सिर्फ एक कविता और कुछ फोटो :
(जॉगिंग के बाद बरगद के पेड़ के नीचे सुस्ताते हुए ... ह्म्म्म्फ़ .... ह्म्म्म्फ़्फ़्फ़)
अखबारी कॉलम
और विज्ञापन सूचना
भार विहीन
हल्की होती वेदना,
जितना तन रेतीला है
मन उतना ही सूखा है ....
एक रोज़गार की प्रतीक्षा में
बेरोज़गार दिन,
कितना भूखा है।।
(c) महफूज़
(जयपुर के जौहरी मार्किट के एक मॉल के बाहर ....)