ये लो कल्लो बात !! अब क्या हुआ...? ऐसी कविता ? वैसे भी आपका बुत बनाना कौन सा आसान होगा .... आप ही न सब को बुत बना दें.... कोई कोशिश भी न करे.... और हाँ......मरें आपके दुश्मन.......हाँ नहीं तो.....!! लेकिन कविता बहुत बहुत अच्छी लगी... पता नहीं कैसे लिखते हैं आप....!
महफूज़ जी, रचना में मुझे थोड़ी सी और जगह दिखती नज़र आती है...! अलावा इसके निशब्द! भी हूँ. यह एक गहरा विचार व् गहरा विन्यास है! --- रिश्तों की एक नई तान (FWB) [बहस] [उल्टा तीर]
भई महफ़ूज़ साहब अगर खालिस साइंसाना जबान मे कहूँ (अनुराग साहब का असर है) तो आपकी कलम का फ़्रीक्वेंसी स्पेक्ट्रम बहुत विस्तृत और विविध है..एक बार लगा था कि शायद लम्बी पोस्ट्स आपके कलम को ज्यादा निखारती हैं.. मगर यहाँ चन्द लाइनों मे इतनी गहरी बात कही आपने जो कुछ शोहरत के कुत्ते के काटे लोगों को ताजिंदगी समझ मे नही आ पाती..बुत के बजाय इन्सान बने रहने की आपकी यह ख्वाहिश किसी खुदा के इंसान बनने..आम-आदमी बनने की मासूम ख्वाहिश जैसी है..उम्मीद करता हूँ..कि आपकी सलाह उन गूंगे-बहरे कानों मे पड़े...’बहन जी’ ने सुना या नही?
Vartmaan sthitiyon ko dekh kar to aisa lagata hai maano samaj mein jyada se jyade log jee kar bhi gunge, bahare aur nischal ban baithe hai, koi anyay ke khilaf awaaj hi nahi uthatha.:(
kavita ka bhav bohot gehra aur prabhavshali ha mehfooz ji....ye kavita jo sandesh de rahi ha usme ek gehra sach chupa hua ha....kash vo sach sab smjh sakte........ bohot khoob socha aapne.....
arey bhaiya aapka to bhut banne se pahile hi ham but bana denge.. ab e baat aur hai ki u mitti ka but nahi hoga.. but hoga aapka aachar vichaar ka.. aapka aachaar vichaar door door tak pahuncha dunga.... dekhte rahiye...
बहुत सुंदर अरे भाई क्या लाभ इन बुतो का, इन पर कुते पेशाब करते है,मेरी इच्छा है कि यह दुनिया शांति से चले.... मेरा कया मेरे जेसे पता नही कितने आये कितने गये.... कोन याद रखेगा??
महफूज़ मास्टर, तुम्हें बुतों पर ज़माने को ताकीद करने की क्या ज़रूरत...जो दिल में रहता है उसे सड़क-चौराहों पर रूसवा (परिंदों की लीद से) होने के लिए क्यों छोड़ें...
इस काम के लिए देवी जी हैं न जो जीते-जी ही अपने बुत बनवाने पर तुली हैं...शायद भरोसा नहीं कि मरने के बाद उन्हें कोई याद करता है या नहीं...खैर देवी जी की माया है देवी जी ही जानें...
सोच अलग सी. आप तो बुतों के प्रदेश में हैं जहाँ जिन्दों के भी बुत बनते हैं. क्षमा करें वही प्रदेश मेरा भी है. तब तक किसी नए बुत के लिये जगह ही नहीं बचेगी, बेफिक्र रहें. सुन्दर रचना
kamaal का MAHFOOZ भाई ........... BAHOOT ही SAARTHAK, SATEEK और SAAMYIK लिखा है ......... AAJKAL लोग DILON में याद नहीं RAKHTE बस BUT BANA कर प्रेम की ITISHREE समझ LETE हैं ...........
सच है,एक बुत बना उनके विचारों और आदर्शों से किनारा कर लेते हैं सब....बेहतर है व्यक्ति को नहीं,उसके दिए सन्देश को याद रखें...इस बार तो गागर में सागर भर दिया आपने.
mat banana mera but meri maut ke baad..........title padhkar hi aisa laga jaise kisi ne dil hi nikaal liya ho aur jab rachna padhi to kahne ko shabd hi kam pad gaye...........bahut hi gahrayi mein utar gaye aap aur ek sashakt rachna bana di aur wo hi shayad aaj ha rkoi chahta hai. abhi kuch din pahle maine bhi kuch milta julta likha tha.......bhav thode alag hain. lash ka meri jo chahe karna yaron main nhi poochhne aane wala zinda hun jab talak ji lene do main nhi yahan amar hone wala.
पेशे से प्रवक्ता और अपना व्यापार. मैंने गोरखपुर विश्वविद्यालय से एम्.कॉम व डॉ. राम मनोहर लोहिया विश्वविद्यालय,फैजाबाद से एम्.ए.(अर्थशास्त्र) तथा पूर्वांचल विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. की उपाधि ली है. I.G.N.O.U. से सन २००५ में PGJMC किया और सन् 2007 में MBA किया. पूर्णकालिक रूप से अपना व्यापार भी देख रहा हूं व शौकिया तौर पर कई कालेजों में भी अतिथि प्रवक्ता के रूप में अपनी सेवाएं देता हूं. पढ़ना और पढ़ाना मेरा शौक़ है. अंग्रेज़ी में मुझे मेरी कविता 'For a missing child' के लिए अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है. मेरी अंग्रेजी कविताओं का संकलन 'Eternal Portraits' के नाम से बाज़ार में उपलब्ध है,जो की Penguin Publishers द्वारा प्रकाशित है. अंग्रेजी में मैंने अब तक क़रीब 2600 कविताएं लिखी हैं. हंस, वागर्थ, कादम्बिनी से होते हुए ...अंतर्राष्ट्रीय हिंदी मासिक पत्रिका 'पुरवाई' जो की लन्दन से प्रकाशित होती है ...में प्रकाशित हुआ, तबसे हिंदी का सफ़र जारी है... मेरी हिंदी कविताओं का संकलन 'सूखी बारिश' जो की सन् 2006 में मुदित प्रकाशन से प्रकाशित है... मैं करता हूं कि मेरा ब्लॉग मेरे पाठकों को ज़रूर अच्छा लगेगा... आपकी टिप्पणियां मेरा हौसला बढ़ाती हैं. इसलिए मेरी रचनाएं पढ़ने के बाद अपनी अमूल्य टिप्पणी ज़रूर दें.मेरा प्रमुख ब्लॉग 'लेखनी’ है.
Dreaming an old dream.......
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As an ever flowing silver stream
This in my heart this is a dream
A dream of long ago ever shining bright this in my heart
The dream of long ago will alwa...
My new doggie
-
*Rex: My new doggie............I have got a dear and treasured friend, you
may be know him tooMore humble, meek, and gentle heof human beings (Dogs) I
ev...
71 टिप्पणियाँ:
I am speechless...............
आप बुत नहीं बनना चाहते ...पर आपकी इस कविता को पड़ कर मैं बुत बन गई हूँ शब्द नहीं मिल रहे ......just tooooooooo good..बस और कुछ नहीं कह सकती
मौत के बाद बुत बनाकर याद रखने से अच्छा है .. हमारे विचारों को चलाना , बोलना और सुनाना .. अच्छा लिखा है !!
बहुत सुन्दर भाव-भरी रचना।
काश सभी के विचार ऐसे ही हों।
ये लो कल्लो बात !!
अब क्या हुआ...?
ऐसी कविता ?
वैसे भी आपका बुत बनाना कौन सा आसान होगा ....
आप ही न सब को बुत बना दें....
कोई कोशिश भी न करे....
और हाँ......मरें आपके दुश्मन.......हाँ नहीं तो.....!!
लेकिन कविता बहुत बहुत अच्छी लगी...
पता नहीं कैसे लिखते हैं आप....!
महफूज़ जी,
रचना में मुझे थोड़ी सी और जगह दिखती नज़र आती है...! अलावा इसके निशब्द! भी हूँ. यह एक गहरा विचार व् गहरा विन्यास है!
---
रिश्तों की एक नई तान (FWB) [बहस] [उल्टा तीर]
बहुत सुंदर एक उम्दा और बेहतरीन सोच से भरी कविता..अच्छा लगा जी ..धन्यवाद!!
बहुत से शब्दों में
बहुत से पन्नों पर
बहुत से प्रतीकों के माध्यम से
जो कुछ कहा जा सकता था..........
वो आपने
बड़े सलीके से
संक्षिप्त में
सुरुचिपूर्ण तरीके से कह दी है
___आपका लाख लाख अभिनन्दन !
मत बनाना मेरा बुत.nice
भई महफ़ूज़ साहब अगर खालिस साइंसाना जबान मे कहूँ (अनुराग साहब का असर है) तो आपकी कलम का फ़्रीक्वेंसी स्पेक्ट्रम बहुत विस्तृत और विविध है..एक बार लगा था कि शायद लम्बी पोस्ट्स आपके कलम को ज्यादा निखारती हैं.. मगर यहाँ चन्द लाइनों मे इतनी गहरी बात कही आपने जो कुछ शोहरत के कुत्ते के काटे लोगों को ताजिंदगी समझ मे नही आ पाती..बुत के बजाय इन्सान बने रहने की आपकी यह ख्वाहिश किसी खुदा के इंसान बनने..आम-आदमी बनने की मासूम ख्वाहिश जैसी है..उम्मीद करता हूँ..कि आपकी सलाह उन गूंगे-बहरे कानों मे पड़े...’बहन जी’ ने सुना या नही?
सुन्दर .......कविता
एक आदमी की सहज इच्छाओं को सुन्दरता से व्यक्त करती
बहुत गूढ़ बात कह दी आपने भैया । बहुत सुन्दर !!!
Vartmaan sthitiyon ko dekh kar to aisa lagata hai maano samaj mein jyada se jyade log jee kar bhi gunge, bahare aur nischal ban baithe hai, koi anyay ke khilaf awaaj hi nahi uthatha.:(
सही है...अभिव्यक्ति की आज़ादी तो मिलनी ही चाहिए मरने के बाद भी ...
मैँ तो यही चाहता हूँ कि मरते दम तक मैँ सभी को हँसाता रहूँ ...
सीमित शब्दों में बहुत बड़ी बात कह गई आपकी रचना
बहुत ही अलग- सी बोलती,जागती,ज़िन्दगी के गीत गाती रचना है यह
kavita ka bhav bohot gehra aur prabhavshali ha mehfooz ji....ye kavita jo sandesh de rahi ha usme ek gehra sach chupa hua ha....kash vo sach sab smjh sakte........
bohot khoob socha aapne.....
क्यूंकि
मैं नहीं चाहता बहरा ,
गूंगा और निश्चल होना.........
कविता जितनी छोटी है,भाव उतने ही गहरे हैं....
बुत बनने से कहीं अच्छा है कि हम अपने विचारों के जरिए मरने के बाद भी चलायमान रहें...
बहुत बढिया!!
ji ..
nahfooj saab...
marein aapke dushman..
ye to galat baat hai..aap jeeete ji aiseee baat karte hain..
आखिर कहाँ खो जाता है
मेरा सारा दुःख और गुस्सा ?
पाकर साथ तुम्हारा,
भूल जाता हूँ मैं अपना सारा दर्द...
kahne ke liye lafz naheen....
गहरे भाव है ....
सुन्दर कविता ....
पर भाई मौत के बाद बोलने, चलने और सुनने की चाहत तो कभी किसी की पूरी होते सुना नहीं.............
आपकी चाहत के लिए तो किसी नए वैज्ञानिक अविष्कार की आवश्यकता पड़ेगी..........
लोग तो जीते जी ही पत्थर दिल होगये हैं और कुछ आगे बढ़ कर बुत भी बनना चाह रहे हैं पर अधिकांश तो मट्टी ही में विलीन होते हैं........
यही शाश्वत सत्य है, प्रकृति के विधान में इंसानी दखलंदाजी पुर्णतः निषेध है........
पुनः गौर करें.........
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
यह रचना मुझे बहुत पसन्द आई.सुन्दर कविता.बधाई.
bahut sunder bhaw hain .. bahut sunder .
बहुत अच्छी रचना। छोटी, सटीक।
arey bhaiya aapka to bhut banne se pahile hi ham but bana denge.. ab e baat aur hai ki u mitti ka but nahi hoga.. but hoga aapka aachar vichaar ka.. aapka aachaar vichaar door door tak pahuncha dunga.... dekhte rahiye...
बहुत सुंदर अरे भाई क्या लाभ इन बुतो का, इन पर कुते पेशाब करते है,मेरी इच्छा है कि यह दुनिया शांति से चले.... मेरा कया मेरे जेसे पता नही कितने आये कितने गये.... कोन याद रखेगा??
महफूज़ जी .बहुत उम्दा रचना है।कम शब्दो मे बहुत बड़ी बात कह दी।बधाई।
महफूज़ मास्टर,
तुम्हें बुतों पर ज़माने को ताकीद करने की क्या ज़रूरत...जो दिल में रहता है उसे सड़क-चौराहों पर रूसवा (परिंदों की लीद से) होने के लिए क्यों छोड़ें...
इस काम के लिए देवी जी हैं न जो जीते-जी ही अपने बुत बनवाने पर तुली हैं...शायद भरोसा नहीं कि मरने के बाद उन्हें कोई याद करता है या नहीं...खैर देवी जी की माया है देवी जी ही जानें...
जय हिंद...
Gazab ki soch hai bade bhai....lekin ye baat Mayawati ko kaun samjhaye.. :)
Jai Hind.
सोच अलग सी.
आप तो बुतों के प्रदेश में हैं जहाँ जिन्दों के भी बुत बनते हैं. क्षमा करें वही प्रदेश मेरा भी है. तब तक किसी नए बुत के लिये जगह ही नहीं बचेगी, बेफिक्र रहें.
सुन्दर रचना
एक अलग तरह की सोच...वैसे तो लोग तो जीते जी बुत बनाने को बेताब हो रहे हैं ...
100 बरस जियो छोटे भैया ...बुत बनाने का कोई मौका ही ना मिले ...!!
ठीक बात मगर लोग मानेगें क्या ?
"मत बनाना मेरा बुत,
मेरी मौत के बाद,
क्यूंकि
मैं नहीं चाहता बहरा ,
गूंगा और निश्चल होना........."
सुन्दर अभिव्यक्ति!
क्यूंकि
मैं नहीं चाहता बहरा ,
गूंगा और निश्चल होना.........
बहुत सुन्दर, जीवन की निरंतरता ही असली मोक्ष है !
और एक बात और कहू, अगर आप जैसा साहित्यकार चुप बैठ गया वो दुनिया का आठवा आर्श्चय कहलायेगा !
गहरे शब्द लिये बहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति ।
गागर में सागर.
सुन्दर भाव.
कम शब्दों में बहुत गहरी बात कह दी आपने। बधाई।
--------------
स्त्री के चरित्र पर लांछन लगाती तकनीक
आइए आज आपको चार्वाक के बारे में बताएं
kam shabdo me bahut kuchh bol gye aap .....bahut hi achhi soch ka partik.....
kamaal का MAHFOOZ भाई ........... BAHOOT ही SAARTHAK, SATEEK और SAAMYIK लिखा है ......... AAJKAL लोग DILON में याद नहीं RAKHTE बस BUT BANA कर प्रेम की ITISHREE समझ LETE हैं ...........
सच है,एक बुत बना उनके विचारों और आदर्शों से किनारा कर लेते हैं सब....बेहतर है व्यक्ति को नहीं,उसके दिए सन्देश को याद रखें...इस बार तो गागर में सागर भर दिया आपने.
विचार अच्छे हैं.....पर यहाँ, कौन सुनेगा...? ...अधिकांश तो पहले से ही बुत बने हुए हैं.
Awesome...!!! Mahefooz ji aapne hum sab ke dil ki baat ko shabdo main dhaal ke pesh kiya hain...
सोच अलग सी.
आप तो बुतों के प्रदेश में हैं जहाँ जिन्दों के भी बुत बनते हैं.
लेकिन कविता बहुत बहुत अच्छी लगी...
पता नहीं कैसे लिखते हैं आप....!
बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
ढेर सारी शुभकामनायें.
संजय कुमार
हरियाणा
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
mahfooz ji,
mat banana mera but meri maut ke baad..........title padhkar hi aisa laga jaise kisi ne dil hi nikaal liya ho aur jab rachna padhi to kahne ko shabd hi kam pad gaye...........bahut hi gahrayi mein utar gaye aap aur ek sashakt rachna bana di aur wo hi shayad aaj ha rkoi chahta hai.
abhi kuch din pahle maine bhi kuch milta julta likha tha.......bhav thode alag hain.
lash ka meri jo chahe karna yaron
main nhi poochhne aane wala
zinda hun jab talak ji lene do
main nhi yahan amar hone wala.
वाह...कमाल के भाव पिरोये हैं आपने इस छोटी सी रचना में...अति सुन्दर...
नीरज
बहुत उम्दा....
वैसे कहीं ये आपने 'मायावती' के लिए तो नहीं लिखा :)
...और ये साथ वाली तस्वीर शायद सहारागंज की है ...
महफूज भाई, थोडा और लिखा करो जब इतना बेहतर विषय चुन लेते हो....कविता बेहतर पर मै तो प्यासा ही रह गया.....
क्या कहे और शिवाय इसके ........
फीज़ा भी चुप है,
ख्वाहीशे भी ठहर गयी,
अरमानो ने लगा ली समाधि
तेरी इस नजाकत पर......
bahut khoob likha hai!
bhaav abhivyakti kuchh hi panktiyan mein prabhaavshali hai.
कम शब्दों में बहुत सुन्दर कविता।
bahut badiya likha hain bhaiya aapne
महफूज़ साहब कहाँ से लाते हैं इतने गहरे अर्थ ....???
न जाने कितनी बार पढ़ गयी ...हर बार नए अर्थ जुड़ते गए....लाजवाब....!!
nice thoughts in a time when living people want their statues erected with state money !
सुपर्ब!!
मैं कहाँ था इतनी देर...बहुत उँची बात कह गये. वाह!!
यह होती है सोच की गहराई. छा गये, बालक!!
abhi nazar padee .....bahut sundar...
... bahut khoob !!!!!!
वाह वाह क्या बात है! इस लाजवाब और बेहतरीन रचना के लिए ढेर सारी बधाइयाँ !
shahar e butan me but banwakar koi fayda bhi nahi hai mahfooj bhai .
aapki value waise hi mahfooj hai .
satya
शाबास .......जीवन है चलने का नाम
इसका सही फॉर्म ऐसा होना चाहिये
मैं हमेशा चलना चाहता हूँ,
बोलना चाहता हूँ
सुनना चाहता हूँ
मत बनाना मेरा बुत
मौत के बाद भी
मैं नहीं चाहता होना
गूंगा बहरा और निश्चल ........
Jee .....sharad bhaiya....... aapke kahe mutaabiq thoda thik kar liya hai......
pata nahin kyun main is kavita lekar bahut pareshan hoon.... pata nahin iski theme mujhe kahan se , kaise mili...... yahi soch kar pareshan hoon.....
khair kabhi na kabhi to yaad aayega hii...
बेहतरीन भावाभिव्यक्ति हेतु साधुवाद...
अपनी मुख्यमंत्री जी को भी कुछ सीख देते ऐसा.........
जिससे उच्चतम न्यायालय की फटकार से आगे बच सकें वो.........
सुन्दर अभिव्यक्ति.......
इतना अच्छा लिखोगे तो लोग जबरिया बुत देंगे चाहे लाख मना करिये।हा हा हा।बहुत सुन्दर भाव और संदेश भी।
सुन्दर अभिव्यक्ति
एक गहरी अभिव्यक्ति...सम्पूर्ण विचार ..विचार के साथ चलने की प्रक्रिया को
सटीक शब्द दिए हैं....बहुत बहुत बधाई
abhi se ye khyal kaise aaya maan main abhi to puri zindgi padi hai...
bahut badhiya aur sasakat abhivakti...mahfooz jee mere blog par aapka swagat hai...jarur aana
Mahfooz ji,
maine to socha tha...
IK BUT BANAUNGA TERI AUR POOJA KARUNGA
lekin ab kya hoga ?
hamesha ki tarah lajwaab kavita hai aapki !!
@महफूज़ अली said...
Jee .....sharad bhaiya....... aapke kahe mutaabiq thoda thik kar liya hai......
pata nahin kyun main is kavita lekar bahut pareshan hoon.... pata nahin iski theme mujhe kahan se , kaise mili...... yahi soch kar pareshan hoon.....
khair kabhi na kabhi to yaad aayega hii..
तुम्हारे अवचेतन मे उदय प्रकाश की यह कविता है जो हो सकत है तुमने कही पढी हो .. या ऐसे भी विचार आ सकते है कोई ज़रूरी नही ..।
मरने के बाद
आदमी कुछ नही बोलता
मरने के बाद
आदमी कुछ नही सोचता
कुछ नही बोलने और
कुछ नही सोचने पर
आदमी मर जाता है
( इस पर मेरे दो कमेंट हो गये अब और नही दूंगा)
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