सोमवार, 30 नवंबर 2009

अबे! साले, हंस क्यूँ रहा है?



एक और बड़ा अच्छा वाक़या याद आया है। बात उन दिनों की है जब मैं दसवीं क्लास में पढता था..... हमारे एक इतिहास के टीचर हुआ करते थे.... उनका नाम तो याद नही आ रहा है..... पर लंगूर नाम से पूरा स्कूल उनको जानता था.... यह नाम भी उनका इसलिए पड़ा था.... क्यूंकि एक तो वो ख़ुद भी बड़े लाल लाल थे....और दूसरा एक बार उनकी क्लास में लंगूर बन्दर घुस आया था.... तो बेचारे डर के मारे टेबल के नीचे घुस गए थे...तबसे उनका नाम लंगूर पड़ गया था......और वैसे भी लोग उनका असली नाम भूल ही चुके थे.  खैर.... मैं अपने वाकये पर आता हूँ।


एक बार वो हमें क्लास में इतिहास पढ़ा रहे थे..... तो किसी चैप्टर में इटली के महान दार्शनिक दांते (Dante) का ज़िक्र आया..... तो वो जब दांते के बारे में पढ़ा रहे थे...... तभी क्या हुआ की मेरे बगल में मेरा दोस्त अरुण साईंबाबा मुहँ बंद करके हंसने लगा.... तो हम कुछ लड़कों का गैंग था... सब उसकी उसकी ओर चोर नज़रों से देखने लगे.... हमने पूछा  कि  'अबे! साले हंस क्यूँ रहा है?'


तो उसने एक दूसरे  लड़के की ओर इशारा कर दिया जो कि बगल में दूसरी रो में बैठा हुआ था ... हमने उस लड़के की ओर देखा तो हम लोग सारी कहानी समझ गए.... कि  अरुण क्यूँ हंस रहा था?


दरअसल हमारे साथ एक लड़का पढता था जिसके दांत बिल्कुल सीधे बाहर की ओर निकले हुए थे.... तो अब हमारी क्लास में एक और नामकरण हो गया....उस बेचारे लड़के का नाम दांते पड़ गया...... उसके दाँत इतने बाहर थे कि मुंह बंद करने के बाद भी बाहर ही रहते थे.....और वो बेचारा अक्सर टीचर से डांट खा जाता था कि 'तुम बिना बात हँस क्यों रहे हो ?' तब पूरी क्लास एक सुर में बोलती थी,  'नहीं सर!!!!!  इसके दाँत ही ऐसे हैं ...' बेचारा टीचर भी झेल जाता था कई बार.  


और उस बेचारे का नाम दांते ऐसा पडा कि सही बता रहा हूँ....आज  भी उसको हम लोग दांते ही बुलाते हैं..... ख़ैर ! आजकल वो भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में  साइंटिस्ट है॥

79 टिप्पणियाँ:

Pratik Maheshwari ने कहा…

दांते कहाँ पहुँच गए हैं जनाब !!
पर यादें यहीं रह गयी :)

Arvind Mishra ने कहा…

हद हो महफूज भाई आप भी !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बढ़िया संस्मरण है!
नामकरण भी अच्छा किया गया है।

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत अच्छा संस्मरण है आशीर्वाद्

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

अरे हमने भी अपनी हिंदी की टीचर का नाम 'पोडल पकौड़ी' रखा था उनके रंग की वजह से....बाद में मुझे मेरे स्कूल में जब प्रतियोगिता के लिए judge बना कर आमंत्रित किया गया तो हैरान थी की उनका नाम तब भी 'पोडल पकौड़ी' ही था...
कितने तो नाम रखे थे हमने......हीरो सर, ब्रम्हचारी सर.....पता नहीं क्या क्या.....आपका आलेख पढ़ कर वो सब याद आ गया...
बहुत अच्छा लगा...पढ़ कर...
बधाई...!!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

VAAH MAHFOOZ BHAI .... MAJEDAAR VAAKYA ... ACHHAA VAAKYA HAI ..... BACHPAN KE SAATH AISE KISSE JUDE RAHTA HAIN JO BAAD MEIN SOCHNE PAR MAN KO GUDGUDA JAATE HAIN .....

डॉ टी एस दराल ने कहा…

क्या महफूज़ भाई, आज अपने टीचर को ही टांग दिया।
खैर किस्सा मजेदार रहा।

Unknown ने कहा…

achha hai ..chlo danto ke chalhi par aapne use yad to kiya...PAR YE ACHHI BAT NAHI KISI KI BADSURATI PE HASANA { AAPLOGO NE KABHI SACHA KI JAB AAPLOG USAKE DANT PAR HASTE HONGE TO WAH KITANA DUKHI HOTA HOGA ...

Unknown ने कहा…

KYA HAI KI MAI BHI BADSHURAT HU N TO MUJHE APNA DIN YAD AAGAY ...MUJHPE BHI BAHUT LOG HASATE THE ...

राजीव तनेजा ने कहा…

बचपन के दिन याद आ गए...बढिया संस्मरण

Mahfooz Ali ने कहा…

साधना जी..... प्लीज़ ऐसा मत कहिये..... आप इतनी अच्छी हैं..... और ऐसा कह रहीं हैं? आप बहुत अच्छी हैं सच्ची......

Mithilesh dubey ने कहा…

भाई जी बहुत खूब लिखा है आपने । घटनाएं तो सबके साथ होती है परन्तु आप जिस लहजे में उसे प्रस्तुत करते हैं वह उसे और भी यादगार बना देता है ।

सतीश पंचम ने कहा…

रोचक संस्मरण।

shilpa ने कहा…

hey nice one! I am very short tempered. So my classmates used to call me 'current'(electric shock), whenever i used to pass by them they would laugh and say '440 volt'. Apki post padkhar school ke din yaad aa gye. :)

shilpa

rashmi ravija ने कहा…

बहुत ही रोचक संस्मरण...दरअसल एक बहुत ही मजेदार वाकया याद आ रहा है..मेरी एक सहेली,किसी एक खिलाड़ी(am not going to divulge the name) की बहुत बड़ी फैन थी.बोलती थी..कितना अच्छा है,.हमेशा हँसता रहता है....बाद में पता चल कि......:)

Urmi ने कहा…

बहुत बढ़िया, मज़ेदार और रोचक संस्मरण है! आपका पोस्ट पढ़ते पढ़ते मैं अपने बचपन के दिनों के चली गई! वो सुनहरे दिन अब सिर्फ़ यादें बनकर रह गई हैं! आपने हँसता हुआ कार्टून ज़बरदस्त चुना है! इस उम्दा पोस्ट के लिए बधाई!

अपूर्व ने कहा…

भाई पहले तो आपको A+ शतरंज के दाँतदार बादशाह के लिए (चित्र मे)..कि अगर सफ़ेद प्यादे कम पड़ जायें तो कोई दिक्कत न हो...
पूरे ईगलीटेरिअन हो आप..स्टुडेंट्स और टीचर्स मे कोई भेद नही.जब नामकरण की बात आये...
;-)

M VERMA ने कहा…

अच्छा संस्मरण

Chandan Kumar Jha ने कहा…

हा हा हा । बहुत ही रोचक संस्मरण ।

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर संस्मरण लिखा आप ने हमारे एक हिन्दी के सर थे, जिनका नाम हम सब ने यानि रखा था.
बहुत सुंदर .
धन्यवाद

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत मजेदार संस्मरण रहा..रोचक!!

संजय भास्‍कर ने कहा…

lajwaaj sansmaran hai

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत बढ़िया, मज़ेदार और रोचक संस्मरण है!

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

तस्वीर देख कर समझ आया दांत हमेशा क्यूँ बाहर रहते थे .....!!

गज़ब की तस्वीर ढूंढी है आपने .....ये लाल लंगूर और दांते .....वाह ....!!

अब साइंटिस्ट है मगर दांत अन्दर गए या नहीं.....!!

मनोज कुमार ने कहा…

दिलचस्प संस्मरणात्मक विवरण

शरद कोकास ने कहा…

इस वाकये से याद आया कि कॉलेज मे मेरा भी एक नामकरण हुआ था .".कुक्की बॉस " अब यह क्यों हुआ था तुम्हे तो पता ही है ...।

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

कोलेज टाईम के ऐसे वाकये जब याद आते हैं तो मन में गुदगुदी होती है, अपने ऐसे एहसास से पहला एहसास को भी नवाजें.

shilpa ने कहा…

Oh! I forgot to mention, I am also going to use this missing children widget on my blog. I hope it helps in making a difference.

:)

shilpa

Dr.Aditya Kumar ने कहा…

we knew about philosopher Dante but you introduced us scientist Dante.Definitely ur friend had very strong will power.I admire his attitude.

sandeep sharma ने कहा…

इसी यादें अक्सर याद आती रहती हैं... बचपन की याद दिला दी आपने...

अबयज़ ख़ान ने कहा…

Mehfooz Bhai, Ham aksar jinhe kam aankte hai, vahi Aage Jakar Aasman Me urte hain.. Apke Daante Bahi bhi unhi Logon me shumar hain... Ap Aksar Jinka Mazak banate the.. Aaj Vahi Daante ji Bhabha Pahunch Gaye.. Badiya Hai...

संगीता पुरी ने कहा…

बढिया संस्‍मरण .. बचपन की यादें ताजी हो गयी .. हमारे यहां तो सबके ऐसे ही कुछ न कुछ नाम रखे जाते थे .. क्‍या समय था हमारा .. आज फुर्सत कहां बच्‍चों को ये सब करने की !!

rashmi ravija ने कहा…

संगीता जी,आज भी कहीं कुछ नहीं बदला है...बच्चे आज भी वैसी ही शरारते करते हैं...अपने दोस्तों का तो छोडिये....किसी टीचर की रेड लिपस्टिक देख उन्हें,BST बस (मुंबई की बसें लाल रंग की होती हैं)...किसी को मेकप बॉक्स तो भूपेन्द्र नाम के सर को भोंपू सर बुलाते हैं.....डांट खाते हैं,पैरेंट्स से (जैसे हम खाते थे)..पर यह सिलसिला तो शायद पीढ़ी डर पीढ़ी चलता ही रहेगा

shikha varshney ने कहा…

हम्म मजेदार संस्मरण.. स्कूल में सबके साथ इस तरह का कुछ न कुछ मजेदार किस्सा होता ही है..
पर सारे दांते इतना ऊपर नहीं जा पाते................

बेनामी ने कहा…

aap bhi had ho mehfooj ji

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

रोचक संस्मरण......अपने किस्से नें तो हमें भी बचपन में पहुँचा दिया !
वैसे एक बात तो पता चल गई कि आप शुरू से ही बिगडे हुए हो :)

Kusum Thakur ने कहा…

संस्मरण लिखते और पढ़ते समय ऐसा लगता है मानो हमारा फिर से वह समय लौट आया हो और बचपन के संस्मरण की तो बात ही और है।
बहुत सुन्दर संस्मरण है बधाई !!

Khushdeep Sehgal ने कहा…

ऐसा नहीं कि टीचर्स को पता नहीं होता कि पीठ पीछे उन्हें क्या कहा जाता है...लेकिन ये टीचर्स की
महानता होती है कि वो इस सब को नज़रअंदाज़ कर हमें ज़िंदगी में कुछ बनने के लिए रास्ता दिखाते हैं...बचपन में हमने भी खूब शरारतें की हैं...लेकिन आज भी कभी पुराने टीचर सामने दिख जाते हैं तो सिर श्रद्धा से अपने आप झुक जाता है...वैसे ज़माना बदल चुका है...अब न पहले वाले स्टूडेंट रहे हैं और न ही टीचर...किसी वक्त विद्या की दुकानदारी को बहुत बुरा माना जाता था...लेकिन आज तो ट्यूशन का धंधा अच्छे खासे उद्योग की शक्ल ले चुका है...

जय हिंद...

इश्क-प्रीत-love by girish billore ने कहा…

महफूज़ भाई
गज़ब करतें हैं आप
एक के बाद एक यादों में घुमा लातें हैं
दांते जी को हमारी भी शुभ कामनाएं
रोचक आलेख

शोभना चौरे ने कहा…

bahut acha sansmarn .

रश्मि प्रभा... ने कहा…

काफी मजेदार संस्मरण ........दांते जी कहाँ पहुँच गए, ये देखो !

mehek ने कहा…

bada hi mazedar,rochak kissa raha,wo bachpan ke din bhi kya din thay:),

शबनम खान ने कहा…

एकदम मस्त किस्सा है महफूज़ जी..स्टूडेंट लाईफ का एक मज़ेदार हिस्सा है ये "नया नामकरण"...

Unknown ने कहा…

संस्मरण अच्छा है!

कहावत भी है "दँतले का डूबना"!

एक आदमी के दाँत निकले थे और वह हँसता हुआ दिखाई देता था। एक बार वह नदी में डूबने लगा तो खुद को बचाने लिये खूब गुहार लगाई कि "बचाओ, बचाओ" किन्तु यह समझ कर कि वह हँस रहा है और उसकी गुहार सिर्फ मजाक है कोई भी उसे बचाने नहीं आया। वह डूब कर मर गया। तभी से उपरोक्त कहावत बन गई।

किन्तु

बुरा जो देखन मैं चला बुरा ना मिलया कोय।
जो दिल खोजा आपना मुझसे बुरा न कोय॥

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

वैसे एक बात बताऊ महफूज भाई कि बहुत पहले किसी ने मुझे कहा था कि ऊँचे दांतों वाला इंसान किस्मत का धनी होता है, पता नहीं इस बात में कितनी सच्चाई है मगर आपके संस्मरण वाली बात से तो यही लगता है !

एक मजेदार बात और बताऊ ये जो आपके लेख पर पहली टिपण्णी आई है, इस वामपंथी भाई को इन चार अक्षरों nice के अलावा कोई टिपण्णी के शब्द लिखना नहीं आता ! विस्वास न हो तो इनकी टिप्पणियों पर गौर फरमाना ! :)

Anil Pusadkar ने कहा…

मज़ेदार किस्सा।

Meenu Khare ने कहा…

दाँते और लंगूर दोनो को नमस्कार प्रेषित. मज़ेदार संस्मरण.

वाणी गीत ने कहा…

भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में साइंटिस्ट है दांते ...आखिर उन्होंने साबित कर ही दिया कि व्यक्ति की सूरत से ज्यादा सीरत मायने रखती है ...!!

रंजू भाटिया ने कहा…

बचपन में स्कूल में नाम तो हमने भी खूब रखे अपने टीचर्स के ..पर खुद टीचर बनते हो सूद समेत कई नाम हमें भी मिल गए ..और अधिकतर नाम मुझे अपनी हाईट के कारण ही मिले ..:)

संजय बेंगाणी ने कहा…

लोग हँसते रहे, दाँते वैज्ञानिक बन गया. हो सकता है कभी बच्चे इस दाँते के बारे में भी पढ़े.

लँगूर नामांकरण मजेदार लगा.

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

वाकई लाजवाब, स्कूळ के दिन याद आगये भाई इसे पढकर तो. शायद ही कोई ऐसा होगा जो इन सबसे रुबरु ना हुआ हो? बहुत मजेदार. शुभकामनाएं.

रामराम.

vandana gupta ने कहा…

BACHPAN KE DIN BHI KYA DIN THE...........YE GANA AUR BACHPAN KI AISI HI SHARARATEIN YAAD AA GAYI........US UMRA MEIN HAR BACHCHA APNE TEACHER KA AISE HI NAAM RAKHTA HAI .........KABHI HUM BHI RAKHA KARTE THE AUR AAJ HAMARE BACHCHE RAKHTE HAIN..........YE TO PEEDHI DAR PEEDHI CHALNE WALI PARAMPARA HAI.

सागर ने कहा…

रोचक, बालसुलभ मन बड़ा चंचल होता है...

kshama ने कहा…

Aap sansmaran likhneme maharathi hain!

Rajeysha ने कहा…

आपसे ईद मुबारक नहीं कहा था - ईद मुबारक।

Himanshu Pandey ने कहा…

स्कूली समय की सहज-प्रवृत्ति है अनोखे नाम रखना ।

संस्मरण अच्छा है । आभार ।

मेरी आवाज सुनो ने कहा…

सुंदर संस्मरण

मुबारक हो भाई जान...

--
शुभेच्छु

प्रबल प्रताप सिंह

कानपुर - 208005
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ρяєєтii ने कहा…

tum gazab ho bro... yaado yaado main kaha kaha ghuma laate ho.. good One...! Daante ji ur Gr8...!

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

दांते को लंगूर तभी तक डांटे जब तलक जान न जाय कि वह लंगूर है।
--मजेदार संस्मरण।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

`आज भी उसको हम लोग दांते ही बुलाते हैं..... ख़ैर ! आजकल वो भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में साइंटिस्ट है'
दाते और सैंटिस्ट! अरे, उसे तो फिलासफ़र होना चहिए था:)

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

अष्टावक्र प्रकरण याद दिला दिया आपने..

अजय कुमार ने कहा…

पुराने दिनों की बहुत सी चुहलबाजियां वाकई मजेदार होती हैं, आज आपने याद दिला दिया

Jyoti Verma ने कहा…

sundar sansmaran!

Amrendra Nath Tripathi ने कहा…

कालेज के दिन याद आये ...
अपने और साथियों के उपनाम ...
:) ............ (:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

kissa rochak hai....sabko hi school ke din yaad kara diye...badhai

खुला सांड ने कहा…

ओह दांते का लेख मजेदार रहा !!!

गिरिजेश राव, Girijesh Rao ने कहा…

महफूज भैया, देरी कर दिए आने में। 69 के नीचे दबना पड़ेगा :)
ये nice वाला माजरा मुझे भी समझ में नहीं आता। क्यों न आज एक नामकरण हो जाय?

एक था मिल्टन (वो वाला नहीं)- फैब्रिकेटर केरल वाला। जब बोलता तो लगता कि हँस रहा है। भयानक गूफ करने के बाद जब हम सभी अफसर, वर्कर लोग हड़काए जा रहे थे तो मिल्टन ने बताने के लिए मुँह खोला और .... you rascal laughing!
मैंने बताया कि उसका मुँह ही ऐसा है और फिर मुझे कभी माफी नहीं मिली :(

सदा ने कहा…

माफ कीजिएगा आने में देरी हो गई, संस्‍मरण बहुत ही अच्‍छा लगा, कुछ पुरानी यादें ताजा कर देते हैं ऐसे ही संस्‍मरण ।

रचना दीक्षित ने कहा…

महफूज़ भाई आपके इस रोचक संस्मरण से ये बात तो पक्की हो गयी कि भगवन को चाहिए कि सब को ही लम्बे दांत दें

ज्योति सिंह ने कहा…

aesa sansmaran jo padhkar vidyarthi jeevan ki shararte yaad dila gaya saath hi hansaya bhi bahut ,khoob ,gun hi aadmi ko aadar karne par majboor karti hai .

Asha Joglekar ने कहा…

आप लोग भी ना !

Dr. kavita 'kiran' (poetess) ने कहा…

to aap yahan apne bachpan ki shararten bhi share karte hain?good very good.

Murari Pareek ने कहा…

क्या महफूज भाई मैं ताऊ के ब्लॉग प्र कमेन्ट करके हंस रहा था की आपकी मेल दिखाई दी " अबे साले हंस क्यों रहा है " मैंने सोचा ये महफूज भाई को कैसे पता चला की मैं हंस रहा हूँ!!! फिर आ कर देखा हंसी और आती गई !!! कभी कभी ऐसा भी संजोग होता है !!

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

दांते तो बहुत बड़ा आदमी बन गया..वैसे क्लास में बहुत से बातें ऐसी हो जाती है जिस पर बिना दाँत दिखाए नही रहा जा सकता ..बढ़िया संस्मरण..धन्यवाद भाई अच्छा लगा अपना भी कुछ पुराना याद आ गया..

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

वाह! मज़ेदार संस्मरण.

seema gupta ने कहा…

बेहद ही रोचक संस्मरण.....
regards

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

संजय बेंगाणी जी ने अपने अनुभव से ऐतिहासिक बात कही. मौदगिल जी ने अष्टावक्र कथा की याद दिला दी.

लीजिये महफूज़ जी, मैंने भी अपनी दांत दिखा दी :-) :=)

और हाँ यह nice क्या है भाई :=)

Arshia Ali ने कहा…

महफूज जी, वाकई आपकी लेखनी में जादू सा है। एक बार पढना शुरू करने के बाद कोई बीच में छोड नहीं सकता।
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सांसद/विधायक की बात की तनख्वाह लेते हैं?
अंधविश्वास से जूझे बिना नारीवाद कैसे सफल होगा ?

SHIVLOK ने कहा…

Apka blog pahalii bar dekha

Aur apse pyar ho gaya

Kya karen apka andaj

Kuchh nyara hai

Aap
pyar
karte
hain
pyar
hii
milega

NAMASTE

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