###कविता: इतिहास के अतीत से देश के वर्तमान तक###
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सुनता था ईंटों को
दीमकें नहीं खातीं
संग्रहालय के चित्रों को
मौत नहीं आती....
एक खाकी धुंधला रंग
नन्हों की स्कूल दीवारों पर
टंगा रहता है,
इतिहास के अतीत में
जकड़ा भविष्य
छूट जाता है
और देश का वर्तमान
धर्म के रंग में खो जाता है.
(c) महफूज़
6 टिप्पणियाँ:
सार्थक प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (11-01-2015) को "बहार की उम्मीद...." (चर्चा-1855) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह कमाल ..चाँद शब्द और ढेर सारा विस्तार
हैरान हूँ आपके ब्लॉग तक क्यूँ नहीं पहुची थी अब तक ..
टिप्पणी बक्सा खुला मिल गया :)
सुशील जी .... स्वागत है आपका.....
दिल की गहराइयों से निकले जज़्बात बिलकुल सही..... सटीक
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