देश की आँखें
विश्व के इतिहास में
अब तक गड़ी हैं,
रात ने एड़ी बजाई
भोर पहरे पर खड़ी है।
अब तक गड़ी हैं,
रात ने एड़ी बजाई
भोर पहरे पर खड़ी है।
फ़लक चूमते अरमान,
धरती की नसों से,
कमरे का आसमान
देश बन रहा है,
भाषणों में मौत का पैगाम
भारत जल रहा है
और दिल्ली की तस्वीर
आँखों में गड़ी है।
धरती की नसों से,
कमरे का आसमान
देश बन रहा है,
भाषणों में मौत का पैगाम
भारत जल रहा है
और दिल्ली की तस्वीर
आँखों में गड़ी है।
गोलियों की बाढ़,
लाशें गिन रही हैं,
बारूद के पेड़ हैं,
बम के काफिले हैं,
जलता हुआ भारत
धुंआ दे रहा है,
मौत से कुर्बानियां
कितनी बड़ी हैं।
लाशें गिन रही हैं,
बारूद के पेड़ हैं,
बम के काफिले हैं,
जलता हुआ भारत
धुंआ दे रहा है,
मौत से कुर्बानियां
कितनी बड़ी हैं।
बर्फानी रातों में,
ग्लेशियर पर
एकांत यात्रा कर रहा है,
इन शहीदों के लिए
इतिहास आंसू झर रहा है,
इसलिए मौत की पगडंडियों पर,
ज़िन्दगी जम कर लड़ी है।
ग्लेशियर पर
एकांत यात्रा कर रहा है,
इन शहीदों के लिए
इतिहास आंसू झर रहा है,
इसलिए मौत की पगडंडियों पर,
ज़िन्दगी जम कर लड़ी है।
विचारक जागते हैं जब,
करवट विश्व लेता है,
पुराना देश धरती पर
नए इम्तिहान देता है,
क्रान्ति के तूफ़ान उठते हैं
मौत की बाहें बढ़ी हैं,
रात ने एड़ी बजाई
भोर पहरे पर खड़ी है।।
करवट विश्व लेता है,
पुराना देश धरती पर
नए इम्तिहान देता है,
क्रान्ति के तूफ़ान उठते हैं
मौत की बाहें बढ़ी हैं,
रात ने एड़ी बजाई
भोर पहरे पर खड़ी है।।
(c) महफूज़ अली