
-----------------

यह नींद भी कितनी अजीब है,
पलकें बाहर से बंद कर लो
और आँखें 
अंदर खुल जातीं हैं. 
मैं अपनी नींद के भीतर 
सालों से जागते हुए 
देख रहा हूँ ----
एक अंकुर को फूटते हुए
पर मैं जड़ बनने को तैयार नहीं हूँ ....
कब तक मैं भीतर रह कर 
औरों को इंधन पहुंचाता रहूँगा?
जड़ का प्रमाण ही यही है,
कि पौधा फलों को 
जन्म देकर 
उन्हें जवानी तक पहुंचाने में दम तोड़ 
देता है. 

(c) महफूज़ अली 

इंधन=Fuel
प्रमाण=Evidence
जवानी=youth
अंकुर=Baby Plant  (यह कुछ हिंदी के टफ वर्ड्स हैं जिन्हें मुझे डिक्शनरी में देखने पड़े हैं)

उम्मीद है कि कविता अच्छी लगी होगी. पिछले साल अगस्त में लिखी थी.  अब भई.. मेरा मनपसंद गाना देखिये भी और सुनिए भी.


बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

फलसफा रिश्तों का : महफूज़ (Mahfooz)



मुझे ऐसा लगता है कि हमारे ज़िन्दगी में एक वक़्त ऐसा आता है कि जितने भी गैर ज़रूरी चीज़ें या लोग हैं वो अपने आप फिल्टर हो जाते हैं. ऊपरवाला हमारे लिए हमेशा अच्छा ही सोचता है और वो खुद ही ऐसे लोगों को हमारे ज़िन्दगी से गायब कर देता है जो हमारे लिए आगे चल कर नुकसानदायक होंगे. ऊपरवाला हमें हमारी ज़िन्दगी में ऐसे बहुत से लोगों से मिलवाता है जिनसे हमें वो ज़िन्दगी का सबक सिखाता है. और फिर हमें किसी ऐसे से मिलवा देता है जो सिर्फ हमारे लिए ही बना होता है और हम ऐसी कोई गलती नहीं करते जो हमने अपने पिछले संबंधों में किये  थे. कोई ज़रूरी नहीं है कि जिससे वो हमें मिलवाये वो हमारा ज़िन्दगी भर का हो जाये , वो ऐसा भी कर सकता है कि उसे आपका हमसफ़र ना बना कर हमसाया बना देता है. 
(फ़ोटोज़ का ब्लॉग पोस्ट्स से कोई लेना देना नहीं है, आई डोन'ट वॉंट टू स्टील फ्रॉम गूगल विंक..विंक..)



रिश्तों का फलसफा....

कैरेक्टर हमेशा 
बिकता है 
बस बिकता और सिर्फ बिकता है.....
मोम जलता नहीं है 
पिघलता है 
और 
उसके बीच में फंसा हुआ 
धागा जलता है ....
जलता है 
और लगातार जलता है,
जब तक धागा जलता है 
मोम पिघलता रहता है. 

                  जैसे ही उसने केक काटा 
                     और मोमबत्ती बुझाई 
                   एक साल और कट गया 
                 और ज़िन्दगी एक बार और बुझ गयी 
                          कटने और बुझने की .....
                 शिकायत की कहानी है ज़िन्दगी.

मोम के बीच फंसी हुई ज़िन्दगी 
धागे की तरह धीरे धीरे जलती है 
और जिस्म ...
धागे के ख़त्म होने तक लगातार 
पिघलता है 
जब धागा पूरी तरह
जल जाता है तो
मोम .....
रिश्तों के डेस्क पर फैलता है
और 
पसर जाता है. 

(c) महफूज़ अली 


अब एक बहुत ही खूबसूरत गाना देखिये/सुनिए. बड़ा मज़ा आएगा, ऐसे गानों को आँख बंद करके सुनने में ही मज़ा आता है. दिस टाईप ऑफ़ सोंग इस ऑलवेज़ फॉर डेडिकेशन....


सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

महिलायें सावधान: महफूज़


फेसबुक पर डॉ. मृणालिनी ने अपने स्टेटस पर जब यह डाला " ATTENTION ALL MY LADY FRIENDS....THERE ARE SOME CREEPS ON FACEBOOK LIKE HOW WE HAVE IN SOCIETY WHO ARE TRACKING MIDDLE AGED RICH WOMAN BEFRIENDING THEM BEING EMOTIONAL AND TALKING GOOD JUST TO EXPLOIT...IDENTIFY AND KICK THEM ON THEIR..Butttts.............."  तो मुझे बहुत आश्चर्य हुआ. उनसे पता चला कि ऐसा काफी फेसबुक और ब्लॉग की महिलाओं के साथ हुआ है. मैंने उन्हें बताया कि मैं भी ऐसी बहुत सी महिलाओं को जानता हूँ जिनके साथ ऐसा हुआ है. कुछ को तो मैने ही उन महिलाओं के कहने पर भगाया और कुछ को इसीलिए कुछ नहीं कह पाया क्यूंकि उन महिलाओं की डिग्निटी का सवाल था. अब सोचने वाली बात यह है कि आख़िर ऐसा होता क्यूँ है? क्या महिलायें गलत हैं? या फ़िर वो पुरुषों की ही गलती है? थोडा सोचने पर निष्कर्ष यही निकला यह सारी प्रॉब्लम साइकोलॉजिकल और इमोशनल है. मिडल एज में आ कर एक पॉइंट ऐसा आता है कि कुछ अलग की रिक्वायरमेंट होती है और वो अलग को पाने के उसमें महिलायें कुछ ऐसे पुरुषों के चक्कर में फंस जातीं है. ऐसे पुरुष भी बहुत शातिर किस्म के होते हैं, वो बातों के दौरान कमज़ोरी जान लेते हैं और फ़िर उसी कमज़ोर पॉइंट पर हिट करते हैं और महिला को इमोशनल औरा में लेकर सेक्सुअल और फाइनेंशियल बेनेफिट लेते हैं या लेने की कोशिश करते हैं. और जब यह दोनों ही फुल्फिल्मेंट नहीं होता है तो उस महिला को ब्लैकमेल या परेशान करते हैं.

मैंने वही सोचा कि क्यूँ ना एक ऐसी पोस्ट लिखी जाए और महिलाओं को यह बताया (सावधान किया) जाए कि इस प्रकार के पुरुषों की पहचान कैसे की जाए और इनसे कैसे बचा जाए? इस प्रकार के पुरुष कई तरह के हथकंडे अपनाते हैं महिलाओं को फांसने के लिए. आईये जाने वो कौन से पैंतरे चलते हैं जिससे कि महिला पूरी तरह से उनके जाल में आ जाये:---------
  • जब कोई पुरुष बिना मतलब में आपके प्रोफाइल और प्रोफाइल पिक्चर की तारीफ़ करे और यह कहे कि आप बहुत सुंदर हैं.
  • आपके शारीरिक अंगों जैसे आँखें, बाल, नाक इत्यादि की बेवजह तारीफ़ करे भले ही आप उतनी ख़ूबसूरत ना हों.
  • आपसे पारिवारिक जानकारी लेने की यूँ ही कोशिश करे. 
  • आपके किसी भी फ़ालतू लिखे हुए कविता, शे'र, कहानी, आपबीती की जमकर तारीफ़ करे और तारीफ में पास आने की कोशिश करे. 
  • आपको हिंदुस्तान का शेक्सपियर बताये.
  • आपकी किसी सहेली की आपसे बुराई करे और उस सहेली को आपसे लडवाए.
  • आपकी सुन्दरता की तारीफ़ किसी अंदाज़ में करे. 
  • अगर आपने गुड नाईट भी लिखा तो उस पर लम्बे चौड़े कमेन्ट दे. 
  • आपके पति या बच्चों की तारीफ़ करे. 
  • आपके फेसबुक में प्राइवेट लव मेसेजेज़ छोड़े. 
  • अपनी जवानी के समय की फ़ोटोज़ दिखाए. 
  • अपने बीस साल के बच्चे को पांच साल का बताये. 
  • अगर आपने कोई (वाहियात सी) किताब लिखी है उसकी बिना मतलब में आपसे बिना पूछे उसकी समीक्षा करने बैठ जाये. 
  • ज़बरदस्ती आपकी लिखी हुई  किताब की तारीफ़ करे. 
  • कोई जब यह कहे की आप बहुत अच्छा लिखती हैं .. मैं आपकी किताब छापना चाहता हूँ. (ऐसे पुरुषों से फ़ौरन यह सवाल करिए कि कितने पुरुषों की  किताब उसने छापी है?)
  • आपके शहर की तारीफ़ करे. 
  • जब कोई बिना मतलब में आपको साहित्यकार बोले. (साहित्यकार होते तो यहाँ नहीं होते जग में नाम होता)
  • कई अखबारों में काम करने वाले पुरुष महिलाओं की छपास की आदत को जानते हुए छापने की ज़िद करते हैं, ऐसे पुरुषों  से दूर रहिये. उनसे यही सवाल करिए कि भई अगर तू इतना ही इंटेलिजेंट होता तो कहीं और होता? 
  • कई पुरुष पत्रकार (नालायक) सिर्फ महिलाओं से ही बोलते हैं कि हम आपको छापेंगे. इनसे दूर रहिये.
  • कई ऐसे पुरुष भी मिलेंगे जो ऐसे अखबारों में काम करते हैं जिनका नाम भी कभी नहीं सुना होता है वो महिलाओं को छाप कर उन्हें पुदीने की झाड पर चढाते हैं. ऐसे लोगों से दूर रहिये. 
  • आपसे अपनी बीवी की बुराई करे. 
  • आपसे ख़ुद को कामदेव का अवतार बताये. 
  • ज़बरदस्ती सेक्सुअल टॉक्स पर आये. 
  • अपने और आपके ओरगेन को डिस्कस करने की कोशिश करे (बिना प्यार में इन्वोल्व हुए). 
  • आपको यह भी कहे कि कहीं देखा है.
  • ध्यान रहे बहूत कम महिलायें इंटेलिजेंट होतीं हैं और कोई पुरुष जब आपको इंटेलिजेंट बताये तो संभल जाएँ.
  • आपसे बात करते हुए अचानक रो पड़े और यह रोते रोते अपनी बीवी और बच्चों की बुराई करे और फ़िर यह भी कहे कि माँ याद आ गई. 
  • बात करते करते किसी गर्लफ्रेंड/बीवी को यह कहे कि वो मुझे छोड़ कर चली गई . 
  • अपनी बीवी को अपने मरे हुए भाई की बीवी बताये... और यह कहे रोते रोते कि मुझे मज़बूरी में भैया के मरने के बाद इससे शादी करनी पड़ी है,.  
  • कोई जब अपनी बीवी को लेस्बियन बताये. 
  • और अपनी प्रोफेशनल टेंशन को बार बार हाईलाईट करे. 
  • विदेशों में रहने वाली महिलाओं को टार्गेट कर उनसे पैसे डिमांड करे. 
  • मिडल एज में भी आपको स्वीट सिक्सटीन बताये. 
  • और ख़ुद को महफूज़ अली जैसा हैंडसम बताये. 
मैं ऐसा नहीं कहता कि सब पुरुष ऐसे होते हैं, ऐसी महिलायें भी होतीं हैं. कुछ महिलायें  भी पुरुषों को सेक्सुअल और फाइनेंशियल एडवांसमेंट  के लिए फांस्तीं है. तो ऐसी महिलाओं को उनकी मनचाही चीज़ देकर खुश रखे रहना चाहिए. उसमें पुरुषों का कुछ नहीं जाता है. जब सब म्यूचुयल है  तो कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए. चूंकि महिलाओं को परेशानी ज़्यादा होती है तो उपरोक्त बातें सिर्फ उन महिलाओं के लिए हैं. 

अब देखिये जो भी पुरुष महिलाओं पर जब भी मंडराता है तो समझ जाइये कि वो इरेक्टाइल डिसफंक्शन से ग्रसित है... वो अपना फ्रस्ट्रेशन हमेशा दूसरी महिलाओं से पींगे बढ़ा कर दूर करता है क्यूंकि उसकी बीवी उसकी सच्चाई जानती है और नेट पर रहने वाली महिला नहीं. कमज़ोर आदमी हमेशा महिलाओं के पास रहने की कोशिश करता है और गिर गिर के चापलूसी करता है. आम ज़िन्दगी में भी वही पुरुष महिलाओं को मारता है या चिल्लाता है जो फिजिकली कमज़ोर होता है, वो अपनी मर्दानगी ऐसे ही दिखाता है. सेम ऐसा ही नेट पर है देर रात तक जग कर महिलाओं के ब्लॉग पर और फेसबुक पर मंडराना और ज़बरदस्ती तारीफें करना उनका शगल होता है. अब यह महिलाओं के  ऊपर डिपेंड करता है कि वो कैसे ऐसे पुरुषों को हैंडल करतीं हैं? जब भी कोई पुरुष आस-पास मंडराए तो समझ जाईये कि बेचारा कोई खंभा नहीं उखाड़ सकता है, वो इस लायक ही नहीं होता है कि कुछ गाड़े या उखाड़े. इरेक्टाइल डिसफंक्शन से ग्रसित पुरुषों से जुड़ कर सिवाय फ्रस्ट्रेशन के कुछ नहीं मिलेगा. और जो नोर्मल मर्द होगा उसका बिहेवियर बहुत नोर्मल होगा.. ज़बरदस्ती तारीफ़ नहीं करेगा, अपने बीवी-बच्चों को ध्यान देने वाला होगा, और उसका एक टाइम शेड्यूल होगा नेट पर आने का ... वो आएगा चंद लोगों से मिलेगा बात करेगा और फ़िर सोने चले जायेगा. 
(भई, यह फोटो इसीलिए डाली है ताकि जिनको अभी मेरे ऊपर गुस्सा आ रहा होगा तो वो मुझे देख कर थोडा और फ्रस्टेट हो लें)

तो पूरा जिस्ट(सारांश) सेक्स पर ही टिका है. यह भी सोचने वाली बात है कि आख़िर हर सेक्सुअल ताक़त की दवाएं सिर्फ पुरुषों के लिए ही क्यूँ बनीं हैं? सोचियेगा ज़रा... 

आईये अब, अपना मनपसंद गाना सुनाता हूँ. ऊप्स ! दिखाता हूँ... मैं तो आजकल वैसे भी  ज़िन्दगी से बहुत प्यार करने लगा हूँ और जब हम खुश होते हैं तो हम गाने ज़रूर सुनते हैं.. 


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