आज कुछ लिखने का मन नहीं है... नहीं ई ई ई ई ई..... मेरा मतलब है कि मन तो है लेकिन समझ नहीं आ रहा कि क्या लिखूं? कभी कभी जब मन में बहुत परप्लेक्सन होता है तो भी लिखने विखने का मन नहीं करता.... आज तो मैं उन सबका थैंकफुल हूँ.. जो मेरी खुशियों में मेरे साथ थे...
आज संजय बेंगानी जी ने एक सवाल पूछा था... सुबह नाश्ता करते वक़्त देखा.. " सफल होते ही व्यक्ति सबसे पहले किसे छोड़ता है? #कभी ध्यान में न आने वाले जवाब का सवाल. ... मुझे लगा कि इस पर कुछ लिखना चाहिए.. तो यही ख्याल आया कि सफल होते ही व्यक्ति ऐसे लोगों को छोड़ता है जो उसे हमेशा बेवकूफ ही देखना चाहते हैं... और बेवकूफ सफल व्यक्ति को कहते हैं कि यह कैसे सफल हो गया.. यह तो बेवकूफ था. सफल होते ही व्यक्ति ऐसे लोगों को छोड़ देता है.
कुछ ऐसे मनहूस लोग भी होते हैं.. जो सफलता को डाउट की निगाह से ही देखते हैं... दरअसल यह ऐसे लोग होते हैं जो शक्ल सूरत से, पढाई लिखाई से (नॉट मेंट विद डिग्रीज़), एक्स्ट्रा को-कर्रिकुलर एक्टिविटीज़, जनरल नॉलेज, पर्सनैलिटी से बिलो एवरेज होते हैं.. जिन्हें कभी स्कूल में और कॉलेज में लड़कियों ने घांस नहीं डाली होती है.... इनके पास अक्ल,शक्ल और पर्सनैलिटी ही नहीं होती है... और फिर जिनके पास होती है उनसे जलन पाल लेते हैं....
कुछ आपको हाई स्कूल और इंटर के टाइम पर ही देखना पसंद करते हैं... जब आप सफल होते हैं.. तो उनकी आँखें फट जातीं हैं... ऐसे लोग टाइम बार्ड होते हैं.... यह सोचते हैं कि वक़्त हमेशा रुका हुआ रहता है... और हर इंसान रुके हुए वक़्त पर ही जीता है.. कुछ आपका पास्ट खोज कर लाते हैं... कि कहीं से तो कमज़ोर करें... ख़ैर! यह तो है कि थोड़ी भी सफलता के साथ साथ बहुत से दुश्मन भी आते हैं... और कुछ दोस्त से दुश्मन बन जाते हैं.
ज़्यादा लिखने विखने का मन नहीं कर रहा है... आप लोग मेरी कविता देखिये... यह कविता भी मैंने कहा ना तभी लिखी जाती है जब मन में भावनाएं अपने उफान पर होतीं हैं.. तभी ही कविता कविता बनती है.. वैसे एक और बात बता रहा हूँ कि एक ब्लॉगर है.. वो सिर्फ तुकबंदी करता है... और कहता है कि कविता है.. उसकी कविता मैंने जैंगो (मेरा प्यारा कुत्ता) को पढाई ... बेचारा जैंगो पढ़ कर मर गया.. मुझे बहुत सारे ब्लॉगर फोन कर के उसे गाली देकर भड़ास निकालते हैं.. :) (स्माईली)...
आईये अब कुछ फोटोग्रैफ्स देखे जाएँ...
(यह मेरी न्यूज़ है हिंदुस्तान में. मैं दैनिक जागरण, इंडिया टुडे, आज, अमर उजाला, अजय और अंकित का भी आभारी हूँ)
(यह अंजू जी की किताब का ज़िक्र पंजाब केसरी में)
(यह फोटो डराने के लिए.... भई! मुझसे संभल कर रहना.. वैरी सेल्फ ऑब्सेस्ड ...)
(सिर्फ तुम्हारे लिए: एक प्रेम कविता)
उलझनों में कुछ भी कहूँ ,
मगर मेरे अन्दर
सिर्फ तुम
हो गई हो.
इन्ही उलझनों के बीच
में जो ताज़गी है ना
वो तुम हो.
अच्छा! अब एक गाना मेरा मनपसंद