सूचना के आधार पर,
लोकतंत्र की ही तरह
वहां मौत तलाशी जा रही थी,
कुछ शोक सभा का ज़िक्र कर रहे थे
तो कुछ मौत के बहाने मिलने वालों
की लिस्ट बना रहे थे।
कहीं से किसी की रोने की आवाज़ आ रही थी
तो कहीं धूप सेंकी जा रही थी...
कुल मिला कर वहां मरने का समाचार था
मगर कोई मरा नहीं था
सिवाय संवेदनाओं के।
(c) महफूज़ अली