गुरुवार, 11 जून 2009

माँ कि मौत.....


कोई लक्षण नहीं जीवन का

न कोई शब्द,

आहों का अंश भी नहीं

बंद आँखें ........

मैं असमंजस में था कि,

उन्होंने अलविदा भी नहीं कहा..........

यह कैसा मज़ाक है?

हम गले भी नहीं मिले

और उन्होंने आज मरने का दिन चुना

मैं सिर्फ़ एक पल के लिए जिया,

अलविदा कहने के लिए॥








महफूज़ अली

टूटी औरत !!


टूटी कांच की चूडियाँ ,
बुझी सिगरेट की राख,
दर्द से मदद को चिल्लाती
और
व्यर्थ में रोती......

हजारों जूतों की आवाज़
टूटा चेहरा

खरोंच,
ऐसा पहली बार नहीं है,
पति के बदन से शराब की बदबू
जो कोने में खडा माफ़ी मांगता
और आंसू बहती,
टूटी औरत॥








महफूज़ अली


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