शनिवार, 6 जून 2009

यह क्या????

चाँद हमेशा की तरह मेरे साथ था,
पर , मैंने उससे कोई बात नहीं की
पत्थरों को देखा वो भी
बड़े मुलायम लगे
हवा मुझे पागल किए दे रही थी
पेडों का शोर अचानक बड़ा अच्छा लगा,
अन्दर का उमड़ता हुआ सा तूफ़ान
बाहर फैल गया॥




महफूज़ अली

2 टिप्पणियाँ:

डिम्पल मल्होत्रा ने कहा…

chand hmesha ki tarah mere sath tha....wonderful...

Unknown ने कहा…

na ye chaand hoga
na taare rehenge
magar ham hamesha
thumare rehenge

i think this song complements your
poem well
what do u think Ali Saab
A+++ anjali

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...