शनिवार, 14 नवंबर 2009

कहा था तुमने की कभी बुझना नहीं.....मैं लगातार जल रहा हूँ॥




कहा था तुमने की कभी रुकना नहीं

और 

मैं लगातार चल रहा हूँ॥

ज़मीन क्या , 

आस्मां पे भी मेरे पैरों के निशाँ हैं.....

मेरी हदें मुझे पहचानतीं हैं,

और 

मैंने वीरान हुए रास्तों को भी आबाद किया है॥

शांत हो के मैं ठहर जाऊँ यह असंभव है ,

लपटों को भी चीरकर मैंने खोजे हैं किनारे 

कहा था तुमने की कभी बुझना नहीं 

और 

मैं लगातार जल रहा हूँ॥ 
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