दुनिया की इस भीड़ में,
खोजता फिरता हूँ अपना मुकाम
हर चीज़ वो मिलती नहीं
जिसकी होती चाहत यहाँ,
क्या खोने के डर से,
मैं भूलूँ,
कुछ पाने की चाह यहाँ?
जब चाहत हो तारों की,
तो क्यूँ ना माँगूं आसमाँ यहाँ??
खोजता फिरता हूँ अपना मुकाम
हर चीज़ वो मिलती नहीं
जिसकी होती चाहत यहाँ,
क्या खोने के डर से,
मैं भूलूँ,
कुछ पाने की चाह यहाँ?
जब चाहत हो तारों की,
तो क्यूँ ना माँगूं आसमाँ यहाँ??