पूरे छह महीने के बाद आज ब्लॉग्गिंग करने का मन किया है.... कुछ हालात ऐसे नहीं थे... और कुछ विरक्ति सी थी... तो कुछ जो बिगड़ गया था उसे ही ठीक करने में टाइम लग गया... तो कुछ दिमाग़ में यह भी विउ था... कि यहाँ हिंदी ब्लॉग्गिंग में ... कुछ ख़राब लोग आ गए हैं... फ़िर यही सोचा कि अगर हम अच्छे तो सब अच्छे ....हम ख़राब तो सब ख़राब... अब अच्छे-बुरे तो सब जगह होते हैं... हम भी कई लोगों के लिए ख़राब हैं... तो फ़िर यह क्यूँ सोचना... ? मतलब यह कि बहुत सारे निगेटिव वीउज़ आ गए थे दिमाग़ में ब्लॉग्गिंग को लेकर... अब वही वीउज़ मिक्स्ड हैं... वैसे भी पौज़ीटिव्ज़ की ओर ही देखना चाहिए..... आज रिप्लेसमेंट थेओरी (Replacement Theory) पढ़ रहा था दोपहर में खाना खाते वक़्त... पढ़ते वक़्त यही सोचा ...कि इस दुनिया में हर चीज़ रिप्लेस हो जानी है... हर चीज़ की एक्सपायरी डेट है... ... यह जानकर बड़ी हैरानी हुई कि ... रिश्ते भी तुरंत ही रिप्लेस हो जाते हैं या फ़िर रिप्लेस हो जाने की सिचुएशन में आ जाते हैं.... ख़ैर फिलहाल ... आज यह कविता देखिये.... इन छः महीनों में बहुत कुछ लिखा है... वक़्त मिलता जायेगा तो पोस्ट भी करता जाऊंगा.... और अब यह वक़्त ही तो है... जो एक्सटिंक्ट है... एफेमेरल है... और यह बात समझ में आ गई है.
(फोटो कोई मिली नहीं तो अपनी ही डाल दी)
शब्दों ने रास्ते बदल दिए हैं...
मैंने कई बार तुम्हे
नोट किया है
फ़िर भी
तुम मुझे कभी याद
नहीं रह सकीं....
तुम उभर आई हो
उन ठन्डे शब्दों के भीतर भी
शब्दों के अर्थ ने भीतर के उदास कोने से उठकर
फ़िर तुम्हारा स्वागत किया है,
उदासी हमारे भीतर की
आधी रह गई है,
दोनों के बीच रिप्लेसमेंट आ गया है.....
अब
शब्दों ने अपने पड़ाव
और
रास्ते
बदल दिए हैं.