आज एक छोटा सा हादसा हुआ. हुआ क्या कि मैं गोमतीनगर से सी.एम.एस. स्कूल के रास्ते हज़रतगंज जा रहा था कि विपुल खंड के मोड़ पर एक बुज़ुर्ग साहब के स्कूटी को मैंने टक्कर मार दी हालांकि टक्कर हलकी थी फ़िर भी वो बुज़ुर्ग बगल में खुदी सड़क के किनारे बने गड्ढे में जा गिरे. मैं फ़ौरन अपनी कार रोक उनके पास भागा और देखा कि स्कूटी समेत बेचारे गड्ढे के अंदर हैं किसी तरह मैंने उनको बाहर निकाला फ़िर उनकी स्कूटी को. बलिष्ठ होने का यही फायदा है कि आपको जहाँ ताक़त दिखानी चाहिए वहां आप आसानी से ताक़त दिखा सकते हैं. गड्ढे से देखा तो भीड़ इकट्ठी हो चुकी थी अब डर यह था कि कहीं भीड़ मुझे ना धुन दे? स्कूटी अकेले बाहर निकाल कर रख दी... बुज़ुर्ग अंकल को चोट नहीं आई थी और फ़िर वो भी अपनी गलती महसूस कर रहे थे. उन्हें पूरा चौराहा पार कर के आना चाहिए था और वो सीधा ही निकल आये. अब सफारी के आगे स्कूटी वैसे भी तिल्ली लगती है दिखाई नहीं दी. और हलके टक्कर से गड्ढे की ओर मुड गए. और फ़िर मेरे जैसा नया नया एस.यू.वी. चालक (ड्राईवर) तो कुछ ना कुछ तो होना ही था. ख़ैर! भीड़ ने मुझे पहचान लिया और फ़िर मेरे ऐटीट्युड को देखते हुए ख़ुद ही दूर हो गई.
[यह सुबह सुबह जॉगिंग करते वक़्त]
मुझे ऐसा लगता है कि बुजुर्गों को गाडी वगैरह नहीं देनी चाहिए. उनसे कंट्रोल नहीं होती है. और कोई हादसा अगर होता है तो हर हादसे में सेंट-परसेंट गलती बुजुर्गों की ही होती है, लेकिन पिटता हमेशा दूसरा ही है. मैं तो हमेशा जब भी किसी बुज़ुर्ग को सड़क पर ड्राइव करते या सड़क पार करते देखता हूँ तो ख़ुद ही रुक जाता हूँ, उन्हें पहले पार करने देता हूँ या आगे जाने देता हूँ या फ़िर सही साइड देख कर निकल लेता हूँ. कभी भी बुजुर्गों और जानवरों के सामने से गाडी नहीं निकालनी चाहिए क्यूंकि यह दोनों हमेशा आगे की ओर ही भागते हैं.
[सफ़ेद टी-शर्ट में मेरे जिम ट्रेनर के साथ मैं लाल टी-शर्ट में]
अभी हमारे हिंदुस्तान में सरकार ने लोगों को फोर/सिक्स लेन हाई वे जैसी फैसिलिटी तो दे दी है लेकिन हाई वे पर कैसे चला जाए यह नहीं बताया है? अभी भी हाई वे पर अचानक से जानवर और साइकल वाले निकल आते हैं और ज़्यादातर जाहिल लोग अचानक से गाडी मोड़ या रोक देते हैं. जिससे कि पीछे वाले को दिक्कत होती है. अभी मेरे साथ ऐसा ही हुआ था... गोरखपुर से लौट रहा था ...हमारे कार के आगे एक और कार जा रही थी... उसकी भी स्पीड सौ के ऊपर थी और उसने अचानक से ब्रेक लगा दिया सिर्फ पान थूकने के लिए. हमारी कार उससे जा भिड़ी हमारी कार को ज़्यादा नुक्सान नहीं हुआ उल्टा उसकी कार पीछे से दब गई. वो हमसे झगड़ने लगा. मैंने उसे क़ानून और तहज़ीब सिखाया वो नहीं माना तो हर्जाना देने के बहाने मैंने उसे कार के अंदर बुला लिया और फ़िर अपने ड्राईवर से कहा कि अब कार भगा ले चलो. उसे मैंने अपनी कार में बहुत मेंटल टौरचर किया और करीब बाराबंकी के पास नब्बे किलोमीटर दूर छोड़ दिया. बेचारे को अच्छा सबक मिला होगा. इतनी देर में मैंने उसे सारे ड्राइविंग रूल्ज़ सीखा दिए थे. अब उसने तौबा कर लिया होगा कि कभी भी रौंग ड्राइविंग नहीं करूँगा और मुझे तो ज़िन्दगी भर याद करेगा और कर रहा होगा. जब हमारा कॉन्फिडेंस लेवल हाई होता है ना तो गुंडई करने का मज़ा ही अलग होता है. वैसे मेरी अंग्रेज़ी बोलने वाली पर्सनैल्टी देसी गुंडई से मैच नहीं खाती .. लेकिन यही तो मज़ा है धोखा देने में.. अब सरकार को ट्रैफिक रूल्ज़ के ऊपर भी जागरूक करते हुए टी.वी. में ऐड देना चाहिए "जागो ग्राहक... जागो". स्कूल्ज़ में एक ट्रैफिक रूल्ज़ पर भी चैप्टर या सब्जेक्ट होना चाहिए.
[यह जहाँ मैं स्विमिंग करने जाता हूँ ... वहां का एक प्यारा दोस्त]
ऐसी आप बीतियाँ लिखने का भी एक अलग मज़ा है. आईये ज़रा अब कविता देखते हैं. पिछले एक साल के दौरान ढेर सारी कवितायें लिखी थीं, उन्हें ही धीरे धीरे पोस्ट करता रहता हूँ.
[लोग मुझे आत्म-मुग्ध कहते हैं... संगीता स्वरुप जी कहतीं हैं बच्चा है ही ऐसा :)... जब हमारे पास अपनी इतनी फ़ोटोज़ हैं तो गूगल से क्यूँ लें भला?]
अखब़ार की लाचारगी...
दिन अखबार की तरह
सुबह-सुबह रोज़
मेरे कमरे में आकर
गिर जाता है और
शाम तक
मैं उसी पर नज़रें गडाए
मजबूर रहता हूँ ....
वही
घायलों की ख़बरें,
हत्याओं के समाचार ,
आवश्यकताओं के विज्ञापन
और
बेरोज़गारी की लाचारगी.
(c) महफूज़ अली
जब भी हम किसी से भी सहमत नहीं होते हैं तो वो असहमति सिर्फ हम अपने लिए ही जताते हैं. लेकिन जाहिल इन्सान इसे हमेशा दूसरों का लिया बदला ही समझते हैं. अरे! भई... हम जब भी लड़ेंगें तो सिर्फ अपने लिए ही लड़ेंगें दूसरों के लिए लड़ने सिर्फ बेवकूफ ही जाते हैं. राजनीतिज्ञ भी जब भी दूसरों के लिए लडेगा तो सिर्फ और सिर्फ अपना ही फायदा देखेगा. बिना मतलब में कोई किसी के लिए तब तक के लिए नहीं लडेगा जब तक के वो उसका कोई अपना ना हो.
आईये अब अपना फेवरिट गाना दिखाता हूँ.