आईने से बातें करते करते थक गया,
कतरा-कतरा आँखों से कुछ बह गया,
जो नींव मैंने रखी थी उस मकां की,
वो मकान ढह गया.
कई लोग आये,
और देख कर चले गए,
शीशा फिर भी
चमकता रह गया,
ख़ुद से कहा वफ़ा कि नुमाइश मत कर
और यह सितम मेरा दिल सह गया,
एक घरौंदा जो बनाया था,
जिसे हम दोनों ने सजाया था,
बरसात में देखिये बह गया.