Kashmir: Kherishu in Land of turbulence... Welcoming, Courtship,
Honeymooning and Varishu
-
*"Welcome* *to Kashmir*" this I had a warm welcome by CRPF constable Mangal
Singh at Srinagar airport exit gate last year. It was my first visit to the
Sta...
skip to main |
skip to sidebar
एक और बड़ा अच्छा वाक़या याद आया है। बात उन दिनों की है जब मैं दसवीं क्लास में पढता था..... हमारे एक इतिहास के टीचर हुआ करते थे.... उनका नाम तो याद नही आ रहा है..... पर लंगूर नाम से पूरा स्कूल उनको जानता था.... यह नाम भी उनका इसलिए पड़ा था.... क्यूंकि एक तो वो ख़ुद भी बड़े लाल लाल थे....और दूसरा एक बार उनकी क्लास में लंगूर बन्दर घुस आया था.... तो बेचारे डर के मारे टेबल के नीचे घुस गए थे...तबसे उनका नाम लंगूर पड़ गया था......और वैसे भी लोग उनका असली नाम भूल ही चुके थे. खैर.... मैं अपने वाकये पर आता हूँ।
एक बार वो हमें क्लास में इतिहास पढ़ा रहे थे..... तो किसी चैप्टर में इटली के महान दार्शनिक दांते (Dante) का ज़िक्र आया..... तो वो जब दांते के बारे में पढ़ा रहे थे...... तभी क्या हुआ की मेरे बगल में मेरा दोस्त अरुण साईंबाबा मुहँ बंद करके हंसने लगा.... तो हम कुछ लड़कों का गैंग था... सब उसकी उसकी ओर चोर नज़रों से देखने लगे.... हमने पूछा कि 'अबे! साले हंस क्यूँ रहा है?'
तो उसने एक दूसरे लड़के की ओर इशारा कर दिया जो कि बगल में दूसरी रो में बैठा हुआ था ... हमने उस लड़के की ओर देखा तो हम लोग सारी कहानी समझ गए.... कि अरुण क्यूँ हंस रहा था?
दरअसल हमारे साथ एक लड़का पढता था जिसके दांत बिल्कुल सीधे बाहर की ओर निकले हुए थे.... तो अब हमारी क्लास में एक और नामकरण हो गया....उस बेचारे लड़के का नाम दांते पड़ गया...... उसके दाँत इतने बाहर थे कि मुंह बंद करने के बाद भी बाहर ही रहते थे.....और वो बेचारा अक्सर टीचर से डांट खा जाता था कि 'तुम बिना बात हँस क्यों रहे हो ?' तब पूरी क्लास एक सुर में बोलती थी, 'नहीं सर!!!!! इसके दाँत ही ऐसे हैं ...' बेचारा टीचर भी झेल जाता था कई बार.
और उस बेचारे का नाम दांते ऐसा पडा कि सही बता रहा हूँ....आज भी उसको हम लोग दांते ही बुलाते हैं..... ख़ैर ! आजकल वो भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में साइंटिस्ट है॥
सोमवार, 30 नवंबर 2009
अबे! साले, हंस क्यूँ रहा है?
एक और बड़ा अच्छा वाक़या याद आया है। बात उन दिनों की है जब मैं दसवीं क्लास में पढता था..... हमारे एक इतिहास के टीचर हुआ करते थे.... उनका नाम तो याद नही आ रहा है..... पर लंगूर नाम से पूरा स्कूल उनको जानता था.... यह नाम भी उनका इसलिए पड़ा था.... क्यूंकि एक तो वो ख़ुद भी बड़े लाल लाल थे....और दूसरा एक बार उनकी क्लास में लंगूर बन्दर घुस आया था.... तो बेचारे डर के मारे टेबल के नीचे घुस गए थे...तबसे उनका नाम लंगूर पड़ गया था......और वैसे भी लोग उनका असली नाम भूल ही चुके थे. खैर.... मैं अपने वाकये पर आता हूँ।
एक बार वो हमें क्लास में इतिहास पढ़ा रहे थे..... तो किसी चैप्टर में इटली के महान दार्शनिक दांते (Dante) का ज़िक्र आया..... तो वो जब दांते के बारे में पढ़ा रहे थे...... तभी क्या हुआ की मेरे बगल में मेरा दोस्त अरुण साईंबाबा मुहँ बंद करके हंसने लगा.... तो हम कुछ लड़कों का गैंग था... सब उसकी उसकी ओर चोर नज़रों से देखने लगे.... हमने पूछा कि 'अबे! साले हंस क्यूँ रहा है?'
तो उसने एक दूसरे लड़के की ओर इशारा कर दिया जो कि बगल में दूसरी रो में बैठा हुआ था ... हमने उस लड़के की ओर देखा तो हम लोग सारी कहानी समझ गए.... कि अरुण क्यूँ हंस रहा था?
दरअसल हमारे साथ एक लड़का पढता था जिसके दांत बिल्कुल सीधे बाहर की ओर निकले हुए थे.... तो अब हमारी क्लास में एक और नामकरण हो गया....उस बेचारे लड़के का नाम दांते पड़ गया...... उसके दाँत इतने बाहर थे कि मुंह बंद करने के बाद भी बाहर ही रहते थे.....और वो बेचारा अक्सर टीचर से डांट खा जाता था कि 'तुम बिना बात हँस क्यों रहे हो ?' तब पूरी क्लास एक सुर में बोलती थी, 'नहीं सर!!!!! इसके दाँत ही ऐसे हैं ...' बेचारा टीचर भी झेल जाता था कई बार.
और उस बेचारे का नाम दांते ऐसा पडा कि सही बता रहा हूँ....आज भी उसको हम लोग दांते ही बुलाते हैं..... ख़ैर ! आजकल वो भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में साइंटिस्ट है॥
My page Visitors
चलिए! थोडा घूम आयें...
जो मेरे अपने हैं.......
यादगार लम्हे...
Loading...
मेरे बारे में
- डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali)
- पेशे से प्रवक्ता और अपना व्यापार. मैंने गोरखपुर विश्वविद्यालय से एम्.कॉम व डॉ. राम मनोहर लोहिया विश्वविद्यालय,फैजाबाद से एम्.ए.(अर्थशास्त्र) तथा पूर्वांचल विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. की उपाधि ली है. I.G.N.O.U. से सन २००५ में PGJMC किया और सन् 2007 में MBA किया. पूर्णकालिक रूप से अपना व्यापार भी देख रहा हूं व शौकिया तौर पर कई कालेजों में भी अतिथि प्रवक्ता के रूप में अपनी सेवाएं देता हूं. पढ़ना और पढ़ाना मेरा शौक़ है. अंग्रेज़ी में मुझे मेरी कविता 'For a missing child' के लिए अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है. मेरी अंग्रेजी कविताओं का संकलन 'Eternal Portraits' के नाम से बाज़ार में उपलब्ध है,जो की Penguin Publishers द्वारा प्रकाशित है. अंग्रेजी में मैंने अब तक क़रीब 2600 कविताएं लिखी हैं. हंस, वागर्थ, कादम्बिनी से होते हुए ...अंतर्राष्ट्रीय हिंदी मासिक पत्रिका 'पुरवाई' जो की लन्दन से प्रकाशित होती है ...में प्रकाशित हुआ, तबसे हिंदी का सफ़र जारी है... मेरी हिंदी कविताओं का संकलन 'सूखी बारिश' जो की सन् 2006 में मुदित प्रकाशन से प्रकाशित है... मैं करता हूं कि मेरा ब्लॉग मेरे पाठकों को ज़रूर अच्छा लगेगा... आपकी टिप्पणियां मेरा हौसला बढ़ाती हैं. इसलिए मेरी रचनाएं पढ़ने के बाद अपनी अमूल्य टिप्पणी ज़रूर दें.मेरा प्रमुख ब्लॉग 'लेखनी’ है.
मेरे ब्लॉग
-
-
Dreaming an old dream....... - As an ever flowing silver stream This in my heart this is a dream A dream of long ago ever shining bright this in my heart The dream of long ago will alwa...
-
आज ही के दिन ब्लॉगर भगवान् श्री. पाबला जी ने दुनिया में अवतार लिया था, आईये बधाई दें: महफूज़ अली - *बा' अदब, बा-मुलाहिजा, होशियार र र र र र र र र र र र र र ..............* *आज सरताज-ऐ-ब्लॉग, हुस्न-ऐ-दाढ़ी, दिमाग़-ऐ-तकनिकी, सेन्स-ऐ-हयूमर, दूसरों के सुख -...
-
My new doggie - *Rex: My new doggie............I have got a dear and treasured friend, you may be know him tooMore humble, meek, and gentle heof human beings (Dogs) I ev...
जिन्हें सराहा गया...
-
कहा था तुमने की कभी रुकना नहीं और मैं लगातार चल रहा हूँ॥ ज़मीन क्या , आस्मां पे भी मेरे पैरों के निशाँ हैं..... मेरी हदें मुझे पह...
-
सबसे पहले समस्त ब्लॉग जगत को इतना अपनापन और स्नेह देने के लिए धन्यवाद. ( खुशदीप भैया के लिए सिर्फ एक बात कहना चाहूँगा कि मैं आपसे बहुत प्...
-
काफी लोगों को मालूम है कि पूरा यूरोप और एशिया के कुछ देश (जिसमें भारत यानि कि That is India भी) ज़ीरो यानि कि शून्य को ज़ीरो यानि कि शून्य...
-
पिछली पोस्ट में आप लोगों ने CLEAN CHIT और बाबू के बारे में जाना। आईये , आज मैं आप लोगों को टाटा (TATA) का सच बताता ह...
-
हम इतिहास (History) क्यूँ पढ़ते हैं? सवाल था तो सीधा ...... लेकिन साथ ही साथ टेढा भी. अब आप लोग सोच रहे होंगे कि मैंने यह सीधा और सरल सवा...
-
मेरा लेख "जानना नहीं चाहेंगे आप संस्कार शब्द का गूढ़ रहस्य? एक ऐसा शब्द जो सिर्फ भारत में ही पाया जाता है... :- महफूज़" का प्र...
-
आज बहुत दिनों के बाद वक़्त मिला है कुछ लिखने का... वक़्त क्या .... समझ लीजिये मूड... बना है. इस दौरान सिर्फ पढ़ा है... और खूब पढ़ा है... लि...
-
कभी-कभी मन बहुत उदास होता है. कारण ख़ुद को भी नहीं पता होता. हम रोना तो चाहते हैं, लेकिन आंसू नहीं निकलते, मंज़िल सामने तो होती है लेकिन रास...
-
शारदा राम "फिल्लौरी" 19वीं शताब्दी के प्रमुख सनातनी धर्मात्मा थे. एक समाज सुधारक होने के साथ-साथ उन्होंने हिंदी तथा पंजाबी साहि...
-
पता नहीं क्यूँ? अब मुझे जीतने कि आदत हो गयी है.... मैं अब हारना नहीं चाहता, किसी भी FRONT पे ... मुझे अब हार जैसे शब्द से चिढ हो गयी है...
79 टिप्पणियाँ:
दांते कहाँ पहुँच गए हैं जनाब !!
पर यादें यहीं रह गयी :)
हद हो महफूज भाई आप भी !
बढ़िया संस्मरण है!
नामकरण भी अच्छा किया गया है।
बहुत अच्छा संस्मरण है आशीर्वाद्
अरे हमने भी अपनी हिंदी की टीचर का नाम 'पोडल पकौड़ी' रखा था उनके रंग की वजह से....बाद में मुझे मेरे स्कूल में जब प्रतियोगिता के लिए judge बना कर आमंत्रित किया गया तो हैरान थी की उनका नाम तब भी 'पोडल पकौड़ी' ही था...
कितने तो नाम रखे थे हमने......हीरो सर, ब्रम्हचारी सर.....पता नहीं क्या क्या.....आपका आलेख पढ़ कर वो सब याद आ गया...
बहुत अच्छा लगा...पढ़ कर...
बधाई...!!
VAAH MAHFOOZ BHAI .... MAJEDAAR VAAKYA ... ACHHAA VAAKYA HAI ..... BACHPAN KE SAATH AISE KISSE JUDE RAHTA HAIN JO BAAD MEIN SOCHNE PAR MAN KO GUDGUDA JAATE HAIN .....
क्या महफूज़ भाई, आज अपने टीचर को ही टांग दिया।
खैर किस्सा मजेदार रहा।
achha hai ..chlo danto ke chalhi par aapne use yad to kiya...PAR YE ACHHI BAT NAHI KISI KI BADSURATI PE HASANA { AAPLOGO NE KABHI SACHA KI JAB AAPLOG USAKE DANT PAR HASTE HONGE TO WAH KITANA DUKHI HOTA HOGA ...
KYA HAI KI MAI BHI BADSHURAT HU N TO MUJHE APNA DIN YAD AAGAY ...MUJHPE BHI BAHUT LOG HASATE THE ...
बचपन के दिन याद आ गए...बढिया संस्मरण
साधना जी..... प्लीज़ ऐसा मत कहिये..... आप इतनी अच्छी हैं..... और ऐसा कह रहीं हैं? आप बहुत अच्छी हैं सच्ची......
भाई जी बहुत खूब लिखा है आपने । घटनाएं तो सबके साथ होती है परन्तु आप जिस लहजे में उसे प्रस्तुत करते हैं वह उसे और भी यादगार बना देता है ।
रोचक संस्मरण।
hey nice one! I am very short tempered. So my classmates used to call me 'current'(electric shock), whenever i used to pass by them they would laugh and say '440 volt'. Apki post padkhar school ke din yaad aa gye. :)
shilpa
बहुत ही रोचक संस्मरण...दरअसल एक बहुत ही मजेदार वाकया याद आ रहा है..मेरी एक सहेली,किसी एक खिलाड़ी(am not going to divulge the name) की बहुत बड़ी फैन थी.बोलती थी..कितना अच्छा है,.हमेशा हँसता रहता है....बाद में पता चल कि......:)
बहुत बढ़िया, मज़ेदार और रोचक संस्मरण है! आपका पोस्ट पढ़ते पढ़ते मैं अपने बचपन के दिनों के चली गई! वो सुनहरे दिन अब सिर्फ़ यादें बनकर रह गई हैं! आपने हँसता हुआ कार्टून ज़बरदस्त चुना है! इस उम्दा पोस्ट के लिए बधाई!
भाई पहले तो आपको A+ शतरंज के दाँतदार बादशाह के लिए (चित्र मे)..कि अगर सफ़ेद प्यादे कम पड़ जायें तो कोई दिक्कत न हो...
पूरे ईगलीटेरिअन हो आप..स्टुडेंट्स और टीचर्स मे कोई भेद नही.जब नामकरण की बात आये...
;-)
अच्छा संस्मरण
हा हा हा । बहुत ही रोचक संस्मरण ।
बहुत सुंदर संस्मरण लिखा आप ने हमारे एक हिन्दी के सर थे, जिनका नाम हम सब ने यानि रखा था.
बहुत सुंदर .
धन्यवाद
बहुत मजेदार संस्मरण रहा..रोचक!!
lajwaaj sansmaran hai
बहुत बढ़िया, मज़ेदार और रोचक संस्मरण है!
तस्वीर देख कर समझ आया दांत हमेशा क्यूँ बाहर रहते थे .....!!
गज़ब की तस्वीर ढूंढी है आपने .....ये लाल लंगूर और दांते .....वाह ....!!
अब साइंटिस्ट है मगर दांत अन्दर गए या नहीं.....!!
दिलचस्प संस्मरणात्मक विवरण
इस वाकये से याद आया कि कॉलेज मे मेरा भी एक नामकरण हुआ था .".कुक्की बॉस " अब यह क्यों हुआ था तुम्हे तो पता ही है ...।
कोलेज टाईम के ऐसे वाकये जब याद आते हैं तो मन में गुदगुदी होती है, अपने ऐसे एहसास से पहला एहसास को भी नवाजें.
Oh! I forgot to mention, I am also going to use this missing children widget on my blog. I hope it helps in making a difference.
:)
shilpa
we knew about philosopher Dante but you introduced us scientist Dante.Definitely ur friend had very strong will power.I admire his attitude.
इसी यादें अक्सर याद आती रहती हैं... बचपन की याद दिला दी आपने...
Mehfooz Bhai, Ham aksar jinhe kam aankte hai, vahi Aage Jakar Aasman Me urte hain.. Apke Daante Bahi bhi unhi Logon me shumar hain... Ap Aksar Jinka Mazak banate the.. Aaj Vahi Daante ji Bhabha Pahunch Gaye.. Badiya Hai...
बढिया संस्मरण .. बचपन की यादें ताजी हो गयी .. हमारे यहां तो सबके ऐसे ही कुछ न कुछ नाम रखे जाते थे .. क्या समय था हमारा .. आज फुर्सत कहां बच्चों को ये सब करने की !!
संगीता जी,आज भी कहीं कुछ नहीं बदला है...बच्चे आज भी वैसी ही शरारते करते हैं...अपने दोस्तों का तो छोडिये....किसी टीचर की रेड लिपस्टिक देख उन्हें,BST बस (मुंबई की बसें लाल रंग की होती हैं)...किसी को मेकप बॉक्स तो भूपेन्द्र नाम के सर को भोंपू सर बुलाते हैं.....डांट खाते हैं,पैरेंट्स से (जैसे हम खाते थे)..पर यह सिलसिला तो शायद पीढ़ी डर पीढ़ी चलता ही रहेगा
हम्म मजेदार संस्मरण.. स्कूल में सबके साथ इस तरह का कुछ न कुछ मजेदार किस्सा होता ही है..
पर सारे दांते इतना ऊपर नहीं जा पाते................
aap bhi had ho mehfooj ji
रोचक संस्मरण......अपने किस्से नें तो हमें भी बचपन में पहुँचा दिया !
वैसे एक बात तो पता चल गई कि आप शुरू से ही बिगडे हुए हो :)
संस्मरण लिखते और पढ़ते समय ऐसा लगता है मानो हमारा फिर से वह समय लौट आया हो और बचपन के संस्मरण की तो बात ही और है।
बहुत सुन्दर संस्मरण है बधाई !!
ऐसा नहीं कि टीचर्स को पता नहीं होता कि पीठ पीछे उन्हें क्या कहा जाता है...लेकिन ये टीचर्स की
महानता होती है कि वो इस सब को नज़रअंदाज़ कर हमें ज़िंदगी में कुछ बनने के लिए रास्ता दिखाते हैं...बचपन में हमने भी खूब शरारतें की हैं...लेकिन आज भी कभी पुराने टीचर सामने दिख जाते हैं तो सिर श्रद्धा से अपने आप झुक जाता है...वैसे ज़माना बदल चुका है...अब न पहले वाले स्टूडेंट रहे हैं और न ही टीचर...किसी वक्त विद्या की दुकानदारी को बहुत बुरा माना जाता था...लेकिन आज तो ट्यूशन का धंधा अच्छे खासे उद्योग की शक्ल ले चुका है...
जय हिंद...
महफूज़ भाई
गज़ब करतें हैं आप
एक के बाद एक यादों में घुमा लातें हैं
दांते जी को हमारी भी शुभ कामनाएं
रोचक आलेख
bahut acha sansmarn .
काफी मजेदार संस्मरण ........दांते जी कहाँ पहुँच गए, ये देखो !
bada hi mazedar,rochak kissa raha,wo bachpan ke din bhi kya din thay:),
एकदम मस्त किस्सा है महफूज़ जी..स्टूडेंट लाईफ का एक मज़ेदार हिस्सा है ये "नया नामकरण"...
संस्मरण अच्छा है!
कहावत भी है "दँतले का डूबना"!
एक आदमी के दाँत निकले थे और वह हँसता हुआ दिखाई देता था। एक बार वह नदी में डूबने लगा तो खुद को बचाने लिये खूब गुहार लगाई कि "बचाओ, बचाओ" किन्तु यह समझ कर कि वह हँस रहा है और उसकी गुहार सिर्फ मजाक है कोई भी उसे बचाने नहीं आया। वह डूब कर मर गया। तभी से उपरोक्त कहावत बन गई।
किन्तु
बुरा जो देखन मैं चला बुरा ना मिलया कोय।
जो दिल खोजा आपना मुझसे बुरा न कोय॥
वैसे एक बात बताऊ महफूज भाई कि बहुत पहले किसी ने मुझे कहा था कि ऊँचे दांतों वाला इंसान किस्मत का धनी होता है, पता नहीं इस बात में कितनी सच्चाई है मगर आपके संस्मरण वाली बात से तो यही लगता है !
एक मजेदार बात और बताऊ ये जो आपके लेख पर पहली टिपण्णी आई है, इस वामपंथी भाई को इन चार अक्षरों nice के अलावा कोई टिपण्णी के शब्द लिखना नहीं आता ! विस्वास न हो तो इनकी टिप्पणियों पर गौर फरमाना ! :)
मज़ेदार किस्सा।
दाँते और लंगूर दोनो को नमस्कार प्रेषित. मज़ेदार संस्मरण.
भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में साइंटिस्ट है दांते ...आखिर उन्होंने साबित कर ही दिया कि व्यक्ति की सूरत से ज्यादा सीरत मायने रखती है ...!!
बचपन में स्कूल में नाम तो हमने भी खूब रखे अपने टीचर्स के ..पर खुद टीचर बनते हो सूद समेत कई नाम हमें भी मिल गए ..और अधिकतर नाम मुझे अपनी हाईट के कारण ही मिले ..:)
लोग हँसते रहे, दाँते वैज्ञानिक बन गया. हो सकता है कभी बच्चे इस दाँते के बारे में भी पढ़े.
लँगूर नामांकरण मजेदार लगा.
वाकई लाजवाब, स्कूळ के दिन याद आगये भाई इसे पढकर तो. शायद ही कोई ऐसा होगा जो इन सबसे रुबरु ना हुआ हो? बहुत मजेदार. शुभकामनाएं.
रामराम.
BACHPAN KE DIN BHI KYA DIN THE...........YE GANA AUR BACHPAN KI AISI HI SHARARATEIN YAAD AA GAYI........US UMRA MEIN HAR BACHCHA APNE TEACHER KA AISE HI NAAM RAKHTA HAI .........KABHI HUM BHI RAKHA KARTE THE AUR AAJ HAMARE BACHCHE RAKHTE HAIN..........YE TO PEEDHI DAR PEEDHI CHALNE WALI PARAMPARA HAI.
रोचक, बालसुलभ मन बड़ा चंचल होता है...
Aap sansmaran likhneme maharathi hain!
आपसे ईद मुबारक नहीं कहा था - ईद मुबारक।
स्कूली समय की सहज-प्रवृत्ति है अनोखे नाम रखना ।
संस्मरण अच्छा है । आभार ।
सुंदर संस्मरण
मुबारक हो भाई जान...
--
शुभेच्छु
प्रबल प्रताप सिंह
कानपुर - 208005
उत्तर प्रदेश, भारत
मो. नं. - + 91 9451020135
ईमेल-
ppsingh81@gmail.com
ppsingh07@hotmail.com
ppsingh07@yahoo.com
prabalpratapsingh@boxbe.com
ब्लॉग - कृपया यहाँ भी पधारें...
http://prabalpratapsingh81.blogspot.com
http://prabalpratapsingh81kavitagazal.blogspot.com
http://prabalpratapsingh81.thoseinmedia.com/
मैं यहाँ पर भी उपलब्ध हूँ.
http://twitter.com/ppsingh81
http://ppsingh81.hi5.com
http://en.netlog.com/prabalpratap
http://www.linkedin.com/in/prabalpratapsingh
http://www.mediaclubofindia.com/profile/PRABALPRATAPSINGH
http://thoseinmedia.com/members/prabalpratapsingh
http://www.successnation.com/profile/PRABALPRATAPSINGH
http://www.rupeemail.in/rupeemail/invite.do?in=NTEwNjgxJSMldWp4NzFwSDROdkZYR1F0SVVSRFNUMDVsdw==
tum gazab ho bro... yaado yaado main kaha kaha ghuma laate ho.. good One...! Daante ji ur Gr8...!
दांते को लंगूर तभी तक डांटे जब तलक जान न जाय कि वह लंगूर है।
--मजेदार संस्मरण।
`आज भी उसको हम लोग दांते ही बुलाते हैं..... ख़ैर ! आजकल वो भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में साइंटिस्ट है'
दाते और सैंटिस्ट! अरे, उसे तो फिलासफ़र होना चहिए था:)
अष्टावक्र प्रकरण याद दिला दिया आपने..
पुराने दिनों की बहुत सी चुहलबाजियां वाकई मजेदार होती हैं, आज आपने याद दिला दिया
sundar sansmaran!
कालेज के दिन याद आये ...
अपने और साथियों के उपनाम ...
:) ............ (:
kissa rochak hai....sabko hi school ke din yaad kara diye...badhai
ओह दांते का लेख मजेदार रहा !!!
महफूज भैया, देरी कर दिए आने में। 69 के नीचे दबना पड़ेगा :)
ये nice वाला माजरा मुझे भी समझ में नहीं आता। क्यों न आज एक नामकरण हो जाय?
एक था मिल्टन (वो वाला नहीं)- फैब्रिकेटर केरल वाला। जब बोलता तो लगता कि हँस रहा है। भयानक गूफ करने के बाद जब हम सभी अफसर, वर्कर लोग हड़काए जा रहे थे तो मिल्टन ने बताने के लिए मुँह खोला और .... you rascal laughing!
मैंने बताया कि उसका मुँह ही ऐसा है और फिर मुझे कभी माफी नहीं मिली :(
माफ कीजिएगा आने में देरी हो गई, संस्मरण बहुत ही अच्छा लगा, कुछ पुरानी यादें ताजा कर देते हैं ऐसे ही संस्मरण ।
महफूज़ भाई आपके इस रोचक संस्मरण से ये बात तो पक्की हो गयी कि भगवन को चाहिए कि सब को ही लम्बे दांत दें
aesa sansmaran jo padhkar vidyarthi jeevan ki shararte yaad dila gaya saath hi hansaya bhi bahut ,khoob ,gun hi aadmi ko aadar karne par majboor karti hai .
आप लोग भी ना !
to aap yahan apne bachpan ki shararten bhi share karte hain?good very good.
क्या महफूज भाई मैं ताऊ के ब्लॉग प्र कमेन्ट करके हंस रहा था की आपकी मेल दिखाई दी " अबे साले हंस क्यों रहा है " मैंने सोचा ये महफूज भाई को कैसे पता चला की मैं हंस रहा हूँ!!! फिर आ कर देखा हंसी और आती गई !!! कभी कभी ऐसा भी संजोग होता है !!
दांते तो बहुत बड़ा आदमी बन गया..वैसे क्लास में बहुत से बातें ऐसी हो जाती है जिस पर बिना दाँत दिखाए नही रहा जा सकता ..बढ़िया संस्मरण..धन्यवाद भाई अच्छा लगा अपना भी कुछ पुराना याद आ गया..
वाह! मज़ेदार संस्मरण.
बेहद ही रोचक संस्मरण.....
regards
संजय बेंगाणी जी ने अपने अनुभव से ऐतिहासिक बात कही. मौदगिल जी ने अष्टावक्र कथा की याद दिला दी.
लीजिये महफूज़ जी, मैंने भी अपनी दांत दिखा दी :-) :=)
और हाँ यह nice क्या है भाई :=)
महफूज जी, वाकई आपकी लेखनी में जादू सा है। एक बार पढना शुरू करने के बाद कोई बीच में छोड नहीं सकता।
------------------
सांसद/विधायक की बात की तनख्वाह लेते हैं?
अंधविश्वास से जूझे बिना नारीवाद कैसे सफल होगा ?
Apka blog pahalii bar dekha
Aur apse pyar ho gaya
Kya karen apka andaj
Kuchh nyara hai
Aap
pyar
karte
hain
pyar
hii
milega
NAMASTE
एक टिप्पणी भेजें