रविवार, 30 अगस्त 2009
दिन भी हो चला धुंधला, दिए की लौ भी बुझने को आई....
शुक्रवार, 28 अगस्त 2009
एक बात छूट गई, जब प्यार की ड़ाली ही टूट गई॥
गुरुवार, 27 अगस्त 2009
जब से तुमसे प्यार हुआ ? ? ? ?
सोमवार, 24 अगस्त 2009
वो पल आधा मेरा होगा और आधा ?????
शनिवार, 22 अगस्त 2009
कुछ हिन्दी हाइकू कवितायें!!!
गुरुवार, 20 अगस्त 2009
जब भी तुम्हें .......
मंगलवार, 18 अगस्त 2009
चली गयीं थीं तुम मुझे छोड़ के ,
हमेशा के लिए ...........
फिर कभी न आने के लिए .............
क्या क़ुसूर था मेरा ?
सोच रहा हूँ कि
क्यूँ होता है ऐसा ?
क्या कभी तुमसे मिल पाउँगा?
क्यूँ जो होता है सबसे प्यारा
वो ही होता है दूर हमेशा........?????
हमेशा ही रहेंगीं यह आँखें नम
और
यादें ग़मज़दा ........
तुम आज भी बसी हो मेरी साँसों में
धडकनों में,
क्यूंकि हूँ तो अंश ही तुम्हारा.....
या! ख़ुदा , एक बार मुझपर थोड़ा सा रहम कर दो,
बस एक बार मुझे मेरी माँ से मिला दो !!!!!!!
क्यूंकि यह काम है बस तुम्हारा ही.....
क्या वो तुम्हे भी इतनी पसंद आई ?????
एक ख़्वाहिश है मेरी
बस एक बार जी भर के उन्हें देख लूं
इन तरसती आंखों को थोड़ा सुकून पा लूँ .....
बस मेरी इतनी इल्तिजा है तुमसे
उनका पूरा ख़याल रखना
कभी न आंसू आए उन आंखों में
मुस्कुराए वो हमेशा की तरह ...........
उनको जन्नत बख्शना
और उनकी बगिया में हमेशा ही फूलों को महकाना ......
और अपने लिए बस मांगूं मैं इतना ही.....
हर जनम में बनाना उन्हें ही
"मेरी माँ!!"
बुधवार, 12 अगस्त 2009
ये सूखे फूल आज भी ताज़ा हैं......
तब तुम बहुत याद आती हो ,
देखता हूँ तुम्हारे दिए हुए फूलों को अब भी
जो सूखे से अब नज़र आते हैं ..........
तुम्हारे जाने से
कुछ खोता जा रहा हूँ ,
भरी भीड़ में भी अकेला
होता जा रहा हूँ.....................
चला जाता हूँ नींद के आगोशी में
करते हुए याद तुम्हें ,
तुम आती हो
ख़्वाबों में
और चली भी जाती हो ख़ामोशी से.......
आज फिर सुबह हुई है
तुम्हारे दिए हुए फूलों की
माला पिरोई है।
अब थोडी ही देर में
शाम हो जाएगी
इन सूखे हुए फूलों में थोड़ी और
महक आ जाएगी।
तुम आईं थीं मेरी ज़िन्दगी में
बारिश की तरह ,
खिल उठता था तब
मैं तुम्हें देख ,
उन्हीं फूलों की तरह ........
लौट आओ
मैं तुम्हें पाना चाहता हूँ
ये सूखे फूल आज भी ताज़ा हैं
दिखाना चाहता हूँ॥ ॥ ॥ ॥
पेश है एक और प्रेम कविता.......... see disclaimer below...............in the footer
शनिवार, 8 अगस्त 2009
मैं बैठा सोच रहा था,
ज़िन्दगी के बारे में,
जिसे सब पा लेना चाहते हैं
जिसके रंगों में रंग जाना चाहते हैं
आख़िर ये ज़िन्दगी है क्या?
ख़्वाब या धुंध?
या फिर किसी की याद?
तभी यह लगा कि
ज़िन्दगी कभी आसमाँ है,
तो कभी दरिया...........
वक्त को न तो किसी की याद है
न ही तलाश ......
वक्त तो चलते रहने का ही
दूसरा नाम है...........
और लगा आख़िर में कि
यही चलना ही ज़िन्दगी है॥
महफूज़ अली
२३.09
गुरुवार, 6 अगस्त 2009
सोमवार, 3 अगस्त 2009
बस एक बार .........चली आओ.....
तुम्हारे साथ गुज़ारे हुए ,
उन लम्हों कि याद
आज फिर मुझे
आई है।
पल भी वही हैं,
नज़रें भी
और
नज़ारे भी वही हैं...
नहीं हैं अगर कोई
तो बस तुम..........
तुम्हें उन वादों ,
उन वफ़ाओं कि कसम
बस एक बार,
सिर्फ़ एक बार........
एक पल के लिए
चली आओ
उस पल में तमाम
उम्र जी लेंगे हम॥
महफूज़ अली
(मैं अपने तमाम पाठकों के e . mails और टिप्पनिओं का बहुत शुक्रगुजार हूँ , जो आप सबने मेरी प्रेम रस की कवितओं को सराहा... दरअसल प्रेम रस एक ऐसा विषय है जिसके लिए हमारी फीलिंग्स कभी कम नहीं होतीं..... और हम सब प्रेम के उस दौर से गुज़र चुके होते हैं ......... मैं दोबारा आप सबका शुक्रगुजार हूँ....... आगे भी मेरी प्रेम रस की कविताओं को ऐसे ही सराहते रहें .......... धन्यवाद.........)
04 /08/2009
21.17
शनिवार, 1 अगस्त 2009
परी आसमान की..
जब दुनिया की बातों से मैं थक जाया करता था,
जब ज़िन्दगी से भाग कर छुप जाया करता था,
तब माँ ने ही सुलाया था,
अपने हाथों से सर को सहलाया था।
याद आते हैं मुझे हर वो पल
जो कभी गुज़ारे थे माँ के साथ
याद आते हैं हर वो शरारत
जो की थी कभी माँ से।
वो स्कूल से आना,
पर घर न जाना
और रस्ते में ही कुछ उल्टा सीधा खा लेना,
वो घर आकर फिर प्यारे से बहाने बनाना,
और वो मम्मी का गुस्से से आँखें दिखाना।
जब खेल कर आया करता था,
सर दर्द की शिकायत करता था,
तब माँ के हाथों से मालिश करा के
उसके हाथों की खुशबु को पा के
ज़िन्दगी को एहसास किया करता था।
वो जब बनाती थी आलू के परांठे,
और खिलातीं थी दाल और चावल,
तब मैं शक्ल बिगाडा करता था,
"क्या माँ! रोज़-रोज़ यही बनाती हो"
कहकर शिकायत किया करता था
आज तरसता हूँ उसी स्वाद को पाने
और
तड़पता हूँ उसी छाओं को पाने।
अब शायद बहुत देर हो गई है,
अब वो बहुत दूर हो गई है,
मुझे याद आती है वो उसकी सभी बातें,
मेरी माँ आसमान की परी हो गई है॥
महफूज़ अली
(२६/नवम्बर/2006)
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चलिए! थोडा घूम आयें...
जो मेरे अपने हैं.......
यादगार लम्हे...
मेरे बारे में
- डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali)
- पेशे से प्रवक्ता और अपना व्यापार. मैंने गोरखपुर विश्वविद्यालय से एम्.कॉम व डॉ. राम मनोहर लोहिया विश्वविद्यालय,फैजाबाद से एम्.ए.(अर्थशास्त्र) तथा पूर्वांचल विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. की उपाधि ली है. I.G.N.O.U. से सन २००५ में PGJMC किया और सन् 2007 में MBA किया. पूर्णकालिक रूप से अपना व्यापार भी देख रहा हूं व शौकिया तौर पर कई कालेजों में भी अतिथि प्रवक्ता के रूप में अपनी सेवाएं देता हूं. पढ़ना और पढ़ाना मेरा शौक़ है. अंग्रेज़ी में मुझे मेरी कविता 'For a missing child' के लिए अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है. मेरी अंग्रेजी कविताओं का संकलन 'Eternal Portraits' के नाम से बाज़ार में उपलब्ध है,जो की Penguin Publishers द्वारा प्रकाशित है. अंग्रेजी में मैंने अब तक क़रीब 2600 कविताएं लिखी हैं. हंस, वागर्थ, कादम्बिनी से होते हुए ...अंतर्राष्ट्रीय हिंदी मासिक पत्रिका 'पुरवाई' जो की लन्दन से प्रकाशित होती है ...में प्रकाशित हुआ, तबसे हिंदी का सफ़र जारी है... मेरी हिंदी कविताओं का संकलन 'सूखी बारिश' जो की सन् 2006 में मुदित प्रकाशन से प्रकाशित है... मैं करता हूं कि मेरा ब्लॉग मेरे पाठकों को ज़रूर अच्छा लगेगा... आपकी टिप्पणियां मेरा हौसला बढ़ाती हैं. इसलिए मेरी रचनाएं पढ़ने के बाद अपनी अमूल्य टिप्पणी ज़रूर दें.मेरा प्रमुख ब्लॉग 'लेखनी’ है.
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