बुधवार, 18 नवंबर 2009

साला! मालूम कैसे चलेगा कि मुसलमान है?




आज तबियत थोड़ी नासाज़ है.... बहुत हरारत सी हो रही है... किसी काम में मन नहीं लग रहा है.. चिडचिडाहट सी भी हो रही है... शायद  वाइरल में ऐसा ही होता है...इसलिए आज घर जल्दी आ गया ....आराम करने...पर घर पर भी किसी काम में मन नहीं लग रहा है, दवाई खायी है... अभी.... सिर्फ एक बाउल सूप पी कर...  बड़ी बोरियत सी हो रही है... शायद वाइरल में ऐसा ही होता है... अभी थोड़ी देर पहले शरद कोकास भैया से बात की.... थोडा हल्का फील कर रहा हूँ...उनसे बात कर के... उनसे और बात करने का मन था की उनकी घर की काल बेल बजी.... तो पता चला कि पोस्टमैन आया है.... और शरद भैया के लिए कोई बैरंग चिट्ठी ले के आया है... इसलिए उन्हें जाना पडा... मुझे बड़ी हंसी आई कि लोग कितना परेशां करते  हैं... बैरंग चिट्ठी भी आजकल भेजते हैं...और अपनी चिट्ठी पढ़वाने के लिए भी पैसे दिलवाते हैं.... मैंने उनसे कहा कि "ठीक है! आप चिट्ठी पढ़िए.... मैं तब तक के चाय बना कर आता हूँ... चाय खुद ही बनानी पड़ती है... क्यूंकि मेरी खाना बनाने वाली सुबह आती है... और अब वो शाम को आएगी... बाकी टाइम खुद ही बनाना पड़ता है....लोग कहते हैं.... महफूज़ भाई... तीस पार हो गए हो... अब शादी कर लो.... पिताजी भी बड़े परेशां रहा करते थे.... इसी ग़म में चले गए... वैसे मैंने उन्हें बहुत परेशां किया है पूरी ज़िन्दगी.... आज उनकी बहुत याद रही है.... काश! मैंने उन्हें परेशां नहीं  किया होता.... बहुत परेशां रहा करते थे वो मुझसे ...  मेरी हरकतें ही ऐसी थीं.... मैं एक अच्छा बेटा कभी नहीं बन पाया...  मेरे पिताजी मेरी...शादी के लिए बहुत परेशां रहते थे... सन २००८ के नवम्बर में आज ही के दिन उन्होंने .... मुझसे शादी के लिए बहुत जोर दिया था... कुछ ऐसे incidents ऐसे हो गए थे मेरी ज़िन्दगी में... जिसकी वजह से वो बहुत परेशां थे.... पर मैंने उनको फिर बहुत परेशां किया... उन्होंने मुझसे कहा भी था.. कि उनकी ज़िन्दगी का कोई भरोसा नहीं है... मुझे लगा कि हर माँ-बाप ऐसे ही कहते हैं.. और वो इसी इसी जद्दोजहद में जनुअरी २००९ में .... हमेशा के लिए मुझे छोड़ कर ...मेरी माँ के पास चले गए...  और मुझे एहसास हो गया कि वो सही कह रहे थे...

मेरे पिताजी... मेरी flirt करने कि आदत से बहुत परेशां रहा करते थे.... वो जानते थे... कि मैं खुद को किसी के साथ बाँध कर नहीं रख सकता... वो आये दिन मेरे बारे किसी फिल्म स्टार कि तरह ख़बरें सुनते थे... कि आजकल मैं किस लड़की के साथ flirt कर रहा हूँ... कई बार उन्होंने मुझे समझाया भी... पर मैं नहीं समझा.. मुझे अच्छा लगता था लड़कियों के साथ flirt करना.... मैं उनसे कहता  भी था कि क्या ज़रुरत थी इतना handsome लड़का पैदा करने की ... हा हा हा ... वैसे, मेरे पिताजी भी बहुत handsome थे... 1961 में घर से भाग कर बम्बई भी गए थे... और थोड़े दिन में आटे-दाल का भाव उन्हें पता चल गया...  तो लौट कर वापस आ गए... और अपनी पढाई पर ध्यान देने कि सोची उन्होंने... फिर 1962 में भारतीय सेना में selection लिया ...और 1963 में commissioned हुए... और 1988 में उन्होंने सेना कि नौकरी छोड़ने का फैसला किया... क्यूंकि मेरी माँ गुज़र गई थी... और हम लोग ३ भाई बहन थे...और बहुत छोटे थे हम लोग.. और सन 1990 में पिताजी.. घर आ गये ...

पर अब मैंने flirt करना छोड़ दिया है... वैसे मैं कभी भी flirt नहीं करता था...मैंने harmless flirt किया है... कभी किसी से कोई वादा नहीं किया.. किसी का दिल कभी नहीं तोडा.. नोर्मल तारीफ़ ही किया करता था... हाँ! यह था कि मेरे आस-पास लड़कियों का साथ मुझे बहुत अच्छा लगता था... लड़कियां मुझे हमेशा घेर कर रखतीं थीं... इसका सबसे बड़ा कारण यह था... कि मैं हर जगह टॉप पर रहता था... studies में, स्पोर्ट्स में, Extra Co-Curricular activities में, और अपने looks कि वजह से भी ... पर लोग उसे गलत समझ लेते थे... अच्छा! मेरे साथ यह भी था.. कि मैं अपने आगे किसी को बर्दाश्त नहीं कर पाता था...  मैं हमेशा competition में रहता था और रहता भी हूँ... मैं हर जगह खुद को टॉप पर ही देखना चाहता हूँ... और उसके लिए किसी भी हद तक जाने कि ताक़त रखता हूँ...स्कूल में जब किसी के मार्क्स मेरे से ज्यादा आते थे... तो मैं उस लड़के को मारने का बहाना खोजा करता था... और बहुत टेंशन में आ जाता था... पर टॉप पे मैं ही रहता था... मुझे लोग refined गुंडा कहते थे... आज भी कहते हैं... 

बता दूं... कि आर्मी में जाना हर Central School (केंदीय विद्यालय) के लड़के का सपना होता है.. मेरा भी था... और वैसे भी यह कहा जाता है कि जिस लड़के ने SSB नहीं दिया...उस लड़के का जीना बेकार हुआ...मैंने NDA एक्साम दो बार पास किया... और CDS सात बार... मेरा यह all India record  है... पर मैं SSB interview नहीं पास कर पाता था.. पर मैं लगा रहा... और नौ बार SSB Board गया...फ़ौज का यह रूल है... कि एक लड़का अगर एक बोर्ड में interview दे चुका है...उसको दोबारा उस board में नहीं भेजा जायेगा.. और मैं सारे बोर्ड टहल चुका था... बेचारे आर्मी वालों को मेरे लिए अलग से बोर्ड उसी जगह पर बनाना पड़ा... पर मैंने नौवीं बार में SSB INTERVIEW पास किया.. वो भी एक ऐसे बोर्ड से पास किया जो कि हिंदुस्तान का सबसे मुश्किल बोर्ड माना जाता है.... यानी कि अलाहाबाद बोर्ड से.... यह मेरा ओवर  कांफिडेंस ही था जिसकी वजह से मुझे नौ बार SSB जाना पड़ा... पर अंत में medically unfit  हो गया... क्यूंकि मेरे चश्मे का parameter उनके parameter से ज्यादा था... और यह बात मैंने उनके  prospectus  में ध्यान ही नहीं दिया... खैर! यह All India record आज भी मेरे ही नाम है... मेरे पिताजी बहुत दुखी हुए थे.... मेरे सेलेक्ट न होने पाने पर....आज पिताजी नहीं हैं.... मेरे समझ में नहीं आता कि मैं अब किसको परेशां करून....? अब कौन मेरी फ़िक्र करेगा...? 

अच्छा ...... इन्ही सब बातों के बीच एक बड़ा अच्छा वाकया याद आया है...... बचपन का.... हुआ क्या की ...उस वक्त मैं शायद नौवीं क्लास में था....... तो हुआ यह की हमारे पास बजाज स्कूटर हुआ करता था उन दिनों..... एक दिन वो स्कूटर ख़राब हो गया... तो मैं ख़ुद ही उसे खोल खाल के बनाने लगा...... कभी अपने नौकरों से कहता कि रिंच ले आओ तो कभी कहता कि प्लास्क ले आओ, कभी ग्रीस तो कभी ..तो कभी कुछ.... अन्दर से मेरे पिताजी खटर-पटर कि आवाज़ सुन के निकल के आए ......... उन्होंने देखा की मैं स्कूटर बना रहा हूँ.......पूरा स्कूटर खुला हुआ है... और मैं बड़ी तन्मयता से स्कूटर बना रहा हूँ... अच्छा! उसी दौरान मेरे एक्साम्स भी चल रहे थे... और मैं पढाई - लिखाई छोड़ कर स्कूटर बना रहा था....




थोडी देर तो पिताजी..शांत खड़े रहे .......देखते रहे....... फिर पास आ कर स्कूटर बनाते देख मुझे कहते क्या हैं की..... "साला! मालूम कैसे चलेगा की मुसलमान है? "


(हमारे हिंदुस्तान में ज्यादातर मेकानिक ...कैसे भी मेकानिक हों..... सब के सब मुसलमान ही मिलेंगे....ही ही ही ही ....)

आज पिताजी बहुत याद रहे थे... शायद बीमारी में अपने ही याद आते हैं... इसी बीच ६ कप चाय पी चुका हूँ... अदरक वाली... बड़ी अच्छी बनी थी... थर्मस में बना कर रख लिया था... वाइरल है... लेकिन AC चलाया हुआ है.... और रज़ाई ओढ़ कर टाइप कर रहा हूँ.... वाइरल में गर्मी भी लगती है.... पंखा चलाने का मन भी नहीं करता... पंखा चलता है तो चिढ होती है... नहीं चलता है तो भी चिढ  होती है... AC में तबियत और खराब होगी..यह भी जानता हूँ... लेकिन मन कर रहा है कि चलाऊँ ...इसीलिए चला कर रखा है... उम्मीद है कि तबियत और खराब होगी... लेकिन दवाई भी खाई है... और दवा का असर भी हुआ है.... अभी छः बजने का इंतज़ार है... ताऊ कि पहेली जो खेलनी है... ताऊ और रामप्यारी के बिना अब शाम नहीं होती .... रामप्यारी से भी प्यार हो गया है... मैं रामप्यारी से flirt नहीं कर रहा हूँ.... उससे मुझे सच्चा प्यार हुआ है... ताऊ और रामप्यारी कि पहेली को जीतने का बहुत बड़ा सपना है... पर आदरणीय समीरजी, ललितजी, पंडित जी, सुनीता दी, रेखा जी, मुरारी जी, और संगीता जी से रोज़ाना हार जाता हूँ.... पर इस हारने का भी एक अलग मज़ा है.... मेरी असली जीत तो आप लोगों का प्यार है...   अभी सोच रहा हूँ कि ऑफिस जाऊं...लेकिन मन नहीं कर रहा है.... 

122 टिप्पणियाँ:

संजय भास्‍कर ने कहा…

आज तबियत थोड़ी नासाज़ है.... बहुत हरारत सी हो रही है... किसी काम में मन नहीं लग रहा है.. चिडचिडाहट सी भी हो रही है... शायद वाइरल में ऐसा ही होता है...इसलिए आज घर जल्दी आ गया ....आराम करने...पर घर पर भी किसी काम में मन नहीं लग रहा है
LAJWWAB SIR JI

संजय भास्‍कर ने कहा…

काबिलेतारीफ बेहतरीन

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बढ़िया लेख है। कल चर्चा में लगा दूँगा!
बधाई!

Arvind Mishra ने कहा…

क्या बेटा भी बुरा हो सकता है, कभी नहीं -मैंने तो अक्सर बुरे बाप ही देखे हैं ! महफूज बेड रेस्ट कीजिये ,आपका संस्मरण सुन कर तो कलेजा मुंह को आ गया है ! बच्चे जल्दी से निकाह विकाह कर लो ! सब कुछ ठीक ठाक हो जायेगा ! साबित कर दो अब्बू की बात की बेटा सचमुच सच्चा मुसलमान है !

राजीव तनेजा ने कहा…

बढिया संस्मरण...
अरे यार!...मैँ तो सोचता था कि आप सिर्फ कविता ही करते हो...आप तो...यार मुझसे भी कम्पीटीशन....

दिल से दुआ है कि सब कुछ जीत कर आप सबसे आगे पहुँचो....

Ambarish ने कहा…

idhar ham bhi viral ke prakop se ubar rahe hain.. abhi kuch thik huye hain.. parson ki raat hospital mein bitaayi aur kal ka din submissions, quizzes aur tutorials mein.. aaj bhi classes chor nahi paaya, last teaching day jo tha semester ka.. ghar se daant padi hai phone par... ma ne papa ko kaha ki meri baat to sunta nahi, aap hi samjhao.. par papa ne clean chit (mera matlab hai CLEAN SHEET!!!) de di... aaj hi blogger par wapas lauta hun.. soch raha hun shaam (baaki india ke liye raat!!) tak kuch likh dun... baharhaal, aapka LEKHNEE to kamal kar gayi....
waise kya sachmuch saare mechanic musalmaan hote hain? actually maine aajtak kisi se dharm pucha hi nahi.. :)

M VERMA ने कहा…

तबियत नासाज है और flirt याद आ रहा है
. अरे भाई जिन्दगी से फ्लर्ट करो.
और फिर बीमारी न तो मुसलमान और न हिन्दू देखता है पहले उससे निपटो.

बहुत अच्छा लिखा है

बधाई! उन्नति और टाप पर बने रहने की शुभकामना

Unknown ने कहा…

बड़े होने के नाते हम तो यही सलाह देंगे कि अब शादी कर लो। सच मानो, सारी बोरियत दूर हो जायेगी।

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

आपने क्‍या शानदार पोस्‍ट लिखी है, दिल की बात कुरेद कर रख दिया।

हमारा भी दर्द है कि हमने भी चिट्ठाकारी में बहुत कुछ प्राप्‍त किया, पर डार्लिग राम प्यारी की पहेली सही जवाब देने के बाद भी विजेता नही हो पाया।

अब तो जाने की हिम्‍मत भी नही जुटा पाता हूँ, ब्‍लागिंग के इतने बड़े पुरोधाओ के मध्‍य उत्‍तर 5 मिनट में आ जाता है। मै भी उस दिन का इंतजार कर रहा हूँ कि हम भी विजेता सूची में अपना नाम बनाये और आप भी।

बेनामी ने कहा…

gr8..........tabiyat kharab hai to bhi log computer ka saath nahi chodte....

दिगम्बर नासवा ने कहा…

BACHPAN KE SANSMARAN AUR KISSE AISE HI HOTE HAIN YAAD KARNE PAR MAN KO GUDGUDAATE HAIN ... FIR HAATH PAKAD KAR KISI UDAS LAMHE KI TARAH LE JAATE HAIN .... BAHUT ACHHA SANSMARAN HAI ..

AAL APNA DHYAAN RAKKHEN ... DAWAAI JAROOR LE LEN ....

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

हा हा हा हा..
अच्छा तो आपको flirt करने कि आदत है.....और हम समझे आपको flirt करने की आदत हैं.....हा हा हा हा
तभी तो ......दो-चार दिन नहीं कर पाए इसीलिए खटिया पकड़ लिए का ....???
पापा बिलकुल ठीक कहते थे...अब तो बस आप अपनी दुल्हनिया ले ही आइये.....जो आपको कान से पकड़ कर रखेगी और ये flirting की बिमारी छुड़वा ही देगी... हाँ नहीं तो..
बहुत सुन्दर लिखा है...सबकुछ दिल के करीब लगा है....
आपके आलेख के बारे में कुछ कहना चाहेंगे हम.....बहुत दिनों से पढ़ रहे हैं आपको...और देखते हैं लोग आपको बहुत पसंद करते हैं....
इसलिए कि आप जो भी लिखते हैं....सीधे-सीधे लिखते हैं...कोई लाग-लपेट नहीं, कोई बनावट नहीं , आपकी भाषा बहुत सरल होती है....जिसे सभी समझ लेते हैं और खुद को उससे जोड़ पाते हैं....और सबसे पड़ी बात आप सच लिखते हैं.....वर्ना flirt बहुत लोग करते हैं पर स्वीकार कौन करता है....आपके इस गुण को हम सलाम करते हैं....हैं आप refined गुंडा हैं इसमें भी कोई शक नहीं है ...लेकिन सच बोलते हैं आप....
एक बहुत अच्छी रचना के लिए बधाई......

shikha varshney ने कहा…

अच्छा संस्मरण लिखा है..पर बीमारी में भी flirt और शरारतें याद आ रही हैं? अरे तरीके से दवा खाओ और आराम करो...
और हाँ अरविन्द मिश्रा जी और पिताजी की बात पर गौर जरुर करना .

Dipti ने कहा…

पोस्ट के शीर्षक से लेकर अंत तक एक सस्पेन्स ने को बनाए रखा।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

मैं तो कहूंगा,
थैंक्स टु दी एस एस बी, जो आपको सेलेक्ट नहीं किया, भाई साहब, अगर फौज में भर्ती हो जाते तो इतनी अच्च्ची अच्छी रचनाये हमें कहाँ से पढने को मिलती ? :)

kshama ने कहा…

Ek saans me poora padh liya!Aankhon ke aage ghatit ho raha ho,aisa laga! Waah!

शरद कोकास ने कहा…

यह कनफेशन बॉक्स में महफूज़ अली का बयान है महफूज़ के इस बयान के पीछे एक गम्भीर मुद्दा छुपा है .. आज महफूज़ से बात करने के बाद मै लगातार इस बात को सोच रहा हूँ । जेहन में एम.एस.सथ्यु की चर्चित फिल्म " गर्म हवा " गूंज रही है जिसे मैने अभी तीन दिन पहले मुक्तिबोध फिल्म फेस्टिवल में देखा है । इस बयान को इसलिये गम्भीरता से लिया जाना चाहिये कि यह एक ऐसे पढे-लिखे मुस्लिम युवक की व्यथा-कथा है जो न केवल जिस्मानी बल्कि जेहनी तौर पर भी खूबसूरत है और बावज़ूद इसके इस धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में कहीं अपने आपको उपेक्षित महसूस कर रहा है । मुझे पता है हमारा महफूज़ यह महसूस नहीं करता इसलिये कि आज फोन पर उसने पहला वाक्य यही कहा कि ब्लॉगरी की इस दुनिया मे मैने किसीको देखा नहीं है लेकिन ऐसा क्यों लगता है कि सबसे मै मिल चुका हूँ और यही मेरा परिवार है ।
फिलहाल इतना ही ..ज़रा 3-4 घंटे का ज़रूरी काम है लौटकर विस्तार से लिखता हूँ अपने ब्लोग"पास पड़ोस " पर "गर्म हवा " की रपट के साथ ।

vandana gupta ने कहा…

are baba pahle aaram to kar lete magar kya karein dil ke hathon majboor jo hain.........aakhir flirt ki baat jab tak bataoge nhi bukhaar bhi kaise utrega...........hahahaha

bahut hi badhiya lekh raha......kuch baatein dil ko ahut hi chhoo gayin.
apni sehat ka khyal rakhiyega.........aur jaldi se shadi ki dawat dijiyega.

डॉ टी एस दराल ने कहा…

महफूज़ भाई, आपकी औतोबयोग्राफी पढ़कर मज़ा आ गया. मैं तो ये कहूँगा की आप एक अच्छे इंसान हैं. इस परिस्तिथि से निकलिये. एक सुनहरी जिंदगी आप का इंतेज़ार कर रही है. और जल्दी से ठीक हो जाइए.

लोकेन्द्र विक्रम सिंह ने कहा…

बच के रहना रे बाबा....... बच के रहना रे........

Unknown ने कहा…

अरे… ऐसा भी ब्लॉग लिखा जा सकता है? और वो भी ऐसी रवानी के साथ कि आखिर तक पढ़ता ही जाये…। शरद भाई की टिप्पणी भी जोरदार है…। अब शादी कर ही लीजिये… इसमें नुकसान सिर्फ़ दो ही होते हैं, कि कानों में रुई लगाने की आदत डालनी पड़ती है, और सुबह पलंग के एक ही तरफ़ से उतरा जा सकता है… :)

बेनामी ने कहा…

ab tabiyat kaisi hai mahfooz miyan? kal aapko rampyari ki paheli par najar nahi aaye to socha ki busy ho shayad. Apne jab door hote hai to bahut yaad aate hai khas kar parents. padhte padhte ek saath kai tarh ke emotions jage. overall bahut he badhiya aur dilchasp lagi. aur aapki tarah mei bhi rampyari ke paheli ki diwaani ho chuki hu. take care and be happy.

rashmi ravija ने कहा…

बहुत ही दिल से लिखा है,आपने ....और ये आपका भ्रम है कि पिताजी आपसे परेशान होंगे.हाँ दुनियादारी की बातें बताना अलग बात है...पिता कभी माँ की तरह खुलकर लाड़ प्यार नहीं दिखा पाते,इसलिए बच्चों को ये लगता है कि वे उनसे परेशान हैं....क्या पता,आपकी शैतानियाँ उन्हें अपने दिन याद दिला देती होंगी..:)..और
वे परेशान होने का दिखावा करते दिल ही दिल में मंद मंद मुस्काते हों.
.

श्यामल सुमन ने कहा…

बहुत अच्छा लगा आपका संस्मरण। रोचक और प्रेरक भी।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

Dr. Shreesh K. Pathak ने कहा…

महफूज भाई; यादें ऐसी ही होती हैं आपको रुलाती हैं, हंसाती है और कुछ मायने गढ़ जाती हैं जीने के लिए...
शीर्षक से तो मै सकते में आ गया था...:)

Rajeysha ने कहा…

सि‍न्‍धी के घंटों धंधे पर बैठे रहने के कारण इस प्रकार की वृत्‍ति‍ को सि‍न्‍धीपना कहा जाता है, इससे एक कहावत भी नि‍कली कि‍ "दुकान सि‍न्‍धी की तरह बैठक मांगती है"
आपके पि‍ता जी ने भी मैकेनि‍क वाली बात इसी तरह पकड़ी जो हमारे भोपाल शहर के हर गली मोहल्‍ले चौराहे पर अमल में दि‍खती है।

धर्म, जाति‍, धंधे ये सब मशीनी चीजें हैं ये इंसानि‍यत से इनका कोई रि‍श्‍ता नहीं।
आपको भी वाईरल से रि‍श्‍ता तोड़ लेना चाहि‍ये।
पि‍ता जी नहीं रहे, वैसे भी शादी करने का कोई माकूल कारण कभी होता नहीं, आपको लवली कुमारी जी का प्‍यार के कैमि‍कल वाला लेख पढ़ना चाहि‍ये। जहां तक संभव हो बचे रहि‍ये, जि‍स तरह सबको जंच रहे हैं, जंचे रहि‍ये।

डॉ .अनुराग ने कहा…

आज अपनी भी हालत पस्त है .....वायरल तो नहीं पर खांसी जुखाम ओर दूसरे लफडो ने वाट लगा रखी है ...पहले शीर्षक देख के सोचा तुम ऐसी पोस्ट कब से लिखने लगे...लेकिन फिर पूरी पढ़ी तो अच्छा लगा .ब्लोगिंग का सही इस्तेमाल ये ही है .......एक शेर तुम्हारे वास्ते फिट है

"हर दिल अज़ीज़ शख्स की किस्मत तो देखिये
ऐसा हुआ सबका किसी एक का न हो सका "

Murari Pareek ने कहा…

वाह महफूज भाई आनंद आगया !!! चलिए आपने अब तो FLIRTING छोड़ दी!!! बहुत सुखद अनुभव हुआ आपकी ये पोस्ट पढ़ कर दनादन पढता चला गया !!!

आमीन ने कहा…

bahut achha likha hai aapne... waise aap achhe machnic hain to mera scootar bhi theak kar dijiye...
ha ha
joke

डॉ. राजेश नीरव ने कहा…

मस्त....इन्टेन्स....

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

बिना किसी लाग लपेट के कितनी बेबाकी से आपने अपने जीवन के सभी पक्ष सामने रख दिए...जो कि आपके एक सच्चा इन्सान होने का ही प्रमाण है ।
ईश्वर आपको जीवन में सदैव प्रथम बनाए रखे....

"स्कूल में जब किसी के मार्क्स मेरे से ज्यादा आते थे... तो मैं उस लड़के को मारने का बहाना खोजा करता था."

यहाँ ब्लाग सक्रियता क्रमाँक में आप से जो लोग आगे हैं, उन्हे शायद आप से बचकर रहने की जरूरत है :)

दीपक 'मशाल' ने कहा…

Kya baat hai bade bhai aapne to abhi se aatmkatha likhni shuru kar di...
makenik wali baat bilkul sahi yaad dilaai..
hamesha ki tarah seedhe saral shabdon me apni bat kah gaye..
laga ki jaise aamne saamne baith ke baat kar rahe hon..
1 line hai kisi aur ki aapke liye-
''teri misaal ye hai ki tu bemisaal hai''
aur main sirf 'Mashal' ha ha ha...
Jai Hind...

Chandan Kumar Jha ने कहा…

भैया आज पता चला आप कितने खुशमिज़ाज है । कितने गम मन के कोने में दबाये हुये है पर चेहरे पर मुस्कान रहती है । रिफ़ाईण्ड गुंडा ?? हा हा हा हा !!!!!!! आपके जल्दी से स्वस्थ होने की कामना करता हूँ और हाँ थोड़ा परहेज से रहे :)पोस्ट बहुत ही अच्छी लगी ।

Pratik Maheshwari ने कहा…

अच्छा किस्सा था.. हा हा हा..
तबियत का ख्याल रखिये..
अगली बार आऊँ तो खैरियत से रहिएगा..

आभार..
प्रतीक माहेश्वरी

हास्यफुहार ने कहा…

पूरा आलेख पढ़ा और सारी टिप्पणियां भी। सार यह है कि आप पहले तो रेस्ट करें, तबियत ठीक हो जाए, तब शादी का विचार करें। एक बहुत ही अच्छा आलेख। है। संवेदनशील। संवेदना के स्तर पर जी लेने के बाद ही लिखने की बारी आती है, लिखने के लिए थोड़ा पीछे मुड़ना पड़ता है, और इस पूरे क्रम में आप हमें साथ लेते गए।

अमित अग्रवाल ने कहा…

महफूज़ साहब,
उम्दा लिखा है, हालाँकि मैं अधिक टिप्पणियां नहीं लिखता किन्तु आपका लेख पढ़कर बिना लिखे नहीं रह पाया. ऐसा बढ़िया लिखा है की
इतना लम्बा होने पर भी शुरू से आखिरी तक एक सांस में ही पढ़ गया.
बहुत अच्छा लगा आपके संस्मरण को पढ़कर

अमित

Mithilesh dubey ने कहा…

अरे महफूज भईया क्या लिखते हो भाई, कि जब भी पढ़ता हूँ आपको कई घंण्टो तक आप ही के बारे में सोचता रहता हूँ। कभी-कभी सोचता हूँ और सवाल करता हूँ खूद से कि क्या आप जैसे लोग भी इस ब्लोग दुनियाँ में होते है । इस ब्लोग जगत में मुझे नहीं लगता कि आप जैसी शख्सियत का कोई होगा, ये मेरी व्यक्तिगत राय है, शायद औरो की भी होगी । अभी तक मुझे लगता था कि आप बस लेख और कवितायेँ ही लिखते है, लेकिन इस बार संस्मरण लिखा, महफूज भाई विश्वास कीजिए इस तरह की सरल भाषा में इतनी लाजवाब संस्मरण पहली बार पढ़ा । और आपके हर शब्द जैसे बरस पड़े , पढ़ते वक्त लग रहा था कि ये खत्म ही ना हो, ये कारवा यूँ ही चलता रहे, लेकिन खत्म तो होना ही था , और जैसे ही खत्म हुआ सोचने लगा कि इसपर मेरी प्रतिक्रिया क्या होनी चाहिए । क्योंकि जिस तरह से आप ने लिखा है उसके लिए कोई भी टिप्पणी हो, कितनी ही अच्छी क्यों ना हो सब फिके पड़ जायेंगे । महफूझ भाई आप जब से लिख रहे है मै आपको तब से पढ़ रहा हूँ, और हर बार पढ़ने के बाद बहुत परेशान हो जाता हूँ कि क्या कहूँ इस रचना के बारे में, क्योंकि कहने को कुछ शब्द मिलता ही नहीं। लेकिन सोचा कि इस बार कुछ कोशिश की जाये।

आपकी ये बात कि मै हमेशा टाप पर ही रहना चाहता हूँ मुझे बहुत ही अच्छी लगी । आखिर हर किसी की चाहत यही होती है लेकिन सफलता तो बहुत ही कम लोगो को मिलती है । आखिर सबको मिल भी कैसे जाये, इसके लिए आप जैसी लगन होनी चाहिए, साथ हमेशा जितने वाली जज्बात होनी चाहिए, और ये आपने करके दिखा भी दिया। आपका लेख पढ़ने के बाद पता चला कि क्यों हर कोई सफल नहीं हो पाता, हम जब भी असफल होते है तो फिर दुबारा कोशिश नहीं करते , सबके पास आप जैसा जज्बा जो नहीं होता है। आप अपनी हर रचना में कुछ ना कुछ सन्देश दे देते है , और यही आपको टाप पर पहुचाती है । आपको बहुत-बहुत बधाई इस लाजवाब संस्मरण को लाजवाब तरिके से प्रस्तुत करने के लिए।

काशिफ़ आरिफ़/Kashif Arif ने कहा…

महफ़ुज़ भाई....पहली बार आपके ब्लोग पर आना हुआ है लेकिन आने के बाद आपको पढकर एहसास हुआ की काफ़ी गलती हो गई पहले आना चाहिये था...बहुत अच्छा लिखते है आप....

अब आपके ब्लोग का फ़ालोवर बन चुका हुं और इन्शाल्लाह आगे से आपके हर लेख के बाद मेरा नाम ज़रुर होगा

Rakesh Singh - राकेश सिंह ने कहा…

संस्मरण अच्छा लगा !

महफूज भाई अवधिया जी का कहा मान लीजिये और जल्दी से जल्दी सहनाई बजवाईये | शादी वो लड्डू है जो खाए वो भी पछताए जो ना खाए वो भी पछताए .... जब पछताना ही है तो लड्डू खा के पछताया जाए, क्यूँ :)

Udan Tashtari ने कहा…

जबरदस्त लिखा है..


मुझे तो वायरल या हरारत जी जगह यह जुड़ी बुखार दिखता है जिसमें इन्सान बबुआता है. :) मस्त संस्मरण!!

सच कहा है किसी ने उपर: शादी कर लो, बालक!! :)

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

दिल को छू लेने वाला संस्मरण
सीधी-सच्ची बात और उतनी ही रोचक अभिव्यक्ति

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

शीर्षक पढ कर आया था एक विवाद से मुलाकात होगी . लेकिन क्या खूब लिखा ऎसे लेख बार बार नही लिखे जाते . अपने आप लिख जाते है . क्या मै सही हूं

गिरिजेश राव, Girijesh Rao ने कहा…

@(हमारे हिंदुस्तान में ज्यादातर मेकानिक ...कैसे भी मेकानिक हों..... सब के सब मुसलमान ही मिलेंगे....ही ही ही ही ....)
...यहीं रोक देना था। महफूज भैया इसके आगे लिख डाइलूट कर दिए बहुत कुछ।
... हाँ, आप ब्लॉग जगत के चक्करखाने में घूम गए, जरूरी नहीं था..
सोच रहा हूँ कि इसे लिखते समय आप ने चेहरा वैसा ही बनाया होगा जैसा उपर से दूसरी पुनर्नवा वाले लेख के नीचे की फोटो में है.... लिखते समय मैं आँसू ऐसे ही रोकता हूँ..
मरहूम पिता को इतनी खिलन्दड़ भरी करुणा से कौन याद करता होगा ! वह भी इतना अपनापन भर कर कि बात आत्ममुग्धता सी दिखने लगे...
क्यों छुपा रहे हो? बह जाने दो । पिता की यादें जुड़ा जाएँगी। इतने मत बनो.....
साला मुसलमान... अभी तक मन में गूँज रहा है, जाने मन कैसा हो गया था !
शादी कर लो ...ठहराव और बाल बच्चों के साथ पिता को याद करोगे तो शायद जबरिया भावनाएँ छिपानी नहीं पड़ेंगी। ...
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टिप्पणी अब कम करने लगा हूँ, जाने क्यों? चुपचाप पढ़ता हूँ, निकल लेता हूँ। यहाँ तो टिप्पणियों का इतना ऊँचा ढेर लगा रहता है कि आतंकित हो जाता हूँ, बीस से संतोष किया करो और बाकी हमरी ओर डायवर्ट कर दिया करो ;)

SACCHAI ने कहा…

pitaji ko aapne yaad kiya jo bahut hi acchi baat hai
" वैसे मैंने उन्हें बहुत परेशां किया है पूरी ज़िन्दगी.... आज उनकी बहुत याद रही है.... काश! मैंने उन्हें परेशां नहीं किया होता.... बहुत परेशां रहा करते थे वो मुझसे ... मेरी हरकतें ही ऐसी थीं.... मैं एक अच्छा बेटा कभी नहीं बन पाया ye jabardast sentenses hai dil me uttar gaya "

"superb.....bahut bahut badhai ...aaapne jis andaaz me apane dard ko sanjoya hai vo sayad koi nahi kar pata "
" hat's of you "

" sharad ji ke saath hhui phone ki baat bhi dil me utari hai ki आज फोन पर उसने पहला वाक्य यही कहा कि ब्लॉगरी की इस दुनिया मे मैने किसीको देखा नहीं है लेकिन ऐसा क्यों लगता है कि सबसे मै मिल चुका हूँ और यही मेरा परिवार है ।
" bahut hi sahi kaha hai aapne hum bhi to aapke saath hai ."

----- eksacchai { AAWAZ }

http://eksacchai.blogspot.com

बवाल ने कहा…

बहुत आला दर्जे की बात। बहुत ही गहरी टीस का, पिताजी के माध्यम से प्रस्तुतिकरण। महफ़ूज़ मियाँ आप ना ....... अब हमारे पास अल्फ़ाज़ नहीं है कहने के लिए। बस आप समझ जाइएगा। आँख भर आई इसलिए चलते हैं।

Amrendra Nath Tripathi ने कहा…

महफूज भाई !
ज़माने की हवा को कुछ लोग
मोड़ देते हैं | ऐसे लोग कहीं
सचिन तेंदुलकर होते हैं और
कहीं महफूज भाई |
मुल्क और महफूज एक
दूसरे के लिए होते हैं |
भरोसा बढ़ जाता है ...
भैया काव लिखी आगे मन
खुस्स होइगा , तोहार
संसमरण सुनिके ...
बहुत नीक ...
सुक्रिया ... ...

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

आपके बारे मे पढ़ कर अच्छा लगा..महफुज़ जी आप हमेशा टॉप पर रहेंगे ऐसी हमारी दुआ है हाँ रही बात चाय बनाने की तो वो मैं भी कहूँगा की अब शादी कर ही लें आख़िर कब तक ऐसे चाय बनाते रहेंगे... हा हा हा..
और जल्द से ठीक होने का कष्ट करें..बहुत दिन से वाइरल घेरे पड़ा है आपको...

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

जनाब महफूज़ साहब, आदाब
आपको कई 'दानिशमन्द' शादी करने की सलाह तक दे रहे हैं
सोच लीजियेगा इस ''लड्डू'' के बारे में..
हम तो बस यही कह सकते हैं-
वो मिर्ज़ा गालिब का मिसरा याद आया है
कुछ न समझे खुदा करे कोई
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

" बैरंग चिट्ठी भी आजकल भेजते हैं...और अपनी चिट्ठी पढ़वाने के लिए भी पैसे दिलवाते हैं.." ये तो आजकल के फ़ेविकाल का कमाल है...पते तक पहुंचते-पहुंचते टिकट ही गुम हो जाता है:)

एक बहुत बढिया आत्मकथ्य लिखने के लिए हज़ार मुबारकबादी॥
इतनी टिप्पणियां देख कर लगता है राजा समीर का सिंहासन डोल रहा है :)

महावीर बी. सेमलानी ने कहा…

शानदार. हर मायने मे आज की सबसे उत्तम पोस्ट. पर अब अरविंद मिश्रा जी की बात मानिये और हमको भी लड्डू खिलवाने का इंतजाम किजिये.
अग्रिम शुभकामनाएं.

रामराम.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

वाइरल है... लेकिन AC चलाया हुआ है.... और रज़ाई ओढ़ कर टाइप कर रहा हूँ.... वाइरल में गर्मी भी लगती है.... पंखा चलाने का मन भी नहीं करता... पंखा चलता है तो चिढ होती है... नहीं चलता है तो भी चिढ होती है... AC में तबियत और खराब होगी..यह भी जानता हूँ... लेकिन मन कर रहा है कि चलाऊँ ...इसीलिए चला कर रखा है... aur is tarah apno ko pareshan kar hi rahe ho n......ita ji ka wakyaa bahut mast laga

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

मेरा रूम पार्टनर एन.डी.ए. और सी.डी.एस. की लिखित परीक्षा पास करके SSB को ७-८ बार झेल चुका था। सैनिक स्कूल- लखनऊ से इण्टर पास करने के बाद उसकी दिली तमन्ना फौजी अफसर बनने की थी। जब चयन नहीं हुआ तो बी.ए. एम.ए. करके पी.सी.एस. की परीक्षा आजमाना शुरू किया। पहले ही प्रयास में सफल होकर आज कल वरिष्ठ कोषाधिकारी है। उसके पिता जी फौजी बेटे की चाह पूरी न होने पर जितना दुखी थे, उससे कई गुना खुश रहते हैं अब :) ये SSB वाले शायद ज्यादा होशियार लोगों को भी नहीं चुनते। :)

आप जहाँ हैं और जो कर रहे हैं वही आपके लिए सर्वोत्तम था, यही मान कर चलिए। मन बड़ा प्रसन्न रहेगा।

अजय कुमार झा ने कहा…

इब भैय्ये आज तो भोत सी पोलें खोल डाली...वायरल का साईड ईफ़्फ़ेक्ट तो नहीं था यो...फ़्लर्टिंग, एसएसबी, सेंट्रल स्कूल,(हम भी उसी से बिगडे हैं भैय्ये ) स्कूटर, मैकेनिकी, और इसके बीच एसी की ठंडक और वायरल की गरमी के बीच ये धांसू पोस्ट ...बस जी आज से आपको सर्टिफ़ाईड बिलागर घषित किया जाता है जी....और हां शादी तो कर ही लिजीये....आखिर आपको भी तो पता चले कि ब्लोग्गिंग और शादी दोनों एक साथ चलाना मतलब चीन और तिब्बत दोनों को एक साथ खुश रखना ...
महफ़ूज भाई आप तो महफ़ूज रहो ..तरबूज रहो ,
बने हुए महबूब रहो, लिखते यूं ही खूब रहो॥

Unknown ने कहा…

आज से ले कर, रहा है तक, पूरा आलेख सांगोपांग पढ़ा,,,,,,,,,,,,,,,पढ़ता गया ....डूबता गया...पढ़ता गया ...डूबता गया ........पिता और पुत्र के मध्य जो डोर होती है उस डोर को आपने इस मासूमियत के साथ खींचा के सभी पढ़ने वालों को उनके पिता का स्मरण हो आया होगा ..........जो पिता के साथ रहते हैं उन्हें गर्वयुक्त हर्ष हुआ होगा और
जो कोई मुझ जैसा अभागा है...............वह रो पड़ा होगा............

भाई महफूज़ !
गज़ब का लेख लिखा............

अभिनन्दन !

शिवम् मिश्रा ने कहा…

शादी तो भाई .... आपको करनी ही पड़ेगी चाहे अभी या बाद में बाकी फिलहाल अपनी सेहत का धयान रखे !
पोस्ट उम्दा लगी !

RAJ SINH ने कहा…

अरे महफूज़ मियाँ , आपने तो मुझे अपनी जवानी याद दिला दी .अपन भी हरफन मौला रहे और आपकी ही तरह ' जिम्मेदार ' फ्लर्टिंग भी karte rahe.( कुछ लोग आपकी ही तरह ,जवानी में , मुझे भी खूबसूरत और सेक्सी भी समझते रहे )
लेकिन यकीन नहीं आ रहा है की आप फ्लर्टिंग बंद कर चुके .क्योंकि ' वंस ए फ्लर्ट , आलवेज ए फ्लर्ट :) .

मैंने तो आजतक नहीं छोडी .फिलहाल राजनीती और फिल्मों से फ्लर्टिंग जारी है .

और ये आर्ट सब के बूते की बात नहीं है .

मिज़ाजे कैश यारों बचपने से आशिकाना था ..................

चालू रहो .देख रहा हूँ कुछ बड़े जिम्मेदार लोग बड़ी खतरनाक सलाहें दे रहे हैं ....बचके रहना :) .

वैसे कुछ 'टिप्स' चाहिए हो तो संकोच न करना !!

ρяєєтii ने कहा…

bahut accha laga confession...
jitne sahaj tum ho utni hi sahajta se apne dil ki baat likh daali, aksar bimaari main specialy jab akele ho to pichli acchi-buri yaade yaad aa jaati hai...
Adrak waali chaay pio, dawa time se lo aur ha AC on rakho per normal temp ..[:)]...Take Care..!

Meenu Khare ने कहा…

बहुत अच्छी पोस्ट महफ़ूज़. सच्चा मुसलमान कभी ख़राब हो ही नही सकता और मुझे हमेशा यह मह्सूस हुआ कि मेरा छोटा भाई महफ़ूज़ एक सच्चा मुसलमान है.

स्नेहाषीश.

राज भाटिय़ा ने कहा…

महफूज़ अली, भाई हर मां बाप की इच्छा होती है कि उस का बेटा शादी करे, पोतो पोतियो मे खेले, आप के पिता का भी यही सपना था, लेकिन जब आप को डांटते थे, तो उस डांट मै भी प्यार होता था, मै भी बच्चो को डांट लगता हुं, लेकिन थोडी सी बात की मुझे चिंता होने लगती है, अगर कोई बच्चा बीमार हो जाता है तो मुझे खाना अच्छा नही लगता,आप के पिताभी ऎसे ही थे, चलिये अब शादी कर ले , जन्नत मै आप के पिता खुश हो जायेगे.
अब आप पुरी तरह से आराम करे,ऎ सी बन्द कर दे, ओर खुब पसीना आने दे बसआप का वायरल जल्द ही ठीक हो जायेगा, आज आप ने बहुत अच्छा लिखा, चलिये अब आराम किजिये, फ़िर बात करेगे.
खुदा हाफ़िज अगली मुलाकात तक

Khushdeep Sehgal ने कहा…

महफूज़ मास्टर,
सोच रहा हूं, कहां से शुरू करूं...भाई जी तुमने अपने वो दिन याद दिला दिए जब हम भी कभी गुलफ़ाम हुआ करते
थे...ये तो वक्त ने किया क्या हसीं सितम, हम रहे न हम...आगे छोड़ो...जाने दो...एक किस्सा तुम्हारी ही तरह का हमारे साथ भी हुआ है...आर्म्ड फोर्सेज मेडिकल कॉलेज, पुणे में कभी हमारा भी एमबीबीएस में सेलेक्शन हो गया था...लेकिन वही कमबख्त आखों से मात खा गए थे...बाद में बेशक चश्मा हटवाने के लिए ऑपरेशन करा लिया...दूसरा...अपना शाकाहारी फ्लर्ट इस उम्र में भी जारी है....तीसरा... तुम लखनऊ में बीमार हो, गला यहां हमारा भी बैठ गया है...नाक नियाग्रा फॉल्स बनी हुई है...और भेजा...वो तो हमेशा ही फ्राई रहता है...कहते हैं न दिल से दिल को राह होती है...तुम दिल से लिखते हो....बात हमारे दिल तक पहुंचती है...

जय हिंद...

वाणी गीत ने कहा…

बड़े दिमाग वाले बच्चे ....खूब तरीका है सहानुभूति बटोरने का ...वायरल हुआ है ..ए सी चला रखा है ....रश्मि मम्मी ने बहुत बिगाड़ रखा है...सबसे पहले उठ कर .ए सी बंद कर ले ...कोई स्पेशल वायरल नहीं हुआ है तुझे ...एक महीने से खांसी जुखाम से पीड़ित हूँ मैं भी... इस मौसम में तो घर घर में लोगों को हो रहा है ...जयपुर में तो यूँ भी स्वाइन फ्लू फैला है ...पर कोई बुखार में इस तरह की हरकत नहीं कर रहा है...समझा ....
अब लेख के असल मुद्दे की बात कर ले ...तकलीफ में ही माँ बाप ज्यादा याद आते हैं .. उनकी अहमियत का पता उनके जाने के बाद ही चलता है ...साले मुसलमान कहते हुए बचते बचते भी अपने मन की कोई टीस उजागर कर ही दी है ...नफरत की एक गहरी खाई है एक इंसान से दुसरे इंसान के बीच ...उसे मिटाने में एक जरिया तुम भी होगे ...विश्वास है ...
अब जल्दी से ठीक हो जाओ ...
तुम्हारी दी

Randhir Singh Suman ने कहा…

nice

शबनम खान ने कहा…

Mehfooz ji aaj tareef nahi kar paungi..pata nahi kyu par aisa laga ki apko bas ek post dalni thi so likh dia...i m sorry...par apke pichle sare lekh aur kavitaye padkar expectations badna lazmi ha...
aur sabse ajeeb baat...apne ise naam kya dia ha?"साला! मालूम कैसे चलेगा कि मुसलमान है?"...
bohot ajeeb ha vakayi....
Musalmaan shabd jodne ki kya zarurat thi nahi pata....
maaf kijiye is baar mene kuch zada hi keh dia....blogging ki duniya me vakayi nahi hu bohot...par mene is duniya ka sahara isi liye lia ha kyunki me sach me bas saaf saaf kehna chahti hu...sach..koi jhooth nahi....isi liye abi jo laga keh dia...
bura lage to maaf kijiyega...

sanjay vyas ने कहा…

ज़बरदस्त अहसास होता है इसे पढ़ते वक्त!ये एक बहुत बड़ा कोलाज आपके भीतर बना देती है. गिरिजेश जी ने ठीक ही कहा,आज रोकना नहीं था खुद को. बह जाते,बहा जाते सब कुछ.
खिलंदड़े अंदाज़ में कितनी गंभीर बाते कह दी!

seema gupta ने कहा…

साफ़ दिल से लिखा ये संस्मरण और आपकी अपने बारे में बेबाक राय पढ़ कर अच्छा लगा.......जैसे भी हैं आप एक अच्छे इंसान है व्ही बहुत बड़ी बात है. बाकि सभी की बात गौर करने लायक है की आब सारी उम्र एक के साथ ही फ्लर्ट किया जाये हा हा हा हा हा हा हा हा हा चलिए ये तो एक मजाक हुआ , अपनी सेहत और तबियत का ख्याल रखें, खुदा का करम आप पर हमेशा बना रहे इन्ही दुआओं के साथ......

regards

शेफाली पाण्डे ने कहा…

he bhagvaan.... ya khuda jaldee se mahfooj kee shadee karva de..bas yahee tamanna hai...hum bhi shadeee me aaen ....aur baraat me naach karen..

डिम्पल मल्होत्रा ने कहा…

title dekh ke lga ki kaisee racna likhi hai...nahi to etni lambi post padne se bhagti hun....par achhi lagi ye post.....kuch ik cheeezo ko chodh ke....jaise pahle no pe aane wale ladke ko marne ke bhane dhundna.......

Urmi ने कहा…

बीमारी न तो मुसलमान और न हिन्दू देखता है पहले उससे निपटो...वाह वाह बहुत ही बढ़िया और बिल्कुल सही लिखा है आपने! बहुत ही ज़बरदस्त और शानदार लेख लिखा है आपने ! मैंने सिर्फ़ एक बार नहीं बल्कि तिन बार पढ़ा है और मुझे आपका ये पोस्ट बेहद पसंद आया ! बहुत खूब महफूज़ जी !

Anil Pusadkar ने कहा…

खुदा मह्फ़ूज़ रखे,महफ़ूज़ को हर बला से।मै तो शादी-वादी की सलाह दे नही सकता भाई,क्योंकि जो काम मैने किया ही नही वो काम आपसे कहने को कैसे कह सकता हूं।हां मगर आज आपकी पोस्ट पढ कर मुझे भी अपने बाबूजी याद आ गये,वो भी चले गये थे हम लोगों को छोड़कर अचानक़ और उनके जाने के बाद तो शादी की बात सिवाय आई यानी माताजी के कोई नही करता।वो लगी रह्ती है कर ले रे,कर ले रे।और अब ब्लाग जगत मे भी बहुत से बड़े लोग कहते हैं, ताऊ जी,फ़ुरसतिया जी,द्विवेदी जी,पाब्ला जी और बहुत से हैं नाम लिखने बैठूंगा तो लम्बा खींच जायेगा।मै तो बस इतना कहूंगा मस्त मौका मिला है लात तान के सोईये और आराम करिये।हां ये मुसलमान वाला किस्सा हम दोस्तो के बीच का भी है,बहुत ही मज़ेदार,सुनाऊंगा किसी दिन्।

Jyoti Verma ने कहा…

maan bhar gaya jii...
kitne asaan tariye se khud ko bayan kiya hai.
hum bhi ab Refined gunda banege....
tabhi na apki tarah soch payenge

Dr. Ravi Srivastava ने कहा…

bahut sulajhi hui abhivyakti....

संजय बेंगाणी ने कहा…

शादीसुदा हो कर शादी की सलाह तो न दुंगा. :)

घर का कामकाज सीख लो और स्वतंत्र रहो :)

शीर्षक चुनना आ गया, यानी पक्के ब्लॉगर हो गए हो.

सदा ने कहा…

तबियत नासाज है पर मन तो सिर्फ कम्‍प्‍यूटर पर ही लगता है, उम्‍मीद है स्‍वास्‍थ्‍य में सुधार हुआ होगा, इतनी टिप्‍पणियों में शुभकामनायें भी तो थीं, अब तो अच्‍छा होना ही पड़ेगा आपको, बहुत ही अच्‍छा संस्‍मरण शुरू से लेकर अंत तक रोचकता बरकरार रही, हमेशा टॉप पर रहें और प्रगति करें शुभकामनाओं के साथ ।

निर्मला कपिला ने कहा…

संस्मर मन को उदास् कर गया। बस शब्द नहीं हैं मगर मन मे बहुत कुछ है अभी तो इतना ही कहूँगी कि जल्दी से ठीक हो जाओ। भगवान तुम्हारी हर चाह पूरी करे और हमेशा टाप पर ही रहो। बहुत बहुत आशीर्वाद।

मुकेश कुमार तिवारी ने कहा…

महफूज भाई,

किस तबियत से दिल खोलके रख दिया। मैं पीछे जितना भी जान पाया उससे कहीं ज्यादा बताया आपने।

अभी तो बहुत कुछ लिखना और कहना बाकी है फिर आऊंगा।

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

उम्दा सोच ने कहा…

महफूज़ भाई
आप के इस ब्लॉग पर मै पहली बार आया हूँ और बड़ी आत्मीयता का अनुभव हुआ इस पोस्ट को पढ़ कर, वाकई आप में और मुझमे काफी समानताये है (मेधावी वाला छोड़ के ) !

महफूज़ भाई सताया तो मैंने भी खूब है पर प्रतिफल में मै अपने पिताजी के हाथो धोया भी खूब गया हूँ !

Arshia Ali ने कहा…

अब तो सुधर जाइए भाईजान। वैसे पोस्ट रोचक और टिप्पणीजुटाउ है।
------------------
11वाँ राष्ट्रीय विज्ञान कथा सम्मेलन।
गूगल की बेवफाई की कोई तो वजह होगी?

Pawan Kumar ने कहा…

.
महफूज़ भाई
बहुत ही शानदार पोस्ट......पूरी पोस्ट पढ़ डाली कब शुरू हुई और कब ख़त्म पता ही नहीं चला.....सी दी एस वाला रिकार्ड आपके नाम है जानकर अच्छा लगा.....इंशा अल्लाह लखनऊ आऊँगा तो ज़रूर मुलाकात होगी

Unknown ने कहा…

ab kaisi tabiyat hai ....?
or aapki phikar karne wale ham log hai n ...Q UDAS HOTE HAI..
...MAI HU N........

BARO KA KAHNA MANIYE OR APNA AC BAND KIJIYE ....USASE OR BHI TABIYAT KHARAB HOGI...

कुश ने कहा…

मस्त पोस्ट है.. वैसे ये सोच का विषय भी है.. कि ज्यादातर मुसलमान मैकेनिक क्यों है?
एक 8 -10 साल के बच्चे के साथ संवाद था मेरा..
कहा जा रहा है ?
काम पे
कैसा काम?
टैक्सी रिप्येरिंग का..
पढाई नहीं करेगा?
करूँगा ना छठी तक पढूंगा..

अब उस बच्चे के मन में ये बात कहा से आई होगी?

वैसे आप फिल्मो में ट्राय क्यों नहीं करते.. :)

* મારી રચના * ने कहा…

Awesome.... I am Speechless....!!!

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

Mahfooz, Ab tabiyat kaisi hai. yahan itna lamba sandesh likhne me problem ho rahi thi.

mera sandesh yahan hain http://sulabhpatra.blogspot.com/2009/11/blog-post_19.html

Alpana Verma ने कहा…

बढिया संस्मरण!
Raampyari Mam' tak khaabr pahunch gayee hogi...agli baar vijetaa aap hi hue..!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

mahfooz bhai,

bahut khoob likha hai....bachpan ki yadon ke saath jawani ki baaten bhi....waise achchha tareeka hai shadi ki charcha karne ka....ab to nikaah padh hi lijiye.....
"साला! मालूम कैसे चलेगा कि मुसलमान है?"

is vakya men jahan dard jhalakta hai wahan unki kaam karne ki kshamta ka bhi pata chalta hai....

achchha sansmaran hai...badhai

शरद कोकास ने कहा…

महफूज़...... अब तक तुम्हारी तबियत ठीक हो गई होगी ..इतने लोगों ने दुआयें जो दी हैं । मुझे सिर्फ एक ख्याल परेशान कर रहा है कि तुम्हारी शादी में इतने लोगों की मेहमान नवाज़ी का इंतेज़ाम करना होगा .. फरवरी तक कोई लड़की तलाश कर लो ना .. ब्लॉगर्स सम्मेलन में ही यह शुभ कार्य कर लेते हैं । हाँ " गर्म हवा " पर एक समीक्षा पोस्ट कर रहा हूँ ..ब्लॉग पास पड़ोस में ... मरहूम अब्बाजान को याद करते हुए ।

बेनामी ने कहा…

अपने से कोई कहे तो अंधा हो तो हाथ में देदूं, यो या वह हो तो बरत के दिखा दूं ताकि पहचान रहे मुसलमान कैसा या मुसलमान का कैसा होता है,

मेरी आवाज सुनो ने कहा…

यादें याद आती हैं अपनों के चले जाने के बाद....
यादें......यादें......यादें..........
बहुत उम्दा संस्मरण भाईजान लिखा है आपने....!!
बधाई...!!

--
शुभेच्छु

प्रबल प्रताप सिंह

कानपुर - 208005
उत्तर प्रदेश, भारत

मो. नं. - + 91 9451020135

ईमेल-
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अजय कुमार ने कहा…

मह्फ़ूज भाई आप जल्द से जल्द तन्दुरुस्त
हो जायें, और शादी करें। वैसे शादी करना न करना
आपक निजी फ़ैसला है हमें तो बस दावत-ए-वलीमा
से मतलब है

संगीता पुरी ने कहा…

कल से उपस्थित हुई मेरी व्‍यस्‍तता के कारण इतनी सच्‍ची और सुंदर पोस्‍ट पढने का मौका मुझे इतनी देर बाद मिला .. पर खुशी इस बात की हुई कि इतनी सारी टिप्‍पणियों को भी पढने का मौका मिला .. अपने जीवन के कई खास खास मौको का वर्णन करते हुए आपने अपने संस्‍मरण कों काफी सजीव बना दिया है .. जीवन तो उठा पटक का नाम ही है .. कोई कहानी तभी सुंदर बनती है .. जब वह कई मोडों से होकर गुजरती है .. आप जीवन में जिस क्षेत्र में भी रहें .. नंबर 1 ही रहें .. मेरी शुभकामनाएं हमेशा आपके साथ होंगी !!

रंजू भाटिया ने कहा…

आशा है की अब आप ठीक होंगे ..वैसे बीमार होने पर यादें और लिखने के ख्याल बहुत बहतरीन आते हैं .यह मैं अपने पर्सनल तजुर्बे से कह रही हूँ ...:) बहुत कुछ कहा है आपने इस पोस्ट में जो बहुत दोनों तक याद रहेगा ...शुक्रिया जल्दी से स्वस्थ हो जाए ..

ज्योति सिंह ने कहा…

थोडी देर तो पिताजी..शांत खड़े रहे .......देखते रहे....... फिर पास आ कर स्कूटर बनाते देख मुझे कहते क्या हैं की..... "साला! मालूम कैसे चलेगा की मुसलमान है? "
aapke pitaji ji ki kahi ye baat na bhoolne wali hai ,aapke jeevan ki saari ghatna hansaati bhi hai ,rulati bhi hai,ab to apne pitaji ki ichchha poori kar dijye
jisse us jahan me unhe shaanti mil sake .

प्रवीण त्रिवेदी ने कहा…

वाह जी हम भी अब जान गए कि आप इस ब्लॉग जगत में भी पक्के टाप ही करेंगे !! हुनर वाले जो लगते हैं.....मालूम कैसे चलेगा कि मुसलमान का बच्चा है?
गजब लिखा!!!!!!!

अर्कजेश ने कहा…

शीर्षक देखकर तो हम चकरा ही गए थे ....आने पर पता चला कि स्‍थ‍िति नियंत्रण में है ।
बुखार में ऐसा हो जाता है । शुभकामनाऍं । मस्‍त रहें ।
नर्वस नाइन्‍टी में ऑउट मत होना भाई आप शतक के करीब हो ।

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

महफूज जी आपकी ये साफगोई अच्छी लगी ...फलर्ट का किस्सा सुनाते वक़्त आपने जरा सा नहीं सोचा लोग आपको एक बुरा इंसान भी समझ सकते हैं ....आपकी यही बात सबके दिल के करीब ले आई है ....आपकी निजी ज़िन्दगी के बारे जानकार अच्छा लगा कर्नल का बेटा वो भी माशाल्लाह इतना खूबसूरत ...तो लडकियां तो पीछे पड़नी ही थी ....पर अब जिसके लिए वो नज़्म लिखी थी ..... "शब्दों के जाल में उलझने की बजाये , /हाव-भाव से दिल का हाल जान लो तुम" वाली उसके साथ फलर्ट मत कीजियेगा .....आमीन...!!

Dr.Aditya Kumar ने कहा…

excellent post.

अपूर्व ने कहा…

जब टाइटिल देखा तो पहले तो लगा कि अपने महफ़ूज़ भाई ने दिमाग को करेंट देने काअ इंतजाम कर दिया लगता है..मगर इधर आया तो देखा के बड़ा नॉस्टाल्जिक सा एक मौसम लेटा है रजाई मे..टोमैटो सूप पीते हुए..
अब चूँकि अपन तो लो प्रोफ़ाइल पब्लिक हैं..आप जैसे फ़्रंट-बेंचर्स के पीछे से उझकते हुए..सो पढ़ते हुए और मजा आया..
आपकी यह ईमानदार और बेलाग सच्चाई अच्छी लगती है..बस कभी-कभी कन्फ़्यूजन हो जाता है कि कन्फ़ेशन है या एड्माय्रेशन ;-)
वैसे जब आप पिता जी वाली बात पे सीरियस हैं तो मैं कहूँगा कि इस सीरियस्नेस को बनाये रखा जाय..और प्रॉब्लम की रूट्स को इरैडिकेट किया जाय..;-)

ओम आर्य ने कहा…

मैं यही हूँ तुम्हारी तनहाइयों के सहारे टिक कर खड़ा...

बेनामी ने कहा…

बहुत खूब

बेनामी ने कहा…

लेकिन कुछ बातें हैं जिनसे सहमत नहीं हूँ मैं।

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

महफूज़ भाई
सादर अभिवादन
आप कही कह रहें है.... आपके आलेख में जिस टीस की और संकेत था उसे में भी भोग चुका हूँ
एक बार पिता जी ने हम सभी बेटों से कहा था:-"नाकारा हो स्टेशन मास्टरों के बच्चे कुली-कबाड़ी ही तो बनेगें और क्या ?"
शरीर में झुरझुरी से फ़ैल गई थी तब रोयाँ रोयाँ कराह रहा था हम तीनों का
आपकी इस पोस्ट से संप्रेरित पोष्ट मिसफिट पर दे रहा हूँ
शायद उस दौर को हम समझ पांएँ

खुला सांड ने कहा…

भई आपके कोमेंट ने १०० का आंकडा पार कर लिया बधाई !!! वैसे मियाँ पता चल ही जाता है की बन्दा किस बिरादरी से है चाहे वो मुस्लिम हो या हिन्दू या एनी कोई!!!hamaare blog pe bhi tasrif farmaiyega!!!

सागर ने कहा…

very interesting post...

sandhyagupta ने कहा…

Abhi tak to apni kavitaon ke madhyam se hi aap prabhavit karte aaye the,par is post ne jataya ki any vidhaon me bhi maharat hasil hai aapko.

अनूप शुक्ल ने कहा…

बेहतरीन संस्मरण! अच्छा लगा इसे पढ़ना। शादी के लिये हम कुछ न कहेंगे अभी। कभी लखनऊ पहुंच के आमने-सामने बैठकर समझाइश देंगें। तबियत चकाचक कर लो पहले। :)

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

आज पिताजी नहीं हैं.... मेरे समझ में नहीं आता कि मैं अब किसको परेशां करून....? अब कौन मेरी फ़िक्र करेगा...?


बहुत ही भावपूर्ण पोस्ट... साधुवाद.. साधुवाद.

पंकज ने कहा…

बहुत खूब. निजता से शुरु कर सार्वजनिकता पर कैसे होले से पहुँच गये आप. एक राय, अब भी शादी करलो, मां पिताजी को जन्नत में भी राहत होगी, क्योंकि वे यहाँ हों या वहाँ आपको लेकर परेशां तो होंगे.

बेनामी ने कहा…

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Asha Joglekar ने कहा…

ये फ्लर्ट वर्ट करना छोडो बच्चू और शादी कर लो तो बीमारी में कोई हमदर्द भी होगा और तीमारदार भी ।

प्रकाश पाखी ने कहा…

महफूज जी,
आपका संस्मरण तो बहुत पहले पढ़ लिया था पर मोबाइल पर कमेन्ट नहीं कर पा रहा था...आपके लिखने के तरीके मैं कुछ अलग तरीके की चमक है जो पाठक को बाँध देती है....वैसे शीर्षक से ऐसा लगा कि ब्लॉग पर कोई नई बहस की पोस्ट लिखी गई हो!

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

बडी बेवाक स्वीकारोक्तियां हैं. बढिया संस्मरण.

अनिल कान्त ने कहा…

बहुत सी बातें ऐसी होती हैं जो रह रह कर याद आती हैं
और माँ बाप तो हमेशा याद आते हैं

Ashutosh ने कहा…

बहुत अच्छा लिखा है.
हिन्दीकुंज

VOICE OF MAINPURI ने कहा…

khub likha

अनवारुल हसन [AIR - FM RAINBOW 100.7 Lko] ने कहा…

आपका लेख पढ़ कर अपने मरहूम वालिद साहब का हर काम में प्लास और पेचकस ले कर खुद जूझ जाना याद आ गया... अक्सर कोइ चीज़ खुद से बिगड़ जाने के बाद ही सही मकेनिक तक जा पाती थी. ये परम्परा आज भी बदस्तूर जारी है...

SHIVLOK ने कहा…

VAH VAH VAH

VAH VAH VAH

VAH VAH VAH

VAH VAH VAH

VAH VAH VAH

YAR AB TO TUMSE SAB PYAR KARTE

KISI EK BHGYAWATII KII ICHHA PURII KAR DO

SUCH
YE
HAI
KI
AAJ
PAHLII
BAR
TUMHARA
BLOG
DEKHA
AUR
PYAR HO GAYA
YAR AB TOO HII BATA KYA KAREN

mukti ने कहा…

वाह! आप तो लाजवाब हैं. मैं पहली बार आपके ब्लॉग पर आयी हूँ और अब महसूस हो रहा है कि इतना अच्छा ब्लॉग मैं मिस कर रही थी. सच कभी कोई चीज़ आपके बिल्कुल सामने होती है और आप उसे देख नहीं पाते. आप बन्दे भी बड़े दिलचस्प हो जी. अक्सर आर्मी बैकग्राउंड वाले ऐसे ही होते हैं शायद.

मनोरमा ने कहा…

आपके ब्लाग पर पहले भी आना हुआ है, अच्छा लगता है यहां आकर। इस बार शीषक ने खींचा ।
बहरहाल, आपके बारे में जानना िदलचस्प लगा।

जया पाठक श्रीनिवासन ने कहा…

very well written...though in some places i felt certain things were elaborated a little too much ....sheershak bahut mein bahut kashish thi...aur jahan "musalmaan kaise lagega" waali baat ka zikra hai...woh thoda seemit rah gaya hai...baharhaal...mood ko bilkul light karney waala lekh hai...

ek aisa hi interview naseeruddin shah ka youtube par hai...zaroor dekhein...unki tippani ki dadhi lambi aur pajama takhno se ooncha na pahno to muslmaan nahi....aisi sooch kaa virodh kartey huye unhoney bhi apney pita se bagawat ki thi...

likhtey rahein....

Satish Saxena ने कहा…

हार्दिक आशीर्वाद !

drdhabhai ने कहा…

मेने इसको आज पढा है और अब तक तोतुम्हारी जुकाम भी ठीक हो गई होगी और शादी भी हो गई होगी....बाकी पढते पढते मेरे वायरल हो गया.....so infectious

ART ने कहा…

so nice

Niks ने कहा…

आपकी लेखनी बहुत ही शानदार है और एक बहुत ही अच्छा मेस्सगे आपने समाज में अपने शब्दों से दिया है , यकीनन आप पर विद्या की देवी सरस्वती की कृपा है .

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