शुक्रवार, 9 अक्टूबर 2009

एक घरौंदा जो बनाया था, बरसात में बह गया.




आईने से बातें करते करते थक गया,
कतरा-कतरा आँखों से कुछ बह गया,
जो नींव मैंने रखी थी उस मकां की,
वो मकान ढह गया.
कई लोग आये,
और देख कर चले गए,
शीशा फिर भी
चमकता रह गया,

ख़ुद से कहा वफ़ा कि नुमाइश मत कर
और यह सितम मेरा दिल सह गया,
एक घरौंदा जो बनाया था,
जिसे हम दोनों ने सजाया था,
बरसात में देखिये बह गया.

52 टिप्पणियाँ:

shikha varshney ने कहा…

जो नींव मैंने रखी थी उस मकां की,
वो मकान ढह गया.
कई लोग आये,
और देख कर चले गए,
शीशा फिर भी
चमकता रह गया
वाह वाह एकदम नया अंदाज़ और गहरी बात....क्या बात है.आप तो ऐसे न थे.[:)] ..पिछली पोस्ट के बाद ये पोस्ट एकदम अलग एहसास दे रही है

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

महफूज़ जी,
अब तो हम बहुते कनफुसिया गए हैं......
अब का हुआ ????
आप तो ऐसे न थे....!!! कल तक तो ...
लगता आपको धमाका करने कि आदत है....
वो कहते हैं न ...कभी घन घना, कभी मुट्ठी भर चना और कभी वो भी मना....
तो आपके ब्लॉग में हम पाठकों को अहसासों का जो डोज मिलता है न कुछ ऐसा ही होता है...
बहुत खूब लिखा है आज आपके शायर दिल ने..
बस लिखते रहिये...

sanjay vyas ने कहा…

बहुत सुंदर भाव है.बधाई.लगातार नवीन प्रस्तुतियों के लिए बधाई.

लोकेन्द्र विक्रम सिंह ने कहा…

शीशा फिर भी चमकता रह गया,
क्या खूब कहा है........
कुछ ऐसा अहसास दिलाती है आपकी ये कविता, जो खुद सी जान पड़े......
बधाई.....

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत सुन्दर लिखा है।बधाई।

Mishra Pankaj ने कहा…

मह्फ़ूज जी कल की चर्चा के लिये आप्की पिछली पोस्ट ले लिया तो अब आप्ने एक और नया आज आप को क्या हो गया इतनी पोस्ट एक साथ
बधाई हो

बेनामी ने कहा…

वो मकान ढह गया....agar kuch khatam hota hai tabhi kuch naya life mai aata hai....kabhi aansuo ko jaya mat karo nakamyabi par.....har haar ke piche jeet chupi hoti hai.....nice poem.....aap hamesha bahut accha likte ho...

अजय कुमार झा ने कहा…

मैं चुप खडा देखता रहा,
और सुनता रहा ,
उसकी मौन भाषा,
बरसात ने तो जो कहा ,
सबने देखा और सुना भी,
कहां वो बात ,
किसी को पता चली,गिरता मकान,
जो चुपके से मेरे कानों में कह गया...


और क्या कहूं इसके सिवा ..शब्द खुद बखुद चल पडे इस कारवां के पीछे पीछे..

अनिल कान्त ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
SACCHAI ने कहा…

behtarin bhav ...acchi rachana ..kya kahe hum ..." the best "

कई लोग आये,
और देख कर चले गए,
शीशा फिर भी
चमकता रह गया

bahut khub mahfooz .."

----- eksacchai { AAWAZ }

http://eksacchai.blogspot.com

Chandan Kumar Jha ने कहा…

एहसास से भरी कविता, सुन्दर !!!

Mithilesh dubey ने कहा…

ख़ुद से कहा वफ़ा कि नुमाइश मत कर
और यह सितम मेरा दिल सह गया,
एक घरौंदा जो बनाया था,
जिसे हम दोनों ने सजाया था,
बरसात में देखिये बह गया.

यही होता है महफूज भाई हम न जानें क्यो हर सितम सह जाते है। खैर छोड़िये इन सब बातो को आपकी एक और लाजवाब रचना जो की दिल के हर कोने को छू गयी। न जाने कैसे आप इन शब्दो को मालाओं मे पिरो लेते है। बहुत ही उम्दा रचना लगी।

बेनामी ने कहा…

एक घरौंदा जो बनाया था,

जिसे हम दोनों ने सजाया था,
बरसात में देखिये बह गया.


..बहुत खूब महफूज़ भाई...

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

जनाब आपके तो बहुत रंग है..आज एक खूबसूरत कविता रच डाली आपने..बहुत सुंदर ..

प्रज्ञा पांडेय ने कहा…

शीशा फिर भी चमकता रह गया,
क्या बात है बहुत सुंदर अच्छी रचना है!बधाई

रश्मि प्रभा... ने कहा…

har baar ek nayi misaal de jate ho....

Arkjesh ने कहा…

कई लोग आये,
और देख कर चले गए,
शीशा फिर भी
चमकता रह गया

दीपक 'मशाल' ने कहा…

lajawab rachna hai sath hi lagai gayi picture sone pe suhaga ka kaam kar rahi hai. samvedna aapko kahan tak chhoo ke jati hai samajhna mushqil hai lagta to ye hai ki chhoo ke jati bhi hai ya wahin chhoone ke baad aapme hi samajati hai.
aapka chhota bhai
Jai Hind

Rakesh Singh - राकेश सिंह ने कहा…

महफूज़ भाई दिल को छू गए ...

सुन्दर रचना ...

Ambarish ने कहा…

शीशा फिर भी
चमकता रह गया,
bahut khoob..
aap bhi chamak rahe ho...

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

मैं चुप खडा देखता रहा,
और सुनता रहा ,
उसकी मौन भाषा,
बरसात ने तो जो कहा ,
सबने देखा और सुना भी,
कहां वो बात ,
किसी को पता चली,गिरता मकान,
जो चुपके से मेरे कानों में कह गया.

वाह्! बहुत ही उम्दा लिखा आपने.....सुन्दर रचना!!

शरद कोकास ने कहा…

आईने से बात् करते थक गया,
एक्-कतरा आँख से बह गया

नींव मैंने रखी थी जिस् मकां की,
दुख की बरसात मे वो ढह गया

लोग आये,देख कर चले गए,
शीशा अकेला चमकता रह गया,

ख़ुद से कहा नुमाइश मत कर वफा की
यह सितम भी दिल मेरा सह गया,

एक घरौंदा जिसे उमीदों से सजाया था,
किस कदर बरसात में देखो बह गया.

यह सब मास्टर जी की करामात है , बुरा मत मानना ।

Satya Vyas ने कहा…

sheesha fuir bhi chamkta rah gya ..............

sundar bhav abhivyakti.
satya

Udan Tashtari ने कहा…

एक बेहतरीन रचना के लिए बधाई..बड़ी ही खूबसूरत कारीगरी है शब्दों की!!

वाणी गीत ने कहा…

आईने से बातें करते करते थक गया,कतरा-कतरा आँखों से कुछ बह गया,जो नींव मैंने रखी थी उस मकां की,वो मकान ढह गया.कई लोग आये,और देख कर चले गए,शीशा फिर भीचमकता रह गया,
ख़ुद से कहा वफ़ा कि नुमाइश मत कर

कल तक लोगों को धमका धमका कर डराने वाला आज क्या लिख बैठा है ...
अच्छा लगा ...!!

शेफाली पाण्डे ने कहा…

एक घरौंदा जो बनाया था,
जिसे हम दोनों ने सजाया था,
बरसात में देखिये बह गया.
waah badhiya....

Himanshu Pandey ने कहा…

इतना नियमित और उत्कृष्ट लेखन । आभार ।

कविता सुन्दर है ।

Khushdeep Sehgal ने कहा…

मकां को महफूज़ रखना है तो बकौल बच्चनवा अगली बार बिनानी
सीमेंट ही इस्तेमाल करना...
जय हिंद...

M VERMA ने कहा…

शीशा फिर भी
चमकता रह गया,
नया तेवर -- नया अन्दाज़. पर यह शीशा चमकते रहना चाहिये

अनिल कान्त ने कहा…

बहुत अच्छा लेखन है आपका !!
अच्छी लगी रचना

निर्मला कपिला ने कहा…

अरे सच अदा ने सही कहा है मैं तो खुद चक्कर मे पड गयी कि ये किसका ब्लाग है। तुम्हरी ये नकारात्मक सोच कब से हो गयी? घरउण्दे बनाने वाले बरसात की परवाह से घरोंदे बनाने नहीं छोड देते तो मियाँ अब नया घरोंदा कब बना रहे हो? बहुत अच्छी रचना है शुभकामनायें

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आईने से बातें करते करते थक गया,
कतरा-कतरा आँखों से कुछ बह गया,

बहुत बढ़िया भावभरी कविता है।
बधाई!

seema gupta ने कहा…

एक घरौंदा जो बनाया था,जिसे हम दोनों ने सजाया था,बरसात में देखिये बह गया.
एक चुभन है एक दर्द है इन पंक्तियों मे जो बह गया वो बहुत कुछ कह गया....

regards

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

एक और सुन्दर और मार्मिक रचना महफूज भाई, बधाई !इश्वर से सदा यही प्रार्थना करूंगा कि उस मका की नींव कभी न डहे, जिसे आप रखे !

Meenu Khare ने कहा…

जो नींव मैंने रखी थी उस मकां की,
वो मकान ढह गया.
कई लोग आये,
और देख कर चले गए,
शीशा फिर भी
चमकता रह गया

एकदम अलग एहसास! बहुत अच्छा महफूज़ साहब.

अपूर्व ने कहा…

क्या बात है..एक दम जुदा रंग हैं आपके इस बार..पहली लाइन ही मार गयी
आईने से बातें करते करते थक गया

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) ने कहा…

bhut khub mahfuj bhai del ki gahraayi se nikli hui yek behtreen rachna ke liye mera dhnybaad swikaar kare



saadar
praveen pathik
9971969084

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

जीतने की आदत हो गयी है के बाद

ये रचना पढना कुछ अटपटा सा लगा...
निराशा की ओर ले जाती सी रचना लगी.
पर एहसास खूबसूरती से लिखे हैं.

डिम्पल मल्होत्रा ने कहा…

bekraar kar diya beete hue lamho ki yado ne...badi muddat se jo lout diwane ghar apne.....

kshama ने कहा…

Khuda na kare aapkaa kabhee gharaunda kisee bhee mausam me bahe!

Unknown ने कहा…

bahut.......... hi sunder bhav hai...

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कई लोग आये,और देख कर चले गए,
शीशा फिर भीचमकता रह गया..........

vaah achhee gazal है mahfooz भाई और sharad जी ने aurnikhaar la दिया है ........... kamaal के बोल हैं .......

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

माफी चाहूँगा, आज आपकी रचना पर कोई कमेन्ट नहीं, सिर्फ एक निवेदन करने आया हूँ. आशा है, हालात को समझेंगे. ब्लागिंग को बचाने के लिए कृपया इस मुहिम में सहयोग दें.
क्या ब्लागिंग को बचाने के लिए कानून का सहारा लेना होगा?

Ashish Khandelwal ने कहा…

Nice expression

Happy Blogging

Urmi ने कहा…

आपने इतना बढ़िया रचना लिखा है कि मेरे पास अल्फाज़ नहीं है कहने के लिए! यही कहूँगी की आपका अब तक के जितने रचनाएँ हैं उनमें ये उम्दा रचना है! बहुत बहुत सुंदर!

Arvind Mishra ने कहा…

जब भी भावनाओं का प्रवाह बह निकलता है -वह ऐसे ही शब्दों को अख्तियार कर लेता है ! बल्कि शब्दों को भाव दे देता है !

संजय भास्‍कर ने कहा…

hame mat bhuliyega m.ali sahab

sanjay bhaskar
haryana
http://sanjaybhaskar.blogspot.com

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

arey sanjay ji, kaise bhool sakta hoon apko?

Dr.Aditya Kumar ने कहा…

excellent.

सदा ने कहा…

बहुत ही सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति ।

Asha Joglekar ने कहा…

हमेशा जीतने वाले का घरोंदा महज़ बारिश से नही ढह सकता ।

Pritishi ने कहा…

Aapko bhi Diwali bahut mubaarak !

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