आईने से बातें करते करते थक गया,
कतरा-कतरा आँखों से कुछ बह गया,
जो नींव मैंने रखी थी उस मकां की,
वो मकान ढह गया.
कई लोग आये,
और देख कर चले गए,
शीशा फिर भी
चमकता रह गया,
ख़ुद से कहा वफ़ा कि नुमाइश मत कर
और यह सितम मेरा दिल सह गया,
एक घरौंदा जो बनाया था,
जिसे हम दोनों ने सजाया था,
बरसात में देखिये बह गया.
52 टिप्पणियाँ:
जो नींव मैंने रखी थी उस मकां की,
वो मकान ढह गया.
कई लोग आये,
और देख कर चले गए,
शीशा फिर भी
चमकता रह गया
वाह वाह एकदम नया अंदाज़ और गहरी बात....क्या बात है.आप तो ऐसे न थे.[:)] ..पिछली पोस्ट के बाद ये पोस्ट एकदम अलग एहसास दे रही है
महफूज़ जी,
अब तो हम बहुते कनफुसिया गए हैं......
अब का हुआ ????
आप तो ऐसे न थे....!!! कल तक तो ...
लगता आपको धमाका करने कि आदत है....
वो कहते हैं न ...कभी घन घना, कभी मुट्ठी भर चना और कभी वो भी मना....
तो आपके ब्लॉग में हम पाठकों को अहसासों का जो डोज मिलता है न कुछ ऐसा ही होता है...
बहुत खूब लिखा है आज आपके शायर दिल ने..
बस लिखते रहिये...
बहुत सुंदर भाव है.बधाई.लगातार नवीन प्रस्तुतियों के लिए बधाई.
शीशा फिर भी चमकता रह गया,
क्या खूब कहा है........
कुछ ऐसा अहसास दिलाती है आपकी ये कविता, जो खुद सी जान पड़े......
बधाई.....
बहुत सुन्दर लिखा है।बधाई।
मह्फ़ूज जी कल की चर्चा के लिये आप्की पिछली पोस्ट ले लिया तो अब आप्ने एक और नया आज आप को क्या हो गया इतनी पोस्ट एक साथ
बधाई हो
वो मकान ढह गया....agar kuch khatam hota hai tabhi kuch naya life mai aata hai....kabhi aansuo ko jaya mat karo nakamyabi par.....har haar ke piche jeet chupi hoti hai.....nice poem.....aap hamesha bahut accha likte ho...
मैं चुप खडा देखता रहा,
और सुनता रहा ,
उसकी मौन भाषा,
बरसात ने तो जो कहा ,
सबने देखा और सुना भी,
कहां वो बात ,
किसी को पता चली,गिरता मकान,
जो चुपके से मेरे कानों में कह गया...
और क्या कहूं इसके सिवा ..शब्द खुद बखुद चल पडे इस कारवां के पीछे पीछे..
behtarin bhav ...acchi rachana ..kya kahe hum ..." the best "
कई लोग आये,
और देख कर चले गए,
शीशा फिर भी
चमकता रह गया
bahut khub mahfooz .."
----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
एहसास से भरी कविता, सुन्दर !!!
ख़ुद से कहा वफ़ा कि नुमाइश मत कर
और यह सितम मेरा दिल सह गया,
एक घरौंदा जो बनाया था,
जिसे हम दोनों ने सजाया था,
बरसात में देखिये बह गया.
यही होता है महफूज भाई हम न जानें क्यो हर सितम सह जाते है। खैर छोड़िये इन सब बातो को आपकी एक और लाजवाब रचना जो की दिल के हर कोने को छू गयी। न जाने कैसे आप इन शब्दो को मालाओं मे पिरो लेते है। बहुत ही उम्दा रचना लगी।
एक घरौंदा जो बनाया था,
जिसे हम दोनों ने सजाया था,
बरसात में देखिये बह गया.
..बहुत खूब महफूज़ भाई...
जनाब आपके तो बहुत रंग है..आज एक खूबसूरत कविता रच डाली आपने..बहुत सुंदर ..
शीशा फिर भी चमकता रह गया,
क्या बात है बहुत सुंदर अच्छी रचना है!बधाई
har baar ek nayi misaal de jate ho....
कई लोग आये,
और देख कर चले गए,
शीशा फिर भी
चमकता रह गया
lajawab rachna hai sath hi lagai gayi picture sone pe suhaga ka kaam kar rahi hai. samvedna aapko kahan tak chhoo ke jati hai samajhna mushqil hai lagta to ye hai ki chhoo ke jati bhi hai ya wahin chhoone ke baad aapme hi samajati hai.
aapka chhota bhai
Jai Hind
महफूज़ भाई दिल को छू गए ...
सुन्दर रचना ...
शीशा फिर भी
चमकता रह गया,
bahut khoob..
aap bhi chamak rahe ho...
मैं चुप खडा देखता रहा,
और सुनता रहा ,
उसकी मौन भाषा,
बरसात ने तो जो कहा ,
सबने देखा और सुना भी,
कहां वो बात ,
किसी को पता चली,गिरता मकान,
जो चुपके से मेरे कानों में कह गया.
वाह्! बहुत ही उम्दा लिखा आपने.....सुन्दर रचना!!
आईने से बात् करते थक गया,
एक्-कतरा आँख से बह गया
नींव मैंने रखी थी जिस् मकां की,
दुख की बरसात मे वो ढह गया
लोग आये,देख कर चले गए,
शीशा अकेला चमकता रह गया,
ख़ुद से कहा नुमाइश मत कर वफा की
यह सितम भी दिल मेरा सह गया,
एक घरौंदा जिसे उमीदों से सजाया था,
किस कदर बरसात में देखो बह गया.
यह सब मास्टर जी की करामात है , बुरा मत मानना ।
sheesha fuir bhi chamkta rah gya ..............
sundar bhav abhivyakti.
satya
एक बेहतरीन रचना के लिए बधाई..बड़ी ही खूबसूरत कारीगरी है शब्दों की!!
आईने से बातें करते करते थक गया,कतरा-कतरा आँखों से कुछ बह गया,जो नींव मैंने रखी थी उस मकां की,वो मकान ढह गया.कई लोग आये,और देख कर चले गए,शीशा फिर भीचमकता रह गया,
ख़ुद से कहा वफ़ा कि नुमाइश मत कर
कल तक लोगों को धमका धमका कर डराने वाला आज क्या लिख बैठा है ...
अच्छा लगा ...!!
एक घरौंदा जो बनाया था,
जिसे हम दोनों ने सजाया था,
बरसात में देखिये बह गया.
waah badhiya....
इतना नियमित और उत्कृष्ट लेखन । आभार ।
कविता सुन्दर है ।
मकां को महफूज़ रखना है तो बकौल बच्चनवा अगली बार बिनानी
सीमेंट ही इस्तेमाल करना...
जय हिंद...
शीशा फिर भी
चमकता रह गया,
नया तेवर -- नया अन्दाज़. पर यह शीशा चमकते रहना चाहिये
बहुत अच्छा लेखन है आपका !!
अच्छी लगी रचना
अरे सच अदा ने सही कहा है मैं तो खुद चक्कर मे पड गयी कि ये किसका ब्लाग है। तुम्हरी ये नकारात्मक सोच कब से हो गयी? घरउण्दे बनाने वाले बरसात की परवाह से घरोंदे बनाने नहीं छोड देते तो मियाँ अब नया घरोंदा कब बना रहे हो? बहुत अच्छी रचना है शुभकामनायें
आईने से बातें करते करते थक गया,
कतरा-कतरा आँखों से कुछ बह गया,
बहुत बढ़िया भावभरी कविता है।
बधाई!
एक घरौंदा जो बनाया था,जिसे हम दोनों ने सजाया था,बरसात में देखिये बह गया.
एक चुभन है एक दर्द है इन पंक्तियों मे जो बह गया वो बहुत कुछ कह गया....
regards
एक और सुन्दर और मार्मिक रचना महफूज भाई, बधाई !इश्वर से सदा यही प्रार्थना करूंगा कि उस मका की नींव कभी न डहे, जिसे आप रखे !
जो नींव मैंने रखी थी उस मकां की,
वो मकान ढह गया.
कई लोग आये,
और देख कर चले गए,
शीशा फिर भी
चमकता रह गया
एकदम अलग एहसास! बहुत अच्छा महफूज़ साहब.
क्या बात है..एक दम जुदा रंग हैं आपके इस बार..पहली लाइन ही मार गयी
आईने से बातें करते करते थक गया
bhut khub mahfuj bhai del ki gahraayi se nikli hui yek behtreen rachna ke liye mera dhnybaad swikaar kare
saadar
praveen pathik
9971969084
जीतने की आदत हो गयी है के बाद
ये रचना पढना कुछ अटपटा सा लगा...
निराशा की ओर ले जाती सी रचना लगी.
पर एहसास खूबसूरती से लिखे हैं.
bekraar kar diya beete hue lamho ki yado ne...badi muddat se jo lout diwane ghar apne.....
Khuda na kare aapkaa kabhee gharaunda kisee bhee mausam me bahe!
bahut.......... hi sunder bhav hai...
कई लोग आये,और देख कर चले गए,
शीशा फिर भीचमकता रह गया..........
vaah achhee gazal है mahfooz भाई और sharad जी ने aurnikhaar la दिया है ........... kamaal के बोल हैं .......
माफी चाहूँगा, आज आपकी रचना पर कोई कमेन्ट नहीं, सिर्फ एक निवेदन करने आया हूँ. आशा है, हालात को समझेंगे. ब्लागिंग को बचाने के लिए कृपया इस मुहिम में सहयोग दें.
क्या ब्लागिंग को बचाने के लिए कानून का सहारा लेना होगा?
Nice expression
Happy Blogging
आपने इतना बढ़िया रचना लिखा है कि मेरे पास अल्फाज़ नहीं है कहने के लिए! यही कहूँगी की आपका अब तक के जितने रचनाएँ हैं उनमें ये उम्दा रचना है! बहुत बहुत सुंदर!
जब भी भावनाओं का प्रवाह बह निकलता है -वह ऐसे ही शब्दों को अख्तियार कर लेता है ! बल्कि शब्दों को भाव दे देता है !
hame mat bhuliyega m.ali sahab
sanjay bhaskar
haryana
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
arey sanjay ji, kaise bhool sakta hoon apko?
excellent.
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ।
हमेशा जीतने वाले का घरोंदा महज़ बारिश से नही ढह सकता ।
Aapko bhi Diwali bahut mubaarak !
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