Kashmir: Kherishu in Land of turbulence... Welcoming, Courtship,
Honeymooning and Varishu
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*"Welcome* *to Kashmir*" this I had a warm welcome by CRPF constable Mangal
Singh at Srinagar airport exit gate last year. It was my first visit to the
Sta...
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तृप्ति ने शादी से पहले अपने होने वाले पति से पूछा ............ 'क्या तुम वर्जिन हो'?
शायद अटपटा लगा था संदीप को यह सुनकर, पर जल्द ही संभलकर बोला।
"......और तुम.......?" अबकी सवाल उसने दागा...........
जवाब बोल्ड था............... ।॥
खुलेपन ने संवाद को तो विस्तार दे दिया, पर मन् और दिमाग के किसी कोने में विश्वास की खिड़की फिर भी न खुल सकी।
(प्रस्तुत लघुकथा सत्य घटना पर आधारित है....)
शुक्रवार, 4 दिसंबर 2009
BOLD अत्याधुनिक नारी.....: एक लघुकथा.....
तृप्ति ने शादी से पहले अपने होने वाले पति से पूछा ............ 'क्या तुम वर्जिन हो'?
शायद अटपटा लगा था संदीप को यह सुनकर, पर जल्द ही संभलकर बोला।
"......और तुम.......?" अबकी सवाल उसने दागा...........
जवाब बोल्ड था............... ।॥
खुलेपन ने संवाद को तो विस्तार दे दिया, पर मन् और दिमाग के किसी कोने में विश्वास की खिड़की फिर भी न खुल सकी।
(प्रस्तुत लघुकथा सत्य घटना पर आधारित है....)
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मेरे बारे में
- डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali)
- पेशे से प्रवक्ता और अपना व्यापार. मैंने गोरखपुर विश्वविद्यालय से एम्.कॉम व डॉ. राम मनोहर लोहिया विश्वविद्यालय,फैजाबाद से एम्.ए.(अर्थशास्त्र) तथा पूर्वांचल विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. की उपाधि ली है. I.G.N.O.U. से सन २००५ में PGJMC किया और सन् 2007 में MBA किया. पूर्णकालिक रूप से अपना व्यापार भी देख रहा हूं व शौकिया तौर पर कई कालेजों में भी अतिथि प्रवक्ता के रूप में अपनी सेवाएं देता हूं. पढ़ना और पढ़ाना मेरा शौक़ है. अंग्रेज़ी में मुझे मेरी कविता 'For a missing child' के लिए अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है. मेरी अंग्रेजी कविताओं का संकलन 'Eternal Portraits' के नाम से बाज़ार में उपलब्ध है,जो की Penguin Publishers द्वारा प्रकाशित है. अंग्रेजी में मैंने अब तक क़रीब 2600 कविताएं लिखी हैं. हंस, वागर्थ, कादम्बिनी से होते हुए ...अंतर्राष्ट्रीय हिंदी मासिक पत्रिका 'पुरवाई' जो की लन्दन से प्रकाशित होती है ...में प्रकाशित हुआ, तबसे हिंदी का सफ़र जारी है... मेरी हिंदी कविताओं का संकलन 'सूखी बारिश' जो की सन् 2006 में मुदित प्रकाशन से प्रकाशित है... मैं करता हूं कि मेरा ब्लॉग मेरे पाठकों को ज़रूर अच्छा लगेगा... आपकी टिप्पणियां मेरा हौसला बढ़ाती हैं. इसलिए मेरी रचनाएं पढ़ने के बाद अपनी अमूल्य टिप्पणी ज़रूर दें.मेरा प्रमुख ब्लॉग 'लेखनी’ है.
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84 टिप्पणियाँ:
bahut achhe racanaa hai sahee kahaa keval dikhave ke liye hi ham adhun nik kahalate hain magar dil se 50 varsh peechhe chalate hain badhai
hmm.........sirf adhunik dikhne se koi adhunik nahi ho jata...satya hai.
Behtreen hai... Ham har baar Zamane ko Badalte hain.. Lekin Khud Kab Badlenge pata nahi..
सब मिथ्या है।
इसीलिए आजकल शान्ति लुप्त है।
बहुत बढ़िया!
ईंट का जवाब पत्थर से!
"शठे साट्ठयम् समाचरेत्"
सत्य को उदघाटित करती रचना । बहुत सुन्दर भैया !!!!
Please excuse my ignorance, but i am not being able to get this story right. So the boy wasn't a virgin or the girl wasn't virgin?
shilpa
नये नये ट्रेंड है लोगों के प्रश्न और उत्तर में भी नये जमाने के साहस परिलक्षित होते है..बड़े साहस की बात है संदीप को भले बहुत अच्छा लगा होगा तृप्ति के इस बोल्ड जवाब पर परंतु आगे इसे अपनाना शायद मुश्किल ही होगा..पर फिर भी हम कुछ नही कह सकते भाई लोगो के अपने अपने तरीके है देखने के सोचने के और समझने के...
बढ़िया सत्य कथा..अच्छी लगी बदलते दौर की एक बढ़िया कहानी सुनकर..धन्यवाद भाई..
मगर बोल्ड क्या -क्लीन बोल्ड ?
मगर बोल्ड क्या -क्लीन बोल्ड ?
अच्छी रचना , बधाई !
बोल्ड्नेस जब बोल्ड्नेस के साथ स्वीकार किया जाये तो --
आधुनिक दिखने वाला आधुनिक हो जरूरी तो नहीं
बोल्डनेस ने तो धरती ही हीला रखी है
अब हम क्या कहे? बस :) यानि सही जबाब
अरे महफूज बाबू,
हम बोलेंगे तो बोलोगे कि बोलती है ...इसलिए हम कुछ नहीं बोलेंगे.. !!!
विश्वास की खिड़की खुलेगी कैसे ! वो बन्द हुई तो ही तो ये बोल्डनेस आयी !
बेहतरीन लघुकथा । आभार
महफूज भाई इस सीन में प्रश्न ही पर्याप्त है गुड गोबर करने के लिए । उत्तर कुछ खास महत्व नहीं रखता ।
और रही बात आधुनिक होने की तो यदि वस्तुत: एडवांस होंगे लोग तो ऐसे प्रशन ही नहीं उठाये जायेंगे ।
हिमांशु जी ने बिल्कुल सटीक कहा है ।
अच्छा है ऐसा सवाल जो बोल्ड कर रहा है ...
नहीं तो यहाँ सब सह्बाग की तरह सेंचुरी लगाते
हैं सब ...
तभी कहा गया है - हर चेहरे में दस चेहरे हैं, जिसे देखो हजार बार देखो..
इस कहानी को पढ़ कर एक बात मन में उठी...
विश्वास शायद पहले से ही नहीं था....इसीलिए ये प्रश्न किया गया.
और जब उत्तर मनमाफिक नहीं मिला तो पुरुष का अहम् यानी कि संदीप (नायक ) को कहीं मर्माहत कर गया.
ज़माना बदल रहा है ,सोच भी बदल रही है...लेकिन अभी भी भारतीय सोच इतनी नहीं बदली है कि ऐसी आधुनिकता को
सहजता से स्वीकार किया जाये..
कहानी सोचने पर मजबूर करती है... अच्छी प्रस्तुति है.
jis tareeke se aapane likhaa use hee
saahity kahaten hain pragatishelon men yahee kameen hai
यही तो होता है जब अधिक बोल्ड बनने की छद्मकोशिश की जाती है। मैंने भी ऐसे हादसे होते देखे हैं जब हकीकत जानने के बाद नौबत तलाक तक चली गई॥
ये विश्वास की खिड़की फिर भी नही खुली , जानते हो क्यों?
औरत और समाज दोनों पुरुष के शादी से पहले या बाद के
सम्बन्धो को रो कर या हँस कर स्वीकार लेता है.
क्या एक औरत के लिए itne बड़े दिल गुर्दे हैं उसी समाज और पुरुष के पास .
नही हैं, किसी स्थिति मे वो 'तृप्ति ' की स्वीकृति को माफ़ नही करता.(यदि ऐसा कुछ था तो....)जीवन भर अपने किये की सजा जरुर उसे भुगतनी पडती,वो गलती चाहे उसने की हो या उसके साथ की गई हो जिसे उस लडकी की आधुनिकता ,बोल्डनेस नाम दिया जा रहा है,
वो तब मानी जाती जब वो स्वीकार कर लेती .......
बोल्डनेस तो नायक की मानी जाती जब वो ये कहता 'जो हुआ, छोडो, अब हम एक दुसरे के प्रति इमानदार रहेंगे.'
हम इन्सान है ...भूल हो जाती है,तुमने की तो भी भूल थी मैंने की तो भी..,समाज के कुछ नियम बड़े सुंदर बने हुए हैं,हमे मानना था ...पर ..एक नई शुरुआत करें '' .
संदीप की जगह प्रश्न तृप्ति को पूछना चाहिये था। क्योंकि लडकियों के मुक़ाबले लडके कम वर्जिन होते हैं। ऐसे में आपने वर्जिन होने का जो counter question तृप्ति का तरफ दागा था उसमें पुरूषों को ही ऊँचा रख दिया।
कोई अच्छी रचना नहीं है। वर्जिनिटी के बारे में चिन्ता छोडिये। अपनी अपनी वर्जिनिटि की रक्षा सब कर लेंगे।
जैसे को तैसा मिला...
इतने कम शब्दों में इतनी बढिया लघु कथा...भय्यी वाह!...मज़ा आ गया
हम्म...उम्मीद है इस माईक्रो कथा ने बहुत सारे दिमाग की खिड़कियाँ ही नहीं खोली होंगी...अन्दर लगे जाले भी साफ़ कर दिए होंगे.
तभी पूरी पोस्ट बोल्ड में लिखी हुई है
बी एस पाबला
समझ नहीं आई...
जहां सवाल होते हैं वहां विश्वास नहीं होता और जहां विश्वास होता है वहां सवाल
नहीं होते...
जय हिंद...
सिर्फ चन्द वाक्यों की इस लघुकथा नें बहुत कुछ सोचने पर विवश कर दिया.....
आजाद ख्याली
अभी इतनी भी
आजाद नहीं....
बहुत कुछ सोचना होगा उस बोल्ड मार्का को अन्तःमन पर लगाने के पहले...
बेहतरीन लघुकथा!!
बदलते परिवेश को दर्शाती सटीक लघुकथा. स्वयं राम जैसा चरित्र अपनाये बिना सीता जैसी चरित्र वाली पत्नी की कामना कैसे की जा सकती है ?
क्षद्म आधुनिकता पर करारा व्यंग्य करती यह लघु कथा ...महफूज़ भाई का ये रूप मेरे लिए नया है ...बना रहे ....शुभकामनायें ...!!
प्रौढ़ के लिए भले ही ऐसे संवाद रोमांचित करने वाले हों लेकिन आज के युवाओं के लिए यह आम बात है। इससे नए बनने वाले घर में विश्वास की खिड़की मजबूत ही होती है। शुरूवात सच से हो यह तो अच्छी बात है।
-जंग लगे विचारों को धार देने के लिए बधाई।
आज के जमाने में भी विश्वास नाम की चिड़िया होती है क्या?
पर ये बोल्ड का रंग लाल क्यों है ?
महफूज भाई, एक पक्ष इस गूढ़ बात का यह भी हम कह सकते है कि आज सभ्यता के शिखर पर चड़ी हमारी संस्कृति यहाँ तक पहुँच गई है !
अब देखो न भैया, बहुत लोगों को समझ में ही नहीं आई।
ऐसा क्यों लिखते हो भाई ;)
बहुत ही कम शब्दों में व्यक्त यह सत्य कथा एक दूसरे का नजरिया, प्रस्तुति अनुपम ।
its nic to see a poetic touch in a story n more immpressive when it is a short story,GAGAR MAIN SAGAR,u r fullfilling that,keep it up,i hope one day i have an honour to meet u.
बहुत ही अच्छी सशक्त लघु-कथा लिखी है महफ़ूज़ जी.कथ्य और कथन दोनो ही मन के साथ दिमाग को भी उद्वेलित करते हैं.
हम चाहे वो स्त्री हों या पुरुष दूसरे व्यक्ति से भले होने की आशा कैसे लगा सकते हैं जबकि हम स्वंय पापमुक्त ना हों.
यहाँ पाप मुक्त होने का मतलब सिर्फ़ 'वर्जिनिटी' से नहीं है.
महफूज भाई कहीं ये आपकी अपनी घटना तो नहीं?
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अदभुत है मानव शरीर।
गोमुख नहीं रहेगा, तो गंगा कहाँ बचेगी ?
man ki khidkiyan ab bhi band hi hain , soch ke darwazon par aaj bhi aadam ke zamane ka jung laga huaa hai to phir kahan ki boldness aur kahan ki adhunikta?
आपकी रचना और उस आई प्रतिक्रियाएं पढ़कर लगाकि पढ़ने-लिखनेवाला तबका भी ऐसी बातों का हौव्वा बना सकता हैं। लगता है कि आपकी कहानी के पात्रों को सच बोलनेवाले जीवनसाथी नहीं बल्कि झूठ लबादा ओढ़े साथी चाहिए नहीं तो सच सुनकर विश्वास टूटता नहीं बल्कि बढ़ता कि कुछ भी हो इंसान कमसेकम सच्चा है। आखिर में सिर्फ़ इतना कि वर्ज़िनिटी खोना या शारीरिक संबंध रखना हमेशा ग़लत नहीं तरीक़े से हो या ग़लत ही हो ज़रूरी नहीं।
nirmala ji ke vichar bahut hi umda hai ,hum kitne hi aage nikal jaaye magar thode bahut ansh me kahi na kahi apni sanskriti je jude huye paaye jaate hai .humare ek sawal kai baar kai sawal khada kar dete hai .jahan bolti band ho jaati hai aese me bina soche kuchh kahna uchit nahi ,chahe wah varg koi bhi ho ,kyonki bhavnaye sabhi ki ek hi hai .
kya kahe?
kahin na kahin hum bahut pichhade hai. khair....
aadhuniktaa ki baaten aur apni zindagi me use sweekarna ......sahaj nahi
बहुत बढ़िया!
ईंट का जवाब पत्थर से!
बहुत बढ़िया!
ईंट का जवाब पत्थर से!
कुछ ही लाइनों में कही कहानी पर गहरे सत्य को खोलती ...... बहुत ही लाजवाब ........
शायद सवाल ही बेमानी सा है. फ़िर भी समझ अपनी अपनी!
रामराम.
महफूज़ भाई ने जब भी लघुकथा लिखी है..बस कहर ही गिरा दिया है....
"जवाब बोल्ड था.."
ओह...पर एक बात कहना चाहता हूँ..स्वीकृति दर स्वीकृति की ईमानदार आवृति के बाद एक maturity पर विश्वास आने भी लगना चाहिए..ये अब दिखने लगा है..खासकर जब दो कामकाजी सम्बन्ध रखते हैं..और यदि सफल रहते हैं..वैसे यह निश्चित ही rare है ...!!! बेहतरीन लिखा है..महफूज़ भाई..!
behatrin aapka jawaab nahi sach me behad bold
गुगली, बीमर , बाऊंसर, स्पिन, ..........यार था क्या ये.......एक साथ छ की छ की गिल्लियां साफ़ .....दोनों तरफ़ की.......इसे कहते हैं क्लीन बोल्ड ....नहीं नहीं यार क्लीन स्वीप ......
bahut bullet rachna hai bhaijaan.
"आपकी रचना और उस आई प्रतिक्रियाएं पढ़कर लगाकि पढ़ने-लिखनेवाला तबका भी ऐसी बातों का हौव्वा बना सकता हैं। लगता है कि आपकी कहानी के पात्रों को सच बोलनेवाले जीवनसाथी नहीं बल्कि झूठ लबादा ओढ़े साथी चाहिए नहीं तो सच सुनकर विश्वास टूटता नहीं बल्कि बढ़ता कि कुछ भी हो इंसान कमसेकम सच्चा है। आखिर में सिर्फ़ इतना कि वर्ज़िनिटी खोना या शारीरिक संबंध रखना हमेशा ग़लत नहीं तरीक़े से हो या ग़लत ही हो ज़रूरी नहीं।"
I agree with Diptee
इसी थीम पर कभी एक कहानी पढी थी। ये भी कम शब्दों में खूब रही।
pass... next par aate hain... bahut pending pada hua hai....
Jai ho......
हाथी के दांत ,
दीखाने के और चबाने के अलग अलग -
ये कहावत याद आयी
" gaherai bahri baat ko kum alfaz me prastut kiya hai .aapko dher saari badhai "
----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
" gaherai bahri baat ko kum alfaz me prastut kiya hai .aapko dher saari badhai "
----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
देखा असर !
बरखुरदार कहानी अच्छी तो लगी लेकिन अधूरी :) .
आगे और जोड़ देते ,
दोनों एक साथ :
चलो अब काम आसन हो गया :):):)
ab aage aage dekhiye hotaa hai kyaa !! aage kaa haal bhi batate rahiyega!!!
आधुनिक होने और दिखने में बहुत फर्क होता हैं .
बहुत सुंदर लगा आपका ये पोस्ट जो बिल्कुल अलग सा लगा! सत्य को आपने बड़े ही सुन्दरता से शब्दों में पिरोया है!
महफूज जी
बदलते दौर को आईना दिखाती लघु कथा है . इतने कम शब्दों में इस से अच्छी रचना मिलना मुश्किल है .
आप मेरे सृजन में साथ हुए हैं .बहुत शुक्रिया .
सब अपने अपने झूठ को बचा कर रखना चाहते हैं, जब कभी सच बोलने की शर्त आये तो खिड़कियां बंद.
अक्सर ये सवाल पहले आदमी पूछता है.यहाँ क्रम का बदलाव भी कुछ कहता है.
bilkul haqeeqat!
लघु कथा.. पर सटीक और सत्य...
आभार..
यह रचना वाकई "रचना" की भी बाप है.... बहुत ही सुन्दर!!!
वाह महफूज़ भाई गड़बड़ तो आपने पहले ही कर दी एक बर्र के छत्ते में हाथ डाल कर। अरे भाई अगर आप संस्कारों में पले बढे थे तो इस छूत की बीमारी से दूर ही रहना था
भाई राखी सावंत और मल्लिका सहरावत के देश में और क्या उम्मीद रखेंगे। पर ये बात अब पक्की समझें की पुरुषों को अब कमर कस लेनी चाहिए आगे इससे भी मुश्किल सवालों का जवाब देने के लिए। ये तो जनाब जोर का झटका बहुत जोरों से लगा । धन्यवाद सारा दिन सोचने के कुछ मिल गया । अरे हाँ इसके आगे क्या हुआ ....... ?
खुले विचारो के दौर मे अब तो सिर्फ नंगई का ही जमाना रह गया है।
राधे राधे
वसीम बरेलवी की एक ग़ज़ल का एक मिश्रा है की "बहु बेबाक आँखों में कोई रिश्ता नहीं रहता"
बात बिलकुल खरी है.........ब्लॉग पर इस तरह का लेकहं पहली बार देखा.
बदलते वक़्त की बात लिखी है आपने ..
मन की गांठें ऐसे bold भर बन जाने से नहीं खुला करती | सुन्दर लघु कथा |
महफूज़ जी ,
क्या कहूँ ....भावनाओं को जब चोट लगती है तो इस तरह के ख्याल आ जाते हैं ....जहां तक वर्जिन का सवाल है आज के आधुनिक युग में शायद ही कोई मिले .....बस विवाह या दोस्ती की गाड़ी सच्चाई और विश्वास पर ही चल सकती है अगर वो भी नहीं हैं तो अल्लाराखा .......!!
deri se aane ki kshmaa....!!
जहां विश्वास होता है वहां सवाल
नहीं होते.
अच्छी रचना.
आपको सैल्युट भैया !!!!!
(अगली पोस्ट में टिप्पणी का आप्शन बंद अतः यहाँ लिखना पड़ा)
Zayadatar Ladka Ye Prashan Pahle Poochta Hai...Khair Badlaaw To Samay Ki Maan Hai...
ये विश्वास की खिड़की फिर भी नही खुली , जानते हो क्यों?
औरत और समाज दोनों पुरुष के शादी से पहले या बाद के
सम्बन्धो को रो कर या हँस कर स्वीकार लेता है.
क्या एक औरत के लिए itne बड़े दिल गुर्दे हैं उसी समाज और पुरुष के पास .
नही हैं, किसी स्थिति मे वो 'तृप्ति ' की स्वीकृति को माफ़ नही करता.(यदि ऐसा कुछ था तो....)जीवन भर अपने किये की सजा जरुर उसे भुगतनी पडती,वो गलती चाहे उसने की हो या उसके साथ की गई हो जिसे उस लडकी की आधुनिकता ,बोल्डनेस नाम दिया जा रहा है,
वो तब मानी जाती जब वो स्वीकार कर लेती .......
बोल्डनेस तो नायक की मानी जाती जब वो ये कहता 'जो हुआ, छोडो, अब हम एक दुसरे के प्रति इमानदार रहेंगे.'
हम इन्सान है ...भूल हो जाती है,तुमने की तो भी भूल थी मैंने की तो भी..,समाज के कुछ नियम बड़े सुंदर बने हुए हैं,हमे मानना था ...पर ..एक नई शुरुआत करें '' .
"जवाब बोल्ड था.."
ओह...पर एक बात कहना चाहता हूँ..स्वीकृति दर स्वीकृति की ईमानदार आवृति के बाद एक maturity पर विश्वास आने भी लगना चाहिए..ये अब दिखने लगा है..खासकर जब दो कामकाजी सम्बन्ध रखते हैं..और यदि सफल रहते हैं..वैसे यह निश्चित ही rare है ...!!! बेहतरीन लिखा है..महफूज़ भाई..!
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