आज कोई यहाँ वहां की भूमिका लिखने का मन नहीं है। टॉपिक तो कई हैं दिमाग में मगर लिखने का मन नहीं कर रहा है ... और ना ही किसी को ताने मारने का मन है ... और ना ही किसी की बेईज्ज़ती करने का मन है। आज सिम्पली एक कविता है मगर बिना मेरी कोई फोटो के .... आजकल मैं फोटो नहीं खिंचवा रहा हूँ क्यूंकि ज्यादा हेवी जिम्मिंग की वजह से अच्छी आ नहीं रहीं .... तो ब्लॉग पर डालने का कोई मतलब नहीं है। कविता ही देखी जाए अब ... बिना भूमिका के लिखना अच्छा भी नहीं लगता है।
भीतरी द्वंद्व और चिकत्तों वाला कुत्ता
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यहाँ चाय, पान, सिगरेट और नमस्ते
(c) महफूज़ अली
शिष्टाचार नहीं
वरन उसकी एक अलग अर्थवत्ता है,
मगर
मेरे भीतर जो टूट फूट रहा है
उसका कारण
शहर की बाहरी होड़ ही है ....
पीपल की फुनगियों पर
अँधेरे की कोंपलें फूट रही हैं
और पड़ोस की छत्त पर
चिकत्तों वाला कुत्ता घूम रहा है....