दूसरा इंसिडेंट हुआ यह कि पिछली पोस्ट लिखी थी एक्सिस बैंक के बारे में... तो एक्सिस बैंक में मोनिका नाम कि लड़की है... मुझे उसे अपनी कुछ डिटेल्ज़ मेल करनी थी... वो मैंने उसे कर दी... लेकिन हुआ क्या कि मैंने अपने जीमेल में सिग्नेचर में अपने ब्लॉग का लिंक दिया हुआ है... वो लिंक भी उसके पास चला गया... मैं एक्सिस बैंक मोनिका के चैंबर में पहुंचा दूसरे दिन ... तो मोनिका ने बहुत प्यार से मेरी धोयी ... वो भी बिना पानी के... उसने मेरा पहले बैंक का काम किया... फिर मुझसे मेरी हौबीज़ के बारे में बात करने लगी... मैंने बताया कि रीडिंग, राईटिंग और ट्रैवलिंग मेरी हौबी है... फिर उसने मुझसे लिट्रेचर पर भी बहुत सारी बातें की... डैन ब्राउन से लेकर ... प्रेमचंद, प्रेमचंद से लेकर मिल्टन जॉन, मिल्टन जॉन से गोर्की.. और भी बहुत सारी बातें... उसने सब्जेक्ट्स पर भी बातें की.. मैं बहुत इम्प्रेस्ड हुआ... और जब चलने को हुआ तो कहती है कि आपका ब्लॉग पढ़ा था... मेरा हाल ऐसा हुआ कि एयर-कंडीशंड कमरे में भी कान के पीछे से शर्म के मारे पसीना चू गया... मैं वापस बैठ गया... और आधे घंटे तक उसे दुनिया भर के एक्स्प्लैनैशन देता रहा ... मेरे यह समझ में आ गया.. कि कभी भी किसी लड़की को अंडर-एसटीमेट नहीं करना चाहिए... साला! यह सुपीरियरटी कॉम्प्लेक्स भी ना ... जो ना करा दे... मोनिका समझ गयी कि मैं अब अनिज़ी फील कर रहा हूँ... मैं वही सोचा कि बहुत बुरे तरह से मोनिका ने धो दी... लेकिन शाम में मोनिका का फ़ोन आया... हंस रही थी... .......उसने बहुत अच्छे से काम-डाउन किया... मैं जब बैंक से बाहर आया था... तो यह इंसिडेंट सबसे पहले अजित गुप्ता ममा को फ़ोन कर के बताया... ममा भी बहुत हंस रही थीं...
अब फिर से थोडा खुद को सीरियस कर लूं... एक कविता लिखी है... मुझे पसंद आई है लिखने के बाद.... यह कविता भी स्व. सुभाष दशोत्तर जी को पढने के बाद ही लिखी है... सोच रहा हूँ... कि स्व.सुभाष दशोत्तर जी के जीवन और रचनाओं पर एक ब्लॉग बनाऊं ....ख़ैर! ख़ुद को वर्चुयल दुनिया में सीरियस करना भी एक आर्ट है... क्या वर्चुयल और क्या अन्वर्चुअल .... मेरे लिए तो सब बराबर है... तो पेश है कविता...
अजनबी ने मेरे शब्दों से खेल लिया...
एक अजनबी मेरे शब्द
अपने साथ चुरा ले गया,
उसने उन्हें अपने
अनुसार ढाल कर
मेरे नाम से कसबे में बिखेर दिया....
और मैं
गालियों की बौछार झेलता हुआ
उस घटना से अपरिचित हूँ
क्यूंकि मैं
दो असम्बद्ध वाक्यों में
कॉमा का प्रयोग
नहीं कर पाता हूँ.
पोस्ट ख़त्म करने से पहले एक बात और याद आ गयी... मेरी एक फ्रेंड थी.. वो मुझे समझाती थी... कि महफूज़ ...कभी भी किसी दोस्त को अपना नौकर मत बनाना और कभी अपने नौकर को अपना दोस्त मत बनाना... असफल लोगों से दूर रहना... अनपढ़, सेमी-लिटरेट (यह वो लोग होते हैं जिनके पास डिग्रियां तो होतीं हैं लेकिन नॉलेज नहीं) और नासमझ लोगों से बहस मत करना... और अपने विरोधियों को कभी कोई जवाब मत देना... और कमाल की बात यह है कि मैं .... यहीं फेल हो गया... ही ही ही ही ... आज की पोस्ट श्री. राजेंद्र स्वर्णकार जी को समर्पित है.
151 टिप्पणियाँ:
रिमोट टूट फूट कर बिखर गया... जब ज़मीन पर देखा तो वो मेरा रिमोट ना हो कर ....मेरा मोबाइल था... बेचारे के अस्थि-पिंजर अलग हो चुके थे...
हाहाहा...
आगे बाद में पढूंगा।
पहले इस दृश्य को संजो तो लूं।
इसलिए कहते हैं की किसी के बारेमें कुछ भी बोलने से पहले दस बार सोच लेना चाहिए ..वो तो शरीफ लड़की थी मोनिका ..कोई और होती तो इतने जूते मारती न ..और मानहानि का दावा ठोकती वो अलग .चलो अंत भला तो सब भला .
कविता बहुत अच्छी लिखी है और अच्छा लगा जान कर की कॉमा लगाने की अहमियत समझ आ गई आपको :).शुभकामनाये.
मोबाईल तोड़ मारा ...
इत्ता गुस्सा
हम्म्म हमें भी खुशी हुई कि कम से कम रिमोट तो बच गया, बेचारा रिमोट तो शर्म से पानी पानी हो गया होगा कि उसके चक्कर में मोबाईल की जान चली गई।
.शुक्र है बच गए आप...मोनिका ने इसे स्पोर्टिंग स्पिरिट में लिया...:)
क्या वर्चुयल और क्या अन्वर्चुअल .... मेरे लिए तो सब बराबर है....दरअसल हर किसी को ऐसा ही होना चाहिए......यहाँ...मुखौटे क्यूँ लगाएं??....वैसे भी ज्यादा दिन सच्चाई छुपती नहीं...असली चेहरा दिख ही जाता है.
कविता बहुत अच्छी है..जरा लिखने की रफ़्तार बढ़ाओ...इस ब्लॉग पर आना ही भूल गए हैं ,हम सब....:)
महफूज़ भाई --पहली इंसिडेंट -क्या आप अमिताभ बच्चन की फ़िल्में बहुत देखते थे ? हम भी देखते थे , लेकिन गुस्सा कभी नहीं आया । हाँ , देखकर जब बाहर आते थे तो खुद को अमिताभ समझने लगते थे तब तक , जब तक आइने में अपना चेहरा नहीं देख लेते थे । लेकिन आइना देखते ही फुस्स हो जाते थे ।
दूसरी इंसिडेंट : एक बार हमने जींस खरीदने की सोची । एक लड़की ने हमें दिखानी शुरू की --ट्राई कराई । लेकिन ट्राई करते करते हम तो पसीने पसीने हो गए । उसके बाद हमने कभी जींस नहीं खरीदी ।
वैसे आपकी दोस्त ने तो बड़ी काम की बातें बताई ।
हा हा मोनिका वाला इंसिडेंट ऐसा महफ़ूज भाई के साथ ही क्यों होता है....
मैं
दो असम्बद्ध वाक्यों में
कॉमा का प्रयोग
नहीं कर पाता हूँ.
महफ़ूज़ भाई, जीवन का सार यही है।
अच्छे लोग इसलिए अच्छे और सफल होते हैं, क्योंकि उन्होंने अपनी नाकामियों से जीवन के लेखन में कामा लगाना सीख लिया होता है।
ये बेचारा कॉमा जबरन में पिस गया...
और आपकी ये थी वाली मित्र ने बहुत काम की शिक्षा दी है, गांठ बांधकर रखियेगा...
पहले इंसिडेंट में हुआ यह कि मैं टी. वी. देख रहा था शाम की चाय के साथ... तो सोचा कि चैनल चेंज कर लूं... तो रिमोट उठा कर चैनल चेंज करने लगा... तो चैनल चेंज ही नहीं हुआ... बहुत कोशिश की ... रिमोट के बटन को खूब जोर से भी दबाया... लेकिन चैनल चेंज नहीं हुआ... बहुत जोर से गुस्सा आया... तो रिमोट उठा कर दीवार पर दे मारा... रिमोट टूट फूट कर बिखर गया...
इत्ती गुस्सा किस काम की आखिर सौ की तो चिपक गई ना ...हा हा हा ... जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाये....आभार
कविता बहुत अच्छी लिखी है
आपको और आपके परिवार को कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ
महफ़ूज़ भाई,
@ फ़र्स्ट इंसिडेंट - ठंड रखा करो यार।
@ सैकंड इंसिडॆंट - इतनी भी मत रखा करो यार।
@ कोमा -
रोको, मत जाने दो और रोको मत, जाने दो।
कोमा दोनों में है लेकिन थोड़े से अलग इस्तेमाल से माने बद्ल जाते हैं दोस्त और तुम तो कोमा का प्रयोग ही नहीं कर पाने की बात करते हो।
एक नुक्ता खुदा से ज़ुदा कर देता है, ये भी सुना है।
और वो फ़्रैंड जो थी, वाकई बहुत इंटैलीजेंट थी। हमारी मानो तो उसे थी से हमेशा के लिये है में शिफ़्ट कर लो। अच्छी सलाह देने वाले आजकल कम मिलते हैं।
तुम फ़ेल कहाँ हो भाई, फ़ुल्ल कामयाब हो। औरों को दिखे न दिखे अपन को तो कामयाब दिखते हो।
दोनों इंसिडेंट और कविता, शानदार और जानदार।
शुभकामनायें।
हा...हा..मजा आया कि नही?:)
रामराम
आज की आपकी पोस्ट और इसके साथ लगी रचना वाकई में लाजवाब है!
--
जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें!
अरे!...अगर रिमोर्ट के बदले मोबाईल ही फैंकना था तो ज़रा जोर दिल्ली की तरफ मुँह कर के फैंक देते...मैं यहाँ कैच कर लेता....
शुक्र है मोबाईल पर ही बला टल गई वर्ना कहीं फैंक कर टीवी पर मारा होता तो...बेचारा टीवी ही शहीद हो गया होता... बाकी, शुक्र है बैंक वाली से भी सस्ते में छूट गए :)
अब इतना गुस्सा भी ठीक नहीं,भाई ।और हां काम,आने
वाली चीज है कामा ।
महफूज जी आपसे लखनऊ में मुलाकात नहीं हो पाई लेकिन फोन पर बात कर इतना महसूस कर चूका हूँ की आप संवेदनशील इंसान हैं और एक इंसान को गुस्सा तो आता है और आना भी चाहिए लेकिन संतुलन भी जरूरी है ,इसलिए इतना ही कहूँगा की गुस्से पे नियंत्रण की कोशिस भी जरूर करें ...
मह्फूज जी ये रिमोट वाला वाक्या तो मेरे साथ लग्भग हर रोज ही होता है क्योन्कि दो रिमोट टेबल पर रह्ते है एक टी वी का और एक डिश का , हां आपकी दोस्त बहुत सम्झ्दार थी/ है !
एक ज़माने से सुनते आये हैं कि 'देर आयद, दुरुस्त आयद' उसका प्रयोग करने का अवसर दे दिया आपने... हा हा हा..
Likhate rahen . Janmasthmi ke mauke par aapko dher sari shubhkamnayen
मुझे गुस्सा भी कई बार बिना मतलब के आता है... जब आता है तो घर के कई सामान टूट फूट जाते हैं..
जनाब भूले से भी शादी मत कीजियेगा .......
नहीं टिकने वाली .......
इस गुस्से के साथ .....
कविता अच्छी लिखी ....!!
आपको एवं आपके परिवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !
बहुत दिनों के बाद आपका पोस्ट पढ़कर बेहद ख़ुशी हुई! रचना बहुत सुन्दर और लाजवाब लगा! बहुत बढ़िया ! उम्दा प्रस्तुती!
आपका पहला incident तो वाकई शानदार और बहुत ही unpredictable है ,जब इसे पढ़ रहा था तो मुझे लगा की remote के cell खत्म हो गए होंगे ,एक बार भी खैयाल नहीं आया की वो मोबाइल भी हो सकता है ,जब आपने बताया तो shock लगा ,वैसे इतना गुस्सा भी अच्छा नहीं है जी और वो भी इतनी छोटी सी बात पर
लेकिन @महफूज़ जी दूसरा incident कुछ समझ में नहीं आया ,अगर आपकी उस महिला मित्र और सहकर्मी ने आपका ब्लॉग पढ़ भी लिया तो इसमें uneasy feel करने वाली कौन सी बात थी ??
महफूज़ भाई,
आदाब!
पिछली पोस्ट पढ़ी थी आपकी. मुझे मुकम्मल शक है के आपने जान बूझ कर बलोंग का लिंक भेजा था.
अच्छा है....
गुस्सा मत किया करो.
अच्छा नहीं है....
आशीष
--
अब मैं ट्विटर पे भी!
https://twitter.com/professorashish
बेहतरीन। लाजवाब।
Mobile jaake TV se bhi takra sakta tha...screen bhi toot sakta tha...bach gaya!
Monika ko milen to meri orse badhayi de deejiyega zaroor!
आपको तो वैसे भी खतरों से खेलने की आदत है...
ये रिमोट, मोबाइल कि भला क्या बिसात ....!!
जानकार ख़ुशी हुई कि कोई तो मिली.... सेर को सवा सेर ...जिसने आपके भी पसीने छुडवा दिए...
वर्ना आज तक तो यही सुनते रहे थे कि आपने अच्छे अच्छों के छक्के छुड़ा दिए हैं...:):)
चलिए जी...मिलते रहिये मोनिका जी से ...जीवन में कुछ और सुधार हो सकता है...
हाँ नहीं तो..!!
और हाँ ...कविता तो बहुत ही अच्छी लगी है जी...
मै तो सोच रहा हूँ,
आगे के हालात क्या होगें?
कहीं बीमारी ज्यादा बढ गयी तो.......।
क्यूंकि मैं
दो असम्बद्ध वाक्यों में
कॉमा का प्रयोग
नहीं कर पाता हूँ.
-यही तो कला है.
उत्तम पोस्ट.
nice itna gussa theek nhi
महफूज़ भाई,
आज आपने रास्ता दिखाया तो आपके ब्लॉग पर आ कर बहुत अच्छा लगा. अब अफसोस तो जाहिर कर ही सकती हूँ कि मोबाइल तोड़ डाला लेकिन गुस्सा इंसां का सबसे बड़ा दुश्मन है सो इस पर काबू पाना सीखिए. ये एक नसीहत है बुरा लगे तो माफी.
कविता बहुत अच्छी lagi . अब baar baar aaungi padhne लेकिन gati men rahiye.
महफ़ूज़ भाई,
पहिला बार आपको पढ रहे हैं..भेंट त साईड अपर अऊर लोअर बर्थ पर (टिप्पनी बॉक्स में) केतना बार हुआ, लेकिन कभी आप हलो बोल दिए (हमरे ब्लॉग पर आकर) कभी हम मुस्कुरा दिए मने मन... आज सोचे कि बाक़ायदा घरे पहूँच जाते हैं...
पहिला वाक़या पर हमको भी याद आया कि हमरी शरीके हयात हमरे पास आकर पूछीं कि रिमोट नहीं मिल रहा है, त हम जवाब दिए कि कॉल करके देख लो एहीं कहीं होगा. दोसरा वाक़या, मजेदार था... लेकिन कभी कभी सच को अईसे भी जता देना चाहिए, भूल से... कान पकड़ने के लिए हाथ कभी कभी पीछे से ले जाना जरूरी होता है, नहीं त ई मुहावरा नहीं बनता... मोनिका जईसा प्रतिभा से मिलना बोनस हो गया आपके लिए..
रहा बात कौमा का, त ई कौमा बहुत जबर्दस्त था... अच्छा करते हैं कि आप कौमा भुला जाते हैं.. सोचिए त, दूगो असम्बद्ध वाक्य के बीच पिसता बेचारा केतना दुखी होता होगा और अगर मेल करा भी दिया तो आज कल ऐसा लोग को दुनिया दलाल कहता है...
सलिल
अपना भी यही हाल है गुस्सा है कि पीछा नही छोड़ता और हर गलती के बाद गुस्सा ना करने की कसम और कसम टूटने के बाद फ़िर कसम और …………………॥वैसे आपकी मित्र कि सलाह लाख टके की है
अरे बाबा इतना गुस्सा अच्छा नही कभी कभी फ़ंसावा देता है, आप की तरह से मैने भी एक बार अपना... दो साल पहले हम जब इटली घुमने गये तो एक रोज मेरा नेवीगेशन सेटिलिट का सिंगनल नही पकड रहा था, करीब आधा घंटा हो गया, तो मैने उसे उठा कर सडक पर पटक दिया.... ओर उस का हाल भी आप के मोबाईल जेसा हुआ, तभी ख्याल आया कि अब अपने होटल तक केसे पहुचे? भाषा हमे आती नही, रास्ता हमे ,मालुम नही तो जनाब बस जनाब आंदाज से चलते चलते किसी तरह से पहुच गये, उस के बाद कान खींचे जब भी कुछ तोडेगे तो दुसरो का ओर बिना मोके के:)
आज की पोस्ट श्री. राजेंद्र स्वर्णकार जी को
समर्पित है.
वज़ह ?
वैसे अंतर्जाल की महिमा निराली देखी …
ज़रा भी अंदाज़ा नहीं
कौन , किसको , कब , कुछ भी दे दे
… कमेंट , शाबासी , इज़्ज़त , सहयोग , हौसला , ताना , उलाहना , नसीहत , झांसा , इल्ज़ाम , गाली ,
… और दिल … और …
देखिए , अपनी तो आदत है -
"प्यार बांटते चलो …"
हरि भाई अरे अपने सिने अभिनेता स्व.संजीव कुमार जी ज्यों ताश के पत्तों की तरह से भी प्यार बांटने से कभी गुरेज़ नहीं किया है …
हा हाऽऽ
ख़ैर , छोड़ते हैं यार !
कविताई का आदमी हूं , कविता की बात करते हैं -
एक अजनबी मेरे शब्द
अपने साथ चुरा ले गया
कम्पलेंट लिखवानी चाहिए थी , हुज़ूर !
उसने उन्हें अपने
अनुसार ढाल कर
मेरे नाम से कसबे में बिखेर दिया....
ज़रूर हमशक़्ल नहीं तो हमख़याल तो रहा ही होगा …
दो असम्बद्ध वाक्यों में
कॉमा का प्रयोग
नहीं कर पाता हूँ
ज़रूरत ही नहीं महसूस होगी जनाब !
विस्मयबोधक किस लिए बना है ???
पूरी पोस्ट मज़ेदार !
लेकिन वही सवाल …
मैं कहीं मुलव्वस नहीं था , फिर भी मुझ पर मेह्रबानी क्यों ………
अब ट्रिपल डॉट डॉट डॉट के स्थान पर कॉंमा का प्रयोग करूं अथवा विस्मयबोधक का
चलिए , अपनी एक ग़ज़ल के चंद अश्'आर आपकी नज़्र करके मुआमला रफ़ा - दफ़ा करते हैं …
किसे पाना मुनासिब है , किसे बेहतर गंवाना है
इधर महफ़ूज़ है ऐ दिल , इधर सारा ज़माना है
म्मतलब …
इधर महबूब है ऐ दिल , इधर सारा ज़माना है
मुझे उसने क़बूला , मैं उसे तस्लीम करता हूं
ये क़ाज़ी कौन होता है ; किसे कुछ क्या बताना है
यहां मत ढूंढना मुझको , यहां अब मैं नहीं रहता
यहां रहता मेरा दिलबर , ये दिल उसका ठिकाना है
ज़हर पीना पड़ेगा आप गर सुकरात बनते हो
अगर ईसा बनोगे ख़ुद सलीब अपनी उठाना है
गिले-शिकवों से रंज़िश-बैर से मत यार , भर इसको
ये दिल है या कोई ख़ुर्जी है , कोई बारदाना है
- राजेन्द्र स्वर्णकार
अब समर्पण का कारण … मुझे क्या मा'लूम !!!
सच कहें तो जहां सताएगा
झूट हमसे कहा न जाएगा
ख़ामुशी इख़्तियार करलें अगर
दिल भी इल्ज़ाम फिर लगाएगा
हम न राजेन्द्र कर सकेंगे मना
गर अदू प्यार से बुलाएगा
Regards ... & Best Wishes
( बरसात के कारण बिजली चली जाने से हाज़िर होने में देरी हो गई )
राजेंद्र जी सादर नमस्कार.....यह पोस्ट आपको इसलिए समर्पित है.... क्यूंकि आपने जानना चाहा था कि क्या एक्सिस बैंक वाली ने यह पोस्ट पढ़ी थी....? तो मैंने कहा था कि यह पोस्ट में लिखूंगा....और मेरी पोस्ट आपको समर्पित होगी... तो एक पोस्ट का कंटेंट देने के एवज में आपका शुक्रगुज़ार हूँ.... इसीलिए यह पोस्ट आपको समर्पित है... आपके सुंदर कमेन्ट से मैं अभिभूत हूँ.... मैं किन लफ़्ज़ों में आपका शुक्रिया अदा करूँ.... ? मुझे शब्द नहीं मिल रहे हैं... बस नतमस्तक हूँ.... ऐसे ही हौसला बढ़ाते रहिये.... मुझे बहुत ख़ुशी है कि आप जैसा दोस्त पाकर...
सादर
महफूज़
कृपया ब्लॉग पढने के बाद अपनी टिप्पणियाँ ज़रूर दें.
वरना.. वरना चोर समझा जाऊँगा ?
सबकुछ तो बाँचा, ध्यान से भी जाँचा,
पोस्ट औ’ कविता के पीछे जो झाँका,
वहाँ नुका ये शख़्स लगता तो साँचा
फिर धुलने से डरके क्यों कुछ काँपा
हुर्रर्रर्र.. चल फूट.. बस फूट ले, वरना कविताई का इन्फ़्लेक्शन लग जायेगा ।
खुश रहो, अच्छा लिखा है ।
आप की रचना 03 सितम्बर, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपनी टिप्पणियाँ और सुझाव देकर हमें अनुगृहीत करें.
http://charchamanch.blogspot.com/2010/09/266.html
आभार
अनामिका
डॉ. साहब.... सादर नमस्कार....मेरे अहोभाग्य ... आज मैं धन्य हो गया... आपके प्यार से मैं अभिभूत हूँ.... ऐसा ही प्यार बनाये रखिये...
महफ़ूज़ भाई ,
शुक्रिया !
कविता बहुत ऊंचे मे'यार की लिखी है …
बधाई देना भूल गया था , इसलिए दुबारा आया हूं …
love you यार !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
कोमा हो या नुक्ता सही जगह ना लगे तो...????हमारे यहाँ एक महाशय हैं अक्सर स्टेज पर गाते भी है बस नुक्ता लगाये ना लगाये उनकी मर्जी.
'गा रहे थे- वे 'आपका फसाना दुनिया ना...' गाये जा रहे थे.मैंने बीच में ही ठहाके लगाना शुरू कर दिए जम कर.
स्टेज से उतरे-'मेडम! कैसी थी ग़ज़ल ?'
'ज़ाफरी सर!किसको फसाना था ?'
एक और हैं जो श को स बोलते हैं उनसे मैंने शर्त जीत ली. कहा पूरी गजल गा देंगे तो हजार रूपये दूँगी.नही तो देने पडेंगे'........
गजल थी-'ये दिल ये पागल दिल मेरा क्यों बुझ गया आवारगी,इस दश्त में एक शहर मे था वो क्या हुआ आवारगी
सोचो क्या हुआ होगा? 'दश्त' शब्द से पहले वे अटक जाते क्योंकि मैं उन्हें बता चुकी थी कि वे श को स बोलते हैं....
बिना कोमा उसने बिखेर दिए तुम्हारे शब्दों को ....हा हा हा
मैंने तो जिंदगी की हर परेशानी को उड़ा दिया बिना मात्रा और प्रश्न चिह्न लगाए.शायद डरने सी लगी है मुझसे.
बहुत कुछ तुम सी हूं मैं भी.
दोस्त दोस्त होते हैं वो मेल है या फिमेल उससे ज्यादा फर्क नही पड़ता यदि वे सचमुच 'दोस्त' हैं और 'दोस्ती' है.
प्यार. अब एक बार जरूर देखना कि रिमोट है हाथ में या मोबाइल ??????
महफूज भाई..आज कल हम ब्लॉग पर बहुत स्लो हो गये थे आज आपके पोस्ट से चुप्पी तोड़ रहे है कुछ खास नही बस व्यस्तता चल रही थी....आज आपके इंसिडेंट भी कमाल के है..भाई इतना तो ख्याल कीजिए की मोबाइल और रिपोर्ट का ख्याल रख सकें...इसलिए हम सब कहते है कि कुछ कीजिए अभी मोबाइल है कहीं कुछ और ना नुकसान हो जाए...रही बात दूसरी इंसिडेंट की तो कोई नही अब ब्लॉगर है तो हैं..इसमें कोई छुपाने वाली बात नही..
अजनबी शब्दों से खेलने वाली छ्न्द-मुक्त रचना भी बहुत प्रभावशाली...कमाल की शैली है कम शब्द में बढ़िया भाव...सुंदर पोस्ट के लिए बधाई..और हाँ इतना ज़्यादा गैप भी ठीक नही ..कुछ पढ़वाते रहा कीजिए....धन्यवाद
गुस्सा आने पर तोड़ फोड़ करना बुरी बात है मगर मैं भी कर देती हूँ ...
रिमोट की बजाय मोबाइल हाथ में आ गया ...चश्मे का नंबर बढ़ गया है ...
शेर को सवा शेर मिली ...मिलनी ही थी ...इस बार राखी पर यही दुआ की थी ...तुझे ऐसी शेरनियां मिलती रहे ताकि तेरा दिमाग ठिकाने रहे ...
कविता अच्छी है ....!
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.
.
मित्र महफूज,
पोस्ट अच्छी है और कविता बहुत अच्छी व सामयिक भी...
परंतु मेरी चिंता इस बात से है कि आप गरीब व असफल लोगों के हिकारत की नजर से देखते हैं...मित्र, Underdogs के साथ चलना, उनको भी अपना ही समझना, उनकी आवाज उठाना एक श्रेष्ठ मानवीय मूल्य है...केवल दिमाग की गरीबी रखने वालों से दूर रहो...आर्थिक या भौतिक गरीबी तो रिलेटिव है...मिसाल के तौर पर दुनिया में अनेकों ऐसे हैं जिनके सामने और जिनकी नजर में तुम्हारी या मेरी हैसियत किसी भिखारी से बढ़कर नहीं...सोचो !
आभार!
...
वैसे जनाब की सभी ने अच्छी खबर ले ली है अब मेरे कहने को तो बचा ही क्या है।
इसीलिये कहा गया है कभी तो ऊँट पहाड के नीचे आता ही है ………………मोनिका ने आखिर सबक सिखा दिया है…………………हा हा हा …………………ज़रा गुस्से पर काबू कर ही लो अब कल को मैडम आयेगी तब क्या करोगे? उसने नही झेलना ये सब्……………देखो मै भी एक सीख दे रही हूँ जानती हूँ अमल नही करोगे………………………हा हा हा ।
Mahfooz bhai jaandaar aur saandaar ho aap.........jo apne aise incidents hamse share kar rahe ho......:)
waise har koi ke jindagi me aisee baate ghat ti rahti hai, baat isme hai ki kisne isko saheja aur uss par gaur kiya.......:)
badhai.........Coma ko do asambadh baato ko na jor paane ke liye...:)
....अच्छी प्रस्तुति ....
( क्या चमत्कार के लिए हिन्दुस्तानी होना जरुरी है ? )
http://oshotheone.blogspot.com
Mahfooz,
You are awesome, agile and badmash, really. You know today I have also created a blog but don't know what to write. Hope someday, sometime, somewhere I will also be a blogger.
क्या बात है सरकार, आप तो फंसते-फंसते बच जाते हो और एक हम हैं की बचते-बचते फंस जाते हैं..... :-)
Agar remot toot jata to bhabhi ji apko hi tod deti, jara ladkiyon se door raha kare.
Badi khabre udti rahi hain apke bare main
क्या भाई इतना गुस्सा!!! थोडा कम करा कीजिये गुस्सा!!!
तो धो दिए गये आप........बिन पानी बिन साबुन.........
कविता बहुत ही अच्छी लगी
nice.. kintu itna gussa theek nahi hain... :)
संता- अरे तुम्हारा कान कैसे जल गया I
बंता- अरे यार मोबाइल से जल गया..
संता- मोबाइल से ..?? वो कैसे ..??
बंता-अरे यार कपड़े प्रेस कर रहा था अचानक से कॉल आ गया तो मोबाइल की जगह प्रेस उठा कर कान पर लगा लिया..............
ये इंसिडेंट भी न होते ही बड़े अजीब है अब अपना वाला ही ले लो ...
कॉमा कहा लगाना था ?
bahut badhiya bhaijaan mobilwa tod diye...!!!!
कविता बहुत ही अच्छी लिखी है आपने, रिमोट तो हैरान रह गया होगा मोबाइल के अस्थिपंजर देख कर, गुस्सा करें पर इन बेजुबानों पर नहीं, सुख-दुख के साथ तो आजकल यही रह गये ।
गुस्सा उफ़ वल्ला वल्ला ...खूब रही और फिर खूब कही आपने ..शुक्रिया
कभी कभी बिना जाने फँस जाना सेहत के लिये बहुत ही अच्छा है। अच्छा हुआ कि मोबाइल टीवी पर नहीं मारा।
आपकी दोस्त ने बातें तो दुरुस्त कीं पर हम कब दुरुस्त रहे जीवन में।
कविता बहुत दमदार है। दो बार पढ़ी तब उतर पाया अन्दर तक।
आज एक तो पगलैट बोल गया। आपका ज्ञान याद आया तो लगा "साला मैं तो साहेब बन गया"
दोनों घटनाएँ अलग अलग तरह की ....
मोबाईल की आत्मा क्या सोच रही होगी ...इतने दिन किसका साथ निभाया ? :):)
मोनिका के साथ ...बच गए बच्चू ...आगे से ज़रा ध्यान रखा करो ...और वो दोस्त कौन है जिसका एक भी कहना नहीं मानते ...
कविता अच्छी है ...ज़िंदगी में तो कोमा, फुल स्टाप अपने आप लगते हैं ..
क्रोध दुख की जड है । अब मोबाइल टूट गया तो दुख तो हुआ ही होगा । मोनिका का किस्सा तो सस्ते में निपट गया और दो असंबध्द वाक्यो में कॉमा लगा कर भी क्या होता ?
देखो जी, हमनें तो पहले ही कहा था....
ये महफूज़ भाई की ही शरारत है!
जान के ब्लॉग का लिंक भेजा.... और अब मोनिका भी चिटठा जगत में!
और किन शब्दों के साथ, ज़रा गौर फरमाएं:
Mahfooz,
You are awesome, agile and badmash, really. You know today I have also created a blog but don't know what to write. Hope someday, sometime, somewhere I will also be a blogger.
भाई, हमारी शुभकामनाएँ महफूज़ भाई के साथ हैं!
महफूज़ हर कदम रखना ए खुदा, ए खुदाsssssss
अगर मैं गलत हूँ, तो महफूज़ भाई खंडन करें!
अगर सही हूँ तो महिमा मंडन करें!
जय हो!
आशीष
महफूज आज मन बेहद उदास है, पारिवारिक कष्टों से निजात पाने की कोशिश कर रहा है तो किसी भी ब्लाग पर मन नहीं टिका। तुम्हारी मेल देखी कि नयी पोस्ट लिखी है तो उस उदासी में ही पढा भी। मैं जानती थी कि ऐसी ही कोई बेवकूफी वाली पोस्ट होगी। असल में यह तुम्हारा गुस्सा नहीं है वरन अंहकार है कि साला रिमोट मेरा कहना नहीं मानता और दे मारा बेचारे को। लेकिन तुम्हें मोनिका ने धो डाला, यह तो तुमने मुझे बताया ही था, अच्छा किया। वैसे अब तुम्हें धोनेवाली आ ही रही है तो अब यह अहंकार और कॉम्प्लेक्स सब फुर्र हो जाएंगे। दूसरे मोबाइल से बात करना, एक को तुमने शहीद कर ही दिया है। लेकिन यह खुशी है कि तुम पर नकेल कसने वाली दिसम्बर में आ ही रही है, फिर 2011 में सब कुछ ठीक। हमारे महफूज मियां एकदम शरीफ बन जाएंगे। है ना?
वाह महफूज़ भाई सेर को सवा सेर तो मिला !!!!!!पर मुझे तो लगता है की वो सवा सेर तो आपके ब्लॉग तक आ पहुंचा है !! ठीक कह रही हूँ न ?इतने दिनों बाद आये तो छा गए
हद है यार महफूज़
गलतियों को किस सादा दिली से स्वीकार कर लेते हो......घटना का ज़िक्र आपने एक बार फोन पर आपने किया था मगर ये न मालूम था की लिखा पढ़ी में भी इस वाकये को आप हम सबके सामने ले आयेंगे......एक्सिस बैंक जाना छोड़ दिया या जारी है.......?
दो बातें आपको समझ आईं..एक तो बिना देखे-समझे कोई काम मत करिए...और लड़की क्या किसी को भी अंडरएस्टीमेट मत करिए...चलिए...देर आयद..दुरुस्त आयद
दो बातें आपको समझ आईं..एक तो बिना देखे-समझे कोई काम मत करिए...और लड़की क्या किसी को भी अंडरएस्टीमेट मत करिए...चलिए...देर आयद..दुरुस्त आयद
दोनों घटनायें मज़ेदार है लेकिन कविता अभी कविता नहीं बनी है ,, इसे कविता बनाना होगा ..समझे ,कहाँ लगाना है ?
PAHLE TO....HA...HA...HA...HA...HA.. INCIDENTS KE LIYE......PHIR VAAH-VAAH KAVITA KE LIYE.....AUR AB TAALIYAAN TUMHAARI DOST KEE RAAY KE LIYE.....
महफूज़ भाई ... बहुत दिन बाद आपने लिखा है ..... मज़ा आ गया पढ़ कर .... लगता है आजकल ब्लॉगिंग पर भी गुस्सा आ रहा है तभी ज़्यादा पोस्ट पढ़ने को नही मिलती .... मोनिका और आपकी गुफ्तगू मजेदार लगी .... और कविता तो बहुत ही लाजवाब है .....
भाईयों और सहेलियों,
महफूज़ भाई ने पोशीदा तौर पर मुझसे फोन के ज़रिये गुफ़्तगू करके मेरे आरोप का खंडन कर दिया है.
बड़ी मीठी-मीठी बातें करते हैं.
कह रहे थे शादी कर रहा हूँ.....
तो क्या महफूज़ अपनी सखियों को महफूज़ रखेंगे या मेरे बैचलर चिट्ठे का लिंक भी उन्हें भेजेंगे...... (आई मीन गलती से!!!!!)
देखेंगे........ हम लोग!
आपके प्राईवेट, प्रोफेशनल और ब्लोगाई जीवन के लिए ख़ाकसार की शुभकामनाएँ!
परवाज़ ऐसी हो के ज़माना देखे!
आमीन!
आशीष
--
अब मैं ट्विटर पे भी!
https://twitter.com/professorashish
शिक्षक दिवस की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!
.. वो तो अच्छा हुआ कि सस्ता मोबाइल था... . नहीं तो कहीं मेरा सैमसंग कॉरबी प्रो होता तो हार्ट अटैक ही हो जाता
चलिए पहले तो आपको हार्ट अटैक से बचने की बधाई दे दूँ.और हाँ,इतना गुस्सा भी ठीक नहीं.
जहाँ तक दुसरे इंसिडेंट की बात है तो चलिए किसी ने तो आपकी खबर ली.
बेहतरीन पोस्ट महफूज़ भाई...बेहतरीन...कविता भी कमाल की कही है आपने...बधाई...
नीरज
सबसे पहले - मोनिका के ब्लॉग पर मैं पहला फ़ॉलोवर बन गया हूँ।
फिर -
अर्चना तिवारी
"वो तो ठीक है, फिर दूसरा कान कैसे जल गया?"
"अरे बड़ा बदमाश था - उसने दोबारा कॉल कर दिया"
और फिर-
आप आते रहिए हमको बुलाते रहिए
आने जाने के बीच कॉमा लगाते रहिए
अच्छा वाकया, नेक्स्ट-डोर हुआ हो जैसे…
chaliye dono hi incidents sikh detey hai..baaki aapne likha bhi puri imandaari se hai..so :) laga...aur aapki rachna ka shirshak 'अजनबी ने मेरे शब्दों से खेल लिया...' hi bahut pasand aa gaya tha mujhe..baaki panktiyaan to sundar hai hi...lambe gap ke baad ek jordaar dastak.. :)
han kabhi kabhi aisa bhi ho jata hai.... galti kisi ki saza kisi ko....bechara remote :-(
और कमाल की बात यह है कि मैं .... यहीं फेल हो गया..
महफूज़ भाई, अपनी हर स्वीकार कर खिलखिलान बिरले ही कर पते हैं, उनमे से एक आप भी हैं, शायद यही खिलखिलाहट आपकी सफलता का म रचनात्मकता का राज़ है..................
हर्दिक्क बधाई
चन्द्र मोहन गुप्त
और कमाल की बात यह है कि मैं .... यहीं फेल हो गया..
महफूज़ भाई, अपनी हर स्वीकार कर खिलखिलान बिरले ही कर पते हैं, उनमे से एक आप भी हैं, शायद यही खिलखिलाहट आपकी सफलता का म रचनात्मकता का राज़ है..................
हर्दिक्क बधाई
चन्द्र मोहन गुप्त
" कभी भी किसी लड़की को अंडर-एसटीमेट नहीं करना चाहिए"...देर आए दुरुस्त आए :)
कविता बहुत अच्छी है ...!
kuchchh bhi kahnaa mushkil hai...
UP mein sab hotaa hai...
aisiee UP mein to hotaa hi hai....
बड़ी जिंदगी है और उसमें छोटी छोटी बातें होती रहती हैं
ये सब महफूज के साथ ही क्यों
Eid mubarak ho!Khoob khushiyan bharke ye din aaye!
ईद की ह्रार्दिक शुभकामनाऐं
आपको एवं आपके परिवार को गणेश चतुर्थी की शुभकामनायें ! भगवान श्री गणेश आपको एवं आपके परिवार को सुख-स्मृद्धि प्रदान करें !
बहुत अच्छे संस्मरण लगे |बधाई
आशा
ईद की बहुत बहुत मुबारक महफूज़ भाई ....
आपकी टिपण्णी के लिए और उत्साह वर्धन के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
:) आपके गुस्से को भी जाना और आपको मिली एक खुबसूरत सीख के महत्वपूर्ण स्रोत का भी अध्ययन किया मतलब पिछली पोस्ट का भी :) आपके लिखने का अंदाज़ निराला है आपके निराले अंदाज़ को बधाई, भाईसाहब.....
आपकी टिपण्णी और उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद! मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
बहुत सीख देती हुई पोस्ट.........
monica ji.......mahfooz sir i will nvr try this......
इतना ही कहुंगीं..विलक्षण .
______________
'शब्द-शिखर'- 21 वीं सदी की बेटी.
एक अजनबी मेरे शब्द
अपने साथ चुरा ले गया,
उसने उन्हें अपने
अनुसार ढाल कर
मेरे नाम से कसबे में बिखेर दिय
kavita to achchhi hai saath hi ghatna bhi bahut majedar hai ,krodh hai hi na samjhi ka kaam jahan bahut kuchh barbaad ho jaata hai .
आपने इतना अच्छा लिखा है की
मैं कुछ कह ही नही पा रही हूँ
कृपया मेरे ब्लॉग पर आकर अपने सुझावों से अवगत कराये
www.deepti09sharma.blogspot.com
धन्यवाद
:-)
अच्छी कविता है|
bahut der se yahan pahuncha hoon.... saari baatein to kahi ja chuki hain....
lekin mahfooj bhai thode sambhal kar rahein...warna pareshani badhi bhi sakti hai..
hahaha.....
mere blog par thode se bargad ki chhaon me padharein..
बाप रे एक सौ पाँच टिप्पणीयां अरे महफ़ूज भाई मार डाला पापड़ वाले को। क्या हाल है? कहाँ हो आजकल?
mahfooj bhai, aapki mitra ki kaam ki baaten vakai kaam ki hain.....unhe badhai...
or haan 16 october ko lucknow aa raha hoon...dono mil kar mobile ke asthi-pinjaron ko gomti me prawahit karne chalenge..
mere dono no. 9896202929 or 9466202099 mere saath rahenge. apna bhi note kara dena..
shesh shubh....
पोस्ट ख़त्म करने से पहले एक बात और याद आ गयी... मेरी एक फ्रेंड थी.. वो मुझे समझाती थी... कि महफूज़ ...कभी भी किसी दोस्त को अपना नौकर मत बनाना और कभी अपने नौकर को अपना दोस्त मत बनाना... असफल लोगों से दूर रहना... अनपढ़, सेमी-लिटरेट (यह वो लोग होते हैं जिनके पास डिग्रियां तो होतीं हैं लेकिन नॉलेज नहीं) और नासमझ लोगों से बहस मत करना... और अपने विरोधियों को कभी कोई जवाब मत देना... और कमाल की बात यह है कि मैं .... यहीं फेल हो गया... ही ही ही ही ... आज की
शिक्षा जहां से भी मिले भली होती है ..भले के लिए होती है..
mahfuj bhai itna bhi gussa thik nahi ,par kabhi kabhi aadmiitna jhnjhala jaata hai ki baat apne bas se baahar ki ho jaati hai.anjaane hikhud ka nuksaanho jaata hai.
aapki dono ghatnaaye mujhe dilchasp lagin aur kavita bhi bhi.
poonam
well ali sahaab ...thanks for appreciating the beauty ... but i would have felt better if u had just said something regarding my writings and blog ... thanks for visiting ..
रिमोट फेंकने से पहले कोमा लगा दिए होते तो मोबाइल बच जाता ...
और हाँ सच सच कहिये ... मोनिका को मेल में ब्लॉग एड्रेस ... ये एक गलती ही थी न ?
गुस्सा और प्यार दोनों ही खतरनाक..शानदार पोस्ट.
______________________
'शब्द सृजन की ओर' पर चिट्ठियों की बातें...
वाह साहेब, आनंद आ गया आपकी पोस्ट पढ़ कर तो..............
महफ़ूज़ भाई, बड़ी ही रोचक पोस्ट थी…ज़िन्दगी हर दिन हमें कुछ ना कुछ सिखाती है…जीना इसी का नाम है…। इतने बढ़िया लेखन के लिये बधाई…पूनम
bahut khoob....kavita bahut pasand aai...mahfuz ji....
दशहरा की ढेर सारी शुभकामनाएँ!!
विजयादशमी की अनन्त शुभकामनायें.
महफूज़ जी बधाइयां .....
खुदा से दुआ है आप महफूज़ रहे .....
mahfooz, wishing u a very happy birthday.
Get well soon
जन्म दिन पर बधाई व शुभकामनाएँ . स्वास्थ्य लाभ की कामनासहित |
कविता बहुत अच्छी लिखी है...
स्वास्थ्य लाभ की कामनासहित ..जन्म दिन पर बधाई व शुभकामनाएँ .
जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं, जल्दी स्वस्थ हों और तुरन्त वापस आयें… यह गुज़ारिश नहीं आदेश है॥ :) :)
mahfooz .. u ve promised me to love me ever after. after few days I came to know that u hv done this to so many known to me. ha ha ha ...
This birthday promise to yourself never give pass to others with your good BUT deceptive looks. I know the nurse and the doc attending you has a crush on you. I saw it while dressing. hope very soon they will be over with your deceptive looks. ha ha ha .
but u know , despite all
you are sweet, true and naughty.... oops.. notorious..
wishing u a very happy birthday.
जन्म दिन पर बधाई व शुभकामनाएँ .
स्वास्थ्य लाभ की कामनासहित
जन्म दिन की बधाई व शुभकामनाएँ !
जन्म दिन की बहुत बहुत शुभकामनायें आशीर्वाद् ।स्वास्थ्य अब कैसा है कहाँ हो? जल्दी से ठीक हो कर ब्लाग पर आओ। शुभकामनाओं के साथ।
महफूज़ भाई,
सुनने में आया है के आज आपकी सालगिरह है!
बुज़ुर्गियत और स्यानेपन की ओर एक और कदम मुबारक.....
और हां, कुछ नया पोस्ट करिए.....
या चौथी टिपण्णी भी इसी पोस्ट पे देनी पड़ेगी?
आपका भी,
आशीष
पैदा हो लिये ?
बधाई हो, अब कुछ काम-धाम में लग जाओ..
एक सोणी सी पोस्ट लिक्खड्डालो ।
बीमार हो ?
या कि बीमारी से इश्क की रस्म निभा रहे हो..
अब छोड़ो भी यह टँटा, कुछ पढ़ने को तो दे जाओ ।
अक़ीक़ा के बाद लिखोगे ?
ठीक है, कल ही उस्तरा लेकर पहुँचता हूँ ।
हैप्पी बड्डे !
Mahfuz ali ham bahot dino ke bad aapke blog par aaye muaf karna. par aate hi ek naya roop dekhaa aapke blog ka bahot pasand aaya. kher mai kuchh busy rahi transfer ka bhi problem tha par aaj yaha Macca e moazzama se aapki post par comment karte hue badi hi khushi ho rahi hai.
aapka mobile no. mere khoye hue mobile me kahin kho gay is liye aapko call nahi kar paai
mehfooz ji ... bahut khushi hui jaan kar ki ab aap theek hain ... bhagwaan aapko lambi aayu de ... god bless
nice to here from u ... good to see u back in action ... take care of ur health ... but i m surprised at one thing ... aapne mera 3rd oct wala comment delete nahi kiya ..
महफूज़ आज तुम्हें ब्लाग पर देख कर कितनी खुशी हुयी कि बता नही सकती\ बहुत चिन्ता हो रही थी। अब लिखना शुरू करो। बहुत बहुत आशीर्वाद और बधाई स्वस्थ होने की।
oye puttar....kithhe hai too'......
sada blogwood tainoo dhoondh raha haiga.....
ab jaldi se aakar phata-phat strike
pakar.....century laga
वाह महफूज भाई ,
`मैं
दो असम्बद्ध वाक्यों में
कॉमा का प्रयोग
नहीं कर पाता हूँ.`
क्या बात है ,ज़िन्दगी के रिश्तो के संदर्भों का यही तो सार है !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
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mahfooz bhayi , jabalpur me aapki bahut si baate hui ... ab aapki tabiyat kaisi hai .. aur samay mile to mujhe call kariye .. aur haa.. kavita bahut gazab ki hai ....
vijay
poemsofvijay.blogspot.com
09849746500
आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति,अच्छी रचना , बधाई ......
mahfuj bhai ji
aapke dono hi insident aage se aapko
do baate sikha gai.aapko ho nahi varan haum sabko.ek to itna gussa theek nahi aakmi apna hi nuksaan kar baithta hai,aur dusari ghatna ke liye aage se samajhdaari se kaam lijiyega varna har ladki monika ji jaisi nahi milti.
lekin aapki post padh kar maja jaroor aya mujhe... :)
poonam
हा..हा..हा...
______________
'पाखी की दुनिया' में छोटी बहना के साथ मस्ती और मेरी नई ड्रेस !!
वाह जी वाह... बोले तो too good...
आपने samsung corby pro की बात लिखी मुझे अपना मोबाइल याद आ गया... मएरी भी आदत थी मोबाइल तोड़ने की, सारा गुस्सा उसी पर तो निकलता था, मगर प्रो को हाँथ नहीं लगा पाती, दूसरा तोड़ कर खुश हो लेती हूँ... और रही बात बिन पानी के धुलने की, तो ऐसी धुलाई बड़ी ख़राब होती है, वो भी ऐसे... भगवान बचाए axis bank वालोंसे...
कविता बेहद प्यारी थी... नसीहत याद रखेंगें...
और मैं
गालियों की बौछार झेलता हुआ
उस घटना से अपरिचित हूँ
क्यूंकि मैं
दो असम्बद्ध वाक्यों में
कॉमा का प्रयोग
नहीं कर पाता हूँ.
.....ek kasak jo teesti hain man ko to aisi aah nikal padti hai...
हा हा..ये भी खूब रही!
आपको और आपके परिवार को मेरी और मेरे परिवार की और से एक सुन्दर, सुखमय और समृद्ध नए साल की हार्दिक शुभकामना ! भगवान् से प्रार्थना है कि नया साल आप सबके लिए अच्छे स्वास्थ्य, खुशी और शान्ति से परिपूर्ण हो !!
welcome back mehfooz ji ... happy new year to u ... nayi post kab daal rahe hai aap ... ??
आपका स्वास्थ्य कैसा है ...नववर्ष की शुभकामनाओं के साथ ।
kavita bahut achchi lagi aur baaki baaten behad manoranjak.
जनाब जाकिर अली साहब की पोस्ट "ज्योतिषियों के नीचे से खिसकी जमीन : ढ़ाई हजा़र साल से बेवकूफ बन रही जनता?" पर निम्न टिप्पणी की थी जिसे उन्होने हटा दिया है. हालांकि टिप्पणी रखने ना रखने का अधिकार ब्लाग स्वामी का है. परंतु मेरी टिप्पणी में सिर्फ़ उनके द्वारा फ़ैलाई जा रही भ्रामक और एक तरफ़ा मनघडंत बातों का सीधा जवाब दिया गया था. जिसे वो बर्दाश्त नही कर पाये क्योंकि उनके पास कोई जवाब नही है. अत: मजबूर होकर मुझे उक्त पोस्ट पर की गई टिप्पणी को आप समस्त सुधि और न्यायिक ब्लागर्स के ब्लाग पर अंकित करने को मजबूर किया है. जिससे आप सभी इस बात से वाकिफ़ हों कि जनाब जाकिर साहब जानबूझकर ज्योतिष शाश्त्र को बदनाम करने पर तुले हैं. आपसे विनम्र निवेदन है कि आप लोग इन्हें बताये कि अनर्गल प्रलाप ना करें और अगर उनका पक्ष सही है तो उस पर बहस करें ना कि इस तरह टिप्पणी हटाये.
@ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ ने कहा "और जहां तक ज्योतिष पढ़ने की बात है, मैं उनकी बातें पढ़ लेता हूँ,"
जनाब, आप निहायत ही बचकानी बात करते हैं. हम आपको विद्वान समझता रहा हूं पर आप कुतर्क का सहारा ले रहे हैं. आप जैसे लोगों ने ही ज्योतिष को बदनाम करके सस्ती लोकप्रियता बटोरने का काम किया है. आप समझते हैं कि सिर्फ़ किसी की लिखी बात पढकर ही आप विद्वान ज्योतिष को समझ जाते हैं?
जनाब, ज्योतिष इतनी सस्ती या गई गुजरी विधा नही है कि आप जैसे लोगों को एक बार पढकर ही समझ आजाये. यह वेद की आत्मा है. मेहरवानी करके सस्ती लोकप्रियता के लिये ऐसी पोस्टे लगा कर जगह जगह लिंक छोडते मत फ़िरा किजिये.
आप जिस दिन ज्योतिष का क ख ग भी समझ जायेंगे ना, तब प्रणाम करते फ़िरेंगे ज्योतिष को.
आप अपने आपको विज्ञानी होने का भरम मत पालिये, विज्ञान भी इतना सस्ता नही है कि आप जैसे दस पांच सिरफ़िरे इकठ्ठे होकर साईंस बिलाग के नाम से बिलाग बनाकर अपने आपको वैज्ञानिक कहलवाने लग जायें?
वैज्ञानिक बनने मे सारा जीवन शोध करने मे निकल जाता है. आप लोग कहीं से अखबारों का लिखा छापकर अपने आपको वैज्ञानिक कहलवाने का भरम पाले हुये हो. जरा कोई बात लिखने से पहले तौल लिया किजिये और अपने अब तक के किये पर शर्म पालिये.
हम समझता हूं कि आप भविष्य में इस बात का ध्यान रखेंगे.
सदभावना पूर्वक
-राधे राधे सटक बिहारी
जनाब जाकिर अली साहब की पोस्ट "ज्योतिषियों के नीचे से खिसकी जमीन : ढ़ाई हजा़र साल से बेवकूफ बन रही जनता?" पर निम्न टिप्पणी की थी जिसे उन्होने हटा दिया है. हालांकि टिप्पणी रखने ना रखने का अधिकार ब्लाग स्वामी का है. परंतु मेरी टिप्पणी में सिर्फ़ उनके द्वारा फ़ैलाई जा रही भ्रामक और एक तरफ़ा मनघडंत बातों का सीधा जवाब दिया गया था. जिसे वो बर्दाश्त नही कर पाये क्योंकि उनके पास कोई जवाब नही है. अत: मजबूर होकर मुझे उक्त पोस्ट पर की गई टिप्पणी को आप समस्त सुधि और न्यायिक ब्लागर्स के ब्लाग पर अंकित करने को मजबूर किया है. जिससे आप सभी इस बात से वाकिफ़ हों कि जनाब जाकिर साहब जानबूझकर ज्योतिष शाश्त्र को बदनाम करने पर तुले हैं. आपसे विनम्र निवेदन है कि आप लोग इन्हें बताये कि अनर्गल प्रलाप ना करें और अगर उनका पक्ष सही है तो उस पर बहस करें ना कि इस तरह टिप्पणी हटाये.
@ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ ने कहा "और जहां तक ज्योतिष पढ़ने की बात है, मैं उनकी बातें पढ़ लेता हूँ,"
जनाब, आप निहायत ही बचकानी बात करते हैं. हम आपको विद्वान समझता रहा हूं पर आप कुतर्क का सहारा ले रहे हैं. आप जैसे लोगों ने ही ज्योतिष को बदनाम करके सस्ती लोकप्रियता बटोरने का काम किया है. आप समझते हैं कि सिर्फ़ किसी की लिखी बात पढकर ही आप विद्वान ज्योतिष को समझ जाते हैं?
जनाब, ज्योतिष इतनी सस्ती या गई गुजरी विधा नही है कि आप जैसे लोगों को एक बार पढकर ही समझ आजाये. यह वेद की आत्मा है. मेहरवानी करके सस्ती लोकप्रियता के लिये ऐसी पोस्टे लगा कर जगह जगह लिंक छोडते मत फ़िरा किजिये.
आप जिस दिन ज्योतिष का क ख ग भी समझ जायेंगे ना, तब प्रणाम करते फ़िरेंगे ज्योतिष को.
आप अपने आपको विज्ञानी होने का भरम मत पालिये, विज्ञान भी इतना सस्ता नही है कि आप जैसे दस पांच सिरफ़िरे इकठ्ठे होकर साईंस बिलाग के नाम से बिलाग बनाकर अपने आपको वैज्ञानिक कहलवाने लग जायें?
वैज्ञानिक बनने मे सारा जीवन शोध करने मे निकल जाता है. आप लोग कहीं से अखबारों का लिखा छापकर अपने आपको वैज्ञानिक कहलवाने का भरम पाले हुये हो. जरा कोई बात लिखने से पहले तौल लिया किजिये और अपने अब तक के किये पर शर्म पालिये.
हम समझता हूं कि आप भविष्य में इस बात का ध्यान रखेंगे.
सदभावना पूर्वक
-राधे राधे सटक बिहारी
कुछ नया भी पोस्ट करिए या मैं पहुंच नहीं पाई.....
आपके ब्लॉग में पहली बार आना हुवा... कमाल के हैं आप ..:)) lolzz .. बेचारे मोबाईल को बिना गलती के पटक डाला ... बहुत सुन्दर लेख /संस्मरण ..सादर
आपके ब्लॉग में पहली बार आना हुवा... कमाल के हैं आप ..:)) lolzz .. बेचारे मोबाईल को बिना गलती के पटक डाला ... बहुत सुन्दर लेख /संस्मरण ..सादर
he he he...khair bura huaaa
kavita bahut achchhi lagi ,kahan hai janab .
mere mahfooz , kahan ho yaar .... aa bhi jao
-----------
मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .
आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.
"""" इस कविता का लिंक है ::::
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
विजय
Intresting..........pahli bar aapke blog par aai hun ..achha lga...
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