शब्दों के जाल में उलझने की बजाये ,
हाव-भाव से दिल का हाल जान लो तुम।
एक सुरक्षित सहारा ....... एक ऐसा आगोश,
जहाँ दुनिया के किसी खतरे से डर न लगे॥
तारीफ़ की दरकार है मुझे.....
कोई तो हो जिसकी ,
नज़रों में सिर्फ़ मेरा ही अक्स नज़र आए॥
मैं भी पहचान रखता हूँ, अपना मुकाम रखता हूँ,
इसे कोई मेरा अहम् न समझे, स्वाभिमान समझे॥
मेरी भावुकता को कमजोरी न समझे!
जो दिल का सम्मान करे,
वही सच्चा साथी॥
मुझसे बात करो!
तो शरीर का सम्बन्ध भी फीका लगता है॥
मैं उड़ना चाहता हूँ, आगे बढ़ना चाहता हूँ,
मगर तुम्हारे साथ, तुम्हारे सहारे!
बोलो ! क्या मंज़ूर है?
ग़र मैं उलझ जाऊँ, नाराज़ हो जाऊँ तो.....
तुम प्यार से मनाने का तरीका सीख लो॥
85 टिप्पणियाँ:
उदात्त मनुहार -इस पर भी न कोई माने तो फिर प्यार के क्या मायने !
काफी रंग लिए हुए है आपकी ये रचना ..एक तरफ पूर्णत सच्चे प्रेम की चाह, समर्पण की आस.
तारीफ़ की दरकार है मुझे.....
कोई तो हो जिसकी ,
नज़रों में सिर्फ़ मेरा ही अक्स नज़र आए॥
वहीँ फिर एक सच्चे दोस्त की तलाश......
मुझसे बात करो!
संवाद का सोता सूखा,
तो शरीर का सम्बन्ध भी फीका लगता है॥
और फिर एक अरमान ,एक ख्वाइश....जो हर कोई चाहता है अपनी जिन्दगी से...
मैं उड़ना चाहता हूँ, आगे बढ़ना चाहता हूँ,
मगर तुम्हारे साथ, तुम्हारे सहारे!
और अंत में एक इसरार...एक प्रेम पूर्ण सवाल.
बोलो ! क्या मंज़ूर है?
बहुत ही भावपूर्ण कविता लिखी है आपने ...दिल की सी बात एकदम दिल से...
कोई तो हो जिसकी ,
नज़रों में सिर्फ़ मेरा ही अक्स नज़र आए॥
मैं भी पहचान रखता हूँ, अपना मुकाम रखता हूँ,
इसे कोई मेरा अहम् न समझे, स्वाभिमान समझे॥
मेरी भावुकता को कमजोरी न समझे!
बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ हैं ..
सीधी-सीधी बात कहती हुई...
मैं उड़ना चाहता हूँ, आगे बढ़ना चाहता हूँ,
मगर तुम्हारे साथ, तुम्हारे सहारे!
बोलो ! क्या मंज़ूर है?
ग़र मैं उलझ जाऊँ, नाराज़ हो जाऊँ तो.....
तुम प्यार से मनाने का तरीका सीख लो॥
अच्छी खासी धमकी लग रही है ये तो..
हा हा हा हा हा
लेकिन दिल से कही गयी है...
सीख लेंगी वो....घबडाए मत...!!
बहुत सुन्दर कविता !!
एक स्वाभिमानी और संवेदनशील प्रेमी के हृदय की बात बहुत सही तरीके से प्रस्तुत की आपने सर जी !!
..एक दीर्घजीवी और प्रगाढ़ संबंध के लिये यह जरूरी भी है..मगर साथ मे आपका साथी भी आपसे इन्ही फ़ीलिंग्स को रेसीप्रोकेट करने की अपेक्षा रखेगा..जिसका सम्मान करना भी जरूरी है..मगर इस तस्वीर का एक पहलू यह भी है कि कभी कभी ऐसा अति-आत्ममुग्ध प्रेमी साथी की नजरों मे बसे अपने अक्स से ही प्रेम करता है..और प्रकारांतर से अपने प्रिय के बहाने खुद की ही मोहब्बत मे डूबा रहता है..जो ऐसे संबन्धों की देहत के लिये कभी-कभी घातक भी हो सकता है...
..जबकि प्यार की एक शर्त स्वयं को इस आग मे समर्पित कर देने की भी होती है..अपना खुद का व्यक्तित्व..अपना इगो तिरोहित कर देने की..दो द्रवों की तरह आपस मे ऐसे घुल जाने की कि फ़र्क करना मुश्किल हो जाये..ऐसा मेरा खयाल है..हाँ कबीर भी कहते थे
जब मैं था, तब हरि नही
अब हरि हैं मैं नाहि;
प्रेम गली अति साँकरी
या मे दो न समाहिँ !
प्रेम के द्वारा खुद को सम्पूर्णता देने की ख्वाहिश के साथ रिलेशन्स को हकीकत का आइना दिखाती एक बेबाक रचना के लिये आभार !!!!
शब्दों के जाल में उलझने की बजाये ,
हाव-भाव से दिल का हाल जान लो तुम।
बहुत बढ़िया!
गुरू पर्व की बधाई!
उम्मीद पे दुनिया कायम रखिए मित्र... :-)
सुन्दर कविता
बहुत सुंदर रचना, मानने का इस से अलग ओर सुंदर ढंग ओर कोन सा होगा?
आमीन !!
नित नये नये और बेहतरीन भावनाएँ..बहुत खूब महफूज जी..बढ़िया लगा...बधाई
बहुत इमोशनल है।
तुम प्यार से मनाने का तरीका सीख लो।
बेहद खूबसूरत और दिल को छू लेने वाली लाइन है।
हाव भाव से पता चल ही जायेगा
और शायद पता चलने लगा है.
आग्रह और मनुहार बेहतरीन है
बहुत सुन्दर
तुम प्यार से मनाने का तरीका सीख लो॥nice
हुजूर इश्क की गलियों से गुजर चुके हैं ..इतना तो गुमान था ..मगर जनाब इतने शिद्दत से मुहब्बत करते हैं थे या कर रहे हैं..ये अब जाना...उफ़्फ़ अब तो उनका बच निकलना नामुमकिन है जी ...
शब्दों के जाल में उलझने की बजाये ,
हाव-भाव से दिल का हाल जान लो तुम।
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ग़र मैं उलझ जाऊँ, नाराज़ हो जाऊँ तो.....
तुम प्यार से मनाने का तरीका सीख लो॥
प्रेम के बहुत गहरे समुद्र मे डुबकी मारने की चाहत लगती है।बहुत सुन्दर रचना है।शुभकामनाएं।
संवाद का सोता सूखा,
तो शरीर का सम्बन्ध भी फीका लगता है॥
........yah bahut badaa satya hai,aapsi samvaad,aapsi samajh bahut hi zaruri hai
dil ko chu gayi ye kavita...
बोलो ! क्या मंज़ूर है?
ग़र मैं उलझ जाऊँ, नाराज़ हो जाऊँ तो.....
तुम प्यार से मनाने का तरीका सीख लो॥
-वाह!! ये भी एक तरीका है मनुहार का..अब जाना!!
बहुत खूब!
गहरी प्रेम अभिव्यक्ति
बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ हैं !!
अच्छी रचना है....जैसे किसी सच्चे दिल की पुकार...:)
Pyar karne wale jab rukh badal lete hain, to kaun kise manaye?Mananeka mauqa bhi na mile to kya karen?
Palme alag rukh ikhtiyaar kar lete hain..
unhen kisee any ke paas jate dekh ham thage se rah jate hain....chalo, fitrat to pata chali..
इसे कोई मेरा अहम् न समझे, स्वाभिमान समझे॥
मेरी भावुकता को कमजोरी न समझे! self respect is above all...khoobsurat kavita...
संवाद का सोता सूखा,
तो शरीर का सम्बन्ध भी फीका लगता है॥
मैं उड़ना चाहता हूँ, आगे बढ़ना चाहता हूँ,
मगर तुम्हारे साथ, तुम्हारे सहारे!
bahut bhavuk kavita...sundar abhivyakti....badhai
kaise aur kitni tareef karoon is khoobsurat, lazati sharmati, ithlati kavita ka jo hanste hi hanste kisi bhi naazneen ka dil pal bhar me aapke liye hazir kar sakti hai..
Jai Hind
सच भाईजान। ये वो बात कही आपने के हमें हमारे उस्ताद चचा लुक्मान की शान में कही लाइने याद आ गईं।
--- ना ग़ज़ल है, न गीत है प्यारे
आपसी बातचीत है प्यारे
बहुत उम्दा और संजीदा कहन।
It is very difficult to search a true copanion.If you have,you are fortunate enough'
bahut hi khoobsoorat... bahut sundar bhaav hain...
waah saheb..achhe khase romantic insaan hain aap to :)
BAHUT SUNDAR BHAIYAA!!!!!!
ग़र मैं उलझ जाऊँ, नाराज़ हो जाऊँ तो.....
तुम प्यार से मनाने का तरीका सीख लो॥
बहुत बढिया रचना....
भला ऎसी मनुहार से कैसे न कोई माने :)
ग़र मैं उलझ जाऊँ, नाराज़ हो जाऊँ तो.....
तुम प्यार से मनाने का तरीका सीख लो॥
ग़र मैं उलझ जाऊँ, नाराज़ हो जाऊँ तो.....
तुम प्यार से मनाने का तरीका सीख लो॥
ये सही है .....
सुन्दर भावों को बयां करती सुन्दर कविता
इसीलिए कहते हैं --
' communication ,
is a 2 way street '
nice poem
- लावण्या
इस कविता के बड़े गहरे और बारीक मायने हैं
इंसान अपनी ज़िन्दगी में सदा ख़ुद को तनहा महसूस करता है लेकिन वह भ्रम बनाए रखना चाह्र्ता है कि कोई उसका हितैषी है उसके साथ जो..हम कदम भी है, हम सफर भी है और हमदर्द भी है
इस भ्रम को बरकरार रखने के लिए वह उसके आगे ख़ुद को खोल डालता है जिसे वह सब से ज़्यादा चाहता है..... इस कोशिश में वह अपना सब कुछ यहाँ तक कि अपने गुरूर और ज़मीर को भी दाव पे लगा देता है......
बदले में सिर्फ़ इतना चाहता है कि जितनी मोहब्बत वह करता है उतनी ही सामने वाला भी करे...
इस पूरे मामले को जिस सुंदर और सटीक शब्दावली में आपने अभिव्यक्त किया है महफूज़ भाई ! वह नायाब है !
गज़ब काम किया है आपने.............ये कविता तो एक धरोहर है साहित्य की..ऐसा मेरा मानना है
आपका हार्दिक अभिनन्दन !
बहुत ही उम्दा और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! दिल को कु गई आपकी ये प्यारी रचना! मनाने का इससे बढ़िया तरीका भला और क्या हो सकता है!
मह्फूज मैने अंग्रेजी मे लिखी कविता भी पढ़ी,मुझे ज्यादा बेहतर लगी, मुझे लगा शब्दों का चुनाव और बेहतर हो सकता था, जिससे लयबध्द्ता बनती है और इससे कविता ज्यादा प्रभावशाली हो जाती है.
आपने खुल कर हम सभी के दिल के किसी कोने में छुपी-दबी हसरतों को इज़हार इन पंकतियो में किया है. हा, ये नभूलियेगा की यही उम्मीद उनको भी है.
महफूज भाई बहुत ही सुन्दर कविता लिखी है आपने ...धन्यवाद
मैं भी पहचान रखता हूँ, अपना मुकाम रखता हूँ,
इसे कोई मेरा अहम् न समझे, स्वाभिमान समझे॥
मेरी भावुकता को कमजोरी न समझे!
जो दिल का सम्मान करे,
वही सच्चा साथी॥
वही है सच्चा साथी ...
संवाद का सोता सूखा तो हर सम्बन्ध फीका हो जाता है ...बहुत गहरी बात ..,
"ग़र मैं उलझ जाऊँ, नाराज़ हो जाऊँ तो....."
अरे भाई, तुम जब उलझोगे और नाराज होओगे तब उलझोगे और नाराज होओगे, अभी तो वो रूठी हुई हैं। प्यार से मनाओ यार! धमकी-समकी नहीं चलने वाली।
[थोड़ी सी रसिकता तो अभी है हममें भी। :-)]
.
.
.
महफूज जी,
उम्दा कविता, पर मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि आपने इसे ब्लॉग पर डाला तो है पर है यह किसी 'खासमखास' को पढ़वाने के लिये ही... कौन है वह?... खैर जो भी है खुशकिस्मत है... 'महफूज' रहेगी हमेशा...
बहुत ही भावपूर्ण कविता लिखी है सीधी बात कहती हुई...बहुत सुन्दर
ग़र मैं उलझ जाऊँ, नाराज़ हो जाऊँ तो.....
तुम प्यार से मनाने का तरीका सीख लो॥
सुन्दर अभिव्यक्ति
regards
इस मामले मे अपना एक्स्पीरियंस इम्पोर्टेड यानी दूसरों से सुना हुआ ही है,लेकिन जितना भी है उसके अनुसार तो ……
तुम रूठी रहो,मैं मनाता रहूं,
तो मज़ा जीने के और भी आता है।
यंहा तो उल्टा दिख रहा है,
मैं रूठा रहूं,तुम मनाती रहो………
बुरा मत मानना,बहुत प्यारी रचना है,इतनी प्यारी कि इसे पढ कर ही प्यार करने,रूठने-मनाने का मज़ा आ गया।बहुत बढिया।
अपनी अस्मिता को सुरक्षित रख कर समर्पण का भाव आपकी कविता में नुमाया है.
अच्छी रवानगी है.सुंदर.
शब्दों के जाल में उलझने की बजाये ,
हाव-भाव से दिल का हाल जान लो तुम।
वाह !! सुन्दर रचना
शब्दों के जाल में उलझने की बजाये ,
हाव-भाव से दिल का हाल जान लो तुम।
वाह !! सुन्दर रचना
बहुत सुन्दर और वही रंगों भरी कविता !
मुहब्बत में ख़ामोशी की ज़ुबान का फ़लसफ़ा ही चलता है...शादी हो जाए तो फिर दिल ज़ुबान की ख़ामोशी को ही ढ़ूंढता रह जाता है...दिल ढूंढता है फुर्सत के चार दिन...
जय हिंद...
YE PREM KI NOKJHONK HAI YA MANUWAAR .... YA PREM MEIN BARABARI KA EHSAAS ...... BAHOOT HI ACHHA LIKHA HAI .... SACH KAHA HAI AGAR SAMWAAD NA HO TO SAMBANDH BHI SOOKH JAATE HAIN ......
kuch kaha nahi ja raha hai itna sundar likha hai aapne
"तुम प्यार से मनाने का तरीका सीख लो.........."
yeh line bahut achchhi lagi!
Shbd..samvad banaate hain--isliye shbdon ke sahare ki jarurat to sambandhon ko nibhaane mein padati hi hai...
kavita mein gahan bhaav abhivyakti hain hridy ki peeda hai..sanshy hai aur prashn bhi hai...
Mehfooz ji...aapki is kavita ka har ek lafz kuch kehta ha....Pyar k rang me apne lafzo ko bohot badiya tareeqe se ranga ha...apki baki ki kavitao ki tarha ye bhi kam shabdo me kahi ek bohot lambi kahani ha...
aise hi kavitaye likhte rahiye....
agli post ka intzaar rahega...
बिलकुल सही सुझाव, प्यार में मनाने का तरीका नहीं आया, तो फिर प्यार का मज़ा अधूरा रह जाता है।
ह ह हा।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
नज़रों में सिर्फ़ मेरा ही अक्स नज़र आए॥
मैं भी पहचान रखता हूँ, अपना मुकाम रखता हूँ,
jab aks ek ho jaye ,doosra roop hi nazar aaye ...........yahi to prem ki parakashtha hai..........aur shayad har kisi ki dili tamanna bhi yahi hai.........ek bahut hi bhavpoorna rachna.........chahat ka rang ukerti rachna.
कोई तो हो जिसकी ,
नज़रों में सिर्फ़ मेरा ही अक्स नज़र आए॥
बहुत ही गहराई लिये हुये हर शब्द बेहतरीन प्रस्तुति, बधाई ।
वाह क्या बात है। हर लफ़्ज कुछ कहता है।
महफूज़ साहब ......ज़िन्दगी की गाड़ी चलाने के लिए ख्यालात तो बहुत ही उम्दा हैं पर ......एक तरफा उम्मीद न रखें ....इस तो आपको भी सीखना होगा .....!!
ये मनाने का तरीका तस्वीर वाला है क्या ....??
संवाद का सोता सूखा,
तो शरीर का सम्बन्ध भी फीका लगता है॥
मैं उड़ना चाहता हूँ, आगे बढ़ना चाहता हूँ,
मगर तुम्हारे साथ, तुम्हारे सहारे!
बोलो ! क्या मंज़ूर है?
ग़र मैं उलझ जाऊँ, नाराज़ हो जाऊँ तो.....
तुम प्यार से मनाने का तरीका सीख लो॥
bahut khoob...
achhi kavita hai ,aapsi samjh pe...par aapsi samjh dono tarf se honi chahiye ......or pyar se jabrdasti nahi .... बोलो ! क्या मंज़ूर है?
....ye shabd mujhe jara ak tarfa lag raha hai....
बेहद सीधी-सादी बिना किसी लाग-लपेट की प्रस्तुति. अच्छी रचना.
जारी रहें.
---
महिलाओं के प्रति हो रही घरेलू हिंसा के खिलाफ [उल्टा तीर] आइये, इस कुरुती का समाधान निकालें!
भाई साहब,,
आपकी नज़्म बेहद खूबसूरत और दिल तक पहुँचने वाली है.
शुक्रिया
बहुत जोरदार रचना है। बधाई।
संवाद का सोता सूखा,
तो शरीर का सम्बन्ध भी फीका लगता है॥
मैं उड़ना चाहता हूँ, आगे बढ़ना चाहता हूँ,
मगर तुम्हारे साथ, तुम्हारे सहारे!
बहुत भाव से भरी ये लाइनें हैं.
इन्हें मैं हृदय से महसूस कर सकता हूँ.
--
शुभेच्छु
प्रबल प्रताप सिंह
183/6, शास्त्री नगर, कानपुर - 208005
उत्तर प्रदेश, भारत
मो. नं. - + 91 9451020135
ईमेल-
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BAHUT SUNDAR SADHARAN SHABDO ME ACHCHHI RACHNAA!!!
दुनिया के सारे रिश्ते खुद की समझ और दूसरों को समझने की आवश्यकता पर टिके होते है,आपकी अभिव्यक्ति में खुद को समझे जाने का जो आग्रह है वह बेहद मासूम है.
मैने मेल से कुछ भेजा था कहाँ गया ?
वाह क्या मनुहार है!! सुन्दर.
मैं उड़ना चाहता हूँ, आगे बढ़ना चाहता हूँ,
मगर तुम्हारे साथ, तुम्हारे सहारे!
kafi gahri aur prem ki sachchi tasvir dekhne ko mili in shabdo me .sundar rachna .
bahut बढ़िया लिखा है आपने सुन्दर रचना लगी आपकी यह
प्यार मनुहार और अभिमान वाली सुंदर कविता.
hmm....
भय्या इन प्रेम भरी पंक्तियों से बात बनी या.......?
हा...हा...हा........
बहुत अच्छा लिखा है महफूज जी
भाई महफूज जी क्या बात है, आपकी ये रचना सिधे दिल को छु गयी। पढ़ने से ही पता चलता है कि आपने ये रचना दिल से लिखी है। बहुत-बहुत बधाई आपको इस बेहतरीन रचना के लिए।
महफूज़ भाई, मैं तो ठीक हूँ. अति व्यस्तता के रहते , आना नहीं हो पाया.
पर यार, ये क्या हाल बना रखा है.
कुछ लेते क्यों नहीं.
मेरा मतलब, चलो शादी कर डालो.
फिर अपने आप कोई ऐसा ही मिल जायेगा.
शुभकामनाएं . well written.
भाई महफूज अली
मुझे भी ऐसा लग रहा है कि किसी खासम खास को पढवाने के लिये लिखी है ......बिल्कुल दिल से निकली रचना जो दिल तक जाती हुई.....अच्छा है !सुन्दर अभिव्यक्ति !!!!!!!!
शब्दों के जाल में उलझने की बजाये ,
हाव-भाव से दिल का हाल जान लो तुम।...
कोई तो हो जिसकी ,
नज़रों में सिर्फ़ मेरा ही अक्स नज़र आए॥....
बोलो ! क्या मंज़ूर है?
ग़र मैं उलझ जाऊँ, नाराज़ हो जाऊँ तो.....
तुम प्यार से मनाने का तरीका सीख लो॥
sunder kavita hai mahfooz sahib!per kya ye tareeka aapko bhi aata hai?shayed koi aapse bhi yahi umeed rakhta ho?-kavita'kiran'
रंगबिरंगी भावनाओं का सलोना कलेवर होती हैं आपकी कवितायें । आभार ।
bhut hi masoom kvita
आपका तरीका वाकई बहुत शानदार है।
लगे रहें, देखें कब तक नहीं मानते हैं।
ह ह हा।
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परा मनोविज्ञान- यानि की अलौकिक बातों का विज्ञान।
ओबामा जी, 75 अरब डालर नहीं, सिर्फ 70 डॉलर में लादेन से निपटिए।
pyaar ke sunder bhaav/har shabd mere lye hi likhaa saa lagtaa hai/
उपस्थित।
'मैं उड़ना चाहता हूँ'
आपकी उड़ान मुक्क़मिल हो.
महफ़ूज भाई बहुत खूब लिखते हैं आप। बहुत उम्दा भावों से सजी रचना।
बहुत खूब!!
महफ़ूज भाई बहुत खूब लिखते हैं आप। बहुत उम्दा भावों से सजी रचना।
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