इस साल की यह नई पोस्ट लेकर फ़िर हाज़िर हूँ. इन दिनों काफी कुछ लिखा है और काफी कुछ पढ़ा भी है, बस ब्लॉग्गिंग करने का मन नहीं था. अब कहते हैं कि नये साल पर कुछ ना कुछ रिज़ोल्यूशन लिए जाते हैं तो मैंने भी यही रिज़ोल्यूशन लिया है कि जितना कुछ लिखा है इन दिनों काग़ज़ पर उन सबको ब्लॉग पर लिखूंगा. अब भला यह भी कोई रिज़ोल्यूशन हुआ? अरे! भाई... हम जैसे यही रिज़ोल्यूशन ले सकते हैं क्यूंकि और कोई ख़राब आदत हम में है नहीं कि रिज़ोल्यूशन लेना पड़े. वैसे ब्लॉग दोबारा लिखने को जिसने प्रेरित (उफ़! ये प्रेरित मेरे लिए बहुत टफ वर्ड है) आई मीन इंस्पायर किया है उसका मैं बहुत थैंकफुल हूँ... दिमाग़ खोल कर रख दिया बिलकुल... एक रिफ्रेशमेंट ब्रेक की तरह... वाकई! में हमारी ज़िन्दगी में ऐसे लोग होने चाहिए जो आपको हर बुरे से निकाल कर अच्छा करने को इंस्पायर करें. एक चीज़ तो सीखी है कि हर रिश्ता , हर दोस्ती हमें कुछ ना कुछ सिखाता तो है. जिसने बुरा करना है वो तो बुरा कर के ही रहेगा और जिसने अच्छा करना होगा वो हमेशा ही अच्छा करेगा. एक कविता लिखी थी कुछ दिनों पहले, आज इसको टाइप किया तो सोचा क्यूँ ना ब्लॉग पर भी डाल दूं? इस कविता में यही बताया है कि वक़्त के हिसाब से सब कुछ बदल जाता है.. ज़िन्दगी भी और ज़िन्दगी का मतलब भी.. ज़िन्दगी में शामिल लोग भी ...
जब समूचे डिक्शनरी का मतलब
[सांपला मीट में मिसेज़ भाटिया जी, अंजू चौधरी जी और संजू जी (बगल में इनविज़िबल)]
[यह पूरी टीम दिल्ली में कट्ठी हुई है... सांपला जाने के लिए]
[राजीव जी और संजू जी के साथ... ऐंवें ही सीरियसली गपियाते हुए]
[यह सारे फ़ोटोज़ यूँ ही डाल दी हैं ... गूगल से चुराने से अच्छा है कि इन्हें डाल दी जाएँ.. क्यूँ एहसान लिया जाए गूगल का :)]
परेशान शब्दों की अर्थवत्ता
एक हो जाता है,
तो
बाहर बेइंतेहा चीख-पुक़ार
मच जाता है.....
मगर
अंदर कहीं
कुछ व्याप सा गया है,
और
उलझनें यथावत बनीं हुईं हैं,
फ़िर भी मैं
कहीं और आ गया हूँ
अब परेशान शब्दों की
अर्थवत्ता भी बदल गई है,
डिप्रेशन और कॉम्प्लेक्स का
मतलब वो नहीं है,
जो डिक्शनरी कहती है.
आजकल मुझे पुराने गाने सुनने और देखने का शौक़ हो गया है, बड़े अच्छे लगते हैं सुनने में... बहुत ही मीनिंगफुल... ज़िन्दगी को सार्थक करते हुए शब्दों के साथ... इन गानों का मज़ा ही अलग है ... आज देखिये मेरा एक और फेवरिट ....