मैं हिन्दी हूँ,
दबी-कुचली,
अपने ही वतन में
मेरे हमवतन मुझे
दया भरी नज़रों
से देखते हैं.....
कहने को तो मैं
राष्ट्रभाषा हूँ
जैसे महात्मा गाँधी
राष्ट्रपिता
दोनों का ही छदम वजूद
हम दोनों केवल
अपने दिवसों पर ही
याद किए जाते हैं....
मैं हिन्दी हूँ।
मेरे अपने ही देश में
शिक्षण संस्थानों के
नाम,
सेंट पॉल, सेंट मेरी , सेंट बोस्को,
और सेंट जॉन
पता नहीं!
आदिकाल से मैंने ऐसे संत
अपने देश में नहीं देखे ,
न ही सुने.............
सुना है चौदह सितम्बर को
मेरा दिवस है?
मुझे दिवस के रूप में
मनाया जाता है
जैसे वैलेंताईंस (Valentines) डे, रोज़ डे, किस डे
मनाया जाता है....
पन्द्रह दिनों की खुशी
का पखवारा ,
फिर उसके बाद
अंग्रेज़ी की पौ बारह.....
क्या मैं इतनी गिर गई हूँ?
मेरा दिवस ही
सबूत है इस
बात का
कि मैं गिर गई हूँ !!!!!!!!
शायद..............??????
39 टिप्पणियाँ:
behad bahavmayi, sateek aur sarthak rachna hindi divas ke liye
aabhari hain ham aapke..
बहुत खूब लिखा है -- हिन्दी ऐसा लगता है इस मुल्क मे शरणार्थी है. ऐसा लगता है अंग्रेजी की मोहताज है. सही चित्रण किया है.
अच्छी रचना
बहुत खुब भाई जी सच्चाई को उकेरती शानदार रचना। हिन्दी दिवस की हार्दिक बधाई.....
मैं हिन्दी हूँ। ..hindostan me jiski rashterbhasha hun..mere hisse sirf 365 me se 15 hi din????..mujhe bolne me sharam aati hai....angrezi bolni chahe na aaye..par khoob bhati hai.......hum pragtee ke path pe aage badh rahe hai...hindi chhodh angrezi schoolo me padh rahe hai...aap sabit kar rahe hai..ki har wishey pe apki kalm chalti hai or khoob chalti hai.....
मेरा दिवस ही
सबूत है इस
बात का
कि मैं गिर गई हूँ !!!!!!!!
शायद..............??????
आपने सही आकलन किया है।
बधाई!
क्या बात है. एक उम्दा रचना!!
हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.
कृप्या अपने किसी मित्र या परिवार के सदस्य का एक नया हिन्दी चिट्ठा शुरू करवा कर इस दिवस विशेष पर हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार का संकल्प लिजिये.
जय हिन्दी!
१४ सितम्बर को
हिंदी यह बोले
कुंठित मन की
गांठे भी खोले
भाषा है हिंदी
गिरी नहीं है
चबाओ न ऐसा
मैं गिरी नहीं हूँ
मन को सजाओ
सोच व्योम सजाओ
हिंदी की प्रगति संग
प्रीत यूँ बढाओ
bhavpurn abhivyakti,hindi divas ki shubkamnaye
बहुत ही सार्थक रचना. हिंदी गिरी नहीं है बस हमवतनों की कुछ लापरवाही का शिकार हो गई है.जिस दिन हम अंग्रेजी की तरह हिंदी बोलने में गर्व महसूस करने लगेंगे उस दिन हिंदी फिर से उठ खड़ी होगी.
महफूज़ जी,
गर हमारे भाषाओँ के पाठ्यक्रम मे सुधार हो तो हिन्दी ख़त्म नही हो सकती...पाठ्य क्रम मे हिन्दी या अन्य भाषा सिखाने के बदले सीधे, अलग लेखों की 'साहित्यिक' रचनाएँ पेश की जाती हैं...ऐसी रचनाएँ, जो आगे चलके साहित्य विषय लें तो ठीक है,वरना हमें एक जनजागृती करनी होगी..बोली भाषा सरल धंसे सिखानी चाहिए...नाकि साहित्य!
http://shamasansmaran.blogspot.com
http://lalitlekh.blogspot.com
http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com
http://kavitasbyshama.blogspot.com
Ek aur baat...Hharek bhashakee kitab utneehee neeras hotee hai,jitnee ki hindee kee...glbalisation me Enflish pradhany paayegee ye sach maanke chalen,to pathy kram me sudhar ataywashyak hai..bachhe ruchee har bhashaki kitabon me patae hain...engish adhik seekh jate hai,kyonki,any vishay english me padhaye jate hain..jahan wyakran jaisa klisht vishaya nahee hota...samaas kyon school me padhne wale bachhon ko sikhaye jaye?
bahut hi accha likha hai.. ek baat jodna chahunga.. hindi abhi tak hindustaan ki aadhikarik bhasha nahi ban paayi.. kya ye hamaari kamjori ko nahi dikhata.. kya hamein sharm nahi aani chahiye??
कितना आसान है,
कितना आसान है तुम्हारे लिए,
मुझे बस एक दिन याद करना,
साल भर गालियाँ देकर,
पूरे साल में बस एक दिन,
मेरी तारीफों के पुल बांधना,
मुझसे किये पुराने वादों को,
फिर से बेमतलब दुहराना,
अब तो ये वादे झूठे नहीं लगते,
क्योंकि यकीन हो आया है अब मुझे,
तेरे सारे वादे झूठे...
याद आता है सन पचास का,
वादा था कोई पंद्रह साल का,
बीते हैं मेरे इंतजार में,
उन्सठ या कोई साठ साल अब,
अब तो जान गए मुझको तुम,
या अब भी हो अनजान अंग्रेजों,
मैं हूँ तेरी मातृभाषा,
हाँ हाँ मैं हिंदी ही हूँ....
मैं हिन्दी हूँ,
दबी-कुचली,
अपने ही वतन में
मेरे हमवतन मुझे
दया भरी नज़रों
से देखते हैं.....
आपकी सुन्दर रचना के लिऍ बधाई।
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मै यह नही कहता हू कि हिन्दी कि स्थिति सुधरी नही है। भाषा के प्रति लोगो कि जागरुकता बढि है। हिन्दी हमारी पहचान है। मै एक ऐसे भारत की कल्पना नही करता हू, जहॉ हिन्दी सारे देश मे समान रुप बोली जाऍ, लिखी जाऍ। मगर ऍसे देश की कल्पना जरुर करता हू जहॉ हिन्दी के प्रति हीनभावना खत्म हो जाऍ।
-(हे प्रभू यह तेरापन्थी)
मै मॉ से प्यार करता हू, मोसी लिपट जाती है
मै हिन्दी मे कहता हू उर्दू मुस्कुराती है।
आप को हिदी दिवस पर हार्दीक शुभकामनाऍ।
पहेली - 7 का हल, श्री रतन सिंहजी शेखावतजी का परिचय
हॉ मै हिदी हू भारत माता की बिन्दी हू
हिंदी दिवस है मै दकियानूसी वाली बात नहीं करुगा
बात तो सही है, हिन्दी बोलना सबको अच्छा लगता है लेकिन व्यवसाय की भाषा के रूप में हम अंग्रेजी ही सुनना और बोलना चाहते हैं। ऐसी ही सुन्दर कृतियाँ लिखते रहें।
शुभकामनाएँ
राष्ट्र भाषा और राष्ट्रपिता -छद्म वजूद के रूप में ........ बहुत सटीक तुलना एवं व्यंग्य ...बधाई
बहुत सही कहा आपने ...हिंदी दिवस का मनाया जाना ही अपने आप में इसकी दुर्दशा को साबित करता है... एक विडम्बना यह भी है कि अपना सारा काम काज हिंदी में किये जाने के बावजूद हम ( मैं भी ) अपने बच्चों की शिक्षा के लिए उनके भविष्य की चिंता करते हुए हम अंग्रेजी माध्यम ही चुनते हैं ..
बहुत अच्छी रचना ...बधाई ..!!
हिंदी में की गयी आपकी टिपण्णी हिंदी का महत्व बढायेगी ..
जहाँ तक रोज कुछ लिखने की बात है..मेरे लिए व्यावहारिक दृष्टि से यह संभव नहीं है..दी कहकर आपने इतना मान दिया..आपके इस स्नेह के लिए बहुत धन्यवाद ..आभार ..!!
हिन्दी की सही स्थिति पर पर सुंदर रचना .. अपनी मातृभाषा को इतना भी लाचार नहीं होना चाहिए .. .. ब्लाग जगत में कल से ही हिन्दी के प्रति सबो की जागरूकता को देखकर अच्छा लग रहा है .. हिन्दी दिवस की बधाई और शुभकामनाएं !!
हिन्दी के साथ ’स्व’ की सच्चाई जुड़ी है । हमें अपने ’स्व’ का खयाल नहीं । हम परोन्मुख हैं । हिन्दी एक वस्तु की तरह हो गयी है । संवेदना में नहीं पैठ रही है इसकी धमक ।
हिन्दी दिवस के नाम पर हिन्दी के साथ मजाक ही होता है \ सही लिखा है आपने ।आभार ।
आपकी सुन्दर रचना के लिऍ बधाई।
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मै यह नही कहता हू कि हिन्दी कि स्थिति सुधरी नही है।
हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
आपकी सुन्दर रचना के लिऍ बधाई।
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मै यह नही कहता हू कि हिन्दी कि स्थिति सुधरी नही है।
हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.
sanjay bhaskar
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
मेरा दिवस ही
सबूत है इस
बात का
कि मैं गिर गई हूँ !!!!!!!
महफूज़ जी सच कहा है दिन उनके ही मनाये जाते हैम जिन बातों को हम रोज़ याद नहीं रख सकते और हिन्दी के लिये अभी भी याद करवाना पडता है कि ये हमारी रश्त्र भाशा है बहुत सुन्दर रचना है बधई हिन्दी दिवस की
अत्यन्त सुंदर, शानदार और भावपूर्ण रचना! हिन्दी दिवस की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें!
aapki bhavnaye aur jazbaat ki main bahut kadr karata hoon..aapki lekhani ke har ek shabd mujhe bahut achche lagate hai..ho sakata hai samay ki anuplabdhata ke wajah se main aapki har post na padh pata hoon...par aap behtareen likhate hai..
aur aaj ki post main kya kahu hindi bachane ki muhim ko kitane sundar dhang se prstut kiya aapne..
bahut shukriya bhai..hindi divas ki hardik badhayi..
मेरा दिवस ही
सबूत है इस
बात का
कि मैं गिर गई हूँ !!!!!!!!
शायद..............??????
बिल्कुल ही सही लिखा है आपने ..........आपकी बेहतरीन रचनाओ मे से एक ................... बहुत बहुत बहुत बहुत आभार
जब तक आप जैसे हिन्दी प्रेमी हैं, वह गिरने नहीं पाएगी, इस बारे में मैपूरी तरह आश्वस्त हूं।
behad sateek aur sarthak rachna hai bhai jaan....bahut achchhi lagi
excellent......
क्या कहें?????????? कहने को रहा क्या है,हम हिन्दुस्तानी हैं,पर अंग्रेजी बोलने में शान,अंग्रेजी पहनावे में चलने की शान......
बड़े शहरों में , बड़ी दुकानों में जैसे लैंड मार्क,क्रॉस वर्ल्ड ....यहाँ तक कि फुटपाथों पर भी सिर्फ अंग्रेजी किताबें होती हैं.....हिंदी ढूंढते
आस-पास चलते लोग यूँ देखते हैं मानो कह रहे हों.....
'अमां तुम किस वतन के हो
कहाँ की बात करते हो....'
कौन पहल कर रहा है? हाँ ब्लॉग के जरिये हिंदी का प्रसार हो रहा है.......हिंदी बोलने में शान महसूस कीजिये,व्यवस्था सुधरेगी
पन्द्रह दिनों की खुशी
का पखवारा ,
फिर उसके बाद
अंग्रेज़ी की पौ बारह.....
umda, बहुत ही लाजवाब, कमाल का लिखा है ......... सच में आज हिंदी बस rasmi बन कर रह गयी है ...... आपने baakhoobi लिखा है iski durdasha पर ...........
महफूज़ जी ....जब तक हमारे जैसे टीचर स्कूलों में अंग्रेजी पढाते रहेंगे ....हिन्दी का बाल भी बांका नहीं हो सकता ...यह निश्चित मानिए .....
Bahut Khoob.. Happy Blogging
सचोट बात । आपके यह लेख से शायद हिन्दी ख़ुद ही जाग जायेगी। अर्थ है कि उठकर बैठ जायेगी।
सुंदर!!!मगर गंभीर रचना।
बाबू का खुलासा करने की बाद आपका हिंदी के लिए लिखी गयी कविता यक़ीनन क़ाबिले-तारीफ़ है... बहुत अच्छी है और मुआफी कि पिछले २ दिनों से व्यस्तता के चलते मैं ब्लॉग तक न पहुँच सका....
पुनः बधाई!
मेरे अपने ही देश में
शिक्षण संस्थानों के
नाम,
सेंट पॉल, सेंट मेरी , सेंट बोस्को,
और सेंट जॉन
पता नहीं!
आदिकाल से मैंने ऐसे संत
अपने देश में नहीं देखे ,
न ही सुने.............
महफूज़ भाई,
जहाँ तक मैं जानता और समझता हूँ, हिंदी अपने आप में एक शशक्त भाषा है.
यह किसी के गिराने या हेय दृष्टि से देखने से नहीं गिर सकती, सामूहिक रूप से तिरिस्कार कर भले ही हिंदी वाले को लोग अपमानित कर लें, पर अंततः पैसा कमाने के लिए, सुविधाएं लेने के लिए उस अंतिम व्यक्ति की भाषा में ही बात कर मतलब साधना ही होगा.
मजबूरी से झुकाना हार नहीं होती, मतलब से झुकना वास्तविक हार होती है.
गौर करें पहले विदेशी शासकों ने इसका वजूद मिटाने की भरपूर कोशिश की, फिर अंग्रेजों ने और अब अपने ही लोग,
पर क्या मिटा सके.
अंग्रेजी कितना भी पढ़ लें जनसामान्य के चलते हिंदी स्वीकारना ही पड़ेगा अंततः भारत भूमि पर.
यही सत्य. है, और अंततः सत्य के सिवा और कुछ नहीं बचता.
जय भारत-जय हिंदी.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
hey bhu accha likha ha you are good writer
मेरा दिवस ही
सबूत है इस
बात का
कि मैं गिर गई हूँ !!!!!!!!
Hindi divas manane ki jarurat Bharat me hi pad rahi hai to yah uski upekshit stithiti ka hi praman hai.
महफूज जी,
हिन्दी हमारी भाषा होकर भी हमारी मोहताज हो गई है इससे बुरी और क्या बात हो सकती है। सधे हुये शब्दों में उन सभी आडम्बरों की खबर ली है आपने, बधाई।
जय हिन्दी जय भारत
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
हिंदी भाषा की यह दुर्दशा है तो आप अंदाज़ा लगा सकते है हिंदी लेखक का क्या हाल हो रहा हो गा. बहुत ही कमाल का लिखा है.......
जोली अंकल
Hindi ko hum hindustani hamari matri bhasha kahte hain.Ye bade hee sharm ki baat hai ki hum hee usae aaj sharnarthy keh rahe hain ,aur aisa kahne walon ko hum achche rachnakar ghoshit ker rahen hain. Apni maa ka aadar ker sakte ho to kero,kripaya usae girao nahi.
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