आज कुछ मांगता हूँ मैं......
क्या दे सकोगी तुम?
ख़ामोशी का जवाब ख़ामोशी से.....
कुछ अनछुए छुअन
का एहसास .......
देर तक ख़ामोशी को बाँध कर,
तुम खेलो अपने आस-पास .....
क्या ऐसी हद में ख़ुद को
बाँध सकोगी तुम?
आज कुछ मांगता हूँ मैं......
तुम्हारे एक छोटे से दुःख ,
कभी जो मेरा मन् भर आये
ढुलक पड़े आंखों से जो मोती.......
सारे बंधन तोड़ के जो बह जाएँ,
तो ज़रा देर ऊँगली पर अपने
दे देना रुकने को जगह तुम ,
उन आंसुओं को थोडी देर का ठहराव
बोलो ! क्या दे सकोगी तुम?
आज कुछ मांगता हूँ मैं......
कभी जब तक तुम्हारी
आंखों में मैं न रह पाऊँ,
और
धीरे से गुम हो जाऊँ...
और
किसी छोटे से ख़्वाब
के पीछे जा के छुप जाऊँ।
ऐसे में बिना आहट के
वक्त को क्या लाँघ सकोगी तुम?
आज कुछ मांगता हूँ मैं......
महफूज़ अली