आज आपको अपने स्कूल का एक बहुत मजेदार संस्मरण बताने जा रहा हूँ. यह संस्मरण पढ़ कर आपको पता चलेगा कि मैं स्कूल में कितना बदमाश किस्म का लड़का था. चंचलता व बदमाशी तो आज भी इस उम्र में भी (?) करता हूँ. बात उन दिनों की है जब मैं बारहवीं क्लास में पढ़ता था. मेरा एक अपना गैंग हुआ करता था.. मेरे गैंग में हम कोई आठ लड़के थे. हम आठों अपने क्लास के सबसे स्टूडिय्स और बदमाश लड़के थे.
एक लड़का जिसका नाम सेंथिल राजन था. उसका एक ही काम था कि वो लड़किओं का टिफिन रोज़ असेम्बली से पहले चुरा कर खा जाता था, आजकल इडियन एयर फ़ोर्स में स्क्वाड्रन लीडर है और फाइटर पाइलट है.
मनोज यह आर्मी में कैप्टन था और कारगिल युद्ध में शहीद हो चुका है और इसकी मूर्ती यहीं लखनऊ में इसी के नाम से मशहूर है.
गुरजिंदर सिंह सूरी यह महाशय भी कैप्टन थे और कारगिल में शहीद हो चुके हैं इनकी भी मूर्ती पंजाब के गुरदासपुर में लगी है. गुरजिंदर को बकरियां चुराने का बहुत शौक था. यह बकरियां चुरा कर काट कर खा जाता था और खाल बेच देता था १०० रुपये में.
सुखजिंदर सिंह ...इसको हम लोग सुक्खी बुलाते थे... इसकी ख़ास बात यह थी कि यह जब अपना जूडा खोल देता था तो बिलकुल लड़की लगता था. एक बार संडे के दिन इसके घर हम लोग गए कॉल बेल बजाई तो यह बाहर निकला ...हम लोगों ने पूछा दीदी सुक्खी है? इसने हम लोगों को एक झापड़ लगाया और अपने बाल पीछे कर के बोला कि यह रहा सुक्खी... यह IIT से इंजिनियर हो कर आजकल कनाडा में है.
वजीह अहमद खान यह आजकल लन्दन में है और वर्ल्ड का बहुत जाना माना कॉस्मेटिक सर्जन है. इसको घूमने का बहुत शौक है यह उस ज़माने में कालोनी के घरों का टी.वी. बना कर पैसे बचाता था और फिर घूमने निकल जाता था. और आज पूरी दुनिया घूम रहा है. हमारे फिल्म जगत के काफी लोगों ने इससे सर्जरी करवाई है.
अमलेंदु यह आजकल एक डिग्री कॉलेज में सीनियर लेक्चरार है. अमलेंदु बिहारी था और ड को र बोलता था. यह बहुत जिनिअस था. यह इतिहास का बहुत बड़ा ज्ञाता है. और सिविल में सेलेक्शन ना होने कि वजह से फ्रस्ट्रेट रहता है.
मनीष ....मनीष आजकल IAS है ... और इस वक़्त डिस्ट्रिक्ट मैजिसट्रेट है. यह दसवीं क्लास से दारु पीता था. IIT कानपूर से पास हुआ ... यह फ्रूटी (Frooti) के पैकेट में दारु भर कर पीता था.
बात हमारी बारहवीं क्लास की है. अब जैसा की मै बता चुका हूँ कि हम लोग स्कूल के सबसे बदमाश लड़कों में आते थे. हम लोग क्या करते थे कि स्कूल में छुट्टी के बाद घर नहीं जाते थे... और हम सब मिल कर दूसरे क्लासेस में जा कर फैन और ट्यूबलाईट के चोक खोल लिया करते थे. और फिर वही फैन्स और चोक्स को हम लोग मार्केट में ले जा कर बेच दिया करते थे. फिर जो भी पैसे मिलते थे. उससे हम शाम में होटल प्रेसिडेंट में जाकर ऐश किया करते थे. हमारा स्कूल बहुत बड़ा था ... प्राइमरी क्लास मिला कर कुल पांच सौ साठ कमरे थे... और हर क्लास में दस -दस फैन और छह ट्यूबलाईट लगे होते थे. होटल प्रेसिडेंट आज भी है गोरखपुर में. हम लोग रोज़ एक फैन और चोक चुरा लिया करते थे और फिर बेच देते थे. धीरे धीरे पूरे स्कूल में खबर फ़ैल गई कि पंखे और चोक चोरी हो रहे हैं. प्रिंसिपल हमारा बहुत परेशां लेकिन उसको चोर मिल ही नहीं रहे थे. और हम लोग अपना काम बहुत सफाई से कर लिया करते थे. एक बार क्या हुआ कि हम दूकान पर फैन और चोक बेच रहे थे... तो जिस दूकान पर हम लोग सब बेच रहे थे उसी दूकान पर एक प्राइमरी क्लास का टीचर भी कुछ सामान खरीद रहा था और उस टीचर को हम लोग जानते ही नहीं थे, लेकिन वो हम लोगों को जानता था ...उसने फैन बेचते हुए देख लिया और स्कूल के हर फैन पर पेंट से स्कूल का नाम शोर्ट फॉर्म में लिखा होता था. दूकानदार ने भी हमें पैसे दिए और हम लोग चलते बने.
दूसरे दिन स्कूल में असेम्बली में हम आठों का नाम पुकारा गया. हम आठों बड़े मज़े से डाइस की ओर दौड़ते हुए गए... क्यूंकि आये दिन हम आठों को कोई ना कोई प्राइज़ या फिर ट्राफी मिलती ही रहती थी और काफी ट्रोफीज़/प्राइज़ हम लोगों को मिलनी बाकी थीं... हम लोगों ने वही सोचा कि कुछ ना कुछ प्राइज़ मिलेगा इसीलिए नाम पुकारा गया है. हम बड़ी शान से डाइस पर जाकर खड़े हो गए... सीना चौड़ा कर के. फिर असेम्बली वगैरह शुरू हुई. सारी औपचारिकताएं पूरी हुईं असेम्बली की. उसके बाद हमारा प्रिंसिपल माइक पर आ गया. हमारा प्रिंसिपल हम लोगों की तारीफ़ करने लगा ...फिर कहता है कि आज इन शेरों की महान करतूत मैं बताने जा रहा हूँ. तब तक के सामने टेबल सज गई. हम लोगों ने सोचा कि ट्राफी इसी पर रखी जाएँगी और एक एक कर के हम लोगों को दी जाएँगी. थोड़ी देर के बाद हम लोग क्या देखते हैं कि टेबल पर वही फैन्स और चोक सजाये जा रहे हैं जो हम लोगों ने मिल कर चुराए थे. अब हम लोगों को काटो तो खून नहीं.. शर्म के मारे हालत खराब हो रही थी. हम लोग समझ गए कि चोरी पकड़ी गई. अब हमारे प्रिंसिपल ने हम लोगों की तारीफ़ करनी शुरू की.. पांच हज़ार बच्चों के सामने बताया कि हम ही लोग थे वो चोर. उसने उस दुकानदार को भी बुला लिया था. वो भी असेम्बली में खड़ा था. वो टीचर भी आ गया गवाही देने. अब हम लोगों की ख़ैर नहीं थी यह हम लोगों की समझ में आ गया.
हमारे प्रिंसिपल ने एक पतला सा डंडा रखा हुआ था ... उस डंडे का नाम उसने गंगाराम रखा था. गंगाराम जिस पर भी पड़ता वो सीधा हॉस्पिटल जाता था. और जहाँ पड़ जाता था ...वहां से चमड़ी भी साथ लेकर निकलता था. अब प्रिसिपल ने चपरासी से कहा कि जाओ गंगाराम को लेकर आओ. गंगाराम आ गए. चपरासी रोज़ कपडे को तेल में डुबो कर गंगाराम की मालिश किया करता था. बस फिर क्या था.. सुबह -सुबह जो मार पड़ी कि आज तक याद है. मुझे तो प्रिंसिपल ने नीचे गिरा कर लातों से भी मारा था. उसको मेरे सीने के बालों से बहुत चिढ थी... हमेशा कहता था कि सीने के बाल नोच-नोच कर मारूंगा. प्रिंसिपल मुझे लीडर समझता था. कहता था कि यह शक्ल से धोखा देता है. एक और मजेदार बात बता रहा हूँ . हमारे स्कूल में हिंदी का नया टीचर आया था ...वो क्लास में सबका इंट्रो ले रहा था... मेरी बारी आई ...मैंने भी अपना इंट्रो दिया. उसके बाद वो टीचर बोलता है कि बड़ा भोला बच्चा है. इतना सुनते ही पूरी क्लास हंसने लग गई. बेचारे! के समझ में आया ही नहीं कि सब लोग क्यूँ हंस रहे हैं. बहुत दिनों के बाद उसके समझ में आया कि उस दिन सब लोग क्यूँ हंस रहे थे.
ख़ैर! हम लोग पांच हज़ार बच्चों के सामने मार खा कर क्लास में गए टूटे-फूटे. लेकिन शर्म नाम की चीज़ हम लोगों के चेहरे पर बिलकुल भी नहीं थी. क्लास में पहुँचते ही हम लोगों को देख कर पूरी क्लास खूंब हंसी... हम लोग भी खूब हँसे. हँसते हँसते बीच में यहाँ वहां दर्द भी हो उठता था. थोड़ी देर के बाद हम लोगों का सस्पेंशन आर्डर लेकर चपरासी आ गया. हम लोगों के लिए सस्पेंड होना आम बात थी. With immediate effect हम लोगों को स्कूल छोड़ने और अपने-अपने गार्जियंस को लाने का आदेश था. हम लोगों ने अपना अपना बैग उठाया... पूरी क्लास हम लोगों को विदा करने गेट तक आई और अश्रुपूरित आँखों से सबने हमें विदाई दी. सब लोगों ने कहा कि जल्दी आना नहीं तो पूरा स्कूल सूना-सूना लगेगा. यह विदाई साल में पांच-छः बार ज़रूर होती थी. हमने भी जल्द ही दोबारा आने का वादा कर के सबसे गले मिल कर विदा लिया. उसके बाद घर पर क्या हुआ वो मैं बता नहीं सकता.
90 टिप्पणियाँ:
हा हा हा हा हा..
महफूज़ मियाँ..
अपने प्रिंसिपल साहेब को हमारा थैंक्यू कहियेगा....सही लात-घूँसा पड़ा आपको .....आपका यह संस्मरण पढ़ कर हँसते-हँसते बुरा हाल हुआ है मेरा....
सच आप जैसे भी है....सच्चे इंसान तो हैं हीं...और आपकी यही बात सबसे अच्छी लगती है...
चाह कर भी गुस्सा नहीं कर पाते हैं हम ...:):)!!
जो सब के सामने हुआ वो बता दिया। जो घर में हुआ उसे छुपा दिया।
चलो कोई बात नहीं घर की बात घर में रहे अच्छी बात है।
आपका यह संस्मरण पढ़ कर मजा आया
अरे मियाँ...आधी बात काहे बताते हो?...घर जा कर कितनी पड़ी?...इसका भी खुलासा कर देते तो आपकी पोस्ट में चार चाँद लग जाते :-)
संस्मरण रोचक है जी!
एक राज की बात बताऊँ-
उदण्ड बालक ही मेधावी होते हैं!
सच है ये कमबख्त शक्ल बहुत धोखा देती है :) हा हा हा ...बहुत मजेदार बातें थीं मजा आया.....घर आकर जो धुलाई हुई वो भी बता देते..ही ही..हाँ उन दोस्तों से अब मुलाकात होती है? क्या गज़ब होता होगा जब सब मिल जाते होंगे?.
प्रिंसपाल के गंगाराम की कहानी के बाद, पापा के सुधार सिंग की कहानी हम सुनेगें ब्रेक के बाद अगली किश्त मे।
तब तक आप कहीं जाईगा नही
मिलते है ब्रेक के बाद
मै, महफ़ुज मिया और आप
अरे महफ़ूज़ मियां , गोया ये तो कमाल रहा , हम खुद इस स्कूल जी बिल्कुल लखनऊ के सेंट्रल स्कूल में ही पढे हुए हैं मगर यार ये कमाल आपने बाद में किया होगा , चलो समझ आ गया कि आपको लिटा लिटा कर मारा गया है पहले ही, हाय आशिकों का क्या हाल करते थे पहले के मा साब लोग , उन्हें पहले ही पता चल जाता होगा कि बाद में तो मौका मिलेगा नहीं अभिए निकाल लेते हैं सारी कसर ..बहुत खूब अब अगली बार घर की बात भी हो ही जाए
अजय कुमार झा
छोटे मियां चोरी करना अच्छी बात नहीं है।
हाँ किसी का दिल चुरा लिया हो--- तो कोई बात नहीं।
वैसे शरारती लड़के अक्सर आगे जाकर सफलता की सीढियां चढ़ते हैं। ये बात आपने सिद्ध कर दी।
घर की भी बता ही दो भाई क्या रखा है छुपाने मे सम्झ तो सब गये .
Bro... jitni badmaashiya kar sakte they sabhi kari hai aapne to..., acchi baat yeh hai aap main ki aap sabhi baate nikhalasta se accept bhi karte hai.. ese hi sacche insaan bane rahna hamesha...!
बाबा! बचपन बडा खूबसुरत होता है ,जिन बातों के जिक्र मात्र से 'तब' शर्मिन्दगी होती थी
उसी को हम कैसे हंस हंस कर याद करते है और शायद ये कहना भी नही भूलते कि बचपन मे हमने एसी stupid हरकतें की थी .
बाप रे इतनी पिटाई ! बडे उदन्ड्डी थे तुम ,दुष्ट !.
वैसे जो बच्चे पढ्ने मे अच्छे होते हैं उनकी शरारतों को भी टिचर्स पसन्द करते हैं .
पर चोरी ? कोई बात नही,समय रहते सुधर गए .
शायद ' दोनो ' तरफ की डोज का असर था .हा हा हा
तुम्हारा ईमान्दारीपूर्वक सब बोल देना अच्छा बुरा जो भी है या किया
यही तुम्हारी चारित्रिक विशेषता है,जो तुम्हे दूसरों से अलग करती है.
मगर यंग बच्चों के सामने जब इस घटना का जिक्र करो तब उन्हे अहसास दिलाना तुमने जो किया वो एक भूल थी
जो बच्चों को नही करनी चाहिए क्योंकी तुम्हारे व्यक्तित्व से जरुर कई लोग प्रभावित जरुर हैं और होंगे
तुम कई youngsters के 'रोल-मोडल' भी होंगे,कोई गलत प्रेरणा न ले ,सावधानी जरुर रखना .
पर सारे शरारतियों ने समाज मे ,जीवन मे अपना एक मुकाम बनाया,ये गर्व कई बात है
दोनो शहीदो को SALUTE
इसमे कोई शक नही, लिखने की तुम्हारी अपनी एक शैली है ,जो असर छोड्ती है
प्यार
मम्मा
:)
mazaa aa gaya
आपके तो और भी गज़ब के संस्मरण होंगे....
बहुत इमानदारी से आपने बचपन तो नहीं किशोरावस्था की बात बताई....वैसे ये सही है कि जो ज्यादा शरारती होते हैं बच्चे वो मेधावी होते हैं....बहुत खूब
गंगा राम भी थक गया, लेकिन मुन्ना भाई सीधा नही हुया, मजे दार
bhai vo gangaraam kahaan hai aaj kal ?
mazaa aa gaya....
vo jawaani jawaani nahin, jiski koi kahaani na ho...
kaash! main bhi aapka dost hota ..bakra-vakra to main khaata nahin, par do-char cigret to khinch hi leta ,,,ha ha ha ha
aaj main bahut khush hoon, mera beta aaj mujhe shaitan nahin farishta lagne laga hai kyonki jis prakaar vah school me maar khaata hai us se ye saaf hai ki ek na ek din ias ya aps banega ..ha ha ha ha
महफूज़ जी दिलचस्प किस्से हैं आपके तो .....शरारती तो हम भी थे गायब भी रहे कई बार ....मार भी खाई .....गार्जियन को बुलाने को कहते तो दीदी को ले जाते ....पर आप तो बिलकुल ही होनहार थे .....!!
बहुत मजेदार संस्मरण !!
मुझे पता है घर वालो को पिटाई की ज़रूरत ही नहीं पड़ी होगी ..क्योंकि कोई जगह बची ही नही होगी जहाँ चोट नही हो .. वैसे नकली बैंडेज वाला नुस्खा कभी अपनाया या नही ?
बहुत ही मजेदार संस्मरण । पढ़कर हंसते - हंसते लोट पोट हो गया मैं ।
hanste hanste pet me dard ho gaya bhaia... wo situation imagine kar raha tha jab aap sab seena chauda kiye dais pe khade honge aur achanak scene change ho gaya....
Gangaram ki to mauz aa gayi us din.. bhavishya ki itni mahan mahan hastiyon ko sparsh karne ka mauka jo mila.. ha ha ha...
har kisi ke sath aisa koi na koi mauka aata hai life me... kuchh aise hi bhuladene wale ya kahen ki ab hansane wale raaz mere bhi hain.. lekin yahan nahin kabhi blog pe fursat me..
Jai Hind...
क्या बात है,महफूज़ मियाँ...ज़िन्दगी में कुछ भी बाकी नहीं रखा..सारे अनुभव ले लिए...बहुत ही मजेदार संस्मरण और इतनी साफगोई से बता डाला..बहुत मजा आया.
हा हा हा हा हा..
महफूज भाई मेरी चोरी आज नहीं पकड़ी गयी
बहुत ही सुन्दर और रोचक संस्मरण है! पढ़कर बहुत अच्छा और मज़ेदार लगा!
बहुत ही गज़ब का किस्सा सुनाया आपने तो..
बस मज़ा ही आ गया... :)
घर में क्या हुआ??
बाकी तो सब पढ़ लिया.
No doubt,your language style leaves effect on the heart....But after reading this I feel that you are really good and true person.
ऐसे होनहार भाई से ऐसे संस्मरण की उम्मीद ही की जा सकती है ....होनहार वीरवान के होत चिकने पात... बचपन से मार खा कर ढीठ हो गया है ....कितना ही समझा लो कुछ असर नहीं होता है ....पिटने लायक काम तो तूने अब तक नहीं छोड़े हैं ...:) :) .....
और प्रिंसिपल और टीचर के आगे साहब नहीं लगाया पर उनके लिए आप शब्द का इस्तेमाल तो कर लेता ..
nice
सुन्दर संस्मरण!
सच तो यह है कि चोरी करना अपराध नहीं बल्कि चोरी करते हुए पकड़ा जाना अपराध है।
वाह महफ़ूज भाई मजा आ गया, हमने भी बहुत कारनामे किये हैं पर सच कहूँ कि हम में आपके जैसा सच बोलने की हिम्मत नहीं है, क्योंकि इतने कारनामे अंजाम दिये हैं कि किसी को पता चल जाये कि इन कारनामों के पीछे हम लोग हैं तो पता नहीं लोग तो हमें आज भी न छोड़ें, हाँ बस आज तक पकड़े नहीं गये। इसलिये हम जैसे दिखते हैं, लोग हमेशा हमें वैसा ही समझते हैं, बिल्कुल सीधा।
मेधावी छात्र अक्सर थोड़े बहुत बदमाशी भी करते हैं , ऐसा मेरा अनुभव है . पर सभी अच्छी जगह पर हैं यह बहुत ही ख़ुशी की बात है . आप सबों को शुभकामनाएं !!
आज तुम्हारे ब्लॉग को पढ़ते समय सोच रहा था कि इस अछे दिल के लड़के के लिए "अच्छा बच्चा" ही लिखना ठीक रहेगा ! मगर अंत में इस लेख को पढ़ा और लगा कुछ करेक्शन के साथ ठीक रहेगा ! सो तुम्हारे लिए फिर भी ,,,
"अच्छा बच्चा "!
शुभकामनायें !!
गंगाराम को पिलाया तेल काम आगया. अब घर आकर क्या हुआ वो कौन बतायेगा? अगली पोस्ट मे बता रहे हो या मैं लिखूं?:)
रामराम.
sahi hai, kam se kam esi bahane ye bhi pata chal gaya ki koi blogjagat me chor bhi hai, badhiya laga padhakr.
" यह संस्मरण पढ़ कर आपको पता चलेगा कि मैं स्कूल में कितना बदमाश किस्म का लड़का था. चंचलता व बदमाशी तो आज भी इस उम्र में भी (?) करता हूँ..."
चेहरे से ही झलकती है , बताने की जरुरत ही क्या है महफूज भाई ? हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा !
There is a saying here
" what happens in (Las )
Vegas , stays in Vegas "
So the story about what happened at home -- > still remains "untold "
Nice memories - nice article.
ये साला "गंगाराम" हर स्कूल में होता है, नाम भले ही अलग-अलग हो…
hum to aaj kal apki post nhi padh pa rahe hai. kya kare par sabke comment read karke jaana ki post mazedaar hogi ....
महफूज अली मिला..कुछ हटके हटके।
संस्मरण अच्छा है बोले तो इंट्रेस्टिंग ....
हाँ , उद्दंडता मेधावी होने की आवश्यक शर्त कतई नहीं है ..
गिरिजेश राव जी ने कहा....
टिप्पणी यह है, शायद जमे न इसलिए मेल कर रहा हूँ:
दु:खी हो गए यह राज जान कर कि उदण्ड बालक ही मेधावी होते हैं!
वीरगति पाए आप के साथियों मनोज और गुरजिंदर सिंह सूरी को श्रद्धांजलि।
अध्यापकों के प्रति आदरसूचक सम्बोधन हर मेधावी को करना चाहिए। कुछ भी हो अध्यापक ही हमें सँवारते हैं।
महफूज भाई, सोचता हूँ कि इतने गहन संस्मरणों को आप कैसे जाया कर देते हैं! खिलन्दड़पन वाकई कमाल का है लेकिन वह ऊष्मा कहाँ खो गई जो आप के पिताजी वाले संस्मरण में दिखी थी? सृजन करते अनुभूतियों की आरी तले जाते क्यों घबराते हैं? बार बार चिराने के बाद भी उनसे गुजरना अच्छा होता है।
आखिर आप बचना क्यों चाहते हैं ? श्रीकांत वर्मा की पंक्ति है "जो बचेगा कैसे रचेगा !"
..हाँ अगर यह कहना है कि हम ब्लॉगर ऐसही करबे तोहके का? त भाई हम कुच्छु न कहि पाइब ।
गंगाराम ने हालत पतली कर दी..भाई और भी डंडे खाए होंगे जब ऐसे हाल थे तो डंडे की किस्सा जारी रखिए..महफूज़ भाई यह पल ऐसे होते है जिसे हम जिंदगी भर भूल नही पाते आपने भी ऐसे ही एक यादगार क्षण की झलकियाँ पेश की बहुत बढ़िया लगा..कुछ शरारत बताइए....
@ वाणी दी....
दी... दरअसल इसको लिखते वक़्त मैंने एकदम खिलंदड़ अंदाज़ अपना रखा था.... क्यूंकि इसका फ्लो तभी बन पा रहा था.... टीचर्स के लिए आदरसूचक शब्द इसलिए नहीं लिख पाया.... क्यूंकि... फ्लो से वो मिसमैच हो रहा था.... इसको लिखते वक़्त मैं स्कूल टाइम में जा चुका था..... इसको लिखते वक़्त मैं वही सत्रह साल का बच्चा बन कर लिख रहा था....
लोग यहाँ पालतू हल्ला मचाते हैं
ब्लॉग जगत में चोर चोर चिल्लाते हैं
चोरी रोकने न जाने क्या क्या यंत्र लगते हैं
आप तो इनके प्रिंसिपल बन जाओ
सबको गंगाराम का प्रसाद चखाओ
"यह शक्ल से धोखा देता है."
उस प्रिंसिपल को सलाम
बढ़िया रहा यह संस्मरण :)शुक्रिया
interesting!
लेकिन अब तो सुधर जाओ महफूज भाई....
--------
वह काली सुबह फिर कभी न आए...
पैडल से चलाइए, डुबकी भी लगाइए।
हंसते-हंसते बुरा हाल हो गया... लेकिन महफूज़ भाई चोरी करना पाप है... हां सुक्खी का इंट्रोडक्शन बड़ा मज़ेदार है...
" bahut hi badhiya sansmaran ....hastey hastey behaal ho gaye hum ...bahut hi badhiya "
---- eksacchai { AAWAZ }
आपकी शरारत से ज़्यादा अच्छा लगा आपके दोस्तों के बारे में पढ़कर।
बहुत ही सुन्दर संस्मरण लगा, आपके साथ-साथ आपके दोस्तों को भी जाना,और गंगाराम को भी, इन सबसे अच्छा है आपका इतनी साफगोई से लेखन जो एकदम सजीव हो उठता है....आभार ।
:-)
मज़ेदार संस्मरण!
... मीठी-कडवी और खट्टी-मीठी यादों से ओतप्रोत संस्मरण .....बहुत खूब !!!!
aapke doston ke bare mein padh kar
bahut achcha laga.........
aur bechare hindi ke teacher ki halat
560 kamre waqayi badha school tha aapka
aur pitayi sahi hai aap waqayi bahut shitaan the
magar ye sab yaaden to ab zindgi ko meetha banati hongi
bahut achcha sansmaran
bahut khoob bhaijaan...!!
मुझे पता है घर वालो को पिटाई की ज़रूरत ही नहीं पड़ी होगी ..क्योंकि कोई जगह बची ही नही होगी जहाँ चोट नही हो .. वैसे नकली बैंडेज वाला नुस्खा कभी अपनाया या नही ?
घर आ कर क्या हुया ये भी भला बताने की बात है? मैने डंडे से खूब पिटाई की थी। अब अगर शरारत की तो सब को बता दूँगी कैसे पीटा था ---- हा हा हा रोचक स्कूल का ये लोगो भी चुरा कर ही लाये थे न?
टिप्पणी नंबर इकसठ
चोरी तो हम भी करते थे
और सफलता की सीढियां नहीं
आप तो लिफ्ट से ही चढ़े होंगे
।
क्या क्या करते थे आप स्कूल में !
रोचक !
interesting
आपकी मित्र मंडली ने देश को अमर शहीद मनोज जैसे सेनानी दिये हमे गर्व है।
आपकी पूरा संस्मरण बहुत ही अच्छा लगा।
क्षमा करे, पिछली पोस्ट नही पढ़ पाया।
sharaarat...to nahi keh sakte ise paiso k liye ek buri lat kehna chahiye...jise aapke principal k gangaraam ne sudhar diya..
lekhan flow me tha...acchha laga.
aapke shaheed saathiyo ko meri shradhhanjali.
jabardsat post hai yaar.....mahfooz!
bachpan ke dinon me aapki shararaton ko padh kar maza aa gaya....!
vakai aap veerta award ke hakdar hain.....
बहुत मज़ेदार संस्मरण. शहीदों को सलाम. अमलेन्दु को फ्रस्ट्रेट होने की ज़रूरत नही है, शिक्षक होना भी इतना ही महत्वपूर्ण है. शिक्षकों के प्रति आदरसूचक सम्बोधन का अभाव आपके स्पष्टीकरण के बावजूद भी खल गया. वैसे पढ कर हँसी बहुत आई.
उसके बाद घर पर क्या हुआ वो मैं बता नहीं सकता.
Kyon nahin ..... Kyon nahin
Are bhaii TUM THE BIGDAIL , THE NA
ISKA PATAA SABKO LAG HII GAYA
TO FIR AB KAHE KII SHARAM
AB BAN HII JAO PAKKE......
BATA DO SAB KUCHH
उसके बाद घर पर क्या हुआ ?
HAM KITNE THE BIGDAIL
YEH TO KISII KO PATA HII NAHIIN HAI
वाह महफूज़ भाई ......... आपने तो हमें भी स्कूल के डंडों की याद ताज़ा करा ही ....... आप जितने तो कलाकार हम नही थे पर आज भी किसी के बचपन की दास्तान सुनता हूँ तो मन में गुदगुदी सी उठती है ..... आपका किस्सा बहुत ही जोरदार है ... पर ये जान कर अच्छा लगा की सब दोस्तों ने शैतानियों के साथ साथ अपनी पढ़ाई पर भी उतना ही ध्यान रखा और जैसा की आपकी पोस्ट से लग रहा है ...... आज सबको इन उँचाइयों पर देख कर अच्छा लगता है ...........
Mehfooz ji apne sath sath apne dosto ki bhi pol-patti khol di aapne to....
संस्मरण अच्छा लगा...साहसपूर्ण तरीके के से सचाई को बताया है.उम्र के इस पड़ाव की शरारतें जीवन भर की मधुर स्मृतियों के रूप में मन मस्तिष्क पर अंकित रहती है.
waah.....ye to yaadgaar ghatanaa hai aap ke jeevan ki.....
आपका संस्मरण पढकर बढा मज़ा आया । कोई तो मिला सेर को सवा सेर ।
मेरे जैसा प्रिंसिपल होता तो तुम्हे प्रेयर ग्राउंड में स्टेज पर बुलाता...तुम्हारे गले में ढेर सारी मालाएं डालता...फिर कहता...बेटा तू जीता, हम हारे...अब हम पर रहम कर...
जय हिंद...
आनंद आ गया !!! आनंद का दादा भी आ गया !!! हा..हा.. बड़ी खतरनाक शैतानीया थी!!
बड़ा ही अच्छा संस्मरण है. तभी मैं कहूँ की दिल्ली में लोगों अपराध करने की प्रेरणा कौन दे रहा है? ह...ह....हा .. ह़ा ह़ा ..
सोच कर ही डर लग रहा है की अगली पोस्ट में ना जाने किस किस्म के कारनामों से गुजरना पड़ेगा
hahahahaha..........shararati bachche ...........man ke sachche............bahut hi mazedar raha kissa.........bilkul tumhari tarah.........jaise pahle shararti the vaise hi aaj bhi ho..........keep it up
आपके पोस्ट मे पोस्ट के साथ साथ टिप्पणियो को भी पढने मे आनन्द आता है, हिन्दी ब्लागजगत के मित्रो का आपके प्रति उमडता प्रेम हमे चिढाता है.
मियाँ आटोबायोग्राफी की तैयारी कर रहे है लगता है, लगे रहो, सही रास्ते मे हो. :)
Bahut mazedaar..bade dinon baad is tarah se hans padee!
Gantantr diwas kee dheron shubhkanayen!
बढिया है. गणतंत्र दिवस मुबारक हो.
गणतंत्र दिवस पर हार्दिक शुभकामनायें.
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.......
आपको और आपके परिवार को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
Happy Republic day!!
अपने बारे में तो सभी लिखते हैं मगर इतने साफगोई से लिखा कम ही पढ़ने को मिलता है. सभी अपना उजला पक्ष ही प्रस्तुत करते हैं स्याह पक्ष को छुपा जाते हैं. आपके इस अंदाज ने मन मोह लिया.
आपको गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
मनोज मेरा बैच-मेट था अकेडमी में...
jai ho mahfooz ji , bas.... ab ek baar aapse milna hai ...
aapka
vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com
hahaha...are mehfooz bhai kuch to apne din bhi yaad aa gaye... lekin hum aap se kam hi padengen......zbardast gang thi aap ki to ...
vaise mai apko janta to nahi hu..
lekin apka lekh pada..
to socha comment hi kar du..
really..
kafi achha likhte ho..
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