आजकल मेरे पास इतना टाइम नहीं होता कि ब्लॉग पोस्ट लिखूं या फिर ब्लॉग पर भूमिकाएं लिखूं ... एक चीज़ और है जो कि समझ भी आ गयी कि ब्लॉग और फेसबुकिंग तभी हो पाती है जब आप निरे निठल्ले, बेरोजगार और बिना किसी एम्बिशन के होते हैं और ऐम्लेसली ज़िन्दगी ढो रहे होते हैं। अब तो मुझे यह नहीं समझ आता की कैसे लोग इतना टाइम निकाल कर कमेंट कर लेते हैं हालांकि ऐसी ही फ़ालतू काम मैं भी कर चूका हूँ मगर वो मेरा टाइम ही ऐसा था जो खराब चल रहा था तो और कोई काम था ही नहीं फ़ालतू में यहाँ वहां कमेन्ट करने के अलावा। जैसे आज छुट्टी है और मैं फ़ालतू हूँ कोई काम धाम है नहीं सुबह तीन घंटे जिम में बिताये ..शाम धनतेरस के उसमें शौपिंग में बीतेगी ... और रात किसी रेस्ट्राओं में ... इसी बीच नालायक, ऐम्लेस, निठल्लों की तरह फ़ालतू टाइम था तो सोचा ज़रा हिंदी ब्लॉग्गिंग कर ली जाए। हिंदी ब्लॉग्गिंग का एक फायदा यह है कि यहाँ आप जाहिलों, डिग्री धारक अनपढ़ों, ऐम्लेस लोग, और एक जगह बैठे रहने वालों से इंटरेक्शन कर के अपनी बात कह सकते हैं .. जाहिलों से इंटरेक्शन करना भी एक बहुत बड़ा आर्ट है जो मैं जानता हूँ।
अभी हिन्द पॉकेट बुक्स की ओर से मेरे पास तमाम पब्लिकेशन्स की किताबों की लिस्टिंग आई थी ... किसी भी नामी पब्लिकेशन में एक भी हिंदी का ब्लॉगर नहीं था ना ही कोई फेस्बुकिया था ... मेरे यह भी नहीं समझ में आता कि ऐसी क्यूँ खुद के ही इज्ज़त में बम लगवाना ...यहाँ वहां से लोकल लेवल पर छप कर या घर का पैसा यूँ ही नाली में बहा कर खुद को ही छपवा कर सारे मोहल्लेवालों को ज़बरदस्ती अपनी किताब पढवाना ...
अच्छा ! लोकली छपने के बाद ऐसे लोग आत्महत्या भी नहीं करते शर्म से ... कि लोकल लेवल पर छपे हैं खुद का पेट काट कर किताब छपवाई है ... भई! ऐसे छपने से तो अच्छा है आदमी तीन बार सकेसेफुल्ली सुईसाइड कर ले .... या फिर चम्मच में सूखा पानी लेकर डूब मरे ... ऐसा लगता है कि हिंदुस्तान में हर नेटिया (आई मीन नेट यूज़र) लेखक हो गया है और सबसे बड़ी बात यह है कि कोई इन्हें मानता भी नहीं फिर भी खुद को मनाने में लगे हैं ... मंथन करना ज़रूरी है ... अब चलता हूँ ... अपना क्या है ... स्कूल कॉलेज में हिंदी पढ़ी और लिखी नहीं ....यहीं इसी बात का मलाल हिंदी लिख पढ़ कर निकाल रहे हैं।
(बिना मेरी फोटो के मेरी पोस्ट अच्छी नहीं लगती ना!)
आज यूँ ही एक कविता लिखी है ... कविताओं का भी कोई भरोसा नहीं होता ... पता नहीं क्या फीलिंग्स कब आ जाए और वो एक अलग मूर्त रूप ले ले .... देखा ही जाए अब कविता तो ... आज काजल कुमार जी ने एक स्टेटस डाला है फेसबुक पर कि "ब्लौगरों के कविताओं के इतने समूह-संकलन छप रहे हैं कि लगता है कार्टून छोड़ कर कविताई कर ली जाए".... अब भाई बात भी सही है ... सारा टैलेंट यहीं भरा हुआ है ... ही ही ही ... .. निठल्ले, ऐम्लेस ... बेरोजगारों ...का समूह हो गया है अब ... अरे मैं भी ना कविता लिखना भूल गया ... पता नहीं क्यूँ मुझे दूसरों की इज्ज़त में बम लगाने में बड़ा मज़ा आता है ... और यह सब इतने नालायक हैं कि मेरा कुछ बिगाड़ भी नहीं पाते ... स्पाइंलेस फेलोज़ ... हुह ...
मैं जनता को ज़हर पीने नहीं दूंगा
फ़िल्मी गानों में भी
स्तर और लिहाज है
हिंदी का बड़ा लेखक
चुटकुले बाज़ है।
यह देश, समाज और साहित्य
के लिए
दाद है, खुजली है, खाज है।
मैंने लेखक को गाली नहीं दी
उसके पाप को दी है
जनता को डसने वाले
चुटकुले के सांप को दी है ,
कलम की जूती ही इनकी नमाज़ है।
यह चुटकुलों में शान्ति के
कबूतर उड़ाते हैं
व्यवहार में इनसे कसाई भी डर जाते हैं
इतिहास को ना जानने पर इन्हें बड़ा नाज़ है
मैं जनता को ज़हर पीने नहीं दूंगा
चुटकुलों पर इन्हें अब जीने नहीं दूंगा।
(c) महफूज़ अली