मैं सोच रहा था की रात में सूरज कहाँ चला जाता है?
क्या बादलों के बीच खो जाता है?
या फिर चाँद के थकने का इंतज़ार करता है
या फिर थक कर सो जाता है?
क्या सूरज कहीं जा सकता है?
क्या कहीं खो सकता है?
क्या सूरज को नींद आ सकती है?
क्या वह इतना डरपोक हो सकता है कि
अंधेरे से डरकर छिप जाए?
(मेरी यह प्रस्तुत कविता कादम्बिनी पत्रिका जून २००६ में पृष्ठ संख्या १७२ में छाप चुकी है । )
महफूज़ अली
Kashmir: Kherishu in Land of turbulence... Welcoming, Courtship,
Honeymooning and Varishu
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*"Welcome* *to Kashmir*" this I had a warm welcome by CRPF constable Mangal
Singh at Srinagar airport exit gate last year. It was my first visit to the
Sta...