मैं फेसबुक पर देखता हूँ कि कई लोगों ने देशभक्ति का ठेका ऐसे ले लिया है कि बाक़ी लोग उन लोगों के सिवाय कोई देशभक्त हैं ही नहीं. इन लोगों को पता नहीं कि ऐसे फेसबुक पर लिखने से देश और धर्म में कोई बदलाव नहीं आता उल्टा बेवकूफों की इमेज बनती है. देश सेवा समाज में और समाज के लिए अच्छे काम करने और अच्छे आचरण से बनती है. देश सेवा गरीबों और आम जनता में दुःख दर्द बांटने से होती है. आम जनता की समस्याओं को सौल्व करने से बनती है. यह ऐसे लोग हैं इन्हें लगता है कि फेसबुक पर लिख दिया और हो गई देश सेवा और तो और इनके लिए देशसेवा से मतलब है कि किसी भी पार्टी को गालियाँ दो.
अरे भई.. इतने ही काबिल हो तो फील्ड में उतर कर काम करो, एम.पी./एम.एल.ऐ. बनकर समाज का भला ज़्यादा करो . कुछ लोगों को गलतफहमियां हो गईं हैं कि मिस्र में और एकाध देश में क्रान्ति फेसबुक से आई है और यह भी फेसबुक से ले आयेंगे, इन्हें यह नहीं पता कि फेसबुक ने सिर्फ कम्युनिकेट किया क्यूंकि उन देशों में सेल फोन्ज़ और बाक़ी मिडिया पर बैन हो गया था. और उस कंडीशन में फेसबुक ही काम में आया था. यह वो जाहिल हैं जो ख़ुद को बदलने की बजाये देश को बदलने की बात करते हैं लेकिन धर्म और जात-पात से ऊपर नहीं आ पाते. अरे! ख़ुद को बदल डालो देश अपने आप बदल जायेगा. फेसबुक से देशसेवा नहीं होती ना ही कोई सीरियसली लेता है. एक बात मैंने देखी है जब कोई भी आदमी अपनी ज़िन्दगी में कुछ नहीं कर पाता.. आम आदमी, कलर्क/मास्टर/कंप्यूटर ओपेरटर/किराना दुकानदार/पत्रकार या फ़िर कोई नगर निगम कर्मचारी टाइप या फ़िर सब चलता है टाइप बन कर रह जाता है, और बहुत ज़्यादा सब-ऑर्डिनेशन में ज़िन्दगी गुज़ारता है तो वो देश सेवा, देश बदलने और दूसरों को और सिस्टम को गालियाँ देने के सिवाय और कुछ नहीं कर पाता.
जब आप ज़िन्दगी में नालायक रहोगे तो फ्रस्ट्रेशन में दूसरों की कमजोरियों निकालोगे....घरों में ताका -झांकी करोगे, और फ़िर और फ्रस्ट्रेट होगे. इनका हाल उस मर्द की तरह होता है जो सेक्सुअली कमज़ोर होता है. जब मर्द सेक्सुअली कमज़ोर होता है तो वो सबसे पहले अपने ही घरों की महिलाओं पर गुस्सा उतारेगा, बीवी को डांटेगा, उसे गालियाँ देगा और जब ज़्यादा मर्दानगी दिखानी होगी तो मारेगा. क्यूंकि सेक्सुअली कमज़ोर आदमी सिवाय मारने के और गरियाने के कुछ और कर नहीं सकता. सेक्सुअली कमज़ोर आदमी सबसे पहले महिलाओं पर ही मर्दानगी दिखाते है. इसी तरह इस टाइप के देशभक्त होते हैं.. इन्हें "देशभक्ति" कह कर और दूसरों को गाली देकर दिखानी पड़ती है.. बाप पदै ना जने और पूत शंख बजावे वाला हाल होता है इनका. अगर लिखने से ऐसे ही देश बदलता तो आज हर कोई लिख ही रहा होता.
अब मेरी एक कविता:
आज़ादी के घाव अब भी हरे हैं..
देश जब आज़ाद होते हैं,
उनके जिस्म पर
स्वतंत्रता प्राप्ति के घाव होते हैं,
उन्हें भरा जाता है,
मगर आज़ादी के घाव अब तक हरे हैं
क्यूंकि
देश का चिकित्सक
रोज़ घाव साफ़ करने के बाद भी
उसमें कांच के टुकड़े रख देता है,
ताकि
उसकी ज़रुरत
बनी रहे.
( ऐसे ही है यह फ़ोटोज़.. नथिंग टू डू विद द पोस्ट..)
आईये अब मेरा फेवरिट गाना (ग़ज़ल) देखा जाए।