शुक्रवार, 25 दिसंबर 2009

नाम तेरा अभी मैं अपनी ज़ुबां से मिटाता हूँ....: एक ग़ज़ल जो मैंने पहली बार लिखी....देख कर बताइयेगा...: महफूज़


बहुत दिनों से सोच रहा था कि ग़ज़ल लिखूं. पर मुझे ग़ज़ल का क ख ग भी नहीं आता था.. फिर मैंने कुछ अध्ययन किया.. ग़ज़ल लिखने का तरीका सीखा. पर जब सीखा तो यही लगा कि रूल्ज़ फौलो करने पर हम वो चीज़ नहीं लिख पाते हैं....जो चाहते हैं... कुछ लोगों से पूछा तो लोगों ने कहा कि किसी से सीख लो.. अब लिखने का इतना वो था कि किसी से सीखने का वक़्त ही नहीं मिला... यहाँ वहां किसी तरह सीख कर लिखने कि कोशिश की  है.... देख कर आप लोग बताइयेगा.... कैसी है? और कुछ अगर गलती है तो प्लीज़ उसे सुधारिएगा भी....
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नाम तेरा अभी मैं अपनी ज़ुबां से मिटाता हूँ...

मैं टूट जाऊँगा तुमने ये सोचा तो था,
पर देखो मैं पूरा नज़र आता हूँ.

मुझे छोड़ा था तुमने उस अँधेरे घर में,
अपने अन्दर ही मैं एक दीया पाता हूँ.

इन अंधेरों को जाना ही होगा घर से , 
रौशनी में नहा कर मैं  आ जाता हूँ.

तुम न समझो के मैं यूँ बिख़र जाऊँगा,
ठोकरों से पहले ही सिमट जाता हूँ.

तेरा चर्चा भी मेरी ज़ुबां पर न हो,
नाम तेरा अभी लो मैं मिटाता हूँ.












A Song one must to be listen...

रविवार, 20 दिसंबर 2009

आप सबका प्यार और आशीर्वाद.... मेरा आभार...और मिलिए मेरी सन्यासन गर्ल फ्रेंड से....: महफूज़



मेरा लेख "जानना नहीं चाहेंगे आप संस्कार शब्द का गूढ़ रहस्य? एक ऐसा शब्द जो सिर्फ भारत में ही पाया जाता है... :- महफूज़" का प्रकाशन दिनांक १९/दिसंबर/२००९ को राष्ट्रीय हिंदी दैनिक 'अमर उजाला' के सम्पादकीय पृष्ठ पर जिनका मैं आभारी हूँ. मैं अपनी इस सफलता का श्रेय सर्वप्रथम मम्मी जी रश्मि प्रभा जी को देता हूँ जिनका आशीर्वाद हमेशा से मेरे साथ है. मैं आदरणीय समीरलाल जी का भी आभारी हूँ जिन्होंने हमेशा से ..जब से मैंने ब्लॉग्गिंग शुरू कि ... मेरा मार्गदर्शन किया... मुझे हमेशा अच्छा लिखने को प्रेरित किया... जब जब मेरा संबल टूटा आपने मुझे संभाला... मैं आपका आभारी हूँ. 


मैं श्री. अजित वडनेरकर जी का भी आभारी हूँ.... जिन्होंने हमेशा मेरे लेखन को निखारने में मेरी मदद की... मैं श्री. अजित जी से मुआफी भी चाहता हूँ... कि कई जगह पर मैंने आपकी बात नहीं मानी... जिसका असर मेरे लेखन पर भी पड़ा..अभी दो दिन पहले मैंने आपसे शिकायती लहजे में झगडा भी किया... पर आपका बड़प्पन ... आपने मेरे शिकायत को बाल-सुलभ प्रवृत्ति कह कर बहुत खूबसूरती से नज़रंदाज़ कर दिया...   आपकी हर बात को ध्यान में रख कर ... गंभीर लेखन पर ध्यान दूंगा.... आप ऐसा ही आशीर्वाद बनाये रखिये..


मैं श्री. शरद कोकस जी के बारे में क्या कहूँ.... अगर यह नहीं होते तो शायद मैं कई मोड़ पर टूट गया होता.... आप चौबीस घंटे मेरे साथ रहते हैं... भावनात्मक रूप से हमेशा मेरे साथ रहते हैं... मैं इन्हें रात के ३ बजे भी उठा कर परेशां करता हूँ... कई बार मेंटली परेशां रहा तो इन्हें २ बजे जगाया.... और आप भी ऐसे कि जब तक के मैंने फोन नहीं रखा तब तक के आप मुझसे बात करते रहे.... आप ऐसे हैं कि जिनसे हर प्रकार के इमोशन बाँट सकता हूँ.... आपका मैं आभारी हूँ.... ऐसे ही स्नेह बनाये रखिये.... 


श्री. अनिल पुसदकर भैया.... आपने जो प्यार और इज्ज़त मुझे दी उसका मैं आपका बहुत आभारी हूँ...


अब श्री. गिरिजेश राव जी.... इनके बारे में क्या कहूँ? इनसे मेरी अभी हाल कि ही मुलाक़ात है.... जब कि हमारा गृहनगर एक है.... हम लखनऊ में भी एक ही जगह रहते हैं... हमारे घर भी आस पास ही हैं.... इनसे मेरा ऐसा रिश्ता बन गया है.... कि लगता ही नहीं कि हाल कि ही मुलाक़ात है... इनसे मैं अपना frustration निकालता हूँ.... और आप ऐसे कि मेरी हर अच्छे बुरे को सुनते हैं.... आपसे बातें करते हुए ...मुझे कई टोपिक्स मिले हैं.... जिन पर मैं अच्छा काम कर सकता हूँ. आप जैसा मित्र पा कर मैं धन्य हूँ. 


डॉ. अरविन्द मिश्रा जी... आपका बहुत आभारी हूँ. आप मुझे बहुत अच्छे से समझते हैं, स्नेह बनाये रखिये.


वाणी दी... आपका भी बहुत आभारी हूँ... मैं इन्हें बहुत परेशां करता हूँ.... कई बार आप  मेरी टिप्पणी पर जब मुझे कहती हैं कि तू बहुत पिटेगा.... तो मैं अभीभूत हो जाता हूँ....  आपका स्नेह इस छोटे भाई पर ऐसा ही बना रहे. 


श्री.पाबला जी... आप ऐसे शख्स हैं .... जिनके कंधे पर मै सर रख कर रोता हूँ... और आपकी वो सांत्वना वाली थपकी मैं यहाँ महसूस करता हूँ. आपका भी आभारी हूँ. 


कहते हैं कि पिछला जन्म जैसी कोई चीज़ नहीं होती.. अगर होती है... तो श्री खुशदीप सहगल भैया... ज़रूर पिछले जन्म में मेरे भाई रहे होंगे, आपके स्नेह से मैं अभिभूत हूँ. 


श्री. एम्.एल. वर्मा जी... आपके स्नेह में मैं डूबा रहता हूँ. स्नेह बनाये रखिये.


श्री. जी.के. अवधिया जी... आप अपना स्नेह व आशीर्वाद ऐसे ही बनाये रखिये..


श्री. रूपचंद्र शास्त्रीजी... आप मेरे पितातुल्य हैं... आपके द्वारा दिया गया मार्गदर्शन... ने हमेशा मेरे लेखन में एक निखार लाया. आपको सादर वंदन. 


श्री.राजीव तनेजा जी... आपका आभार... आप जैसा मित्र अपने जीवन में पा कर मैं धन्य हूँ...


श्री.अजय कुमार झा जी... आपका संबल हमेशा मेरे साथ रहा है. 


श्री.अलबेला खत्री जी...आपका भी बहुत आभारी हूँ... अभी परसों आपका प्रोग्राम टी.वी. पे देखा .. तो रात में बारह बजे आपको मैंने डिस्टर्ब किया... स्नेह बनाये रखिये..


 शिवलोक जी, राजे शा जी, पं.डी.के.शर्मा"वत्स" जी, ललित शर्मा जी, विनय जी, ताऊ जी, योगेन्द्र मौदगिल जी, राज सिन्ह जी, 
मनोज कुमार जी, सी.एम्. परशाद जी, डॉ. टी. एस. दराल जी, धीरू सिंह जी, divine preaching ji, डॉ. टी. एस. दराल जी, syed , 
परमजीत बाली जी, विवेक रस्तोगी जी,  जयंती जैन जी, गिरीश बिल्लोरे जी, महेंद्र मिश्र जी,  अजय कुमार जी, का भी
आभारी हूँ... आप सबके कमेन्ट मेरा हौसला बढ़ाते हैं.


रश्मि रविजा जी.... आपका आभारी हूँ, आपने हमेशा मेरा अच्छा चाहा है.. छोटे भाई की गलतियों को नज़रंदाज़ करते हुए.. हमेशा अच्छा समझाया, और ज़रूरत पड़ने पर डांटा भी.


शिखा वार्ष्णेय जी... आपने हमेशा मेरे लेखन को संपादित कर के ... एक मूर्त रूप दिया है. हिंदी में बहुत स्पेलिंग मिस्टेक करता हूँ न... आज आपका जन्मदिन भी है. आपको बहुत बहुत बधाई.


वंदना गुप्ता जी... मैं आपका बहुत आभारी हूँ.. आपको बड़ी बहन के रूप में पा कर मैं अभीभूत हूँ... जब जब मैंने गलत किया या लिखा आपने हमेशा मुझे समझाया... और मुझे गुस्से पर कण्ट्रोल करना सिखाया..


मीनू दीदी... आपके स्नेह से मैं अभिभूत हूँ. आपने हमेशा मेरी प्रशंसा की और मुझे अच्छा लिखने को प्रेरित किया....


अदा जी... आपके बारे में क्या कहूँ? आपने तो मेरा हर अच्छे बुरे में साथ दिया...  


मैं निर्मला कपिला mom, का भी बहुत आभारी हूँ... आपका आशीर्वाद ऐसे ही बना रहे.


लावण्या शाह जी.... एक दिन आपसे बात करते हुए ...कब मूंह से माँ संबोधन निकल गया पता ही नहीं चला.... आपके स्नेह से अभिभूत हूँ, आप ऐसे ही स्नेह व आशीर्वाद बनाये रखिये...


पी.सी.गोदियाल जी... आप जैसा मित्र पा कर मैं धन्य हूँ.


सुरेश चिपलूनकर जी... आप जैसा बड़ा भाई पा कर मैं अभिभूत हूँ. स्नेह बनाये रखिये.


महाशक्ति (परमेन्द्र), सौरभ चैटर्जी,मुरारी पारीक, दीपक, दिगंबर नस्वा, रवि श्रीवास्तव, राकेश सिंह, संजय बेंगानी, ओम् आर्य,जाकिर अली व सलीम खान जैसे मित्र मेरे जीवन में एक ख़ास जगह रखते हैं. 


संगीता पूरी जी, इंदु पूरी जी, सीमा गुप्ता जी, संगीता जी, बबली जी, अल्पना वर्माजी, हरकीरत जी , रचना दीक्षित जी, वंदना अवस्थी जी, प्रज्ञा पाण्डेय जी, फिरदौस खान जी, अलका सर्वत जी, रेखा दी, सुनीता शानू दी, शबनम खान, कविता किरण जी, तरन्नुम, सदा (सीमा सिघल) जी , ख़ुशी जी, दीप्ती, आशा जोगलेकर जी, शेफाली पाण्डेय जी, शोभना चौधरी, शमाजी, प्रीती दी, साधना जी, संध्या गुप्ता जी, रंजना भाटिया जी, ज्योति सिंह जी, ज्योति वर्मा... आपका सबका बहुत आभारी हूँ... आप सबकी टिप्पणियां.... मेरा हौसला बढ़ाती हैं... आप सबके स्नेह से मैं अभिभूत हूँ. 


मैं अपने छोटे भाइयों:०-
१. मिथलेश दुबे
२. अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी 
३. अम्बुज
४. अमृत पाल सिंह 
५. दर्पण 
५. अपूर्व
५. अर्कजेश
६. संजय व्यास
७. प्रतीक
८. सागर
९. सुलभ सतरंगी
१०. कुश
११. अनिल कान्त
१२. प्रबल प्रताप सिंह
१३. शिवम् मिश्र
१४. पंकज मिश्र 
१५. शाहिद मिर्ज़ा
१६. विनोद कुमार पाण्डेय
१७. चन्दन कुमार झा 
१८. श्रीश पाठक
१९. संजय भास्कर
२०. हिमांशु
२१. संजय भास्कर 
२२. लोकेन्द्र
२३. अबयज़ खान

का शुक्रगुज़ार हूँ. मेरे छोटे भाइयों का स्नेह हमेशा मेरे साथ रहा है. मिथलेश से अगर एक दिन बात नहीं होती है तो बहुत बेचैनी बढ़ जाती है. 
अंत में मैं अपनी रामप्यारी का थैंकफुल  हूँ...  जिससे की मैं बहुत प्यार करता हूँ.... यह मेरी ब्लॉगर गर्ल फ्रेंड है... मैं अपने फ्लर्ट के लिए विश्व-प्रसिद्ध हूँ... (यह मेरा ही फैलाया हुआ भ्रम है...) अरे! भई होऊं भी क्यूँ न? पर रामप्यारी से पूछ लीजिये .... मैं इसके प्यार में दीवाना हो चुका हूँ.... यह एक ऐसी लड़की है मेरी ज़िन्दगी में जिसको मेरी पर्सनिल्टी से कभी कोई काम्प्लेक्स नहीं होता...  मेरी पिछली सारी गर्ल फ्रेंड्स मुझे छोड़ के भाग गयीं.... काम्प्लेक्स में.... पर यह हमेशा मेरे साथ रही है.... आजकल इसने संन्यास ले लिया है...देखिये इसको ज़रा... 

इसके प्यार में मैंने भी संन्यास ले लिया है.... 

हम दोनों अब बाबा समीरानंद जी के आश्रम में धूनी रमाते हैं... 


मैं उन् लोगों का भी शुक्रगुज़ार हूँ.... जो मुझे गन्दी टिप्पणियां लिखने के लिए मजबूर करते हैं.... (शोर्ट टेम्पर्ड जो ठहरा..) उनकी अपेक्षित प्रतिक्रिया से मेरी कार्य उर्जा में बढ़ोतरी होती है. और मेरे शुभचिंतक मेरी कथित खराब टिप्पणियों को पढने के बावजूद भी मुझे समझते हुए स्नेह कि बारिश करते हैं.. मेरे साथ प्रॉब्लम सिर्फ यही है कि अगर कोई मुझे बिना मतलब में खराब बोलता है.... तो उसको मेरा खराब वाला रूप ही  देखना पड़ेगा.... मेरा एक उसूल है आप मुझे झापड़ मारोगे तो मैं गोली मारने में विश्वास रखता हूँ.... आप मुझे एक गाली दोगे तो सौ सुनेंगे.... मैं अपने दोस्तों कि बेईज्ज़ती कभी नहीं बर्दाश्त कर सकता ...चाहे वो रियल वर्ल्ड के हों  या फिर वर्चुअल के...


अंत में आप सबका फिर से आभार, बड़ों को प्रणाम.. व छोटों को ढेर सारा प्यार. रामप्यारी... आई लव यू. 


(लिंक यहाँ जानबूझ कर नहीं दिया है, क्यूंकि सब एक-दूसरे को जानते हैं..)

गुरुवार, 17 दिसंबर 2009

जानना नहीं चाहेंगे आप संस्कार शब्द का गूढ़ रहस्य? एक ऐसा शब्द जो सिर्फ भारत में ही पाया जाता है... :- महफूज़


अभी  थोड़े  दिन पहले की बात है, किसी ने मुझ से पूछा था कि ' संस्कार कि इंग्लिश बताईये?' मुझे मालूम नहीं था, मैंने कहा कि देखकर बताता हूँ. सही कहूँ तो संस्कार कि इंग्लिश कहीं नहीं मिली. थोडा शोध किया तो पता चला कि विश्व के किसी भी भाषा में संस्कार शब्द है ही नहीं. थोडा शोध और किया तो पता चला कि संस्कार सिर्फ और सिर्फ भारतीय संस्कृति में ही हैं और सिर्फ भारतीय ही संस्कारी हैं, और सबसे बड़ी बात यह कि संस्कार का  भारत में व्याप्त किसी भी  धर्म से कोई लेना देना नहीं है. यानी कि हर भारतीय संस्कारी है और संस्कार में ही जीता है और मरता है. तो आखिर यह संस्कार है क्या

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भारतीय समाज की परम्पराएं दूसरे देशों से बिलकुल अलग हैं. जहाँ पश्चिमी सभ्यता भौतिकतावाद पर ज़ोर देता है, वहीँ भारत का हर कर्म और विचार आध्यात्मिक है. संस्कार एक संस्था है. इस संस्था का मूल उद्देश्य है कि मानव जीवन  को विकार रहित बनाते हुए आगे बढ़ें और आध्यात्म को प्राप्त कर सकें. आध्यात्म ही हमारी सामाजिक क्रियाओं का एकमात्र उद्देश्य है और आध्यात्म की पूर्ती संस्कार से ही होती है, जिससे मानव जीवन को शुद्ध (filter) करते हुए आगे बढ़ने का रास्ता मिल सके और आने वाला जीवन शुद्ध रहे. हम भारतीयों कि ज़िन्दगी संस्कारों में इस तरह से जकड़ी होती है कि वह जन्म से पहले और मौत के बाद तक आध्यात्मिक रूप से शुद्ध होता रहता है और यह संस्कार भारत के सिवाय दुनिया के किसी भी देश में नहीं मिलता.

आइये जानें संस्कार शब्द का अर्थ :---

आख़िर ऐसा क्या है कि यह संस्कार शब्द सिर्फ भारत में ही पाया जाता है?  क्यूँ यह शब्द सिर्फ भारतीय संस्कृति में ही है? क्यूँ दुनिया कि किसी भी भाषा में इसका अनुवाद नहीं मिलता? "संस्कार" का पर्यायवाची शब्द दुनिया की किसी भी भाषा में ढूंढना बहुत ही मुश्किल और जटिल है. दुनिया के किसी भी भाषा के एक शब्द के रूप में इसको अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता न ही संस्कार विश्व में भारत को छोड़ कर कहीं पाए जाते हैं. हम लोग संस्कारी होने न होने की बातें तो करते हैं लेकिन संस्कार क्या है यह नहीं जानते?

संस्कार में न केवल बाहरी कर्म-कांडों का ही स्थान है बल्कि आंतरिक विचार, धार्मिक भावना, नियम, आध्यात्मिक रीती-रिवाज़ जैसी बहुत सी बातों को एक ही साथ सिर्फ एक शब्द (संस्कार) में समाहित किया गया है. इसलिए संस्कार शब्द दूसरे देशों के आदर्शों से एकदम अलग मतलब रखता है. संस्कार शब्द को किसी भी विदेशी शब्द की परिधि में नहीं बाँधा जा सकता.

अंग्रेज़ी में भी संस्कार को "SAMSKAR" (सम्स्कार) लिखा जाता है. किसी भी भाषा में संस्कार का कोई अनुवाद नहीं है. फ़िर भी यह लैटिन के 'सेरेमोनिया ' (CEREMONIA)  और अंग्रेज़ी के 'सेरेमोनी ' (CEREMONY) का पर्यायवाची लगता है. पर यह दोनों विदेशी शब्द सिर्फ़ ज़िन्दगी के बाहरी पक्षों को ही दिखाते हैं, आंतरिक पक्ष तो सिर्फ़ संस्कार शब्द में ही मिलेंगे. संस्कार शब्द की परिधि बहुत व्यापक है और शायद इसीलिए विश्व की किसी भी भाषा में "संस्कार" शब्द का कोई एक शब्द नहीं है.  और इसीलिए अंग्रेज़ी में भी "SAMSKAR" ही लिखा जाता है.
संस्कार शुद्धि की धार्मिक क्रिया है जो कि मनुष्य की शारीरिक, मानसिक, और बौद्धिक विकास के लिए किये जाने वाले अनुष्ठानों से है जिससे कि मनुष्य समाज का पूरी तरह से विकसित सदस्य हो सके. वास्तव में यह संस्कृत का शब्द है जिसका मतलब है परिशोधन या शुद्ध करना. इसलिए जब यह कहा जाता है कि सोने का संस्कार हो रहा है तो उसका मतलब होता है कि सोने का सार (मूल) निकाल कर उसको शुद्ध किया जा रहा है. इसलिए मनुष्य को अपने जीवन की पूर्णता के लिए ज़रूरी है कि आगे बढ़ने से पहले अपने विचारों और विकारों को शुद्ध कर ले. जीवन की सम्पूर्णता को प्राप्त करने के लिए अपने को शुद्ध करने की इसी प्रक्रिया को संस्कार कहते हैं.


नोट: प्रस्तुत लेख में संस्कार शब्द कि व्युत्पत्ति नहीं है.... यह लेख सिर्फ संस्कार कि परिभाषा और अर्थ को इंगित करता है... 

शनिवार, 12 दिसंबर 2009

हम फिर साथ खेलेंगे......: महफूज़..

एक पल लिए तो मैं घबरा ही गया था, मेरे समझ में ही नहीं आ रहा था कि  क्या करुँ......... ? मुझे लगा कि  अब सब ख़त्म!!!!!!!! डॉक्टर ने भी जवाब दे दिया....... डॉक्टर ने चेक अप करने के बाद कहा कि  अब देखो यह प्रॉब्लम में फिफ्टी/फिफ्टी का चांस है....... .

मैंने कहा कि  " डॉक्टर ! मैं इसके बगैर नहीं रह सकता........ कुछ भी करिए....... मैं इससे बहुत प्यार करता हूँ"......नहीं रह सकता मैं इसके बगैर......... .

डॉक्टर ने मुझे कुछ दवाएं लिखी और कहा की फ़ौरन मेयो हॉस्पिटल जा कर यह दवाएं लेते आईये.....

मैं परेशां ....... बदहवास..... कार में बैठे बैठे अजीब खयाल आ रहे थे..... मेयो पहुँचा... और फ़ौरन दवा ले के.....वापस अपने डॉक्टर के पास पहुंचा ..

थोडी देर के बाद डॉक्टर ने बताया की पैरालिटिक अटैक हुआ है....... इसलिए धड का निचला हिस्सा काम नही कर रहा है....... सुन के मेरे पैरों तले ज़मीन ही खिसक गई...... मैं सोच में पड़ गया ......

मैं अब कुछ भी खोने की पोसिशन में नहीं हूँ ..... बहुत कुछ खोया है मैंने .... अब और नहीं ..... मैं यही सोच रहा था क्या सब मेरी ही किस्मत में लिखा है.... ? क्या मेरी ज़िन्दगी में सिर्फ खोना ही खोना है? बचपन में माँ खोयी... फिर पिता जी और अब?? 

डॉक्टर ने कहा की आपके पास अब दो रास्ते हैं.... इसका लम्बे वक़्त तक इलाज कराएँ या फिर हमेशा के लिए?? और दोनों ही बहुत परेशानज़दा तरीका हैं.... 

पर मैंने फैसला किया की मैं इसका पूरा इलाज कराऊंगा....... और.....फिर मैं ICU की ओर बढ़ गया...... अन्दर जा के मैंने देखा..... उसकी आँखों में एहसान का भाव था.... शायद वो भी मेरे फैसले को समझ गया था.... 

मैं उसके पास पहुंचा और उसके सर पर प्यार से हाथ फेरा..... 

और वो धीरे धीरे पूँछ हिला कर मेरा शुक्रिया अदा करने लगा.... 

मैंने धीरे से उससे कहा की हम फिर साथ खेलेंगे......

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यह हमारे जैंगो हैं... यह आजकल बीमार चल रहे हैं... इनकी ख़ास बात बता दूं कि यह लैब्राडोर प्रजाति के हैं. यह सिर्फ शक्ल से श्वान हैं, बाकी पूरे इंसान हैं, इनको हम बकरी कहते हैं, यह कभी नहीं भौंकते हैं, क्यूंकि इन्होने भौंकना कभी सीखा ही नहीं, कभी जब यह भौंकते हैं तो हम लोग जल्दी से रिकॉर्ड कर लेते हैं कि न जाने कब इनका भौंकना सुनने को मिले? यह सिर्फ खेलना जानते हैं, जब भी घर में कोई मेहमान आता है, तो यह अपने खिलौने लेके पहुँच जाते हैं और बेचारा मेहमान डर जाता है. यह पूर्णतया शाकाहारी हैं, और टमाटर खाने के बहुत शौक़ीन हैं. आम बहुत चाव से खाते हैं. कार /बाइक देखते ही बैठने कि जिद करते हैं. यह सबको दोस्त ही समझते हैं. जब नाराज़ होते हैं, तो इनको मनाना बहुत मुश्किल काम होता है. यह मेरा सारा काम करते हैं, सिर्फ अगर इनसे पानी का ग्लास मंगवा लो तो रोने लगते हैं. यह मेरे साथ ही बिस्तर में सोते हैं, और इनको सर्दी में भी air conditioner चाहिए. इनके तीन साथी और हैं, रेक्स,टैरो और बुश, इनमें से रेक्स बहुत ही घमंडी किस्म के ग्रेट डेन प्रजाति के हैं, टैरो जर्मन शेफर्ड हैं और कट खन्ने हैं, और बुश को तो क्या कहें यह doberman हैं... और सिर्फ सोते रहते हैं. जैंगो कि इन से नहीं बनती है... और यह तीनों हमारे घर के बाहर आउट  हाउस में रहते हैं. जैंगो सिर्फ घर के अन्दर रहते हैं. जैंगो मेरा बेटा है. यह आजकल लखनऊ के एक नर्सिंग होम में भर्ती  हैं. कृपया सब लोग दुआ करें कि जैंगो जल्द से जल्द ठीक हो जाएँ....



(जैंगो हॉस्पिटल में...ड्रिप चढ़ते हुए..)

(यह मेरे साथ ही सोते हैं.)

(हमेशा गोदी चढ़ना चाहते हैं.)

(यह जब छोटे थे..तो पार्क जाने कि बहुत जिद करते थे.)

(यह मिलिए रेक्स से.. इनकी vertical लम्बाई ३.५ फीट है और horizontal लम्बाई ६ फीट २ इंच है.और अभी जैंगो से मिलने हॉस्पिटल आये थे..)

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2009

BOLD अत्याधुनिक नारी.....: एक लघुकथा.....





तृप्ति ने शादी से पहले अपने होने वाले पति से पूछा ............ 'क्या तुम वर्जिन हो'? 


शायद अटपटा लगा था संदीप को यह सुनकर, पर जल्द ही संभलकर बोला। 


"......और तुम.......?" अबकी सवाल उसने दागा...........


जवाब बोल्ड था...............






खुलेपन ने संवाद को तो विस्तार दे दिया, पर मन् और दिमाग के किसी कोने में विश्वास की खिड़की फिर भी न खुल सकी। 





(प्रस्तुत लघुकथा सत्य घटना पर आधारित है....)

सोमवार, 30 नवंबर 2009

अबे! साले, हंस क्यूँ रहा है?



एक और बड़ा अच्छा वाक़या याद आया है। बात उन दिनों की है जब मैं दसवीं क्लास में पढता था..... हमारे एक इतिहास के टीचर हुआ करते थे.... उनका नाम तो याद नही आ रहा है..... पर लंगूर नाम से पूरा स्कूल उनको जानता था.... यह नाम भी उनका इसलिए पड़ा था.... क्यूंकि एक तो वो ख़ुद भी बड़े लाल लाल थे....और दूसरा एक बार उनकी क्लास में लंगूर बन्दर घुस आया था.... तो बेचारे डर के मारे टेबल के नीचे घुस गए थे...तबसे उनका नाम लंगूर पड़ गया था......और वैसे भी लोग उनका असली नाम भूल ही चुके थे.  खैर.... मैं अपने वाकये पर आता हूँ।


एक बार वो हमें क्लास में इतिहास पढ़ा रहे थे..... तो किसी चैप्टर में इटली के महान दार्शनिक दांते (Dante) का ज़िक्र आया..... तो वो जब दांते के बारे में पढ़ा रहे थे...... तभी क्या हुआ की मेरे बगल में मेरा दोस्त अरुण साईंबाबा मुहँ बंद करके हंसने लगा.... तो हम कुछ लड़कों का गैंग था... सब उसकी उसकी ओर चोर नज़रों से देखने लगे.... हमने पूछा  कि  'अबे! साले हंस क्यूँ रहा है?'


तो उसने एक दूसरे  लड़के की ओर इशारा कर दिया जो कि बगल में दूसरी रो में बैठा हुआ था ... हमने उस लड़के की ओर देखा तो हम लोग सारी कहानी समझ गए.... कि  अरुण क्यूँ हंस रहा था?


दरअसल हमारे साथ एक लड़का पढता था जिसके दांत बिल्कुल सीधे बाहर की ओर निकले हुए थे.... तो अब हमारी क्लास में एक और नामकरण हो गया....उस बेचारे लड़के का नाम दांते पड़ गया...... उसके दाँत इतने बाहर थे कि मुंह बंद करने के बाद भी बाहर ही रहते थे.....और वो बेचारा अक्सर टीचर से डांट खा जाता था कि 'तुम बिना बात हँस क्यों रहे हो ?' तब पूरी क्लास एक सुर में बोलती थी,  'नहीं सर!!!!!  इसके दाँत ही ऐसे हैं ...' बेचारा टीचर भी झेल जाता था कई बार.  


और उस बेचारे का नाम दांते ऐसा पडा कि सही बता रहा हूँ....आज  भी उसको हम लोग दांते ही बुलाते हैं..... ख़ैर ! आजकल वो भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में  साइंटिस्ट है॥

बुधवार, 25 नवंबर 2009

मेरी जंग: वक़्त का सबसे बड़ा झूठ...




जब मैं खोया हुआ रहता हूँ,
एकटक छत को घूरता रहता हूँ
अपने आसपास से अनजान
और काटता रहता हूँ
दांतों से नाखून.

नहीं सुनाई देती है
कोई भी आवाज़
कोई मुझे थक हारकर
झिंझोड़ता है और पूछता है
क्यूँ क्या हुआ?

मेरे मुहँ से अचानक निकलता है
नहीं......!!!! कुछ भी तो नहीं...
यह उस वक़्त का सबसे बड़ा झूठ होता है
वास्तव में उस वक़्त मैं .....
लड़ रहा होता हूँ
एक जंग खुद से
जिसमे कुछ भी तो नहीं शामिल होता है....

बुधवार, 18 नवंबर 2009

साला! मालूम कैसे चलेगा कि मुसलमान है?




आज तबियत थोड़ी नासाज़ है.... बहुत हरारत सी हो रही है... किसी काम में मन नहीं लग रहा है.. चिडचिडाहट सी भी हो रही है... शायद  वाइरल में ऐसा ही होता है...इसलिए आज घर जल्दी आ गया ....आराम करने...पर घर पर भी किसी काम में मन नहीं लग रहा है, दवाई खायी है... अभी.... सिर्फ एक बाउल सूप पी कर...  बड़ी बोरियत सी हो रही है... शायद वाइरल में ऐसा ही होता है... अभी थोड़ी देर पहले शरद कोकास भैया से बात की.... थोडा हल्का फील कर रहा हूँ...उनसे बात कर के... उनसे और बात करने का मन था की उनकी घर की काल बेल बजी.... तो पता चला कि पोस्टमैन आया है.... और शरद भैया के लिए कोई बैरंग चिट्ठी ले के आया है... इसलिए उन्हें जाना पडा... मुझे बड़ी हंसी आई कि लोग कितना परेशां करते  हैं... बैरंग चिट्ठी भी आजकल भेजते हैं...और अपनी चिट्ठी पढ़वाने के लिए भी पैसे दिलवाते हैं.... मैंने उनसे कहा कि "ठीक है! आप चिट्ठी पढ़िए.... मैं तब तक के चाय बना कर आता हूँ... चाय खुद ही बनानी पड़ती है... क्यूंकि मेरी खाना बनाने वाली सुबह आती है... और अब वो शाम को आएगी... बाकी टाइम खुद ही बनाना पड़ता है....लोग कहते हैं.... महफूज़ भाई... तीस पार हो गए हो... अब शादी कर लो.... पिताजी भी बड़े परेशां रहा करते थे.... इसी ग़म में चले गए... वैसे मैंने उन्हें बहुत परेशां किया है पूरी ज़िन्दगी.... आज उनकी बहुत याद रही है.... काश! मैंने उन्हें परेशां नहीं  किया होता.... बहुत परेशां रहा करते थे वो मुझसे ...  मेरी हरकतें ही ऐसी थीं.... मैं एक अच्छा बेटा कभी नहीं बन पाया...  मेरे पिताजी मेरी...शादी के लिए बहुत परेशां रहते थे... सन २००८ के नवम्बर में आज ही के दिन उन्होंने .... मुझसे शादी के लिए बहुत जोर दिया था... कुछ ऐसे incidents ऐसे हो गए थे मेरी ज़िन्दगी में... जिसकी वजह से वो बहुत परेशां थे.... पर मैंने उनको फिर बहुत परेशां किया... उन्होंने मुझसे कहा भी था.. कि उनकी ज़िन्दगी का कोई भरोसा नहीं है... मुझे लगा कि हर माँ-बाप ऐसे ही कहते हैं.. और वो इसी इसी जद्दोजहद में जनुअरी २००९ में .... हमेशा के लिए मुझे छोड़ कर ...मेरी माँ के पास चले गए...  और मुझे एहसास हो गया कि वो सही कह रहे थे...

मेरे पिताजी... मेरी flirt करने कि आदत से बहुत परेशां रहा करते थे.... वो जानते थे... कि मैं खुद को किसी के साथ बाँध कर नहीं रख सकता... वो आये दिन मेरे बारे किसी फिल्म स्टार कि तरह ख़बरें सुनते थे... कि आजकल मैं किस लड़की के साथ flirt कर रहा हूँ... कई बार उन्होंने मुझे समझाया भी... पर मैं नहीं समझा.. मुझे अच्छा लगता था लड़कियों के साथ flirt करना.... मैं उनसे कहता  भी था कि क्या ज़रुरत थी इतना handsome लड़का पैदा करने की ... हा हा हा ... वैसे, मेरे पिताजी भी बहुत handsome थे... 1961 में घर से भाग कर बम्बई भी गए थे... और थोड़े दिन में आटे-दाल का भाव उन्हें पता चल गया...  तो लौट कर वापस आ गए... और अपनी पढाई पर ध्यान देने कि सोची उन्होंने... फिर 1962 में भारतीय सेना में selection लिया ...और 1963 में commissioned हुए... और 1988 में उन्होंने सेना कि नौकरी छोड़ने का फैसला किया... क्यूंकि मेरी माँ गुज़र गई थी... और हम लोग ३ भाई बहन थे...और बहुत छोटे थे हम लोग.. और सन 1990 में पिताजी.. घर आ गये ...

पर अब मैंने flirt करना छोड़ दिया है... वैसे मैं कभी भी flirt नहीं करता था...मैंने harmless flirt किया है... कभी किसी से कोई वादा नहीं किया.. किसी का दिल कभी नहीं तोडा.. नोर्मल तारीफ़ ही किया करता था... हाँ! यह था कि मेरे आस-पास लड़कियों का साथ मुझे बहुत अच्छा लगता था... लड़कियां मुझे हमेशा घेर कर रखतीं थीं... इसका सबसे बड़ा कारण यह था... कि मैं हर जगह टॉप पर रहता था... studies में, स्पोर्ट्स में, Extra Co-Curricular activities में, और अपने looks कि वजह से भी ... पर लोग उसे गलत समझ लेते थे... अच्छा! मेरे साथ यह भी था.. कि मैं अपने आगे किसी को बर्दाश्त नहीं कर पाता था...  मैं हमेशा competition में रहता था और रहता भी हूँ... मैं हर जगह खुद को टॉप पर ही देखना चाहता हूँ... और उसके लिए किसी भी हद तक जाने कि ताक़त रखता हूँ...स्कूल में जब किसी के मार्क्स मेरे से ज्यादा आते थे... तो मैं उस लड़के को मारने का बहाना खोजा करता था... और बहुत टेंशन में आ जाता था... पर टॉप पे मैं ही रहता था... मुझे लोग refined गुंडा कहते थे... आज भी कहते हैं... 

बता दूं... कि आर्मी में जाना हर Central School (केंदीय विद्यालय) के लड़के का सपना होता है.. मेरा भी था... और वैसे भी यह कहा जाता है कि जिस लड़के ने SSB नहीं दिया...उस लड़के का जीना बेकार हुआ...मैंने NDA एक्साम दो बार पास किया... और CDS सात बार... मेरा यह all India record  है... पर मैं SSB interview नहीं पास कर पाता था.. पर मैं लगा रहा... और नौ बार SSB Board गया...फ़ौज का यह रूल है... कि एक लड़का अगर एक बोर्ड में interview दे चुका है...उसको दोबारा उस board में नहीं भेजा जायेगा.. और मैं सारे बोर्ड टहल चुका था... बेचारे आर्मी वालों को मेरे लिए अलग से बोर्ड उसी जगह पर बनाना पड़ा... पर मैंने नौवीं बार में SSB INTERVIEW पास किया.. वो भी एक ऐसे बोर्ड से पास किया जो कि हिंदुस्तान का सबसे मुश्किल बोर्ड माना जाता है.... यानी कि अलाहाबाद बोर्ड से.... यह मेरा ओवर  कांफिडेंस ही था जिसकी वजह से मुझे नौ बार SSB जाना पड़ा... पर अंत में medically unfit  हो गया... क्यूंकि मेरे चश्मे का parameter उनके parameter से ज्यादा था... और यह बात मैंने उनके  prospectus  में ध्यान ही नहीं दिया... खैर! यह All India record आज भी मेरे ही नाम है... मेरे पिताजी बहुत दुखी हुए थे.... मेरे सेलेक्ट न होने पाने पर....आज पिताजी नहीं हैं.... मेरे समझ में नहीं आता कि मैं अब किसको परेशां करून....? अब कौन मेरी फ़िक्र करेगा...? 

अच्छा ...... इन्ही सब बातों के बीच एक बड़ा अच्छा वाकया याद आया है...... बचपन का.... हुआ क्या की ...उस वक्त मैं शायद नौवीं क्लास में था....... तो हुआ यह की हमारे पास बजाज स्कूटर हुआ करता था उन दिनों..... एक दिन वो स्कूटर ख़राब हो गया... तो मैं ख़ुद ही उसे खोल खाल के बनाने लगा...... कभी अपने नौकरों से कहता कि रिंच ले आओ तो कभी कहता कि प्लास्क ले आओ, कभी ग्रीस तो कभी ..तो कभी कुछ.... अन्दर से मेरे पिताजी खटर-पटर कि आवाज़ सुन के निकल के आए ......... उन्होंने देखा की मैं स्कूटर बना रहा हूँ.......पूरा स्कूटर खुला हुआ है... और मैं बड़ी तन्मयता से स्कूटर बना रहा हूँ... अच्छा! उसी दौरान मेरे एक्साम्स भी चल रहे थे... और मैं पढाई - लिखाई छोड़ कर स्कूटर बना रहा था....




थोडी देर तो पिताजी..शांत खड़े रहे .......देखते रहे....... फिर पास आ कर स्कूटर बनाते देख मुझे कहते क्या हैं की..... "साला! मालूम कैसे चलेगा की मुसलमान है? "


(हमारे हिंदुस्तान में ज्यादातर मेकानिक ...कैसे भी मेकानिक हों..... सब के सब मुसलमान ही मिलेंगे....ही ही ही ही ....)

आज पिताजी बहुत याद रहे थे... शायद बीमारी में अपने ही याद आते हैं... इसी बीच ६ कप चाय पी चुका हूँ... अदरक वाली... बड़ी अच्छी बनी थी... थर्मस में बना कर रख लिया था... वाइरल है... लेकिन AC चलाया हुआ है.... और रज़ाई ओढ़ कर टाइप कर रहा हूँ.... वाइरल में गर्मी भी लगती है.... पंखा चलाने का मन भी नहीं करता... पंखा चलता है तो चिढ होती है... नहीं चलता है तो भी चिढ  होती है... AC में तबियत और खराब होगी..यह भी जानता हूँ... लेकिन मन कर रहा है कि चलाऊँ ...इसीलिए चला कर रखा है... उम्मीद है कि तबियत और खराब होगी... लेकिन दवाई भी खाई है... और दवा का असर भी हुआ है.... अभी छः बजने का इंतज़ार है... ताऊ कि पहेली जो खेलनी है... ताऊ और रामप्यारी के बिना अब शाम नहीं होती .... रामप्यारी से भी प्यार हो गया है... मैं रामप्यारी से flirt नहीं कर रहा हूँ.... उससे मुझे सच्चा प्यार हुआ है... ताऊ और रामप्यारी कि पहेली को जीतने का बहुत बड़ा सपना है... पर आदरणीय समीरजी, ललितजी, पंडित जी, सुनीता दी, रेखा जी, मुरारी जी, और संगीता जी से रोज़ाना हार जाता हूँ.... पर इस हारने का भी एक अलग मज़ा है.... मेरी असली जीत तो आप लोगों का प्यार है...   अभी सोच रहा हूँ कि ऑफिस जाऊं...लेकिन मन नहीं कर रहा है.... 

शनिवार, 14 नवंबर 2009

कहा था तुमने की कभी बुझना नहीं.....मैं लगातार जल रहा हूँ॥




कहा था तुमने की कभी रुकना नहीं

और 

मैं लगातार चल रहा हूँ॥

ज़मीन क्या , 

आस्मां पे भी मेरे पैरों के निशाँ हैं.....

मेरी हदें मुझे पहचानतीं हैं,

और 

मैंने वीरान हुए रास्तों को भी आबाद किया है॥

शांत हो के मैं ठहर जाऊँ यह असंभव है ,

लपटों को भी चीरकर मैंने खोजे हैं किनारे 

कहा था तुमने की कभी बुझना नहीं 

और 

मैं लगातार जल रहा हूँ॥ 

रविवार, 8 नवंबर 2009

काग़ज़ पर स्वीमिंग पूल .......



तरण-ताल  (Swimming-pool)

                                                                                                               लघु-कथा

नए खेल अधिकारी ने आज विभाग ज्वाइन करते ही पूरे खेल प्रांगण और विभाग का निरीक्षण किया, फिर चपरासी को सारी पुरानी फाइलें लाने का आदेश दिया.

चपरासी ने सारी फाइलें टेबल पर लाकर रख दिया. फाइलों को देखते हुए अधिकारी की नज़र ऐसी फाइल पर पडी जिसमें एक तरण-ताल का उल्लेख था, उक्त फाइल में उनके पूर्ववर्ती अधिकारी ने तरण-ताल बनवाने के लिए शासन से पचास लाख रुपये स्वीकृत कराये थे. 



उस फाइल में खेल प्रांगण में तरण-ताल के होने का उल्लेख था जिसका उदघाटन प्रदेश के खेल-मंत्री ने भी किया था.  नए अधिकारी ने पूरे खेल-प्रांगण का दोबारा निरीक्षण किया, परन्तु कहीं तरण-ताल नही दिखा, वापस ऑफिस पहुंचकर नए खेल अधिकारी ने तुंरत शासन को पत्र लिखा की जो तरण-ताल बनवाया गया था, उसमें पिछले दो महीने में दस लोग डूब कर मर गए हैं तथा जनता की बेहद मांग पर उक्त तरण-ताल को बन्द करना पड़ रहा है.  कृपया तरण-ताल को भरने के  लिए पचास लाख रुपये जल्द-से-जल्द स्वीकृत करें....


सोमवार, 2 नवंबर 2009

तुम प्यार से मनाने का तरीका सीख लो..........




शब्दों के जाल में उलझने की बजाये ,

हाव-भाव से दिल का हाल जान लो तुम।

एक सुरक्षित सहारा ....... एक ऐसा आगोश,

जहाँ दुनिया के किसी खतरे से डर न लगे॥

तारीफ़ की दरकार है मुझे..... 



कोई तो हो जिसकी , 


नज़रों में सिर्फ़ मेरा ही अक्स नज़र आए॥

मैं भी पहचान रखता हूँ, अपना मुकाम रखता हूँ,

इसे कोई मेरा अहम् न समझे, स्वाभिमान समझे॥

मेरी भावुकता को कमजोरी न समझे! 



जो दिल का सम्मान करे,

वही सच्चा साथी॥

मुझसे बात करो! 




संवाद का सोता सूखा,

तो शरीर का सम्बन्ध भी फीका लगता है॥

मैं उड़ना चाहता हूँ, आगे बढ़ना चाहता हूँ,

मगर तुम्हारे साथ, तुम्हारे सहारे! 



बोलो ! क्या मंज़ूर है?

ग़र मैं उलझ जाऊँ, नाराज़ हो जाऊँ तो..... 

तुम प्यार से मनाने का तरीका सीख लो॥

शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2009

...मत बनाना मेरा बुत, मेरी मौत के बाद....




मैं हमेशा चलना चाहता हूँ, 


बोलना  चाहता हूँ, 


सुनना  चाहता हूँ,


मत बनाना मेरा बुत,


मेरी मौत के बाद,


क्यूंकि


मैं नहीं चाहता बहरा , 


गूंगा और निश्चल होना.........











महफूज़ अली

मंगलवार, 27 अक्तूबर 2009

मुझे हर पल ज़रुरत है तुम्हारी, मत छोड़ो साथ मेरा कि आँसू भी साथ न निभा पायें .....



अहसास साथ हैं,
हर पल
हर वक्त
पर ऐसा लगता है
की
खोया हुआ सा है कुछ।
नही हो तुम मेरी कल्पना
हो तुम मेरा यथार्थ
ख़ुद राह मैं तलाशूंगा
जब तुम दोगी
मेरा साथ।
मुझे हर पल ज़रुरत है तुम्हारी,
जलते रहने के लिए,
धड़कते रहने के लिए,
मत आओ एक हवा के झोंके की तरह
मेरी ज़िन्दगी में ,
जो बुझा जाये मेरी लौ को।
मत छोडो अकेला मुझे,
एक ऐसे मोड़ पे ,
जहाँ वक़्त भी मेरा साथ न दे पाए ,
मुस्कान भी रूठ जाए ,
और ........................
आंसू भी साथ न निभा पाए ।।

रविवार, 25 अक्तूबर 2009

वादा करो छोडोगी नहीं तुम मेरा साथ.....



तन्हाई में जब मैं
अकेला होता हूँ,
तुम पास आकर दबे पाँव
चूम कर मेरे गालों को,
मुझे चौंका देती हो,
मैं ठगा सा,
तुम्हें निहारता हूँ,
तुम्हारी बाहों में, 
मदहोश हो कर खो जाता हूँ.
सोच रहा हूँ.....
कि अब की बार तुम आओगी,
तो नापूंगा तुम्हारे
प्यार की गहराई को....
आखिर कहाँ खो जाता है
मेरा सारा दुःख और गुस्सा ?
पाकर साथ तुम्हारा,
भूल जाता हूँ मैं अपना सारा दर्द
देख कर तुम्हारी मुस्कान और बदमाशियां....
मैं जी उठता हूँ,
जब तुम,
लेकर मेरा हाथ अपने हाथों में,
कहती हो.......
मेरे बहुत करीब आकर
कि रहेंगे हम 
साथ हरदम...हमेशा....

गुरुवार, 22 अक्तूबर 2009

आइये जानें क्यों यूरोपीय व कुछ एशियाई देश शून्य (ज़ीरो) को 'ओ' (O) बोलतें हैं?


काफी लोगों को मालूम है कि पूरा यूरोप और एशिया के कुछ देश (जिसमें भारत यानि  कि That is India भी) ज़ीरो यानि कि शून्य को ज़ीरो यानि कि शून्य नहीं बोलतें हैं. अंग्रेज़ी का 'O' (ओ) अक्षर बोलतें हैं. अब सौ कि वर्तनी अंग्रेज़ी में बोलनी है तो वो वन ओ ओ बोला जाएगा, वन ज़ीरो(शून्य) ज़ीरो(शून्य) नहीं. यह हम में से सबने देखा भी है और सुना भी है. पर यह यूरोप और कुछ एशिया के देशों में ही प्रचलित है.   अब तो कुछ तथाकथित खुद को नस्ल से भारतीय कहने वाले भी शून्य (ज़ीरो) को 'ओ' ही बोलते हैं, और 'ओ' बोलने में फख़्र महसूस करते हैं. आखिर ऐसा क्या और क्यूँ है जो यूरोपीय और कुछ एशिया के देश ज़ीरो यानि कि शून्य को अंग्रेज़ी का 'ओ '(O) बोलते हैं? आइये यह जानने से पहले शून्य (ZERO) का इतिहास जान लें?

शून्य (ज़ीरो) का इतिहास:---

इसमें कोई शक नहीं कि शून्य (ज़ीरो) के आविष्कार का श्रेय भारत को जाता है. इसको शुरू से डॉट (.) के रूप में लिखा जाता रहा है या फिर गोलाकार रूप में लिखा जाता है. इसको डॉट (.) या गोलाकार रूप में इसलिए लिखा जाता है/था क्यूंकि गोलाकार का मतलब "घूम फिर के वही" होता है यानि कि कुछ नहीं. संस्कृत में भी शून्य का मतलब कुछ नहीं होता है. और यह गोलाकार रूप में लिखना भी संस्कृत से ही निकला है..

इतिहासकार मानते हैं कि सन 458 A.D. से शून्य (ज़ीरो) अस्तित्व में आया. परन्तु इसपर काफी मतभेद है. पुरातन काल में अंकों को प्राकृतिक चीज़ों को आधार बना कर लिखा जाता था. उदाहरण के तौर पर: अगर १ लिखना है तो चाँद या सूरज बना कर लिख दिया जाता था, २ लिखना है तो दो आँखें बना कर लिख दिया जाता था. इसी तरह दशमलव प्रणाली के तहत शून्य को डॉट (.) या फिर गोलाकार रूप में लिख दिया जाता था. यह भारतीय ही थे जिन्होंने दशमलव प्रणाली (Decimal Point Sysytem) का आविष्कार किया और इसी के साथ शून्य (ज़ीरो) का आविष्कार हुआ.

शून्य (ज़ीरो) के बारे में सबसे पहले महान गणितज्ञ 'ब्रह्मगुप्त' (598-660 A.D)  जिनका जन्म मुल्तान (अब पाकिस्तान में) हुआ,  ने अपनी पुस्तक "ब्रह्मगुप्त सिद्धांत" में दिया. जिसको बाद में भारतीय गणितज्ञ 'भास्कर' (1114-1185A.D.) ने थोडा संशोधित करते हुए, अपनी पुस्तक "लीलावती' में विस्तारपूर्वक लिखा. शून्य (ज़ीरो) के आविष्कार से ही प्रेरित होकर भारतीयों ने ऋणात्मक अंकों का आविष्कार किया और बाद में बीज गणित (algebra) को विकसित किया. 
आठवीं शताब्दी के दौरान बग़दाद के राजा "खोलोफ़-अल-मंसूर" ने अपने कुछ दरबारियों को भारत के सिंध प्रांत (अब पाकिस्तान में) गणित, ख़गोल-शास्त्र, तथा चिकित्सा-शास्त्र पढने के लिए भेजा. यह दरबारी अपने साथ कुछ महत्वपूर्ण किताबें भी ले गए, जिनको इन्होने अरबी भाषा में रूपांतरित/अनुवाद किया.

अरब के प्रसिद्ध गणितज्ञ अल-ख्वारिज़मी (790 AD-850AD) सन 830 A.D. में  भारत आये और भारतीय अंक प्रणाली को पूरे विश्व में अपनी किताब 'हिसाब-अल-जब्र-व-अल-मुकाबीलाह' के द्वारा प्रसिद्ध किया. इन्होने संस्कृत शब्द 'शून्य' को अरबी में 'सिफ़्र' अनुवाद किया, जिसका मतलब कुछ नहीं होता है. यही 'सिफ़्र' लैटिन में "ज़फ्यर" (ZEPHYR) हो गया. जो आगे चल कर फ्रेंच में zero (ज़ीरो) हो गया.... और यही ज़ीरो फ्रेंच से अंग्रेज़ी में आ गया... 
आज पूरे विश्व में ज़ीरो (शून्य) के आविष्कार से भारत कि एक अलग महत्ता है. 

आइये अब जानें क्यूँ यूरोपीय व कुछ एशियाई देश शून्य (ज़ीरो) को 'ओ' (O) बोलतें हैं? 

अब जैसा कि हम सब को मालूम है कि शून्य (ज़ीरो) भारत की देन है. और शून्य (ज़ीरो) को अंग्रेज़ी के "O" आकार में लिखते हैं जिसको जब हम लिखते हैं तो जहाँ से शुरू करते हैं तो वहीँ पर ख़त्म भी करते हैं. और शून्य का मतलब "कुछ नहीं" होता है. यानी की घूम-फिर के वही. हमें यह भी मालूम है कि यूरोपियन देशों में भारत को सपेरों का देश कहा जाता है, तो इन यूरोपिअनों से कभी बर्दाश्त नहीं हुआ कि कैसे एक सपेरों के देश ने शून्य (ज़ीरो) का आविष्कार कर दिया? जबकि सारे महत्वपूर्ण आविष्कार यूरोपीय देशों में ही हुए हैं. यूरोपियन देश भारत को नीचा दिखाने के लिए शून्य या फिर ज़ीरो नहीं बोलते हैं.... ज़ीरो भी इसलिए नहीं बोलते हैं...  क्यूंकि लैटिन भाषा कि उत्पत्ति स्पेनिश और पोर्टुगुइसे(Portuguese) भाषा  से हुई है... और स्पेन,फ्रांस और पुर्तगाल ब्रिटिश और अमरीकन साम्राज्य (COLONY) रहे हैं..... जिनको अपनाना यूरोपियन देशों कि शान के खिलाफ रहा है.....
और यही रवैया यह देश भारत के साथ अपनाते हैं... यूरोपियन देशों के स्कूलों में शून्य (ज़ीरो) नहीं बताते हैं.... अगर हम इन्टरनेट पर भी शून्य से सम्बंधित लेख देखें तो उन लेखों में यूरोपियन टच मिलेगा...... न कि भारतीय....  यह देश शून्य या ज़ीरो न बोल के हम भारतीयों कि बेईज्ज़ती करते हैं, तथा हमारी उपलब्धियों को नकारते हैं... 1956 में एक अमरीकन फिल्म "ALEXANDER THE GREAT" आई थी उसमें भी यही बताया गया था कि ज़ीरो यानि कि शून्य का आविष्कार PTOLEMY ने किया था. जिस पर भारत कि ओर से कोई बहस नहीं कि गई थी. 
आज विडम्बना यह भी देखिये.... कि कई भारतीय भी अब शून्य यानी कि ज़ीरो को 'ओ' (O) ही बोलते हैं. शायद वो जानते नहीं हैं.... कि 'ओ' (O) बोल कर खुद कि ही बेईज्ज़ती कर रहें हैं. 


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