गुरुवार, 22 अक्तूबर 2009

आइये जानें क्यों यूरोपीय व कुछ एशियाई देश शून्य (ज़ीरो) को 'ओ' (O) बोलतें हैं?


काफी लोगों को मालूम है कि पूरा यूरोप और एशिया के कुछ देश (जिसमें भारत यानि  कि That is India भी) ज़ीरो यानि कि शून्य को ज़ीरो यानि कि शून्य नहीं बोलतें हैं. अंग्रेज़ी का 'O' (ओ) अक्षर बोलतें हैं. अब सौ कि वर्तनी अंग्रेज़ी में बोलनी है तो वो वन ओ ओ बोला जाएगा, वन ज़ीरो(शून्य) ज़ीरो(शून्य) नहीं. यह हम में से सबने देखा भी है और सुना भी है. पर यह यूरोप और कुछ एशिया के देशों में ही प्रचलित है.   अब तो कुछ तथाकथित खुद को नस्ल से भारतीय कहने वाले भी शून्य (ज़ीरो) को 'ओ' ही बोलते हैं, और 'ओ' बोलने में फख़्र महसूस करते हैं. आखिर ऐसा क्या और क्यूँ है जो यूरोपीय और कुछ एशिया के देश ज़ीरो यानि कि शून्य को अंग्रेज़ी का 'ओ '(O) बोलते हैं? आइये यह जानने से पहले शून्य (ZERO) का इतिहास जान लें?

शून्य (ज़ीरो) का इतिहास:---

इसमें कोई शक नहीं कि शून्य (ज़ीरो) के आविष्कार का श्रेय भारत को जाता है. इसको शुरू से डॉट (.) के रूप में लिखा जाता रहा है या फिर गोलाकार रूप में लिखा जाता है. इसको डॉट (.) या गोलाकार रूप में इसलिए लिखा जाता है/था क्यूंकि गोलाकार का मतलब "घूम फिर के वही" होता है यानि कि कुछ नहीं. संस्कृत में भी शून्य का मतलब कुछ नहीं होता है. और यह गोलाकार रूप में लिखना भी संस्कृत से ही निकला है..

इतिहासकार मानते हैं कि सन 458 A.D. से शून्य (ज़ीरो) अस्तित्व में आया. परन्तु इसपर काफी मतभेद है. पुरातन काल में अंकों को प्राकृतिक चीज़ों को आधार बना कर लिखा जाता था. उदाहरण के तौर पर: अगर १ लिखना है तो चाँद या सूरज बना कर लिख दिया जाता था, २ लिखना है तो दो आँखें बना कर लिख दिया जाता था. इसी तरह दशमलव प्रणाली के तहत शून्य को डॉट (.) या फिर गोलाकार रूप में लिख दिया जाता था. यह भारतीय ही थे जिन्होंने दशमलव प्रणाली (Decimal Point Sysytem) का आविष्कार किया और इसी के साथ शून्य (ज़ीरो) का आविष्कार हुआ.

शून्य (ज़ीरो) के बारे में सबसे पहले महान गणितज्ञ 'ब्रह्मगुप्त' (598-660 A.D)  जिनका जन्म मुल्तान (अब पाकिस्तान में) हुआ,  ने अपनी पुस्तक "ब्रह्मगुप्त सिद्धांत" में दिया. जिसको बाद में भारतीय गणितज्ञ 'भास्कर' (1114-1185A.D.) ने थोडा संशोधित करते हुए, अपनी पुस्तक "लीलावती' में विस्तारपूर्वक लिखा. शून्य (ज़ीरो) के आविष्कार से ही प्रेरित होकर भारतीयों ने ऋणात्मक अंकों का आविष्कार किया और बाद में बीज गणित (algebra) को विकसित किया. 
आठवीं शताब्दी के दौरान बग़दाद के राजा "खोलोफ़-अल-मंसूर" ने अपने कुछ दरबारियों को भारत के सिंध प्रांत (अब पाकिस्तान में) गणित, ख़गोल-शास्त्र, तथा चिकित्सा-शास्त्र पढने के लिए भेजा. यह दरबारी अपने साथ कुछ महत्वपूर्ण किताबें भी ले गए, जिनको इन्होने अरबी भाषा में रूपांतरित/अनुवाद किया.

अरब के प्रसिद्ध गणितज्ञ अल-ख्वारिज़मी (790 AD-850AD) सन 830 A.D. में  भारत आये और भारतीय अंक प्रणाली को पूरे विश्व में अपनी किताब 'हिसाब-अल-जब्र-व-अल-मुकाबीलाह' के द्वारा प्रसिद्ध किया. इन्होने संस्कृत शब्द 'शून्य' को अरबी में 'सिफ़्र' अनुवाद किया, जिसका मतलब कुछ नहीं होता है. यही 'सिफ़्र' लैटिन में "ज़फ्यर" (ZEPHYR) हो गया. जो आगे चल कर फ्रेंच में zero (ज़ीरो) हो गया.... और यही ज़ीरो फ्रेंच से अंग्रेज़ी में आ गया... 
आज पूरे विश्व में ज़ीरो (शून्य) के आविष्कार से भारत कि एक अलग महत्ता है. 

आइये अब जानें क्यूँ यूरोपीय व कुछ एशियाई देश शून्य (ज़ीरो) को 'ओ' (O) बोलतें हैं? 

अब जैसा कि हम सब को मालूम है कि शून्य (ज़ीरो) भारत की देन है. और शून्य (ज़ीरो) को अंग्रेज़ी के "O" आकार में लिखते हैं जिसको जब हम लिखते हैं तो जहाँ से शुरू करते हैं तो वहीँ पर ख़त्म भी करते हैं. और शून्य का मतलब "कुछ नहीं" होता है. यानी की घूम-फिर के वही. हमें यह भी मालूम है कि यूरोपियन देशों में भारत को सपेरों का देश कहा जाता है, तो इन यूरोपिअनों से कभी बर्दाश्त नहीं हुआ कि कैसे एक सपेरों के देश ने शून्य (ज़ीरो) का आविष्कार कर दिया? जबकि सारे महत्वपूर्ण आविष्कार यूरोपीय देशों में ही हुए हैं. यूरोपियन देश भारत को नीचा दिखाने के लिए शून्य या फिर ज़ीरो नहीं बोलते हैं.... ज़ीरो भी इसलिए नहीं बोलते हैं...  क्यूंकि लैटिन भाषा कि उत्पत्ति स्पेनिश और पोर्टुगुइसे(Portuguese) भाषा  से हुई है... और स्पेन,फ्रांस और पुर्तगाल ब्रिटिश और अमरीकन साम्राज्य (COLONY) रहे हैं..... जिनको अपनाना यूरोपियन देशों कि शान के खिलाफ रहा है.....
और यही रवैया यह देश भारत के साथ अपनाते हैं... यूरोपियन देशों के स्कूलों में शून्य (ज़ीरो) नहीं बताते हैं.... अगर हम इन्टरनेट पर भी शून्य से सम्बंधित लेख देखें तो उन लेखों में यूरोपियन टच मिलेगा...... न कि भारतीय....  यह देश शून्य या ज़ीरो न बोल के हम भारतीयों कि बेईज्ज़ती करते हैं, तथा हमारी उपलब्धियों को नकारते हैं... 1956 में एक अमरीकन फिल्म "ALEXANDER THE GREAT" आई थी उसमें भी यही बताया गया था कि ज़ीरो यानि कि शून्य का आविष्कार PTOLEMY ने किया था. जिस पर भारत कि ओर से कोई बहस नहीं कि गई थी. 
आज विडम्बना यह भी देखिये.... कि कई भारतीय भी अब शून्य यानी कि ज़ीरो को 'ओ' (O) ही बोलते हैं. शायद वो जानते नहीं हैं.... कि 'ओ' (O) बोल कर खुद कि ही बेईज्ज़ती कर रहें हैं. 


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