सोमवार, 29 दिसंबर 2014

ईश्वर, अल्लाह, खुदा, भगवान् या गॉड… वो ना तो पैदा होता है ना ही मरता है: महफूज़

अगर आप सारे धर्मों की स्टडी (स्टडी मीन्स वाकई में स्टडी) करें तो पायेंगे कि जिसे हम ईश्वर, अल्लाह, खुदा, भगवान् या गॉड कहते हैं.… वो ना तो पैदा होता है ना ही मरता है न ही यह शादी करता है न ही सेक्स, ना ही इसे मेन्सेस होते हैं ना इसे बच्चे पैदा करने की ज़रुरत है.ना ही इसे गुस्सा आता है ना ही इसे लड़ाई-झगडे या झूठ बोलने की ज़रूरत है. ना ही इसे प्रसाद, चढ़ावे, चादर या किसी भी प्रकार के धन की ज़रुरत है. ना ही खुद की पूजा या इबादत करने के लिए जोर-ज़बरदस्ती करता है. ना ही इसे किसी हथियार की ज़रुरत है ना ही किसी चमत्कार की. ना ही इसे नौटंकी की ज़रूरत है ना ही इलाज की, ना तो यह स्त्री है ना ही पुरुष. यह तो निराकार है. इसका कोई आकार नहीं है. 

इसलिए धर्म को लेकर आपसी झगड़ों से दूर रहना चाहिए. जितने भी लोग धर्म को लेकर झगड़ रहे हैं वो जाहिल और औसत (Average) लोग हैं. लोग इतने जाहिल हैं कि सुनी सुनाई बातों पर ज्यादा यकीन करेंगे बनिस्बत खुद पढने के. हर इंसान अगर किसी भी धर्म में पैदा हुआ है तो यह उसकी गलती नहीं है ना ही वो एप्लीकेशन देता है अपने धर्म को चूज़ करने की. हर इंसान एक्सीडेंटल पैदा होता है... डिस्चार्ज या स्खलन का नतीजा है. कोई भी इंसान यह सोच कर सेक्स नहीं करता कि आज तो राहुल, सलीम या जॉर्ज को पैदा करूँगा...मौज मस्ती में सब पैदा हो जाते हैं. 

बहुत सारे धर्म ऐसे हैं जिनमें जाहिल ज्यादा पैदा होते हैं क्यूंकि वो खुद अपना धर्म नहीं समझ पाते क्यूंकि पढ़ते बिलकुल नहीं और सुनते ज्यादा हैं. सब लोगों ने अपने आप को बड़ा समझना शुरू कर दिया है. दुनिया का हर धर्म खुद को साइंटिफिक कहता है मगर इंसानियत से नफरत करना कोई साइंस कभी नहीं कहता.पढो जाहिलों पढो.... यह politicians तुम्हे आपस में अपने फायदे के लिए लड़ायेंगे और खुद आपस में हर धर्म वाले से मिल जुल कर रहेंगे और तुम्हे उलझा कर रखेंगे बेसिर पैर की चीज़ों में. कभी किसी पहुँचवाले का नुक्सान होते देखा सुना है? 

मैंने अपना खुद का धार्मिक त्याग कर रखा है... मेरा नाम मेरे साथ सिर्फ इसलिए हैं क्यूंकि मैंने जब आँख खोली तो यही नाम पाया. धर्म से मुझे इंसानों ने जोड़ा. बड़ा हुआ तो नाम-धर्म तो नहीं हाँ सोच को ज़रूर बदल पाया क्यूंकि मेरे ईश्वर ने मुझे यही एक चीज़ दी थी. और यही एक चीज़ ले कर जाऊंगा. बहुत सारे लोगों को शिकायत होती है कि मैं उनकी बात का जवाब नहीं देता तो मेरा उनको जवाब यह है कि भाई अगर तुम्हारा वो लेवल होगा तो ज़रूर दूंगा. अगर मैंने किसी की भी बात का जवाब नहीं दिया तो वो यह समझ ले कि सवाल लेवल का है.

गुरुवार, 20 नवंबर 2014

##‪#‎गीली‬ नदी###







तुम्हारे और मेरे बीच में 
एक नदी बहती है,
जिसके सूखने की संभावना 
बिलकुल भी नहीं है ....
मगर जब तल में कंकड़ बन ही जाते हैं
तो इन्हें
समेटने के लिए
तुम्हे नदी हो जाना चाहिए....

शुक्रवार, 14 नवंबर 2014

T-Shirt of poet Mahfooz Ali is for sale in India...

Dear Friends,

The Poem "Fire is still alive" you are glancing over the T-Shirt is of famous International English Poet "Mahfooz Ali". He is an author, activist, philanthropist, and blogger apart from an Educationist from Lucknow, INDIA. This poem is being taught at Wisconsin University, Madison State (U.S.A.) for the last five years. This poem has introduced a revolutionary change into the eco-system of US and that's why got published on T-shirt to educate each US citizen to save their forestry. 

In India this printed T-Shirt is available for sale now. The proceeds from this T-shirt will go to the widows and dependents of the farmers' of PUNJAB State in INDIA who committed suicide due to the State Government Policies of agriculture, banking and lending systems and compulsion to pay their debts to SAAHUKAARS (Local Money Lenders) through an International PROJECT BUILDING BRIDGES INDIA. 

The T-shirt is of very fine quality weaved from the imported cotton SISAL fiber and high quality printing. As the proceeds is for charity purpose we have kept the price in equilibrium worth Rs. 400/- each (Four Hundred Only). 

You can help by circulating this message in your campus, apartments, offices and online. 



One can also order online by depositing money in the bank account. For further details please get in touch to the email: mankaonline@gmail.com 

Regards, 



रविवार, 5 अक्तूबर 2014

##‪#‎डेडली‬ कोंडोलेंस###





##‪#‎डेडली‬ कोंडोलेंस### 
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सूचना के आधार पर,
लोकतंत्र की ही तरह 
वहां मौत तलाशी जा रही थी,
कुछ शोक सभा का ज़िक्र कर रहे थे
तो कुछ मौत के बहाने मिलने वालों 
की लिस्ट बना रहे थे। 
कहीं से किसी की रोने की आवाज़ आ रही थी 
तो कहीं धूप सेंकी जा रही थी... 
कुल मिला कर वहां मरने का समाचार था 
मगर कोई मरा नहीं था 
सिवाय संवेदनाओं के।



(c) महफूज़ अली

रविवार, 21 सितंबर 2014

###जद्दोजहद में शहर-ऐ-लखनऊ: एक कविता###



जद्दोजहद में शहर-ऐ-लखनऊ: एक कविता 
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पहली बार मैंने तस्वीर के चिकत्ते वाले हिस्से को 
आगे से देखा है,
कच्ची पक्की पगडंडियों के आस-पास हँसते तमीज़ को 
आज के लखनऊ ने सिमेंटी संस्कृति में बदल दिया 
तहज़ीब मिटटी की दीवार वाले मकान के घुप्प 
अँधेरे में खामोश रहती है या ऊँघ जाती है 
जब कभी हमारे भीतर वात्सल्य भरता है,
गोमती परिवर्तन चौक तक आ जाती है। 
और कच्ची दीवारें भरभरा कर बाढ़ के पानी में 
घुल जाती है। 
पुराने लोगों को दुर्घटना मानता शहर 
खुद के पैरों तले  कुचला गया है। 
हम सब उलटे खड़े हैं 
और पीठ की तरफ से इतिहास को पहचानने के लिए 
आज के दोगले चरित्र के भीतरी स्वरुप को 
हम रात के सन्नाटे से ढ़की लम्बी 
सड़क पर जलती-बुझती लाइट के 
सफ़ेद अँधेरे में छुपा  रहे हैं,
अब शहर के जिस्म पर लूट का अनुशासन है 
सामान की तरह इंसान की खरीद-फरोख्त  जारी है 
षड्यंत्र...अस्पताल और जनसँख्या के व्यक्तित्व की 
विशेषता बन गया है।।

(c) महफूज़ अली 

मंगलवार, 5 अगस्त 2014

‪#‎## समंदर‬ आश्वासनों का: एक ‪कविता‬ ###



आश्वासनों के ढेर पर मैं गिर गया हूँ,
किनारा कोई दिखता नहीं 
भीड़ बढ़ती जा रही है 
ख़ामोश कमरा है, 
कहीं कोई निशान नहीं
आदमी हूँ कुर्सियों से डर गया हूँ....
अंत तक आकाश में,
प्रश्न करते सितारे,
आश्वासनों की रात में,
चलते नज़ारे,
नींव अंधी खोखली सी,
खा रही मुझको,
चाँद में 
समंदर उतर गया है....


© महफूज़

गुरुवार, 17 अप्रैल 2014

##‪#‎इंडिया‬ : एक श्रद्धांजली ###

देश की आँखें 
विश्व के इतिहास में 
अब तक गड़ी हैं,
रात ने एड़ी बजाई 
भोर पहरे पर खड़ी है।
फ़लक चूमते अरमान,
धरती की नसों से,
कमरे का आसमान
देश बन रहा है,
भाषणों में मौत का पैगाम
भारत जल रहा है
और दिल्ली की तस्वीर
आँखों में गड़ी है।
गोलियों की बाढ़,
लाशें गिन रही हैं,
बारूद के पेड़ हैं,
बम के काफिले हैं,
जलता हुआ भारत
धुंआ दे रहा है,
मौत से कुर्बानियां
कितनी बड़ी हैं।
बर्फानी रातों में,
ग्लेशियर पर
एकांत यात्रा कर रहा है,
इन शहीदों के लिए
इतिहास आंसू झर रहा है,
इसलिए मौत की पगडंडियों पर,
ज़िन्दगी जम कर लड़ी है।
विचारक जागते हैं जब,
करवट विश्व लेता है,
पुराना देश धरती पर
नए इम्तिहान देता है,
क्रान्ति के तूफ़ान उठते हैं
मौत की बाहें बढ़ी हैं,
रात ने एड़ी बजाई
भोर पहरे पर खड़ी है।।


(c) महफूज़ अली

शनिवार, 29 मार्च 2014

###कविता:- वायसे - वरसा ###



शब्द टॉर्च नहीं होते,
जब यह अंधियारे में बहते हैं
तब आदमी का एकांत भंग हो जाता है। 
कभी-कभी शब्द 
आदमी के भीतर बहता है 
और कभी 
आदमी शब्द के भीतर बहता है।।


(c) महफूज़ अली 

बुधवार, 5 मार्च 2014

###कविता: नहीं चाहिए ऐसा समाजवाद####

सामान की तरह आदमी की खरीद फ़रोख्त जारी है,
अब नई पीढ़ी अपना फालतू वक़्त 
भीड़ बन कर गुंडों के नेतृत्व में 
हड़तालों, जुलूसों और धरनों में काट रही है। 
विश्वविद्यालय 
पत्रांक आने के बाद तक,
दयांक, भिक्षांक की यात्रा करते हुए 
कुर्सी से चिपके सपेरों के कारण 
लूटांक तक का भावी कार्यक्रम बना रहा है।
अवध एक नगरी थी,
लखनऊ एक पर्स है
जिसकी भीतरी दीवारों पर कंठे और कोतवाली
के पोस्टर चिपके हुए हैं,
जनतंत्र की क़तारों में खड़ा प्रदेश
स्वयं के बुझने से बेचैन नहीं है,
दरअसल अपनी पसलियों में सुरंग खोद रहा है।
कुछ नए हवाले देकर सम्बन्धों के पेट पर
"समाजवाद" लिख दिया गया है,
और बातचीत के बीच का संलाप धंधा हो गया है।
अब अँधेरा एक आदत है
जिसे हम रोज़ तम्बाकू की तरह
अपनी हथेलियों पर मसलकर
कुछ देर बाद
शहर की गलियों
पर थूक देते हैं।।

(c) महफूज़ अली

बुधवार, 19 फ़रवरी 2014

धर्म-निरपेक्ष और युवा भारत ही देश और समय की ज़रूरत है : महफूज़

किसी भी देश के नागरिकों की बुनियादी ज़रूरत क्या हो सकती है? रोटी, कपडा और मकान के बाद सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक सुरक्षा व पारस्परिक भागीदारिता किसी भी नागरिक का मूल अधिकार है। किसी भी एक के डांवाडोल स्थिति में आने पर अराजकता पैदा हो सकती है और देश में एक अशांति व्याप्त हो सकती है। यह देश के शासकों पर निर्भर करता है कि अपने हर नागरिक के अधिकारों की रक्षा किस प्रकार करते हैं? अनेकता में एकता हमारे देश की पहचान रही है। इतनी विविधताओं के बाद भी हमने एक देश का नारा बुलंद किया है।  फिर भी आज देश में एक छिपी हुई अराजकता व्याप्त है, लोग अभी भी धर्म, जाति और क्षेत्रवाद में बंटे हुए हैं और चंद लोग इसे बढ़ावा दे कर गोरिल्ला युद्ध की तरफ देश को अग्रसित करने की कोशिश कर रहे हैं। 

धर्म-निरपेक्षता की व्याख्या को अब कुछ लोग अलग मायने देने लगे हैं।  देश के राजनेता अब धर्म-निरपेक्षता शब्द पर लोगों को बांटने पर लगे हैं।  अब धर्म-निरपेक्ष शब्द से लोगों को आपस में लड़वाने की कोशिश हो रही है।  एक वर्ग को दूसरे वर्ग से इसी शब्द के आधार पर भड़काया जा रहा है और हम सिर्फ मूक दर्शक बने हालात को देख रहे हैं।  देश में आज हर वर्ग अपने आप में असंतुष्ट है किसी को हिन्दू से समस्या है तो किसी को मुसलमान से तो किसी को किसी जाति से।  हर वर्ग एक दूसरे को संशय की दृष्टि से देख रहा है मगर मिलकर साथ चलने की नहीं सोच रहा है।  आज देश में सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा देने की बात कोई भी राजनीतिक दल नहीं करता है हर दल और उसके नेता आपस में लोगों को द्वेष और नफरत की ओर धकेलने में लगे हुए हैं। यह देश धर्म-निरपेक्ष हो कर ही तरक्की कर सकता है किसी भी एक वर्ग को नज़रअंदाज़ करके हम देश में  अराजकता की स्तिथि ही पैदा करेंगे। 

देश के नेताओं को भी समझना होगा कि यह समय राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि का नहीं है और देश की एकता को खंडित होने से बचाने की ज़रूरत है।  देश के नागरिकों को भी यह समझना होगा कि पहले हम भारतीय हैं और उसके बाद धर्म पालनकर्ता। आज देश में जिस तरह हिन्दू मुसलमान से और मुसलमान हिन्दू से अलग थलग है उसके लिए हिन्दू-मुसलमान नहीं इस देश के चंद राजनेता हैं जो एक दूसरे के बीच नासमझी की खाई पैदा किये हुए हैं और दोनों धर्मों के कुछ जाहिल अपने अपने स्वार्थ के लिए इस खाई को और चौड़ा कर रहे हैं। आज देश के हिन्दू-मुसलमान में आपस में एक दूसरे से कटे हुए हैं , यह आपस में एक "पारस्परिक बातचीत" से ही एक दूसरे को समझ सकते हैं और आपस की गलतफहमियों को दूर कर सकते हैं। 

आज देश का युवा वर्ग भी आपस में एक दूसरे से धार्मिक और आर्थिक आधार पर भ्रमित है। नवयुवाओं का दिमाग उपजाऊ ज़मीन की तरह होता है, अगर उन्नत विचारों के बीज बो दें तो वही उगेंगे।  आज का युवा भ्रमित है, दिशाहीन हैं उन्हें जो जैसा समझा देता है उसे ही सच मान बैठते हैं और आगे चल कर खुद को ठगा महसूस करते हैं। आज युवा पीढ़ी के दिल-दिमाग में अच्छे बीजों का रोपण करने वाले घटते जा रहे हैं।  कला, साहित्य, और विज्ञान में रोज़ नई प्रतिभाएं उभरतीं हैं परन्तु सही दिशा व मौका न मिलने से भीड़ का हिस्सा बन कर रह जाती हैं।  सवाल यह भी उठता है कि क्या हम और हमारा देश युवाओं को उभरने का मौका देता है? आज देश और देश के राजनेताओं को यही साबित करना है कि युवाओं का जोश और प्रतिभा बेकार ना जाने पाये और देश के युवाओं को जाति-धर्म से ऊपर उठायें। 

सूचना और संचार तकनीक ने युवाओं में बड़े पैमाने पर नकारात्मक बदलावों को विकसित किया है। ज़्यादातर युवा पहले खुद के बारे में सोचता है, और देश समाज के बारे में बाद में। इस लिहाज़ से ऐसे समाज और विज्ञान की ज़रूरत है जो युवाओं को राष्ट्रनिष्ठ बना सके, युवाओं को एक ऐसे ढाँचे में ढालने और गढ़ने की ज़रूरत है जो उन्हें सक्षम, कुशल, और योग्य बना सके। युवाओं के लिए वर्ष 2014 बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। आने वाले लोकसभा चुनाव के परिणाम नए  भारत के निर्माण के लिए निर्णायक होंगे।  सशक्त, स्वावलम्बी, और सक्षम भारत के लिए  साहसी और पराक्रमी नेतृत्व की ज़रूरत है। भारतीय राजनीति, अर्थनीति, और समाजनीति में सशक्तिकरण होना एक मांग है और इस मांग को सिर्फ भारत का युवा ही पूरा कर सकता है, तभी सबल, सक्षम और समर्थ भारत का निर्माण हो सकता है। 

देश की अखंडता को बरकरार रखने के लिए "सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा" को सार्थक करने की ज़रूरत है ना कि सिर्फ यह कविता में ही रह जाये।  हम ऐसा प्रयास करें की हमारी धार्मिक एकता बनी रहे और फिर से विश्व पटल पर उस फलक तक पहुंचे जहाँ भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था और यह तभी सम्भव है जब हम सब भारतीय मिलजुल कर एकजुट होकर साथ होंगे। 
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