पता नहीं क्यूँ?
अब मुझे जीतने कि आदत हो गयी है.... मैं अब हारना नहीं चाहता, किसी भी FRONT पे ... मुझे अब हार जैसे शब्द से चिढ हो गयी है. मैं ऐसे ही अपने पिछले एक साल का विश्लेषण कर रहा था, तो रिजल्ट यही निकला कि इन एक सालों में मैं कहीं हारा नहीं हूँ, मैं हर मोड़ पे जीता ही हूँ, वैसे भी मैं शुरू से ही यानी कि बचपन से मैं हर मोड़ पे जीता ही हूँ, मुझे गुमनामी से बहुत डर लगता है. मैं COMMON MAN बन कर नहीं रह सकता..... मेरे लिए कुछ भी IMPOSSIBLE नहीं है, मुझे हर वक़्त ATTENTION ही चाहिए होता है. मैं हमेशा कोई भी काम शुरू करता हूँ तो यही मान कर चलता हूँ कि इसमें मुझे सफलता मिलेगी. और यही सोच कर आगे बढ़ता हूँ..... और फिर वो सफलता पाने के लिए कुछ भी कर देता हूँ. अगर मेरे सफलता के रस्ते में कोई मुश्किल आती भी है.... तो मैं हर मुश्किल को तोड़ देता हूँ... मैं सफलता पाने के लिए कुछ भी कर सकता हूँ. चाहे वो अच्छा हो या बुरा.... मैं हर रोडे को हटा देने कि कोशिश करता हूँ..... यहाँ तक कि इन एक सालों में कई (तथाकथित) लोग भी मेरे रस्ते में रोडे अटकाने आये..... पर मैं उन सबको दूर करते हुए.... अपनी सफलता को पाया हूँ..... मेरा एक उसूल है शायद ...कि अगर कोई मेरे सफलता के रस्ते में आयेगा ...तो पहले तो समझाऊंगा..... फिर.... भी नहीं माना.... तो साम, दाम, दंड और भेद का इस्तेमाल करूँगा.... इसपे भी नहीं माना तो इतना torture कर दूंगा.... कि मरने के कगार पे आ जायेगा ....और शायद यही सफलता है..... मैं SHAKESPEARE के सिद्धांत पे चलता हूँ... कि.. "BEHIND EVERY GREAT SUCCESS THERE IS A CRIME"....अब यह CRIME कुछ भी हो सकता है..... अब तो जीतने की ही ललक है.....
हार - जीत तो लगी ही रहती है ज़िन्दगी में, लेकिन पता नहीं मेरे साथ ऐसा क्या है... कि मैं अपनी हार कभी बर्दाश्त नहीं कर पाता.... अगर कभी मुझे हार का सामना भी करना पड़ता है न.... तो मैं उस हार को सह नहीं सकता.... मैं फिर से कोशिश करता हूँ और तब तक करता हूँ... जब तक के जीत न जाऊँ..... ऐसे ही मैं कभी अपनी बेईज्ज़ती नहीं बर्दाश्त कर सकता..... अगर कोई ऐसी कोशिश भी करता है... तो उसे वहीँ रोक देता हूँ.... अगर फिर भी वो कोशिश करे तो मेरे पास सिर्फ एक ही रास्ता रहता है.... वो है मारना.... मैं कई बार ऐसे भी हालत में पहुंचा हूँ कि मुझे सामने वाले को इस हद तक पीटना/पिटवाना पड़ा कि बस आप यह समझो कि वो शमशान या कब्रिस्तान के दरवाज़े से लौट के आया..... CAREER ( देखिये ! एक बात बता दूं ...कि नौकरी और CAREER में ज़मीन आसमान का DIFFERENCE है..... नौकरी तो हर कोई कर लेता है.... पर CAREER कितने लोग बना पाते हैं? तो नौकरी और करियर दोनों ही अलग चीज़ हैं... जो लोग CAREER बनाते हैं वो लोग सफल लोग होते हैं... जो सिर्फ नौकरी करते हैं.... वो नालायक... और CAREER बनाने के लिए बहुत कुछ करना पड़ता है... नौकरी करने के लिए सिर्फ वक़्त देना पड़ता है ...पर CAREER के लिए वक़्त और खुद को भी देना पड़ता है....) में भी कई मुकाम ऐसे आते हैं..... कि आपको लगता है कि अब सब गया.... पर मैं ऐसे SITUATIONS में भी जीत के ही आया हूँ.... मैं रिश्तों में भी जीत ही देखता हूँ, मुझे अपने लोगों को बाँध कर रखना अच्छा लगता है, पर कोई रिश्ता अगर मुझे दर्द देता है तो उस रिश्ते को ख़त्म करने में भी कोई वक़्त नहीं लगता हूँ... हाँ! ख़त्म तो करता हूँ रिश्ता पर हमेशा अपनी शर्तों पर..... मैं किसी को खुद को लात मारने का मौका नहीं देता.....और फिर पलट के कभी नहीं देखता....और यही मेरी जीत भी है...
इन एक साल का विश्लेषण कर रहा हूँ आज तो यही लग रहा है कि मेरी फितरत अब जीत कि ही हो गयी है. मुझे हर हाल सफलता ही चाहिए चाहे उसके लिए किसी भी हद तक गुज़र जाना पड़े.
पर अब मुझे हारना मंज़ूर नहीं है....वैसे कभी भी नहीं रहा है.... मैंने हमेशा वो पाया है ...जिसको पाने कि कोशिश मैंने की.... और अब यह आदत बन गयी है.... अब मुझे पीछे रहने में डर लगता है.. यह एक साल मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण रहा है...... तमाम उतार-चढाव से ..... गुज़र कर आज विश्लेषण कर रहा हूँ..... तो कई बातें ध्यान में आ रही है...... विनर वही होता है....जो हर मुसीबतों और मुश्किलों में से भी रास्ता निकाल कर आगे बढ़ता है.... चाहे इसके लिए उसे कुछ भी करना पड़े..... मेरा यह मानना है कि अगर आपको अपना SELF-ESTEEM को बचाए रखना है तो हमेशा COMPETITION में रहिये... और यही मान के चलिए कि मुझे जीतना ही है हर हाल में, अगर किसी का नुक्सान करके आपका फायदा हो रहा है... तो आप उस हद तक चले जाइये . यकीन करिए... इसमें कुछ गलत नहीं है....
अब अंत में एक सवाल....
SHAKESPEARE ने कहा था कि "BEHIND EVERY GREAT SUCCESS THERE IS A CRIME" ...
("हर महान सफलता के पीछे कोई न कोई अपराध ज़रूर होता है"...)
तो यहाँ CRIME (अपराध)से क्या मतलब है?
Introductory Lucknow: The City of Nawabs, Kebabs and Naqabs.
-
*Dear Friends*,
This is *Dr. Mahfooz* commencing this *travelogue* with a *short
introduction* of my own city *Lucknow*. *Lucknow the City of Nawabs, Keb...
75 टिप्पणियाँ:
Mahfooz Sahab,
kya baat hai...
ye aapka ek bilkul hi naya roop dekhne ko mila hai ab to..
bhala kaun soch sakta hai hamare itne shaleen se dikhne waale Mahfooz zaroorat padne par ye sab bhi kar sakte hain ?
lekin imaandaari ki baat ham kahen aapki saafgoyi ke ham to bas kayal hi ho gaye hain aur ab to lagne bhi laga hai ki aap bikul sahi kah rahe hain...
jab ghee seedhi ingali se na nikle to tedi to karni hi padti hai na...
Aji aap bas iase hi jitete rahein hamari yahi dua hai..haar aapse koson door rahe bas...
lagta hai ham dobara aayenge comment karne abhi zaraa jaldi mein hain ham...
बहुत खूबसूरत अशआर हैं।
मुबारकवाद!
क्या बात है भैया………………………जीत की शुभकामनायें ।
wo jeet hi kya o apraadh ki neev par khadi holghadi bhar sukun degi aur phir dil mein kahi ris deti hi rahegi,better tobe in compition, magar imandar jeet khubsurat hoti hai.jeet ka asli maza bhi tabhi hai,jab haar ka jayaka pehle mila ho.
aDaDi jab zaldi main ho to itna chota nanha munna comment agar fursat main hote to (i wonder !!)
bahoot khoob.......
saflta me samay or safalta anwarat ralkhne me sanskaro ka mahati yogdan hota hai.
mujhey apni ek kavita ki d o lines yad a rahi hain
safalta mahtvpoorn kintu iske pooorv hi
achha rahega seekh klo isko sambhalna.
apne ise bakhoobi sambhal rakha hai.
safalta mubarak
आपके विचार हमें बहुत अच्छे लगे .. किसी भी काम को करने के पूर्व मन में जीत की कल्पना तो होनी ही चाहिए .. हार हो भी जाए तो कोई चिंता नहीं .. फिर से काम को शुरू किया जाना चाहिए .. आपके प्रश्न के अनुसार यहाँ CRIME(अपराध)का मतलब अपने शरीर को कष्ट देना तो नहीं !!
जानकर खुशी हुई कि आपको जीत के सिवा कुछ नहीं चाहिये मगर किसी भी हद तक जाना ये हज़म नहीं हुया सच और इन्सानियत के अन्दर रह कर तो सही है मगर झूठ और गुनाह के साथ कभी नहीं इतनी मृगत्रिश्ना विनाश का कारन होती है शुभकामनायेण महक ने सही कहा है
जानकर खुशी हुई कि आपको जीत के सिवा कुछ नहीं चाहिये मगर किसी भी हद तक जाना ये हज़म नहीं हुया सच और इन्सानियत के अन्दर रह कर तो सही है मगर झूठ और गुनाह के साथ कभी नहीं इतनी मृगत्रिश्ना विनाश का कारन होती है शुभकामनायेण महक ने सही कहा है
well .............ye lekh hai ya DHAMKI..........? HEE HEE jitne ki aadat to achchi baat hai...par uske liye kuch bhi kia jaye....isse main sehmat nahi...vese khuda aapko har baar jitaye yahi dua hai meri....par kisi ka nuksaan karke apna fayeda nikalna..meri drishti se thik nahi..isse aapko us samay to khushi mil sakti hai parantu baad main aapki aatma par ye bojh awashya rahega..mera esa manna hai.
born to win....gr8 will power...keep it up....i wish 1 day u ll touch the sky.........
ऐसे लोगों की गली से मैं गुजरता हूँ,
बस दूर ही से करके सलाम!
UTTAR TO TEEP KE HI DOONGA !!
HEHEHEHE
भाई सलाम करता हूँ आपके जज्बे को। और क्या बात है आप ने तो इस रचना से स्तब्ध कर दिया,। आपसे बिल्कुल सहमत हूँ मन मे बस एक ही जज्बा हो बस जीत ही जीत।
हार- जीत जीवन का बहुत ही बड़ा सत्य है....ज़िन्दगी हर कदम एक नई चुनौती होती है,
अगर हार नहीं तो जीत का क्या मज़ा ? हारकर हारनेवालों की तकलीफ, उनकी फिर से
कोशिशें....समझ में आती हैं.........हारना किसी को अच्छा नहीं लगता.
प्यार ,रिश्ते,बंधकर नहीं रखे जा सकते, रास्ते में रुकावटें ना आयें तो उनसे जूझना कैसे
जान पाएंगे !
निखारते जाना है,पर स्वयं के पीछे निखरने भी देना है.......आकाश,सूरज, हवा,पानी,खुशियों ....को हम अपनी गिरफ्त में
नहीं रख सकते !
कलम है,जीत है,प्रशस्त राहें हैं..............सोच को विकसित करो....मारकर हम जीत तो जायेंगे,पर आत्मा के
आगे ?????????
क्या बात है भाईजान अपने मुँह मियाँ मिट्ठू !
जीत जीत जीत। जीतने में मज़ा आ जाता है मगर हारने पर .......संतोष मिलता है के हाँ जी हमारे प्यारे अल्ला मियाँ ने हमसे बेहतर भी कोई इंसान बनाया है, कभी शिद्दत से हारकर तो देखिए। हमसे इत्तिफ़ाक रख चलेंगे।
---आपके मुरीद
पता नहीं मेरे साथ ऐसा क्या है... कि मैं अपनी हार कभी बर्दाश्त नहीं कर पाता.thik hai.
par saath hi yah bhi kahungi.....ki tumne ye pralaap yun hi nahi kiya hai,iske piche koi baat hai, aur wahan kahungi....
"छीनता हो स्वत्व कोई और तू
त्याग,तप से काम ले यह पाप है
पुन्य है विछिन्न कर देना उसे
बढ़ रहा तेरी तरफ जो हाथ है"
Bavaal bhai......... aapke comment ka bahut bahut dhanyawaad......... yeh apne moonh miyan mitthu wali baat nahi hai........... lekh to poora padhiye na plz..................
के हाँ जी हमारे प्यारे अल्ला मियाँ ने हमसे बेहतर भी कोई इंसान बनाया है......
Allah ne hamse behtar banaya hai..... par jeet usi mein hai ki us behtar se ham hi behtar rahen......... aur hamse behtar koi na ho........ main yahan pyar mohabbat ki baat nahi kar raha hoon ki jahan haar kar bhi jeet lage........ yeh difference hai soch ki.... safalta ki junoon ki.... aur haarna usi se hi achchha lagta hai jo hamein pyara hota hai..... jo hamara competitor hota hai.... usse haarne se achcha hai ki .... katori mein paani leke doob maren........
jeet usi mein hai ki ham apne se behtar kisi ko banne hi na den.....
जीत सब कुछ नहीं है . हार भी कभी कभी दिशा प्रदान कर जीत का मार्ग प्रशस्त करती है .
खुद को मार देना भी तो एक crime है, मतलब कि आत्महत्या....हो सकता है इसका मतलब ये हो
आगे बढ़ने के लिए ये खुद को भूल जाना...शायद
हाँ जीत का जज्बा अच्छा लगता है
अब जीत
मेरी जीत नहीं,
बल्कि महान जीत
हासिल हो,
पाब्लो नेरूदा
छीनता हो स्वत्व कोई और तू
त्याग,तप से काम ले यह पाप है
पुन्य है विछिन्न कर देना उसे
बढ़ रहा तेरी तरफ जो हाथ है
ye bilkul thik kaha Rashmi di ne....or shayad yahi tatprya tha shekespere ka bhi...
agar ye crime karna pade apni safalta ke liye to kuch bura nahi hai.
annyay or julm ko bardasht karna sabse bada gunah hai....
नहीं नहीं भाईजान,
हम भी क्या आपकी जीत के जश्न में शामिल नहीं ? और लेख पूरा पढ़कर ही टीप रहे हैं साहब। आप क्या हमारे अपने नहीं ? हमारी मुहब्बत क्या आपके साथ नहीं ? ये तो सिर्फ़ उन्वान के लहजा, आपकी फ़ितरतो-शख़्सियत से मेल न खाता था,
सो कह दिया। आपको बुरा लगा तो हमें मुआफ़ रखिएगा।
--- हमेशा आपका बवाल
मुझे तो हरा दिया
बस उनकी एक 'हार' ने
और फिर हारने का
आदी हो गया मै
जीत की मंसा नहीं रही
हार का जो स्वाद चख लिया
महफ़ूज भाई..आपकी पोस्ट्स मे जो एक फ़ीलिंग्स की जद्दोजहद होती है..जो राहु-चंद्र सी उठा-पटक होती है विपरीत भावों मे..वह बड़ी प्रभावित करती है..कही-न-कही खुद को मै उससे जोड़ के देखता हूँ..आपने सही कहा कि जीत का बड़ा अहम् रोल होता है हमारी जिंदगी मे..मगर जहाँ तक मैं मानता हूँ..सिर्फ़ जीतना और जीतते रहना अल्टीमेट चीज नही होती है लाइफ़ मे..कहीं न कहीं पर जिंदगी किसी चौराहे पर खड़ी हो जाती है..ठिठक कर..जैसे एक एक्जाम्पल के लिये..आप हिमालय की किसी ऊंची चोटी को फ़तेह करना चाहते हैं..अपने सारे प्रयास, रेसोर्सेज, अपना सारा वक्त और सारा दिमाग लगा देते हैं आप अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिये..और एक दिन आप सफ़ल हो जाते हैं..और खड़े होते हैं उस चोटी पर..जिसको जीतने के सपनों ने आपकी इतनी रातों की नींदे..इतने ख्वाब छीन लिये थे..अब आगे क्या..खैर अब आप उससे भी ऊँची चोटी को जीतने का लक्ष्य बनाते हैं..और फिर जुट जाते हैं.वन ट्रैक माइन्डेड, ऑब्स्सेस्ड हो कर..और इसी तरह एक दिन अपना सब कुछ दाँव पर लगा कर दुनिया की सबसे ऊँची चोटी भी जीत लेते हैं..और उस पर खड़े हो कर पूरी दुनिया को अपने कदमों तले देखते हैं..मगर अब आगे क्या..अब इससे बड़ा कोई लक्ष्य नही आपको अपने आपको चैलेंज करने के लिये..और यही चैलेंज तो था जो आपकी साँसे धौकनी बनाये हुए था..आपकी रगों को लावा बनाये था..आप को जिंदा रखे हुए था..और अब चैलेंज खत्म हो जाने से आपके जीने का उद्देश्य भी धुँधला हो गया..और इन सब भाग-दौड के बीच न जाने कितने रिश्ते, कितने खूबसूरत लम्हे, आपकी निगाह के तलबदार कितने छोटे-२ सपने जो आपके बेचैन पैरों के तले कुचल गये होंगे..रेसकोर्स की घास की तरह..सब कुछ पा लेने के बाद भी कुछ न कुछ हमेशा रहेगा मिस करने के लिये..जो सारी भाग-दौड़ की व्यर्थता का गवाह होगा..सो मुझे लगता है कि जीतना-हारना बस स्टेट ऑफ़ माइंड होता है..बस एक प्यास, एक लिप्सा होती है जो आपको अपना गुलाम बनाये रखती है ताउम्र..और एक इन्सियोरिटी जो आपके अंदर हार का डर पैदा कर देती है..और कन्ज्यूम करती जाती है आपको..ब्लैक-होल की तरह..न जाने कितनी आ्खें मंजिल पर गड़ी रहती हुई..रास्तों के मौसम, सफ़र के कितने ही खूबसूरत मंजर नजरअंदाज कर देती हैं..
..मुझे जो लगता है कि जिंदगी का एक बेंचमार्क जो होता है अचीवमेंट का..कि आप का होना कितनों की जिंदगी मे कोई सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है....और कल आपके न होने पर कितनी कितनी जिंदगियों मे फ़र्क पडेगा..अपनी क्या विरासत आप छोड़ के जाते हैं..अपनी अगली पीढ़ी के लिये..!
..वैसे भी जिंदगी का अल्टीमेट और आखिरी अचीवमेंट तो बस दो गज़ ज़मीन ही होती है..और वो तो बदनसीब ज़फ़र के नसीब मे भी होती है..
माफ़ कीजियेगा शायद कुछ दार्शनिक सा लग रहा होऊंगा..या आसाराम बापू सा प्रवचन कर्ता..जिनमे यह नाचीज कुछ भी झोने की हिमाक़त नही कर सकता है..बस जिस जद्दोजहद की आपने बात की..और चूँकि मेरा दिल-ओ-दिमाग भी जिसका गवाह रहता है..बस कुछ उसी बहस के दस्तावेज सा है..
उम्मीद है आगे भी सच से सामना कराते रहेंगे..एक बेलाग अभिव्यक्ति और शीशे सी साफ़गोई के लिये बधाई. :-)
महफूज़ जी,
हमने आपसे कहा था कि हम फिर आयेंगे कमेन्ट करने...उस वक्त हम ज़रा जल्दी में थे
आपके इस लेख का असली मुद्दा है सफलता...आपके जीतने का तात्पर्य है आपका सफल होना ...और उस सफलता के लिए आपका कुछ भी कर जाना ...अब चाहे वो करियर की सफलता हो...या व्यक्तिगत कोई मामला ....आप एक सुलझे हुए इंसान है ....सफलता पाना या जीतना आसन नहीं होता ...और सीधे-सीधे सफलता मिलती भी नहीं है....अगर मिल भी जाए तो लोग मिलने नहीं देते ...और ऐसे लोगों को उनकी सही जगह दिखाना मेरी नज़र में कोई बुराई नहीं है ...आप extreme mejor भी तभी लेते हैं जब पानी सर के ऊपर से चला जाए और तब यह ठीक भी है क्यूंकि अन्याय करना अगर पाप है तो अन्याय सहना महा-पाप....!!!
बहुत ही बे-बाक लेकिन सम-सामयिक रचना ...आज के सन्दर्भ में शायद यही ठीक हो....आदर्शवादिता की बात पर हम भाषण पूरा दे सकते हैं लेकिन जब अपने पर आती है तो कर पाएँ या नहीं कर पाएँ सब कि मनोभाव बिकुल वही होते हैं जो आपने कहा है ....हम में से बहुत शायद कर भी गुज़रते हैं ...फर्क सिर्फ इतना है कि आपने स्वीकार कर लिया है ......अगर आप करते हैं तो निसंदेह बधाई के पात्र हैं....यह भी हिम्मत है और हर किसी में हिम्मत नहीं होती....
आपके सफल के लिए शुभकामना...
bawaal bhai........ saadar namaskar...... haan! mere bhi samjhne mein thodi galti ho gayi..... mujhe muaaf kariyega.........
post padh li hai magar commnt abhi nahi karungee....fir kabhi..apni attendence lga di hai...
कभी कभी अपने आपको उर्जावान बनाये रखने के लिए, ऐसा जरूरी होता है कि हम अपने आपको विश्वास दिलाये कि हमारे पास वो उर्जा है जो हमें जीवन की शक्ति देता है.
शायद आपने "हार में जीत" कहानी नहीं पढ़ी. जो हमें जीत लगे शायद वाही जीत नहीं होती, अंततः जीतते रहने का भ्रम पले हुए हार कर ही रह जाते हैं, क्योंकि उनका जुनून उन्हें जीने नहीं देता, थोडा सहज होइए, समय पूर्व फलों को मत पकाइए, समय से पूर्व बच्चों को पैदा करने को जीत मत मानिये. थोडा धैर्य से खुद से लड़ कर देखिये. कभी कोई अपने से या अपनों से जीत पाया है, यदि खुद को जीता हुआ भी कहता है, तो भ्रमित ही करता है, वस्तुतः हरा हुआ ही होता है.
ध्यान रखिये जीत की ख़ुशी "हार" पहन कर ही होती है, जीत का जुनूनी कैसे उस वक्त बड़ी प्रसन्नता से हार स्वीकार कर उसके बीच से अपना मुस्कराता मुखडा दिखाता है.है न विचित्र बात? कहने को तो बहुत कुछ है पर यह मंच इतना कहने की अनुमति नहीं देता. विवाद के हालत पैदा हों मैं यह भी नहीं चाहता, न मुझे आपसे बहस में जीतने का जुनून है, मैं तो बस सहजता चाहता हूँ, अमन-चैन चाहता हूँ, विश्व-बन्धुत्वता चाहता हूँ, मधुर सम्बन्ध चाहता हूँ, तालियाँ दोनों हाथ से बजाती है, मेरा हाथ आगे है, बिना दुसरे हाथ के आगे आये ताली नहीं बज सकती, तो अपना हाथ सहजता से कब आगे लाकर ताली बजाना चाहते हैं...................
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
आपका आलेख पढ़कर मुझे गुरुवर रविंद्रनाथ टैगोर कि यह पंक्तिया याद हो आई
मेरा त्राण कर यह प्रार्थना नही
मेरी तैरने कि शक्ति बनी रहे !
मेरा भार हल्का करके मुझे सांत्वना न दे
यह भार वहन करके चलता रहूँ |
पता नहीं आपके आलेख के साथ इसका मेल है या नही?
मै रश्मिजी कि टिप्पणी का अनुमोदन करती हूँ |
आभार
महफूज़ जी, जब इस कदर जज़्बा है आपमें तो भला आपको जीतने से कौन रोक सकता है..
बस लगे रहिए...जहाँ चाह वही राह सफलता आपकी कदम चूमेंगी और भी..
बढ़िया विचार..बधाई!!!
वाह्! यदि आपके भीतर ऎसा जज्बा है तो समझिए फिर तो आपका विजय अभियान रूक ही नहीं सकता । हम भी कामना करते हैं कि आपकी ये आदत यूँ ही ताउम्र बनी रहे......
(मैं कई बार ऐसे भी हालत में पहुंचा हूँ कि मुझे सामने वाले को इस हद तक पीटना/पिटवाना पड़ा कि बस आप यह समझो कि वो शमशान या कब्रिस्तान के दरवाज़े से लौट के आया..)
यह क्या है महफ़ूज जी। स्वयं की सफलता के लिये दूसरों को नुकसान। यह तो ग़लत है। सरासर ग़लत।
प्रिय महफूज़ ,तुम्हारा यह लेख और उस पर सभी टिप्पणियाँ पढ़ ली हैं । इसमे बहुत गहराई से तुमने अपने आप को उतारा है । जिस तरह मार्क्स का यह वाक्य कि "धर्म अफीम है " पढ़कर धर्म के बारे मे या अफीम के बारे मे कोई राय नही बनाई जा सकती उसी तरह तुम्हारे लेख का एक हिस्सा पढ कर या पूरा लेख पढ़कर भी तुम्हारे बारे मे अंतिम राय नही बनाई जा सकती । जो ऐसा कर रहे है उनसे मेरा निवेदन है कि अभी महफूज़ को अपने दिलों मे मह्फूज़ रखे और देखे वह क्या कर दिखाता है उसकी जीत को आप एक दिन अपनी जीत समझेंगे । इसलिये कि हर इंसान जीतना ही चाहता है । यह उसका विश्वास है ना कि अहंकार भले ही उसके भाष्य मे ऐसा दिखाई देता हो । मै इसलिये ऐसा कह रहा हूँ कि इस लेख से बाहर भी मै महफूज़ को थोड़ा बहुत जानता हूँ । हाँलाकि किसी एक के बारे मे जानने के लिये तो यह ज़िन्दगी नाकाफी है लेकिन इसी ज़िन्दगी मे रिश्ते बनते है और टूटते है यह कोई नई बात नही है ज़रूरी है अपनी शर्तो पर रिश्तो का निर्वाह ना कि मजबूरी मे । जहाँ तक इंसान को जानने की बात है... किसी शायर ने कहा है " हर आदमी मे होते है दस-बीस आदमी , जब भी किसी को देखना हो तू बार बार देख " मह्फूज़ को आप नही जानते वह बहुत ज़िन्दादिल है अगर उसे लगेगा कि आप को यह आत्मप्रशंसा जैसा लग रहा है तो वह कह देगा ..यार यह तो टोटल फिक्शन है ..वह इस तरह भी जीत सकता है । वैसे भी अभी उसकी आत्मकथा लिखने की उम्र नही है ।
यकीं जानो, मैंने आज आपके इस लेख पर आई ३६ टिप्प्णियों में से एक भी नहीं पढ़ी है अभी तक.
बस अपने विचार देने को मन हो आया:
जीत का हौसला रखना, विश्वास रखना अपनी जीत के लिए और उसके लिए सतत प्रयास करना बहुत अच्छी बात है किन्तु उसे पाने के के लिए इस हद तक जाना कि किसी को मरवा देने से भी गुरेज न रह जाये, यह सरासर गलत है, इससे कतई सहमत नहीं हुआ जा सकता.
जीत (सफलता) क्या है? पैसा कमाना, नाम कमाना, इज्जत कमाना, मानसिक शांति प्राप्त करना, लोगों की खुशी में खुश होना, किसी को द्ख पहुँचा कर खुश होना, किसी की हार में अपनी जीत का अहसास -जाने कितने आयाम हो सकते हैं इसे देखने के. क्या यही जीत है? क्या यहीं सफलता है? क्या ऐसी सफलता जो तुम्हें खुद से ही घृणा करा दे किन्तु अन्य लोगों की नजर में तुम सफल कहलाओ, तुम्हें सुकून दे पायेगी. कभी एक क्षणिका लिखी थी:
------------------
अकेले में
जब
खुद को खुद से
मिलवाता हूँ मैं...
घबरा जाता हूँ मैं!!!
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जीत कर भी हारे तो क्या जीते? जीत तो एक मजदूर तब जाता है, जब उसके शाम के खाने का इन्तजाम हो जाये, पूरा परिवार खूशियाँ मनाता है और अरबों की संपति में मात्र कुछ लाख के इधर उधर हो जाने से पूरा अंबानी खानदान हार जाता है, परिवार बिखर जाता है.
सिर्फ शेक्सपियर का एक वाक्य पढ़ोगे और बाकी के लिखे ग्रन्थ नकार दोगे?
कोई यह भी तो कह गया है:
सफल जिन्दगी वही है कि जब अन्तिम पड़ाव से पलट कर तुम देखो, तो तुम एक बार फिर अपने हासिल पर ,अपने जीवन यात्रा पर फक्र कर सको.
-इस विषय पर तो घंटो कह सकता हँ. जानता हूँ, तुम्हारे अपने तर्क होंगे मेरी हर बात के लिए और तुम भी उन्हें घंटो कह सकते हो किन्तु मैने जैसा पहले कहा-अपने विचार कहने का मन हो आया, सो कह दिये.
कोई विरोध नहीं, कोई बाध्यता नहीं. बस, कह कर अच्छा लगा. तुम भी सुन कर अच्छा लगे तो रखना वरना भूला देना. यूँ भी जीवन में सुनो सबकी, जिसे ग्राह्य समझो, ग्रहण करो मगर फिर भी करो वही, जो तुम्हें अच्छा लगे बाकी वक्त निर्धारित करेगा.
महफूज़ मेरे भाई ...सबसे पहले तो ईमानदारी से अपनी सफलता के पीछे किये गए कारनामों को स्वीकारने की बधाई ...बहुत लोग ऐसा करते हैं ...स्वीकार करने की हिम्मत बहुत कम लोगों में होती है
जहाँ तक जीत हार की बात है ...हम आध्यात्मिक देश के वासी ...अपनी हार और जिससे हम प्रेम करते हैं किसी भी रूप में उसकी जीत पर खुश होते हैं ...हार का मजा जानना हो तो उस माँ या पिता से मिलो ...जो अपना खून सींच कर अपने बच्चों को पालते हैं ...अंगुली पकड़कर उन्हें चलना सिखाते हैं ...और फिर एक दिन वे खुद उसकी अंगुली पकड़कर चलने पर विवश हो जाते हैं ...उनकी इस हार में छिपी जीत को समझ सकोगे ...
तुमने दी कहा है ...इसी हक से कह रही हूँ ... हमेशा जीतते रहो ...मगर पीटने पिटने से बचते हुए ...खूब तरक्की करो मगर किसीकी उम्मीदों की लाश पर खड़े हो कर नहीं ...
खूब ऊँचे आसमान में उडो पर पैर आखिरकार जमीन पर ही टिकने है ..याद रखो ...
जिंदगी में सभी मुकाम हासिल करो ...ठीक है की पूरी तरह आदर्शवादी होना इस युग में संभव नहीं है ...पर आदर्श को अपनाने वाली सम्भावना की खिड़की खुली जरुर रखना ...!!
बहुत शुभकामनायें ...!!
महफूज़ भाई, औरों की तो जानता नहीं पर राजनीति का पहला उसूल ज़रूर है कि जिस सीढ़ी से ऊपर चढ़ो, ऊपर चढ़ने के बाद सबसे पहली लात उसी सीढ़ी को मारो...ताकि और किसी के तुम्हारे बराबर आने का खतरा ही न रहे....
जय हिंद...
महफूज़ जी ....जिन्दगी बहुत पेचीदा होती है , अभी शायद उसके कई पहलू तुम्हारे सामने आने बाकी हैं , जैसे जैसे ये आते जाएँगे , तुम्हारी राय बहुत सारी चीज़ों के विषय में बदलती जाएगी ....
जीतना सिर्फ आप नहीं बल्कि सभी चाहते हैं, भला हारना किसे मंजूर होता है? पर यदि किसी की जीत होती है तो किसी न किसी की हार भी अवश्य ही होती है। हार के बिना जीत का कुछ भी महत्व नहीं है।
सही मनुष्य वही है जो हारने का भी साहस रखे।
सही जीत वही होती है जिसका परिणाम कल्याणकारी हो।
पांडवों ने महाभारत का युद्ध जीता किन्तु अन्त में उन्हें शोक के सिवा क्या मिला?
सम्राट अशोक ने कलिंग विजय की तो क्या उन्हें मन की शान्ति मिली?
अंग्रेजों ने जीत कर अनेकों उपनिवेश बनाए, क्या उन्हें कायम रख सके?
और अन्त में आपके सवाल का जवाबः
crime का अर्थ सिर्फ अपराध ही नहीं अधर्म, दोष, पातक, पाप आदि भी होता है और SHAKESPEARE के कथन "BEHIND EVERY GREAT SUCCESS THERE IS A CRIME" ... में जीत की प्रकृति के अनुसार उपरोक्त अर्थों में से कोई भी अर्थ हो सकता है।
आपका ये आलेख पढ़कर हम सिर्फ इतना कहेंगे "बहुत कुछ सोचने पर और खुद का आंकलन करने पर मजबूर करती पंक्तियाँ "
regards
mujhe nahi lagta aap aise hai..agar sach me aise hai to kaise hai??????
mujhe to khud haar ke dusre ke muh pe khushi dekhne me maza aataa hai....fir bhi mujhe lagta hai aap aise nahi ho..shayd hum jaise hote hai doosre hume waise hi lagte hai..ya fir aapki is post ke peechhe koee raaz hai..may b aap koee question kar rahe hai.."BEHIND EVERY GREAT SUCCESS THERE IS A CRIME"????pata nahi.jo cheeze meri samjh nahi aati main usse samjhne ki koshish nahi karti...
shukriya itne achhe shabdo ka "ab to jitne ki ........
मैं समझता हूं की इन्सान को कार्य केन्द्रित होना चाहिये न कि परिणाम केन्द्रित ।
कामयाबी उद्देश्य नही है, ना ही कामयाबी सब कुछ है ।
जो लोग अत्यधिक परिणाम केन्द्रित होते हैं वे जल्द ही मानसिक अवसाद से ग्रस्त हो जाते हैं ।
सफ़लता के लिये "कुछ" भी नहीं किया जा सकता ।
क्या बात है, आपके चरित्र को पूरी तरह से उदघाटित करती है यह सोच।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
mai is lekh ko padi .sirf pdi hi nahi, kai bar padi ,or bahut vichar bhi ki .kyoki mujhe ye lekh aap jaise hai waisa nahi laga .to phir aakhir aapne aisa lekh kyo likha .jroor kahi n kahi to kuch bat hogi .syad aap kahna kuchh or chah rahe hai par wo aap likh nahi pye .kyoki mujhe jo laga is lekh padne ke bad ki jitana to har kisi ko achha lgta hai par usake liye kisi had tak jana ye achhi bat nahi lagi .agra har log jitne ki junoon me aisa hi karne lage to puri duniya me ak tawahi si aa jayegi .mujhe is lekh me garoor OR {MAI HI MAI }dikh raha hai .ho sakta hai aap jo batna chah rahe ho sayad wo mai samjh nahi pa rahi hu ..........
{SACH BOLU TO ABHI TO MUJHE COMMENT DENE E BHI DAR LAG RAHA HAI .KYO KI AAPKA LEKH THORA DHAMKI BHARA HAI.... HE HE HE HE HE HE }
TO ABHI HI MAI SORRY BOL DETI HU .....SORRYYYYYYYY. JAI HO.....
SHAKESPEARE NE JO CRIME"....BOLA HAI USAKA MATLB HAI KHUD KO MARNA JO HAMLOG KISIBHI JIT KO HASIL KARNE KE LIYE KARTE HAI
JO HAMRI TYAG HOTA HAI USE HI 'CRIME'.............
mahfooz ji ...
ye kya hai , meri samjah me nahi aaya .. maine cooments bhi padhe.. kuch jyada samjh nahi paaya ..
bhaiyaa , aap jeeto yaar , hamesha jeeto .. yahi hamri dua hai , lekin jeet ki yaatra me ek shanti honi chahiye , at the end of the day , we should noty have a feeling that we have hurt anyone. ..
main to bhiyaa ,aapka mitr hoon ..
lekin mujhe sameer ji ki tippani accha lagi , baki sabne bhi kuch na kuhc accha hi likha hai ..
yaar , ye sab chodo , prem ki kavita likho ..mujhe to wahi padhne me aanand aata hai ..
regards
vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com
aadhe ghante mein ek comment likha aur net chala gaya.. failure... lesson learnt- always save a copy on your computer before navigating to another page.
another comment coming shortly..
बहुत खूब लिखा महफूज़ भाईजान.. आप तो दार्शनिक होते जा रहे हैं.. :P
मैंने हमेशा वो पाया है ...जिसको पाने कि कोशिश मैंने की.... और अब यह आदत बन गयी है.... अब मुझे पीछे रहने में डर लगता है..
ये post पढ़ा तो लगा जैसे मैंने खुद लिखा हो इसको. अपनी भी exactly यही story है भाईसाहब.. एक कंपनी वाले जब IIT Roorkee आये थे pre placement talk के लिए तो उन्होंने presentation में बोला, "You all IITians are BSC (Bloody Selfish Creature)" तो मैंने कहा था, "yes, we are. And thats why we are here. You need to be selfish to achieve something." हमलोग कभी भी कोई काम करते हैं, बिना कुछ पाने की चाहत के नहीं करते. to be very frank, हमलोग blogging भी इसीलिए करते हैं कि लोग हम जाने, हम famous हो जाएँ. और ये जो कुछ पाने की चाहत होती है, इसे पूरा करने के लिए हम जाने अनजाने में ऐसा बहुत कुछ कर जाते हैं जो generally उचित नहीं माना जाता. आप चाहें तो इसे crime कह लें, चाहें तो न कहें. दरअसल crime किसे कहेंगे ये हमारे perception पर depend करता है. generally ये माना जाता है कि जिसे majority गलत समझती हो वो crime है. पर मुझे लगता है कि ये definition थोडी सी गलत है. क्योंकि कई cases में मजोरिटी को मुद्दे की इतनी समझ नहीं होती कि वो सही गलत समझ सके. मेरा मानना है कि crime वो है जिससे majority का कोई नुकसान होता हो. अगर किसी act या behaviour से किसीको फायदा हो और नुकसान किसी का न हो रहा हो, तो उसे majority गलत समझती है तो समझे, मैं उसे crime नहीं मानता.
लम्बी बात हो गयी. अभी इतना ही, बाकी बाद में...
वाणी जी के 'भाई' जी,
सब आपकी इस पोस्ट से इतने खौफज़दा हो गए हैं कि मुझे लगा क्यूँ न आपको ;
'ब्लॉग जगत का डान'
ही मान लिया जाए...
हा हा हा हा
महफूज अली साहब,
पहले तो कहना चाहूंगा कि मैं आपकी बात से शत-प्रतिशत सहमत नहीं हूँ !
"Success is the ability to go from one failure to another with no loss of enthusiasm." Winston Churchill
दूसरे शब्दों में कहूँ तो "तुम्ही तुम हो तो क्या तुम हो, हमी हम है तो क्या हम है"
सफलता का रहस्य उद्देश्य की भक्ति है ! सफलता की प्राप्ति प्रतिभा से मिलती है और प्रतिभा अपने आप में कुछ नहीं है, अगर उसके साथ दृड़ संकल्प न हो तो !
लेकिन श्रीमान,
क्या इंसान इस सफलता को प्राप्त करने के लिए कुछ भी कर ले, किसी भी हद तक गुजर जाए ! नहीं अली साहब, कम से कम हम हिन्दुस्तानियों के संस्कार में तो यह बात नहीं थी (वो बात और है कि आज के ज्तादातर लोग आपकी लिखी शैली में ही सफलता प्राप्त करना चाहते है ! अमेरिका, अफगानिस्तान में इतने सालो से झख मार रहा है, जोर्ज बुश को तो अगर आप मिल जाते तो पांच मिनट में उन्हें अपने मकसद में सफलता मिल सकती थी ! उन्हें अलकायदा और लादेन को ही तो ख़त्म करना था ! पाक-अफगान सीमा पर दो-चार परमाणु बम गिरा देते बस ! निर्दोष मरते, उससे उसे क्या लेना था, उसे तो आपकी तर्ज पर सिर्फ अपने मकसद में सफलता हाशिल करनी थी ! मगर वह भी कुछ नहीं कर सका क्योंकि सफलता हासिल करने के लिए कुछ भी कर गुजरना इंसान होने के नाते उसके कुदरती अधिकारों में नहीं आता !
ज्यादा उपदेश नहीं दूंगा लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि एक साव्भौमिक सफलता उसी इंसान को मिलती है जो उस दिशा में इमानदारी से दायरों में रहकर प्रयत्नशील हो, इंसान को सफलता गलत तरीके अपनाकर जल्दी भी मिल जाती है(जैसे आज कल के नेता ) लेकिन आप माने या न माने वह क्षणिक होती है ! Victory goes to the player who makes the next-to-last mistake .
अब आपके सवाल पर आता हूँ ! आपने कहा " बड़ी सफलता बड़े अपराध से हासिल होती है " ! "अपराध" किसी भी रूप में हो सकता है , वह एक बुद्धिमान जीवन साथी के रूप में हो सकता है, वह एक सच्चे दोस्त के रूप में हो सकता है वह एक अच्छे माता-पिता के रूप में हो सकता है, वह धन के दुरुपयोग के रूप में हो सकता है वह बल के रूप में हो सकता है.... इत्यादि इत्यादि ! लेकिन भाई साहब, मुझे एक सवाल का इमानदारी से जबाब दो कि अभी हमने गांधी जयंती मनाई ! लाल बहादुर शःस्त्री की जयंती मनाई ! और जहां तक हमने जाना सुना है उन दोनों युग पुरुषों ने महान सफलता हासिल की, तो क्या आप बता सकते है कि उन्होंने कौन सा बड़ा अपराध किया था जो उन्हें यह सफलता हासिल हुई ?
अली साहब, इस दुनिया का दस्तूर है कि एक वह इंसान जो दूसरे इंसान को मारता है हत्यारा कहलाता है, एक वह इंसान जो लाखो को मारता है वह विजेता कहलाता है, और एक वह जो सबको मारता है खुदा कहलाता है ! हर इंसान का धेय होता है जीवन में सफलता हासिल करना, मगर उस सफलता का आनंद ही कुछ और है जो दूसरो को दुःख पहुंचाए बिना हासिल की जाती है !
पर चाहे जो भी कह लूं लेकिन आपका यह विचारोतक प्रयास सराहनीय था ! और अंत में ; "There are only two tragedies in life: one is not getting what one wants, and the other is getting it." - Oscar Wilde
महफूज जी, आपने जीत को कुछ इस कदर व्यक्त किया की आपका सवाल सबकी नजरों से ओझल हो गया, जिसमें यदि किसी भी सफलता की प्राप्ति के लिये(अपराध) होता है (कहीं उसका रूप यह तो नहीं) हमारी नजर सिर्फ लक्ष्य पर होती है कई बार अपनों की खुशी, खुद की खुशी सबको नजरअन्दाज कर देते हैं और मन में जीतने की लगन पर ही ध्यान होता है ।
- आजकल यह भाव सर्वत्र देखने को मिलता है। खासकर युवावर्ग में बस जीत के अलावा कुछ और सुनना ही नहीं चाहता। हम सबसे ऊपर रहें प्रतियोगी न होकर प्रतिद्वंदी बन जाते हैं।
- सिर्फ़ जीतने का भाव यह बताता है कि हम कहीं न कहीं हारा हुआ महसूस कर रहे हैं और जीतना चाहते हैं। अतृप्त हैं। यूँ भी कह सकते हैं कि संतोष के भाव का जन्म ही नहीं हुआ मन में।
- कोई भी कार्य संपूर्ण करना सफलता है। पर संपूर्णता प्राप्त करने के लिए वो कमी और साधन पहले समझ लिए जाते हैं जिनसे प्रकिया पूरी होती है। उसे ही योजना कहते हैं। योजना का उद्देश्य ही जीत के तरीके निश्चित करता है।
- जीतने की इच्छा करना महात्त्वाकांक्षा है जबकि किसी भी तरह जीतने की इच्छा करना अति महत्त्वाकांक्षा है जो अपराध करने को जन्म देती है। इसलिए जीवन में हारना अति आवश्यक होता है क्योंकि सहनशीलता हार का भाव ही दिला पाती है।
- परीश्रम और सही तरीकों से मिली जीत परम सुख देती है।
अपराध करके प्राप्त जीत तानाशाही जैसा सुख देती है।
महफूज भाई
शेक्सपीयर ने जो भी लिखा था वो ठीक ज़रूर रहा होगा....अपराध और सफलता का यह सम्बन्ध समझना इतना असं भी नहीं लग रहा है.
waqt ki har shai gulaam... :)
ye jeet ki adat hitlar, sikandar, saddam hussain, samrat Ashok aur pahalwan Gama ko bhi thi. jeetna maksad ho to achchha hai aur sab aisa soch len to desh jaroor tarakki karega lekin agar jeet ka jajba 'by hook or by crook' wala ho jaye to wo jeet jeet nahi haar hai bhai jaan.
chhota munh badi baat kah di muafi chahta hoon.
यहां अपराध से मतलब है अपने जमीर से समझौता ...कितना स्ट्रेच कर सकते है आप पर निर्भर है ..
Aap apne jeetne ki aadat k chalte kya haar rahe hain...aapko pata bhi nahi h... aap rishte haar rahe hain janaab... zindagi ki asali poonji...kabhi haar kar dekhiye, bas yun hi kisi ko jitaane k liye... khushi milegi....
" " mahfooz bhai aapko aapki jeet ke liye badhai "
----- eksacchai { AAWAZ }
जीत की इच्छा ही सफलताओ की ओर ले जाती हॆ,पर यह आदत दायरो मर्यादाओ के बीच ही होनी चाहिये.
बहुत सही जनाब.
अच्छा लगा जानकर कि आपको जीत के सिवा कुछ नहीं चाहिये ................ पर आपको नहीं लगता जीत और हार एक ही सिक्के के दो पहलू हैं ............ ये तो जीवन का नियम है कभी दिन कभी रात ........... जीवन में हर चीज़ को सहज लेना ही जीवन है ......... जो आये उसको ग्रहण करना ही पुरुषार्थ है ............ जीत को सीधे तरीके से प्राप्त करना ही उचित है ...... ऐसी जीत जिसमें अपना आप अपने को कटोचता रहे ............. हार से भी बत्तर है ........
Jeet kee apanee mahatta hai par harana bhee ek kala hai aur kabhee kabhee har bhee bahut khushee detee hai. Aur kisee bhee had tak jana to mai nahee samaz saktee. mere aur aapke beech generation gap jo hai. Par aapko jeet bahut mubarak ! Aise hee jeetate rahen. par apanee har manane ke liye bhee jigara chahiye hota hai.
Is post ko padh kar lagta hai ki likhne wala kitne utar chadhaw se guzra hai,parantu high superiority humesha bhayanka inferiorty ka parichayak hoti hai.aur wo hi jhalak raha hai is poore post me,kholkhla dumbh.Dil hi janta hai ki kya guzri hai us per, aur dimag jab maaaane se inkar kar de to halat gambheerr hote hain,ye post khud writer ke liye chunauti hai..
Galiyan dena, marna aur peetna ya pitwana..wo bhee tab jab us insan se jeet na pao.. ye kis sabhyata ki nishani hai. gussa huamre sacchhe vyaktitv ko bahar lata hai mahfooz sahab.gali dena, jhagda karna aur mar peet karna hi aapka asli vyaktitva hai.sharmsar nahi hote aaplog aise post per comment karte hue, wo bhee tareefon ke pull bandte hue? kya aap logon ka bhee yahi hai asli vyaktitva??
"अब तो जीतने की आदत हो गयी है मुझे तो......"
कुछ ऐसे जीते हम
की जीते 'जीते' हम !
- सुलभ (यादों का इंद्रजाल...)
यह ज़ज़्बा ज़ायज़ है, ग़र इसका नशा न हो जाये !
Aapke jazbe ko salaam karti hu...bahut khub...itni saaf dili se sach likhne k liye...
अपूर्व जी की टिप्पणी से शत-प्रतिशत सहमत, बाकी बिना एक पुरकसिस हार के एक बड़ी जीत की काबलियत खो देते हैं आप,,,,और हाँ उड़न तश्तरी जी की बात कि किस 'जीत' की बात कर रहे है आप...?...खैर नज़र ना लगे आपकी 'जीत' पर....अपनी तो अनगिन शुभकामनायें....आपको की इश्वर आपसे बार-बार ऐसी पोस्ट लिखवाए,,इतनी खुशियाँ बख्शे.....और सैकड़ों टिप्पणियां आयें......
अगर आप वाकई ऐसे हैं...
तो ..
हम जैसे बिलकुल नहीं हैं...
हमें हारने की आदत है..
सिर्फ हारने की..
ab modiration lagaa kar to aur bhi kamaal kar diyaa aapne
hmmm sahi me aapne jo ye aage badne ke aur kamyabi hasil karne ka jo trika aapna ya hai ye bilkul hi sahi hai... kaha jata hai ki kabhi kabhi har me bhi jit hoti hai ab logo ka sochne ke upar nirbhar hai.... but jit to har hal me hamari hi hai n...waise to mera bhi ye bachpan se hi soch hai ki har hal me jit hamari ho... aur maine aapni jit hasil bhi ki hai..... aisa nhi hai ki hara nhi hai maine par us har ke bad mai jitne ka kosis karta hun jiske wajah se hara hun aur jitta bhi hun..ab to aisa lagta hai ki jitna hamari phitrat me hi hai..harna hamari phitrat me hi nhi ..... abhi bahut kuchh hai aise kam hai jisko maine karne ka than rakha hai par kabhi kabhi dar bhi lagta hai ki agar har gya to jitna bahut muskil hai par main jo thaan leta hun wo karta hun chahe jo nirday nikle...
Bas aaplog se yhi mujhe sahara chahiye ki aap log bas upar wale se duaa karna mere kamyabi ke liye.. aur mere kamyabi ka sabse abhik srey mai aapne maa aur papa ko dena chahunga kyo ki wo sath nhi dete to aaj mai jo bhi kuchh bol rha hun aur karne ka soch rha hun iske layak sayd mai nhi rhata...
aur mai aapne mami aur papa ke liye hi ye sab kar rha hun aur unke name ke liye ..... bas yhi duwaa karna ki mai aapne samne aane wale har kathinaeyo ka samna karte huwe aake aapne manzil ko pa saku ......iske liye mai aap sabaka sada aabhari rhunga....dhanyvad
hmmm sahi me aapne jo ye aage badne ke aur kamyabi hasil karne ka jo trika aapna ya hai ye bilkul hi sahi hai... kaha jata hai ki kabhi kabhi har me bhi jit hoti hai ab logo ka sochne ke upar nirbhar hai.... but jit to har hal me hamari hi hai n...waise to mera bhi ye bachpan se hi soch hai ki har hal me jit hamari ho... aur maine aapni jit hasil bhi ki hai..... aisa nhi hai ki hara nhi hai maine par us har ke bad mai jitne ka kosis karta hun jiske wajah se hara hun aur jitta bhi hun..ab to aisa lagta hai ki jitna hamari phitrat me hi hai..harna hamari phitrat me hi nhi ..... abhi bahut kuchh hai aise kam hai jisko maine karne ka than rakha hai par kabhi kabhi dar bhi lagta hai ki agar har gya to jitna bahut muskil hai par main jo thaan leta hun wo karta hun chahe jo nirday nikle...
Bas aaplog se yhi mujhe sahara chahiye ki aap log bas upar wale se duaa karna mere kamyabi ke liye.. aur mere kamyabi ka sabse abhik srey mai aapne maa aur papa ko dena chahunga kyo ki wo sath nhi dete to aaj mai jo bhi kuchh bol rha hun aur karne ka soch rha hun iske layak sayd mai nhi rhata...
aur mai aapne mami aur papa ke liye hi ye sab kar rha hun aur unke name ke liye ..... bas yhi duwaa karna ki mai aapne samne aane wale har kathinaeyo ka samna karte huwe aake aapne manzil ko pa saku ......iske liye mai aap sabaka sada aabhari rhunga....dhanyvad
Mahfuz bhai, jeet ko to apne adat bana li hai. ye ek positive chij hai. par isko is had tak apne upar havi diya jaye ki iske bina dunia bejar lage to kuchh negativeness a jati hai isme. aur apoorv ji ki baate bhi gaur karne layak hain. ham sab jeet chahte hai. jo utne kosis karta hai. wo hi jitata hai. par sach kahu to mai bhi akhir jeet hai kya. kis baat ko jeet kaha jaye aur kise haar kaha jaye, aj tak samjh nahi paya.
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